1#दिवाली पर इस कथा के बिना अधूरी मानी जाती है लक्ष्मी पूजन, जरुर पढ़ें ये कथा 2023🙏👇

दिवाली पर मां लक्ष्मीजी और भगवान गणेश जी पूजा करने का विधान है। इस साल दिवाली 24 अक्टूबर को है। दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा के साथ साथ उनकी यह कथा पढ़ने से भी व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है। यहां पढ़ें दिवाली की कथा।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसकी एक लड़की थी। उसने देखा कि लक्ष्मी जी पीपल से निकला करती हैं। एक दिन लक्ष्मी जी उस साहूकार की लड़की से बोली कि मैं तुझ पर बहुत प्रसन्न हूं। इसलिए तू मेरी सहेली बन सकती है। लड़की बोली क्षमा कीजिए मैं अपने माता पिता से पूछकर बताऊंगी। इसके बाद वह आज्ञा पाकर श्री लक्ष्मीजी की सहेली बन गई। 
महालक्ष्मी जी उससे बहुत प्रेम करती थी।
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस लड़की को भोजन का निमंत्रण दिया। जब लड़की भोजन करने के लिए आई तो लक्ष्मी जी ने उसे सोना चांदी के बर्तनों में खाना खिलाया। सोना की चौकी पर बिठाया और उसे बहुमूल्य वस्त्र ओढ़ने को दिए। इसके बाद लक्ष्मी जी ने कहा कि मैं भी कल तुम्हारे यहां आऊंगी। लड़की ने स्वीकार कर लिया और अपने माता पिता को सब हाल कहकर सुनाया। यह सुनकर उसके माता पिता बहुत खुश हुए। लेकिन, लड़की उदास होकर बैठ गई। कारण पूछने पर उसने अपने माता पिता को बताया कि लक्ष्मी जी का वैभव बहुत बड़ा है। मैं उन्हें कैसे संतुष्ट कर सकूंगी। उसके पिता ने कहा कि बेटी गोबर से जमीन को लीपकर जैसा भी बन पड़े रूखा सूखा श्रद्धा और
प्रेम से खिला देना।।
यह बात पिता कह भी न पाए की एक चील वहां मंडराते हुए आई और किसी रानी का नौलखा हार वहां डालकर चली गगई। यह देखकर साहूकार की लड़की बहुत प्रसन्न हुई। उसने उस हार को बेचकर लक्ष्मीजी के भोजन का इंतजाम किया। इसके बाद वहां श्री गणेशजी और लक्ष्मी जी वहां आ गए। लड़की ने उन्हें सोने की चौकी पर बैठने को कहा। इस पर महा लक्ष्मीजी और गणेशजी ने बड़े प्रेम से भोजन किया। लक्ष्मी जी और गणेशजी के आने से साहूकार का घर सुख संपत्ति से भर गया। हे लक्ष्मी माता जिस प्रकार उस लड़की पर अपनी कृपा बरसाई। उसी प्रकार सभी घरों में सुख संपत्ति देना।।।।।।।
Devshayani Ekadashi 2023: बेहद शुभ योग में देवशयनी एकादशी, शाम के वक्‍त इन उपायों को करने से प्रसन्‍न होंगी मां लक्ष्‍मी।।।

#1बुधवार को गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए जरूर करे ये आसान उपाय 1#🙏🌷👇🌹👇

👇👸सब लोग जानते हैं भगवान गणेश प्रथम पूज्य देव हैं सभी देवी देवताओ में सर्व प्रथम पूजे जातें हैं आज गणेश भगवान को प्रसन्न करने का छोटा सा तरीका।
बताती हूं इसे करके आप भी गणेश भगवान को प्रसन्न कर सकते हैं।
गणेश भगवान जी को दुर्वा अतिप्रिय हैंआप बुधवार को श्री 
भगवान गणेश जी को दूर्वा अर्पित करके मनोबंचित फल प्राप्त कर सकते हैं ।
लाल सिंदूर भगवान गणेश को अति प्रिय हैं  गणेश भगवान को आप बुधवार लाल सिंदूर अर्पित करें। ॐ श्री गणेशाय नमः। बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित हैं बुधवार को  ये छोटे नुस्खे आप भी आजमा कर देखें। भगवान गणेश जी की कृपा जरूर होगी सभी भक्तो पर।
गणेश भगवान जी की जय।

1#ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे 🙏👇 पढ़िए भगवान विष्णु जी की आरती।

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे | 1
 
 | ॐ जय जगदीश हरे |
 
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं मैं किसकी
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी |
 तुम पूरण परमात्मा,
तुम अंतर्यामी
स्वामी तुम अंतर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी |2
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
तुम करुणा के सागर,
तुम पालन कर्ता
स्वामी तुम पालन कर्ता
मैं मूरख खल कामी ,
कृपा करो भर्ता ।3

 |ॐ जय जगदीश हरे |
 तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति |4
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
दीनबंधु दुखहर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी ठाकुर तुम मेरे
अपने हाथ उठा‌ओ,
द्वार पड़ा मैं तेरे |5
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
विषय विकार मिटा‌ओ,
पाप हरो देवा,
स्वामी पाप हरो देवा,
श्रद्धा भक्ति बढ़ा‌ओ,
संतन की सेवा |6
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
श्री जगदीश जी की आरती,
जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी,
सुख संपत्ति पावे |7
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
। इति श्री विष्णु आरती ।
 
“ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट क्षण में दूर करे ॐ जय जगदीश हरे”
बोलो श्री हरि विष्णु भगवान की जय।।

#1राम कथा श्री राम की रामायण 🙏🙏👇👇

जय श्री राम जय श्री हनुमान जी की।
आज मैं आपको प्रभु श्री राम जी की छोटी सी कहानी सुनाने जा रही हूं, वैसे तो राम जी की कहानी बहुत बड़ी है लेकिन मैं छोटी सी कहानी सुना रही हूं।
रामायण श्री राम की एक अद्भुत अमर कहानी है जो हमें विचारधारा, भक्ति, कर्तव्य, रिश्ते, धर्म, और कर्म को सही मायने में सिखाता है।
 
श्री राम अयोध्या के राजा दशरथ के जेष्ट पुत्र थे और माता सीता उनकी धर्मपत्नी थी। 

राम बहुत ही साहसी, बुद्धिमान और आज्ञाकारी और सीता बहुत ही सुन्दर, उदार और पुण्यात्मा थी। 

माता सीता की मुलाकात श्री राम से उनके स्वयंवर में हुई जो सीता माता के पिता, मिथिला के राजा जनक द्वारा संयोजित किया गया था। 

यह स्वयंवर माता सीता के लिए अच्छे वर की खोज में आयोजित किया गया था।
 जय श्री राम जय राम सियाराम
यह स्वयंवर माता सीता के लिए अच्छे वर की खोज में आयोजित किया गया था।
 
उस आयोजन में कई राज्यों के राजकुमारों और राजाओं को आमंत्रित किया गया था। 

शर्त यह थी की जो कोई भी शिव धनुष को उठा कर धनुष के तार को खीच सकेगा उसी का विवाह सीता से होगा। 

सभी राजाओं ने कोशिश किया परन्तु वे धनुष को हिला भी ना सके। 

जब श्री राम की बारी आई तो श्री राम ने एक ही हाथ से धनुष उठा लिया और जैस ही उसके तार को खीचने की कोशिश की वह धनुष दो टुकड़ों में टूट गया। 

इस प्रकार श्री राम और सीता का मिलन / विवाह हुआ।
राम राम जय श्री राम राम जय श्री राम
अयोध्या के राजा दशरथ के तीन पत्नियां और चार पुत्र थे। राम सभी भाइयों में बड़े थे और उनकी माता का नाम कौशल्या था। 

भरत राजा दशरथ के दूसरी और प्रिय पत्नी कैकेयी के पुत्र थे। दुसरे दो भाई थे, लक्ष्मण और सत्रुघन जिनकी माता का नाम था सुमित्रा।
 
प्रभु राम को भगवान विष्णु का अवतार माना जाता है। 

अयोध्या के राजा दशरथ की तीन रानियां थीं। किन्तु किसी रानी से संतान की प्राप्ति नही हुई। 

तत्पश्चात, राजा दशरथ ने पुत्र पाने की इच्छा अपने कुलगुरु महर्षि वशिष्ठ से बताई। म

हर्षि वशिष्ठ ने विचार कर ऋषि श्रृंगी को आमंत्रित किया। ऋषि श्रृंगी ने राजा दशरथ को पुत्र प्राप्ति के लिए यज्ञ करने का प्रावधान बताया।
राम राम जय जय श्री राम राम जय 
ऋषि श्रृंगी के निर्देशानुसार राजा दशरथ ने यज्ञ करवाया जब यज्ञ में पूर्णाहुति दी जा रही थी उस समय अग्नि कुण्ड से अग्नि देव मनुष्य रूप में प्रकट हुए तथा अग्नि देव ने राजा दशरथ को खीर से भरा कटोरा प्रदान किया। 

तत्पश्चात ऋषि श्रृंगी ने बताया हे राजन, अग्नि देव द्वारा प्रदान किये गए खीर को अपनी सभी रानियों को प्रसाद रूप में दीजियेगा।
 
राजा दशरथ ने वह खीर अपनी तीनो रानियों कौशल्या, कैकेयी एवम सुमित्रा में बांट दी।
 
प्रसाद ग्रहण के पश्चात निश्चित अवधि में अर्थात चैत्र माह में शुक्ल पक्ष की नवमी को राजा दशरथ के घर में माता कौशल्या के गर्भ से राम जी का जन्म हुआ तथा कैकेयी के गर्भ से भरत एवं सुमित्रा के गर्भ से लक्ष्मण तथा शत्रुधन का जन्म हुआ। 

राजा दशरथ के घर में चारो राजकुमार एक साथ समान वातावरण में पलने लगे। राम जन्म की ख़ुशी में उसी समय से राम भक्त रामनवमी पर्व मनाते है।
जय श्री राम जय जय श्री राम राम राम राम।

1#इस सावन भोलेनाथ पूरी करेंगे सारी मनोकामना, सोमवार व्रत अधूरा हैं इस कहानी के बिना 🙏🙏👇👇

सोमवार के व्रत को लेकर मान्यता है कि इस व्रत को करने से भगवान शिव अपनी भक्तों की मुराद जल्दी पूरी करते हैं। सोमवार का दिन भगवान शिव को समर्पित है। इसलिए इस दिन भगवान शिव की पूजा और व्रत करने का महत्व और ज्यादा बढ़ जाता है। यदि आप सोमवार के व्रत करते हैं तो आपको सोमवार व्रत कथा पढ़ना बेहद जरुरी है। क्योंकि, इसके बिना आपका व्रत अधूरा माना जाता है। आइए जानते है सोमवार व्रत कथा।
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देवों के देव महादेव बहुत ही भोले माने जाते हैं, इसलिए उनका एक नाम भोलेनाथ भी है। पौराणिक मान्यतानुसार, भगवान शंकर को प्रसन्‍न करने के लिए किसी भी तरह के खास विशेष पूजन की आवश्‍यकता नहीं होती। क्‍योंकि कहा जाता है कि वह तो भोले हैं और भक्‍त की मन से की गई क्षणिक मात्र की भक्ति से ही वह प्रसन्‍न हो जाते हैं। अगर आप भी शिव की भक्ति और कृपा पाने के लिए सावन के सोमवार का व्रत करते हैं तो इस कथा से भोलेनाथ को प्रसन्‍न कर सकते हैं।
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एक बार किसी एक नगर में एक साहूकार था। उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन कोई संतान न होने के कारण वह बहुत दुखी था। संतान प्राप्ति के लिए वह हर सोमवार को व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करता था। उसकी भक्ति देखकर एक दिन मां पार्वती प्रसन्न होकर भगवान शिव से साहूकार की मनोकामना पूर्ण करने का निवेदन किया। पार्वती जी के आग्रह पर भगवान शिव ने कहा कि ‘हे पार्वती, इस संसार में हर प्राणी को उसके कर्मों का फल मिलता है और जिसके भाग्य में जो हो उसे भोगना ही पड़ता है’ लेकिन पार्वती जी ने साहूकार की भक्ति देखकर उसकी मनोकामना पूर्ण करने की इच्छा व्यक्त की। माता पार्वती के आग्रह पर शिवजी ने साहूकार को पुत्र-प्राप्ति का वरदान तो दिया लेकिन उन्होंने बताया कि यह बालक 12 वर्ष तक ही जीवित रहेगा
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माता पार्वती और भगवान शिव की बातचीत को साहूकार सुन रहा था, इसलिए उसे ना तो इस बात की खुशी थी और ना ही दुख। वह पहले की भांति शिवजी की पूजा करता रहा। कुछ समय के बाद साहूकार की पत्नी ने एक पुत्र को जन्म दिया। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का हुआ तो उसे पढ़ने के लिए काशी भेज दिया गया। साहूकार ने पुत्र के मामा को बुलाकर उसे बहुत सारा धन देते हुए कहा कि तुम इस बालक को काशी विद्या प्राप्ति के लिए ले जाओ। तुम लोग रास्ते में यज्ञ कराते जाना और ब्राह्मणों को भोजन-दक्षिणा देते हुए जाना। दोनों मामा-भांजे इसी तरह यज्ञ कराते और ब्राह्मणों को दान-दक्षिणा देते काशी नगरी निकल पड़े। इस दौरान रात में एक नगर पड़ा जहां नगर के राजा की
कन्या का विवाह था, लेकिन जिस राजकुमार से उसका विवाह होने वाला था वह एक आंख से काना था। राजकुमार के पिता ने अपने पुत्र के काना होने की बात को छुपाने के लिए सोचा क्यों न उसने साहूकार के पुत्र को दूल्हा बनाकर राजकुमारी से विवाह करा दूं। विवाह के बाद इसको धन देकर विदा कर दूंगा और राजकुमारी को अपने नगर ले जाऊंगा। लड़के को दूल्हे के वस्त्र पहनाकर राजकुमारी से विवाह करा दिया गया 
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साहूकार का पुत्र ईमानदार था। उसे यह बात सही नहीं लगी इसलिए उसने अवसर पाकर राजकुमारी के दुपट्टे पर लिखा कि ‘तुम्हारा विवाह तो मेरे साथ हुआ है लेकिन जिस राजकुमार के संग तुम्हें भेजा जाएगा वह एक आंख से काना है। मैं तो काशी पढ़ने जा रहा हूं।’ जब राजकुमारी ने चुन्नी पर लिखी बातें पढ़ी तो उसने अपने माता-पिता को यह बात बताई। राजा ने अपनी पुत्री को विदा नहीं किया फिर बारात वापस चली गई। दूसरी ओर साहूकार का लड़का और उसका मामा काशी पहुंचे और वहां जाकर उन्होंने यज्ञ किया। जिस दिन लड़का 12 साल का हुआ उस दिन भी यज्ञ का आयोजन था लड़के ने अपने मामा से कहा कि मेरी तबीयत कुछ ठीक नहीं है। मामा ने कहा कि तुम अंदर जाकर आराम कर लो। शिवजी के वरदानुसार कुछ ही देर में उस बालक के प्राण निकल गए। मृत भांजे को
देख उसके मामा ने विलाप करना शुरू किया। संयोगवश उसी समय शिवजी और माता पार्वती उधर से जा रहे थे। पार्वती माता ने भोलेनाथ से कहा- स्वामी, मुझे इसके रोने के स्वर सहन नहीं हो रहा, आप इस व्यक्ति के कष्ट को अवश्य दूर करें।
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जब शिवजी मृत बालक के समीप गए तो वह बोले कि यह उसी साहूकार का पुत्र है, जिसे मैंने 12 वर्ष की आयु का वरदान दिया था, अब इसकी आयु पूरी हो चुकी है लेकिन मातृ भाव से विभोर माता पार्वती ने कहा कि हे महादेव, आप इस बालक को और आयु देने की कृपा करें अन्यथा इसके वियोग में इसके माता-पिता भी तड़प-तड़प कर मर जाएंगे। माता पार्वती के पुन: आग्रह पर भगवान शिव ने उस लड़के को जीवित होने का वरदान दिया। शिवजी की कृपा से वह लड़का जीवित हो गया। शिक्षा पूरी करके लड़का मामा के साथ अपने नगर की ओर वापस चल दिया। दोनों चलते हुए उसी नगर में पहुंचे, जहां उसका विवाह हुआ था। उस नगर में भी उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया। उस लड़के के ससुर ने उसे पहचान लिया और महल में ले जाकर उसकी खातिरदारी की और अपनी पुत्री को विदा किया।
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इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे। उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए। उसी रात भगवान शिव ने साहूकार के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है। इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।
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कृपया पूरा लेख पढ़े धन्यवाद 🙏🙏

1#रविवार को सूर्यदेव की पूजा करने के बाद जरूर पढ़ें ये व्रत कथा, सारी परेशानियां होंगी दूर🙏🙏🌹🌹🥀🥀🌷🌷👍👍

पृथ्वी पर प्रकाश का प्रमुख स्रोत सूर्य है. सूर्य के प्रकाश से ही पृथ्वी पर जीवन संभव है. इनके पूजन से व्यक्ति को आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त होती है.हिंदू धर्म में सूर्य देव का अति विशिष्ट महत्व है. हिंदू के पंचदेवों में सूर्य भगवान भी एक हैं. ज्योतिष में सूर्य को ग्रहों का राजा भी माना जाता है. रविवार का दिन इन्हीं सूर्य देव को समर्पित होता है. इस दिन व्रत रखकर भगवान सूर्य देव की पूजा करनी चाहिए और उन्हें सूर्योदय के समय जल का अर्घ्य देना चाहिए. सूर्य देव को व्यक्ति के जीवन में मान-सम्मान, पिता-पुत्र और सफलता का कारक माना गया है. धार्मिक मान्यता है कि भगवान सूर्य की पूजा करने से व्यक्ति को आरोग्य प्राप्त होता है. उसे मान –सम्मान प्राप्त होता है. इस लिए रविवार के दिन व्रत रखकर सूर्य की पूजा करें और व्रत कथा जरूर पढ़ें. मान्यता है कि इससे मनुष्य की सारी विपत्तियां दूर होती हैं.रविवार की व्रत कथा:👇👇👇👇👇
पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन काल में एक बुढ़िया रविवार का व्रत रखती थी. वह हर रोज सुबह उठकर आंगन को पड़ोसन की गाय के गोबर से लीपकर स्वच्छ करती और फिर स्नान आदि के बाद विधि पूर्वक सूर्य देव का पूजन करती और व्रत कथा सुनती. इस तरह से वह अति खुश और सुखी रहती. सूर्य भगवान की अनुकंपा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिंता एवं कष्ट नहीं था. धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था. इसे देखकर उसकी पड़ोसन उससे ईर्ष्या करती. ईर्ष्या वश पड़ोसन ने एक दिन अपनी गाय को अपने आँगन में बांध दिया ताकि बुढ़िया को गोबर न मिले.


ऐसे में उस रविवार को गोबर न मिलने के कारण बुढ़िया भगवान सूर्य की उपासना न कर सकी और रात में बिना कुछ भी ग्रहण किये हुए सो गई. जब सुबह उसने देखा तो घर में एक सुंदर गाय और बछड़ा बंधा था. इससे देख वह अति प्रसन्न हुई. बुढ़िया के यहाँ गाय और बछड़ा देखकर पड़ोसन की आँखें फटी की फटी रह गई. इतने पर गाय ने सोने का गोबर किया, जिसे पड़ोसन ने चोरी से उठा लायी. इस तरह वह रोज बुढ़िया के गाय का स्वर्ण गोबर उठा लाती. इससे पड़ोसन खूब धन धान्य से परिपूर्ण हो गई है. यह घटना जब सूर्य देव ने देखा तो उन्होंने रात में तेज आंधी चलाई. इससे बुढ़िया ने गाय को घर केआंगन में बांध लिया. जब सुबह उसने सोने का गोबर देखा तो वह अति प्रसन्न हुई. इससे पड़ोसन जलभुन कर बुढ़िया के बारे में राजा को खबर कर दी. राजा ने बुढ़िया से गाय और बछड़ा छीन लिया जिससे बुढ़िया की स्थिति फिर दयनीय हो गई. तब सूर्य देव ने राजा को स्वप्न दिखाया कि यदि वह बुढ़िया की गाय वापस नहीं करता तो उसका महल नष्ट हो जायेगा. और उसके ऊपर विपत्तियों का पहाड़ टूट पड़ेगा. सुबह होते ही राजा ने बुढ़िया की गाय वापस कर दी और उसके पड़ोसन को उचित दंड भी दिया, तथा पूरे राज्य में रविवार व्रत रखकर सूर्य देव की पूजा का आदेश दिया. इससे सभी लोगों के घर धन-धान्य से भर गए, राज्य में चारों ओर खुशहाली छा गई.🙏🙏🙏🙏🙏🙏
कृपया पूरा लेख पढ़ें..

1# श्री खाटू श्याम जी की जीवन कथा का वर्णन पढ़िए भक्ति कहानी 🙏🌹👇

राजस्थान के जयपुर के सीकर जिले में स्थित है। खाटू श्याम जी का यहाँ का मंदिर भारत देश में कृष्ण भगवान के चित्र सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं, जिनमें कलयुग के सबसे प्रसिद्ध भगवान माने जाते हैं। हिन्दू धर्म के अनुसार खातू शाम जी को कलयुग में कृष्ण अवतार माना गया है। खाटू श्याम मंदिर के बारे में बताया गया है कि खाटू श्याम जी का यह मंदिर महाभारत काल में बना था, इस मंदिर का इतिहास महाभारत के युद्ध में भी देखा जा सकता है। इसी बजह से देश भर के अवशेष और पर्यटन खाटू श्याम जी की कहानी और उनके जीवन कथा के बारे में जानने के लिए यदि आप भी श्याम जी की जीवन कथा को जानने के इच्छुक हैं तो इस लेख को पूरा करें। आपको खाटू श्याम जी की कहानी और खाटू श्याम के चमत्कार देखने वाले हैं -
बोलिए श्री खाटू श्याम बाबा जी की जय 🙏🙏
हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार खाटू श्याम जी का जन्म या बर्बरीक का जन्म महाभारत काल के दौरान हुआ था वे गदाधारी भीम और नाग कन्या मौरवी के पुत्र थे।
भारत के सबसे प्रसिद्ध कृष्ण मंदिर में से एक खाटू श्याम जी के मंदिर के मुख्य रूप से महाभारत के दानव कहे जाने वाले बर्बरीक को समर्पित है। ये खाटू श्याम जी की जीवन कथा महाभारत से शुरू होती है। आपको बता दें कि सबसे पहले खाटू श्याम जी का नाम क्या था। वे बलवान गदाधारी भीम और नाग कन्या मौरवी के पुत्र थे। बचपन से ही थे वे वीर योद्धा बनने के सारे गुण। उन्होंने युद्ध करने की कला अपनी मां और श्रीकृष्ण से सीखी थी। उन्होंने भगवान शिव की घोर तपस्या करके तीन बाण प्राप्त किये। ये तीन बाण उन्हें तीन लोकों में विजयी बनाने के लिए काफी थे। एक बार जब उन्हें पता चला कि कौरवों और पांडवों के बीच युद्ध हो रहा है, तो वे भी युद्ध में शामिल हो गए। इसके लिए जब वे अपनी मां के पास आशीर्वाद लेकर गए तो उन्होंने पक्ष की ओर से युद्ध का वचन दिया।
जय बाबा खाटू श्याम जी।
जब उन्हें बर्बरीक के इस वचन का पता चला तो वे ब्राह्मण का रूप धारण कर अपना झूठा आरोप लगाने लगे और देखने लगे कि वे तीन बान से युद्ध क्या लड़ेंगे। तब बार्बीक ने कहा कि उनकी एक बन ही शत्रु सेना को मारने के लिए काफी है, ऐसे में अगर वे तीन तीरों का इस्तेमाल करते हैं तो ब्रह्मांड का विनाश हो जाएगा। इस ज्ञानी भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को चुनौती दी कि पीपल के इन सभी शिष्यों को वेदकर बताया। बार्बीक ने चुनौती स्वीकार की। अपनी परीक्षा लेने के लिए श्रीकृष्ण ने एक पंखुड़ी अपने पैरों के नीचे दबा ली। बर्बरीक ने एक बाण से सभी स्टाइकों पर निशान लगा दिया और श्रीकृष्ण के बाकी बाणों के पास चक्कर लग गए और श्रीकृष्ण से कहा कि एक बाण से आपके पैर के नीचे दबा हुआ है, आपके एक पैर से बाकी अन्य आपके पैर के नीचे चोट लग जाएगी।
जय बाबा जी की ।।
इसके बाद श्रीकृष्ण ने बार्बिक से पूछा कि वे युद्ध में किसकी तरफ से शामिल होंगे। बैरिक ने जवाब दिया कि जो पक्ष हारेगा वे अपनी तरफ से युद्ध लड़ेंगे। श्रीकृष्ण को पता था कि युद्ध में हार तो कौरवों की है, ऐसे में अगर बार्बीक ने अपने साथ लड़ाई लड़ी तो गलत नतीजे सामने आ सकते हैं। उन्होंने बार्बीक को अपने दान की मांग पर रोक लगा दी। दान में उन्होंने बार्बिक का सिर मांगा। बरबीक ने कहा कि मैं दान जरूर करूंगा। उन्होंने श्रीकृष्ण के स्टेज में अपना सिर काट कर रख दिया और अपनी आखिरी इच्छा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वे महाभारत के युद्ध को अंत तक अपनी आंखों से देखना चाहते हैं। श्रीकृष्ण ने उनकी इच्छा स्वीकार करते हुए बर्बरीक के सिर को युद्ध वाली जगह पर एक पहाड़ी के ऊपर रख दिया, जहां से बर्बरीक ने अपनी आंखों से अंत तक महाभारत युद्ध देखा। युद्ध के बाद पांडव युद्ध लगे कि युद्ध में जीत का श्रेय किसको जाता है। तब बर्बरीक ने कहा कि श्रीकृष्ण के कारण वे युद्ध जीते हैं। श्रीकृष्ण बाबरीक के इस बलिदान से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें कलयुग में श्याम के नाम से पूजने का अनमोल वचन दिया।।
जय बाबा की 🙏🌹🙏🌹
महाभारत युद्ध के बाद बर्बरीक का सिर खाटू गांव में दफनाया गया था इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहते हैं। एक बार एक गांव में एक गाय अपने स्तनों से इस जगह पर दूध बहा रही थी, जब लोगों ने देखा तो हैरान रह गए। जब इस जगह को खोजा गया, तो बोरीक का कटा हुआ सिर मिला। इस सिर को एक ब्राह्मण द्वारा पुनः स्थापित किया गया था। वह अपनी रोज पूजा करने लगा। एक दिन खाटू नगर के राजा रूपसिंह को स्वप्न में मंदिर का निर्माण कर बर्बरीक का सिर मंदिर में स्थापित करने के लिए कहा गया था। कार्तिक माह की एकादशी को बर्बरीक का शीश मंदिर में सुशोभित किया गया, जिसे बाबा खाटू श्याम जी के नाम से जाना गया, तब से यह मंदिर प्रसिद्ध हो गया।भारत देश के सबसे पूज्य देवी देवताओं में से एक खाटू श्याम जी की हिंदू भक्तों में बहुत व्याख्या है। जहां भारत देश ही नहीं बल्कि विदेशियों से भी यात्रा और ऐतिहासिक खाटू श्याम के चमत्कार और उनके दर्शन के लिए यहां आएं। आज के समय में खाटू श्याम के चमत्कार पूरे देश में मनाये जाते हैं, वो भी खाटू श्याम जी को, जो लाखों-करोड़ों बार देते हैं। यही कारण है कि आज खाटू श्यामजी देश में करोड़ों भक्तों द्वारा पूजे जाते हैं।
जय बाबा खाटू श्याम जी की।
यहां हमने खाटू श्याम जी की जीवनी या उनके जीवन की कथा को तो जान लिया लेकिन अब एक प्रश्न और बचता है कि खाटू श्याम कुंड जी के मंदिर की उत्पत्ति कलयुग में कैसे हुई या फिर यह खाटू श्याम कुंड जी के मंदिर का निर्माण हुआ। अगर आप भी इसके बारे में सोच रहे हैं तो हम आपको बता देंगे कि जयपुर के सीकर जिले में स्थित प्रसिद्ध खाटू श्याम जी का मंदिर का निर्माण खाटू गांव के शासक राजा रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नागालैंड कंवर द्वारा सन् 1027 में हुआ था। पौराणिक कथा के अनुसार एक बार राजा रूपसिंह को स्वप्न आया, जिसमें उन्हें खाटू के कुंड में श्याम के सिर से मुलाकात के बाद उनके मंदिर की मान्यता बताई गई थी। तब राजा रूपसिंह ने खाटू गांव में खाटू श्याम जी के नाम से मंदिर का निर्माण कराया। जबकि 1720 में एक प्रसिद्ध आद्योपांत अभयसिंह ने इसका पूर्ण निर्माण किया।
जय बाबा खाटू श्याम जी की।
खाटू श्याम जी के मंदिर के पास पवित्र तालाब है जिसका नाम श्याम कुंड है। ऐसा माना जाता है कि इस कुंड में मनुष्य के सभी रोग ठीक हो जाते हैं और व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है, इसलिए इस पवित्र कुंड में स्नान कराया जाता है, पवित्र से वार्षिक फाल्गुन मेले के दौरान यहां पहचान की बहुत मान्यता है।
प्राचीन पौराणिक कथाओं के अनुसार माना जाता है कि खाटू श्याम कुंड का निर्माण या उत्पत्ति की खुदाई के दौरान हुई थी। जी हां एक बार की बात है लगभग 1100 ई.पू. के आसपास रूपसिंह चौहान की पत्नी नॉमल कंवर को एक स्वप्न आया था, उन्हें जमीन के अंदर एक मूर्ति दिखाई दी थी, जिसके बाद उस स्थान की खुदाई की गई थी, जो वास्तव में श्याम जी के खाटू में स्थित थी। सिर को प्रस्थान कराया गया था। उसी खुदाई से एक कुंड का निर्माण हुआ जिसे खाटू श्याम कुंड के नाम से जाना जाता है।
इस लेख में आप खाटू श्याम जी की जीवन कथा, खाटू श्याम के चमत्कार, खाटू श्याम कुंड जी के मंदिर का इतिहास, खाटू श्याम कुंड का इतिहास सहित अन्य जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। धन्यवाद 🙏🙏

श्री खाटू श्याम भगवन की जय।

#1सावन माह में लक्ष्मी माता की कहानी / लक्ष्मी माता की कथा। लक्ष्मी माता की कहानी.कहानी माता लक्ष्मी जी की 🙏🌹🌷🌷

माँ लक्ष्मी सुख, समृद्धि और धन की देवी हैं। जब लक्ष्मी माता का व्रत किया जाता है तो लक्ष्मी माता की कहानी का व्रत किया जाता है। लक्ष्मी माता के व्रत को 'वैभव लक्ष्मी व्रत' भी कहा जाता है। वैभव लक्ष्मी व्रत शुक्रवार के दिन मनाया जाता है। इस व्रत को स्त्री या पुरुष कोई भी कर सकता है। लक्ष्मी माता का व्रत रखने से सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।

उस दिन माता लक्ष्मी का व्रत किया जाता है और लक्ष्मी माता की कहानियां बताई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं। जो भी मां लक्ष्मी के मन में विराजमान होती है, उस पर मां लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं। व्रत वाले दिन कई लोग व्रत रखते हैं और शाम के समय व्रत करने वाले राजा और लक्ष्मी माता की कहानी कहते हैं। तो आइये जानते हैं लक्ष्मी माता की पावन कथा
एक गांव में एक साहूकार रहता था। साहूकार की एक बेटी थी। वह हर रोज पीपल सींचने जाती थी। पीपल के पेड़ से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और चली गईं। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा - तू मेरी सहेली बन जा। तब लड़की ने कहा कि मैं अपने पिता से सवाल कलकर आऊंगी।
साहूकार की बेटी ने अपने पिता से सारी बात कह दी। तब उनके अनमोल वचन वह तो लक्ष्मी जी हैं। अपने को और क्या चाहिए तू लक्ष्मी जी की सहेली बन जा। दूसरे दिन वह लड़की फिर चली गई। तब लक्ष्मी जी पीपल के पेड़ से निकल कर आई और कहा दोस्त बन जा तो लड़की ने कहा, बन जाऊंगी और दोस्त बन गए दोस्त।

लक्ष्मी जी ने भोजन की न्युता दी। घर पर लड़की ने मां-बाप से कहा कि मेरी सहेली ने मुझे खाना खिलाया है। तब बाप ने कहा था कि दोस्त के जिमने जाकर घर को संभाल कर रखना। तब वह लक्ष्मी जी के यहां जिमने गए तो लक्ष्मी जी ने उन्हें शाल दुशाला ओढ़ने के लिए दिया, रुपये खाए, सोने की सब्जी, सोने की थाली में छत्तीस प्रकार के भोजन का (व्यंजन) कराया।

जीम कर जब वह जाने लगी तो लक्ष्मी जी ने पल्ला पकड़ लिया और कहा कि मैं भी तुझे घर जिमने आऊंगी। तो उसने कहा आ जाइयो. वह घर पर किरायेदार बैठाया गया। तब बाप ने पूछा कि कौन सी बेटी सहेली यहां जिमकर आ गई? और तू उदास क्यों है? तो उसने कहा मेरे को लक्ष्मी जी ने इतने सारे प्रकार के आहार दिए लेकिन मैं कैसे जिमाऊंगी?

आपके घर में तो कुछ भी नहीं है। तब उसके पिता ने कहा था कि गोबर मिट्टी से चौका लगाकर घर की सफाई कर ले। चार मुख वाले ने दिया चित्र, लक्ष्मीजी का नाम लेकर रसोई में बैठे। लड़की सफाई लेकर लोध लेकर बैठ गई। उसी समय एक रानी नहा रही थी। उसका नोलखा हार गया, उसे उठा लिया गया और उसके घर नौलखा हार गया, और उसका बच्चा ले गया।

बाद में वह खो गया और सामान बेचने लगा तो सूनर ने पूछा कि क्या करना चाहिए? तब उन्होंने कहा कि सोने की दुकान, सोने का थाल, शाल दुशाला दे दे, मोहर दे और सामग्री दे। छत्तीस प्रकार का भोजन हो जाए इतना सामान। साडी चीजें लेकर बहुत तैयारी की और बनाई गई तब गणेश जी ने कहा कि लक्ष्मी जी को बुलाओ।आगे-आगे गणेशजी और पीछे-पीछे लक्ष्मीजी आई। उसने फिर से दुकान डाल दी और कहा, दोस्त की दुकान पर बैठ जाओ। जब लक्ष्मी जी ने कहा कि मेरे यहाँ तो राजा रानी के लिए भी कोई घर नहीं है, किसी के भी घर में नहीं है, तो उन्होंने कहा कि मेरे यहाँ तो तुम बैठो। फिर लक्ष्मीजी की दुकान स्थापित हुई। टैब वह बहुत एहसानमंद की। जैसी लक्ष्मी ने करी थी, वैसी ही करी।

लक्ष्मीजी उस पर प्रसन्न हो गईं। घर में धन और लक्ष्मी हो गयीं। साहूकार की बेटी ने कहा, मैं अभी आ रही हूं। तुम बेघर हो गए और वह चले गए। लक्ष्मीजी घर पर नहीं रहीं और होटल में रहीं। बहुत सारे टैग दिए। लक्ष्मीजी को साहूकार की बेटी के रूप में जाना जाता है। कथन कहें, हुंकारा भारते अपने सारे परिवार को दियो। पीहर में जाना, मुस्लिमों में जाना। बेटे को पॉट देना। हे लक्ष्मी माता ! सभी कष्ट दूर करना , दरिद्रता दूर करना , प्लांट मनोभाव पूर्ण करना ।
यह माता लक्ष्मी की कथा थी कोई चूक हों गई हों तो कमेंट में जरूर बताना 🙏

#1गुरुवार व्रत की पूरी कथा जिसे सुनने से मिलेगी देव बृहस्पति की कृपा🙏🌹🌷🥀👇

देव गुरु बृहस्पति को बुद्धि और शिक्षा का कारक माना जाता है. गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और कई अन्य मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. गुरुवार के दिन व्रत और कथा सुनने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आइए जानते हैं गुरुवार व्रत कथा के बारे में....
देव गुरु बृहस्पति को बुद्धि और शिक्षा का कारक माना जाता है. गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और कई अन्य मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. गुरुवार के दिन व्रत और कथा सुनने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आइए जानते हैं गुरुवार व्रत कथा के बारे में....

गुरुवार व्रत कथा:
कथा के अनुसार, प्राचीन काल की बात है. किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज करता था. वह हर गुरुवार को व्रत रखकर दीन-दुखियों की मदद करके पुण्य प्राप्त करता था, परंतु ये बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी. वह न तो व्रत करती थी और न ही दान-पुण्य में विश्वास रखती थी. इतना ही नहीं, वह राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी.

एक समय की बात है, राजा शिकार खेलने के लिए वन गए. घर पर रानी और दासी थी. उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए. साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी, हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं. आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे कि सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं.
ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
इतना सुनकर बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है. अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें. परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई. उसने कहा कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं और जिसे संभालने में मेरा सारा समय नष्ट हो जाए.

तब साधु ने कहा, अगर तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना. गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने बालों को पीली मिट्टी से धोना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा का प्रयोग करना, कपड़े धोबी के यहां धुलने देना. इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा. इतना कहकर साधु के रूप में बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए.

साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई. भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा. तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं. इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता. ऐसा कहकर राजा दूसरे देश चला गया. वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता. इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा. इधर, राजा के परदेस जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी.

एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है. वह बड़ी धनवान है. तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए. दासी रानी की बहन के पास गई.

उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी. दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया. जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया. दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी. ये सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा. उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी.

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
कथा सुनकर और पूजा समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी, हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी. तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली. बताओ दासी क्यों आई थी.

रानी बोली, बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं है. ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई. उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने की पूरी बात अपनी बहन को बता दी. रानी की बहन बोली, देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं. देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो.

पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया. ये देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई. दासी रानी से कहने लगी, हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें. तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा.
उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का केले की जड़ में अर्पित करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें. इससे बृहस्पतिदेव और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. व्रत और पूजा की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई.

सात दिन के बाद जब गुरुवार आया तो रानी और दासी ने व्रत रखा. वह घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं. फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान की पूजा की. अब पीला भोजन की चिंता को लेकर दोनों बहुत दुखी हुईं. चूंकि उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे. वह एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में पीला भोजन दासी को दे गए. भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया.

उसके बाद वह सभी गुरुवार को व्रत और पूजा करने लगी. बृहस्पति देव की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी. तब दासी बोली, देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था. इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब देव बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होने लगा है.

रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने ये धन पाया है. इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए. इससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पित्र प्रसन्न होंगे. दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी. इससे पूरे नगर में उसका यश बढ़ने लगा. बृहस्पतिवार व्रत कथा के बाद श्रद्धा के साथ आरती की जानी चाहिए. इसके बाद प्रसाद बांटकर उसे ग्रहण करना चाहिए.
हरी ॐ नमो नारायणा।
कृपया पूरा लेख पढ़े धन्यवाद 🙏

1#सावन माह में जरुर पढ़ें ये कथा यहां हुआ था श्री हनुमान जी का जन्‍म, आज भी मौजूद हैं ये स्‍ थान पढ़िए रोचक कहानी 🙏🌹🌷

भगवान राम और हनुमानजी के जीवन पर रचे गए महाकाव्‍य रामायण में हनुमानजी को भगवान राम का सबसे बड़ा भक्‍त बताया गया है। पुराणों में बजरंगबली को रुद्रावतार यानी भोले बाबा का 11वां अवतार बताया गया है। हनुमान जयंती को उनके जन्‍मदिवस के रूप में मनाया जाता है। हनुमान जयंती साल में दो बार मनाई जाती है। पहली जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है और दूसरी कार्तिक मास में दीपावली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी के दिन भी हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस अवसर पर आपको बताते हैं कि बजरंगबली का जन्‍म कहां हुआ था और अभी कहां स्थित हैं ये स्‍थान...
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम.............


हनुमानजी की माता का नाम अंजना था। जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। अंजना ब्रह्मा लोक की एक अप्‍सरा थीं, उन्हें एक ऋषि ने बंदरिया बनने का शाप दिया था। शाप के अनुसार जिस दिन अंजना को किसी से प्रेम हो जाएगा, उसी क्षण वह बंदरिया बन जाएगी और उनका पुत्र भगवान शिव का रूप होगा। अंजना को अपनी युवा अवस्था में केसरी से प्रेम हो गया और दोनों का विवाह हो गा।
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम..........
एक बार भगवान शिव ने विष्‍णुजी को उनके मोहिनी रूप में प्रकट होने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की जो उन्‍होंने समुद्र मंथन के वक्‍त सुर और असुरों को दिखाया था। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु का आकर्षक रूप देखकर शिवजी कामातुर हो गए और उन्होंने अपना वीर्यपात कर दिया। पवनदेव ने यह वीर्य राजा केसरी की पत्‍नी अंजना के गर्भ में प्रविष्‍ट कर दिया। इससे वह गर्भवती हो गईं और हनुमानजी का जन्‍म हुआ।
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम...........
बजरंग बली के पिता केसरी कपि क्षेत्र के राजा थे। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। यह कैथल ही पहले कपिस्थल था। कुछ शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि कैथल ही हनुमानजी का जन्म स्थान है। यहां हनुमानजी का बहुत बड़ा मंदिर भी स्थित है।
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम.........
गुजरात स्थित डांग जिला रामायण काल में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था। मान्यता के अनुसार यहीं भगवान राम व लक्ष्मण को शबरी ने बेर खिलाए थे। आज यह स्थल शबरी धाम के नाम से जाना जाता है। अंजनी पर्वत पर स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का भी जन्म हुआ था। कहा जाता है कि अंजना माता ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न यानी हनुमान जी की प्राप्ति हुई थी। माता अंजना ने अंजनी गुफा में ही हनुमानजी को जन्म दिया था।
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम............
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के गुमला जिला के आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। आंजन गांव में ही माता अंजनी निवास करती थीं और इसी गांव की एक पहाड़ी पर स्थित गुफा में रामभक्त हनुमान का जन्म हुआ था। इसी विश्वास के साथ यहां की जनजाति भी बड़ी संख्या में भक्ति और श्रद्धा के साथ माता अंजना और भगवान महावीर की पूजा करते हैं।
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम........
पंपासरोवर अथवा पंपासर होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर शबरी गुफा कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि का आश्रम था और कहते हैं कि इसी आश्रम में बजरंगबली जन्‍मे थे।
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम........
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सूर्य भगवान को जल अर्पित करने का सही तरीका, सूर्य भगवान को जल कितनी बार अर्पित करें और किस समय जल अर्पित करें जानने के लिए आगे पढ़े 🙏🙏🌹🌹👇👇☀️☀️#1






सूर्य भगवान पृथ्वी पर अपने शोरूप के साथ इस्थित हैं, सब देवों में सिर्फ यही देव जिनके हम नित नियम से दर्शन कर सकते हैं 
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. ॐ सूर्याए नमः,
इस मंत्र 12बार जाप करते हुए सुर्य भगवान को जल अर्पित करें, जल अर्पित करते समय सुर्य भगवान की किरणे जल की धारा में देखें और उनके दर्शन करे,
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. इस प्रकार जल अर्पित कर सूर्य भगवान के 7 परिक्रमा करे वही पर ,
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. सूर्य भगवान को जल कैसा अर्पित करें
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.एक ताबे का लोटा में पानी भरेेइसके बाद उसमें 7बूंद गंगा जल अर्पि करे 7 दाने चावल के थोड़ी गुड थोड़ालाल  सिंदूर ये जल सूर्य भगवान को अर्पित करें
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. सूर्य भगवान को जल सुबह के 4 से 5 के बीच जल अर्पित कर देना ⁴चाहिए 🙏🙏 धन्यवाद 

1#सावन माह में श्री शनिदेव जी की कथा : शनिवार को इसे पढ़ने से दूर होता है धन संकट 1#🙏🌹👇🌷

शनिदेव साक्षात रुद्र हैं। उनकी शरीर क्रांति इन्द्रनील मणि के समान है। शनि भगवान के शीश पर स्वर्ण मुकुट, गले में माला तथा शरीर पर नीले रंग के वस्त्र सुशोभित हैं। शनिदेव गिद्ध पर सवार रहते हैं। हाथों में क्रमश: धनुष, बाण, त्रिशूल और वरमुद्रा धारण करते हैं। वे भगवान सूर्य तथा छाया (सवर्णा) के पुत्र हैं। वे क्रूर ग्रह माने जाते हैं। इनकी दृष्टि में क्रूरता का मुख्य कारण उनकी पत्नी का श्राप है।
ब्रह्मपुराण के अनुसार बाल्यकाल से ही शनिदेव भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त थे। वे भगवान श्रीकृष्ण के अनुराग में निमग्न रहा करते थे। युवावस्था में उनके पिताश्री ने उनका विवाह चित्ररथ की कन्या से करवा दिया। उनकी पत्नी सती, साध्वी एवं परम तेजस्विनी थी। एक रात्रि वह ऋतु स्नान कर पुत्र प्राप्ति की इच्छा लिए शनिदेव के पास पहुंची, पर देवता तो भगवान श्रीकृष्ण के ध्यान में लीन थे। उन्हें बाह्य संसार की सुधि ही नहीं थी। उनकी पत्नी प्रतीक्षा करके थक गई। उनका ऋतकाल निष्फल हो गया। इसलिए उन्होंने क्रुद्ध होकर शनिदेव को श्राप दे दिया कि आज से जिसे तुम देखोगे, वह नष्ट हो जाएगा।
ध्यान टूटने पर शनिदेव ने अपनी पत्नी को मनाया। उनकी धर्मपत्नी को अपनी भूल पर पश्चाताप हुआ किंतु श्राप के प्रतिकार की शक्ति उनमें नहीं थी, तभी से शनिदेव अपना सिर नीचा करके रहने लगे, क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि किसी का अनिष्ट हो।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शनि ग्रह यदि कहीं रोहिणी भेदन कर दे, तो पृथ्‍वी पर 12 वर्षों का घोर दुर्भिक्ष पड़ जाए और प्राणियों का बचना ही कठिन हो जाए। शनि ग्रह जब रोहिणी भेदन कर बढ़ जाता है, तब यह योग आता है। यह योग महाराज दशरथ के समय में आने वाला था। जब ज्योतिषियों ने महाराज दशरथ को बताया कि यदि शनि का योग आ जाएगा तो प्रजा अन्न-जल के बिना तड़प-तड़पकर मर जाएगी।
प्रजा को इस कष्ट से बचाने हेतु महाराज दशरथ अपने रथ पर सवार होकर नक्षत्र मंडल में पहुंचे। पहले तो उन्होंने नित्य की भांति शनिदेव को प्रणाम किया, इसके पश्चात क्षत्रिय धर्म के अनुसार उनसे युद्ध करते हुए उन पर संहारास्त्र का संधान किया। शनिदेव, महाराज दशरथ की कर्तव्यनिष्ठा से अति प्रसन्न हुए और उनसे कहा वर मांगो- महाराज दशरथ ने वर मांगा कि जब तक सूर्य, नक्षत्र आदि विद्यमान हैं, तब तक आप संकटभेदन न करें। शनिदेव ने उन्हें वर देकर संतुष्ट किया।
भगवान शनिदेव के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधि देवता यम हैं। इसका वर्ण कृष्ण, वाहन गिद्ध तथा रथ लोहे का बना है। शनिदेव एक राशि में 30-30 महीने रहते हैं। वे मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं तथा इनकी महादशा 19 वर्ष की होती है। इनकी शांति के लिए मृत्युंजय जप, नीलम धारण तथा ब्राह्मण को तिल, भैंस, लोहा, तेल, काला वस्त्र, नीलम, काली गौ, जूता, कस्तूरी और सुवर्ण का दान देना चाहिए।
 
शनिवार को इस महिमा को पढ़ने से धन संकट दूर होता है।
पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻🌷🌷

1#पढ़े मां संतोषी की कथाहिंदी भक्ती ब्लॉग आज जरूर करें संतोषी मां के इन मंत्रों का जाप और चालीसा पाठ, दूर होंगी सभी परेशानी, जानें मंत्र जाप के फायदे🙏👇

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शुक्रवार का दिन मां संतोषी माता को समर्पित है. हिंदू ग्रंथों में संतोषी माता को भगवान गणेश की पुत्री कहा गया है. हिंदू धर्म में शुक्रवार के दिन संतोषी माता की पूजा और व्रत करने का विधान है.
शुक्रवार का दिन मां संतोषी माता को समर्पित है. हिंदू ग्रंथों में संतोषी माता को भगवान गणेश की पुत्री कहा गया है. हिंदू धर्म में शुक्रवार के दिन संतोषी माता की पूजा और व्रत करने का विधान है. कहते हैं कि मां संतोषी का व्रत करने से भक्तों के सभी संकट दूर होते हैं और मनचाही इच्छा का वरदान मिलता है. इस दिन व्रत करने शुभ फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पूजा के बाद मां के मंत्रों का जाप और चालीसा का पाठ अवश्य करें. इससे मां जल्दी प्रसन्न होती है और घर को धन-धान्य से भर देती है. 


संतोषी मां महामंत्र:




जय माँ संतोषिये देवी नमो नमः


श्री संतोषी देव्व्ये नमः


ॐ श्री गजोदेवोपुत्रिया नमः


ॐ सर्वनिवार्नाये देविभुता नमः


ॐ संतोषी महादेव्व्ये नमः


ॐ सर्वकाम फलप्रदाय नमः


ॐ ललिताये नमः





मंत्र से करें ध्यान 
ॐ श्री संतोषी महामाया गजानंदम दायिनी
शुक्रवार प्रिये देवी नारायणी नमोस्तुते! 


धार्मिक मान्यता है कि शुक्रवार के दिन इस मंत्र का जाप करने से निश्चित ही जीवन की सभी परेशानी दूर हो जाती हैं. 


मंत्र जाप के फायदे


संतोषी मां की कृपा बनाए रखने के लिए सकारात्मकता से भरे इस मंत्र का जाप बहुत लाभदायी है. इससे जीवन की हर परेशानी दूर हो सकती है. इतना ही नहीं, भक्तों में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और जीवन में सफलता के रास्ते पर चलता जाता है. 



संतोषी माता चालीसा


दोहा


बन्दौं संतोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥
भक्तन को सन्तोष दे संतोषी तव नाम।
कृपा करहु जगदंब अब आया तेरे धाम॥


जय संतोषी मात अनूपम। 
शान्ति दायिनी रूप मनोरम॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। 
वेश मनोहर ललित अनुपा॥॥
 

श्वेताम्बर रूप मनहारी। 
मां तुम्हारी छवि जग से न्यारी॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन।
दर्शन से हो संकट मोचन॥॥


जय गणेश की सुता भवानी। 
रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया। 
सब पर करो कृपा की छाया॥॥


नाम अनेक तुम्हारे माता। 
अखिल विश्व है तुमको ध्याता॥
तुमने रूप अनेकों धारे। 
को कहि सके चरित्र तुम्हारे॥॥


धाम अनेक कहां तक कहिये। 
सुमिरन तब करके सुख लहिये॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी। 
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी॥
कलकत्ते में तू ही काली। 
दुष्ट नाशिनी महाकराली॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती। 
भक्तजनों का दुःख मिटाती॥॥



ज्वाला जी में ज्वाला देवी। 
पूजत नित्य भक्त जन सेवी॥
नगर बम्बई की महारानी। 
महा लक्ष्मी तुम कल्याणी॥॥


मदुरा में मीनाक्षी तुम हो। 
सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो॥
राजनगर में तुम जगदम्बे। 
बनी भद्रकाली तुम अम्बे॥॥


पावागढ़ में दुर्गा माता। 
अखिल विश्व तेरा यश गाता॥
काशी पुराधीश्वरी माता। 
अन्नपूर्णा नाम सुहाता॥॥


सर्वानंद करो कल्याणी। 
तुम्हीं शारदा अमृत वाणी॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में। 
दुख दारिद्र सब मेटो पल में॥॥


जेते ऋषि और मुनीशा। 
नारद देव और देवेशा।
इस जगती के नर और नारी। 
ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी॥॥




जापर कृपा तुम्हारी होती। 
वह पाता भक्ति का मोती॥
दुख दारिद्र संकट मिट जाता। 
ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता॥॥


जो जन तुम्हरी महिमा गावै। 
ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै॥
जो मन राखे शुद्ध भावना। 
ताकी पूरण करो कामना॥॥


कुमति निवारि सुमति की दात्री। 
जयति जयति माता जगधात्री॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन। 
जो व्रत करे तुम्हारा पावन॥॥




गुड़ छोले का भोग लगावै। 
कथा तुम्हारी सुने सुनावै॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी। 
फिर प्रसाद पावे शुभकारी॥॥


शक्ति- सामरथ हो जो धनको। 
दान- दक्षिणा दे विप्रन को॥
वे जगती के नर औ नारी। 
मनवांछित फल पावें भारी॥॥


जो जन शरण तुम्हारी जावे। 
सो निश्चय भव से तर जावे॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे। 
निश्चय मनवांछित वर पावै॥॥


सधवा पूजा करे तुम्हारी। 
अमर सुहागिन हो वह नारी॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा।
 भवसागर से उतरे पारा॥॥







जयति जयति जय संकट हरणी। 
विघ्न विनाशन मंगल करनी॥
हम पर संकट है अति भारी। 
वेगि खबर लो मात हमारी॥॥


निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता। 
देह भक्ति वर हम को माता॥
यह चालीसा जो नित गावे। 
सो भवसागर से तर जाव

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दान- दक्षिणा दे विप्रन को॥
वे जगती के नर औ नारी। 
मनवांछित फल पावें भारी॥॥


जो जन शरण तुम्हारी जावे। 
सो निश्चय भव से तर जावे॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे। 
निश्चय मनवांछित वर पावै॥॥


सधवा पूजा करे तुम्हारी। 
अमर सुहागिन हो वह नारी॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा।
 भवसागर से उतरे पारा॥॥
जय माता संतोषी की 🙏🙏
कृपया पूरा लेख पढ़े धन्यवाद 🙏

गुरुवार व्रत की पूरी कथा जिसे सुनने से मिलेगी देव बृहस्पति की कृपा👍👍🙏🙏🌷🌷👇👇

देव गुरु बृहस्पति को बुद्धि और शिक्षा का कारक माना जाता है. गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और कई अन्य मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. गुरुवार के दिन व्रत और कथा सुनने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आइए जानते हैं गुरुवार व्रत कथा के बारे में....
गुरुवार के दिन देव गुरु बृहस्पति की पूजा की जाती है
इस दिन केले की जड़ की विधि-विधान से पूजन किया जाता है
जानें गुरुवार व्रत कथा का महत्व,,

देव गुरु बृहस्पति को बुद्धि और शिक्षा का कारक माना जाता है. गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और कई अन्य मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. गुरुवार के दिन व्रत और कथा सुनने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आइए जानते हैं गुरुवार व्रत कथा के बारे में....

गुरुवार व्रत कथा:
कथा के अनुसार, प्राचीन काल की बात है. किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज करता था. वह हर गुरुवार को व्रत रखकर दीन-दुखियों की मदद करके पुण्य प्राप्त करता था, परंतु ये बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी. वह न तो व्रत करती थी और न ही दान-पुण्य में विश्वास रखती थी. इतना ही नहीं, वह राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी.
एक समय की बात है, राजा शिकार खेलने के लिए वन गए. घर पर रानी और दासी थी. उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए. साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी, हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं. आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे कि सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं.
इतना सुनकर बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है. अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें. परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई. उसने कहा कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं और जिसे संभालने में मेरा सारा समय नष्ट हो जाए.

तब साधु ने कहा, अगर तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना. गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने बालों को पीली मिट्टी से धोना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा का प्रयोग करना, कपड़े धोबी के यहां धुलने देना. इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा. इतना कहकर साधु के रूप में बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए.
साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई. भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा. तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं. इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता. ऐसा कहकर राजा दूसरे देश चला गया. वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता. इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा. इधर, राजा के परदेस जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी.

एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है. वह बड़ी धनवान है. तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए. दासी रानी की बहन के पास गई.

उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी. दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया. जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया. दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी. ये सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा. उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी।
कथा सुनकर और पूजा समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी, हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी. तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली. बताओ दासी क्यों आई थी.

रानी बोली, बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं है. ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई. उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने की पूरी बात अपनी बहन को बता दी. रानी की बहन बोली, देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं. देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो.

पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया. ये देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई. दासी रानी से कहने लगी, हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें. तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा.
उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का केले की जड़ में अर्पित करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें. इससे बृहस्पतिदेव और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. व्रत और पूजा की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई.

सात दिन के बाद जब गुरुवार आया तो रानी और दासी ने व्रत रखा. वह घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं. फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान की पूजा की. अब पीला भोजन की चिंता को लेकर दोनों बहुत दुखी हुईं. चूंकि उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे. वह एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में पीला भोजन दासी को दे गए. भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया.
उसके बाद वह सभी गुरुवार को व्रत और पूजा करने लगी. बृहस्पति देव की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी. तब दासी बोली, देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था. इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब देव बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होने लगा है.

रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने ये धन पाया है. इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए. इससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पित्र प्रसन्न होंगे. दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी. इससे पूरे नगर में उसका यश बढ़ने लगा. बृहस्पतिवार व्रत कथा के बाद श्रद्धा के साथ आरती की जानी चाहिए. इसके बाद प्रसाद बांटकर उसे ग्रहण करना चाहिए.🙏🙏👍👍
कृपया पूरा लेख पढ़े धन्यवाद 🙏

Vastu Tips: शाम के समय इस दिशा में जलाएं दीपक, मां लक्ष्मी की कृपा से मिलेगा खूब सारा पैसा🙏🙏👍👍👇👇🌷🌷🌻🌻

Maa Lakshmi ke Upay: घर में नियमित रूप से शाम के समय मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से मां लक्ष्मी का आगमन होता है और घर पर सुख-समृद्धि बनी रहती है.किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी सूक्ष्मजीवी चले आ रहे हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाया जाता है। सुबह-शाम होने वाली पूजा में भी दीपक जलाने की परंपरा है। वास्तु शास्त्र में दीपक जलाकर उसे रखने के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। दीपक की लौ किस दिशा में जानी चाहिए, इस संबंध में ग्रंथ शास्त्र में पर्याप्त जानकारी मिलती है। अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए हर धार्मिक रीति-रिवाज को पूरा करने के लिए अपने-अपने विधान भी हैं। हिंदू धर्म में यह बहुत मायने रखता है। कोई भी पूजा तब तक सफल नहीं हुई जब तक उसे विधिपूर्वक न किया गया। दीपावली को दीपोत्सव, प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है धनतेरस से ही कार्तिक के कृष्णपक्ष की अंधेरी रात को जगमगाने की शुरुआत हो जाती है।
किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाते समय इस मंत्र को बोलने से शीघ्र ही सफलता मिलती है-

दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं ईदीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रु वृद्धि विनाशं च दीप्योति: नमोस्तुति।।


दीपक सिर्फ दीवाली पर ही नहीं जलाये जाते हैं बल्कि पूजा अर्जन सहित हर मांगलिक कार्यक्रम में दीपक जलाया जाता है। दीपक की लौ सिर्फ रोशनी का प्रतीक नहीं है बल्कि वह अज्ञानता का अंधकार को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से जीवन को रोशन करने का प्रतीक है। दरिद्रता के तिमिर का नाश कर खुशियों से जीवन को जगमगा देने का प्रतीक है। नकारात्मकता से चौंधियाये अंधेरे मन में सकारात्मकता के प्रकाश की झलक की प्रतीक है। क्योंकि उसके सही दिशा में होने से ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।

पूर्व और उत्तर दिशा में जहां दी गई आयु और धन में वृद्धि की मनोकामना पूरी तरह से होती है, वहीं पश्चिम और दक्षिण में दी गई लूत अशुभ भी मानी जाती है। पश्चिम में दिए गए नुकसान के कारण कष्टदायी होता है और आपको कष्ट सहने पर मजबूर होना पड़ सकता है। लेकिन दक्षिण में दिए गए गीत की लय रखना और घातक भी हो सकता है। इससे व्यक्ति या परिवार की बड़ी हानि उठानी पड़ सकती है, यह हानि जान-मालिक किसी के भी रूप में हो सकती हैं

 कुल मिलाकर दीपक या जला दियाना हर शुभ अवसर पर एक अनिवार्य परंपरा मानी जाती है, क्योंकि दीपक का मार्ग सही दिशा में होना प्राय: होता है।।

दीपक-मनुष्य के जीवन में चिह्न और प्रासंगिक का बहुत उपयोग होता है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी के प्रदत्त में प्रज्जवलित ज्योत का बहुत महत्व है।

दीपक हमें अज्ञानता को दूर करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है। दीपक अंधकार दूर करता है। मिट्टी का दीया मिट्टी से बना मनुष्य शरीर का प्रतीक है और उसमें रहने वाला तेल अपनी जीवन शक्ति का प्रतीक है। मनुष्य अपनी जीवनशक्ति से परिश्रम करके संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीप हमें देता है। मंदिर में आरती करते समय दिया जलाने के पीछे यही भाव है कि भगवान हमारे मन से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञानरूप प्रकाश फैलायें। गहरे अंधकार से प्रभु! परम प्रकाश की ओर ले चल रहा है।
दीपावली के पर्व के निमित्त लक्ष्मीपूजन में अमावस्या की अंधेरी रात में दीपक जलाने के पीछे भी इसका उद्देश्य छिपा हुआ है। घर में तुलसी के क्यारे के पास भी दीपक जलाये जाते हैं। किसी भी नयें कार्य की शुरुआत भी दीपक से ही होती है। अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है। अपने वेद और शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं- हे परमात्मा! अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर आइए चलें। ज्योत से ज्योत वर्ल्डो इस आरती के पीछे भी यही विचार कर रहा है। यह भारतीय संस्कृति की गरिमा है।

आमतौर पर हम सभी अपने घर में पूजा करते हैं दीपक प्रज्वलित करते हैं। जो बहुत ही शुभ होते हैं। दीपक को रौशनी का, उजाले का तथा प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। दीपक को मनुष्य के जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए भी शुभ माना जाता है।
दीपक के प्रकार – दीपक कई प्रकार के होते हैं। जैसे – चाँदी के दीपक, मिटटी के दीपक, लोहे के दीपक, ताम्बे के दीपक, पीतल की धातु से बने हुए दीपक और मिटटी के दीपक से बनाए गए दीपक |कुछ लोग मिटटी के दीपक को अधिक शुभ मानते हैं तो वहीँ कुछ लोग सभी प्रकार की साधना की सिद्धि के लिए मूंग की दाल, चावल, गेहूं, उड़द की दाल और ज्वार आदि अनाजों को पीस कर उनमें से दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करते हैं के लिए सबसे उत्तम मानते हैं।

घर की इन दिशाओं में दीपक लगाने से पूरी होती हैं सभी इच्छाएं—
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दियों को इन दीपकों को जलाने की भी एक विधि है। अगर सही दिशा में दीपक की लौ न जलाई जाए तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। आइए जानते हैं इसके फायदे व नुक्सान के बारे में
–रोगों से मुक्ति के लिए प्रतिदिन सूर्य देव के चित्रपट या श्रीविग्रह के आगे दीपक मरते हैं।
—-श्रीकृष्ण के आगे दीपक लगाने से जीवन साथी की तलाश पूरी होती है।
—–रूक्मणी और श्रीकृष्ण के आगे दीपक बनने से मनभावन जीवन साथी मिलता है।
—–दीपक की दाईं दिशा की ओर धारण से आयु में वृद्धि होती है।
—– दीपक की दृष्टि दिशा पश्चिम की ओर देखने से दु:ख बढ़ रही है।
—- दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर स्थित होने से धन लाभ होने के योग बने हैं।
—– दीपक की लौ दिशा की और धारण से हानि होती है। यह हानि किसी व्यक्ति या धन के रूप में भी हो सकती है।
—बुरे सपनों का डर सतता है तो सोने से पहले हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप के आगे दिया जलाएं और हनुमान का पाठ करें।घर के मंदिर की उत्तर दिशा में धन के देवता कुबेर का स्वरूप स्थापित करें। किसी भी तरह की समस्या हो हर दिन जागरण से हल हो जाएगा।
—–घर और कार्यस्थान पर गणपति बप्पा का स्वरूप स्थापित करें। दिन की शुरुआत उनकी आगे लगे दीपक कर दें।
——राम दरबार के आगे प्रतिदिन दीपक लगाने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
आयु वृद्धि के लिए पूर्व दिशा में जलायें दीपक—
दीपक की लौ दिशा किसमें शुरू हुई इसके अनुसार वैसे तो ऋक्सिकता शास्त्र में काफी सारे नियम हैं लेकिन यह इस पर भी निरंतर करता है कि आप किस देवता की पूजा कर रहे हैं और उनके वासी कौन हैं दिशा में है। पूर्व दिशा के बारे में सभी जानते हैं। सूर्योदय की पहली किरणों के साथ ही नई आशाएं और आशाओं की किरणें भी फूटती हैं। पूर्व दिशा में यदि दीपक की लौकिक हो तो इससे आयु में विकास होता है।

धन लाभ के लिए दिए गए लौ हो उत्तर में—-
यदि आप अपने व्यवसाय में लाभ, वेतन में वृद्धि आदि धन लाभ के मनोकामना के लिए दीपक जला रहे हैं तो ध्यान दें इसकी लौ उत्तर दिशा हो। उत्तर दिशा में दिए गए विवरण के आधार पर धन में वृद्धि के लिए इसे लाभकारी माना जाता
जानिए आप अपने जीवन के कष्टों से निम्न प्रकार दीपक जलाकर मुक्ति पा सकते हैं –

1. अगर आपके घर में आर्थिक तंगी चल रही है, तो इस कड़ी से मुक्ति पाने के लिए आपको हर दिन अपने घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। लाइव दीपक से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

2. यदि आपके शत्रु आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसके लिए आपको प्रतिदिन भैरव जी के सामने सरसों का तेल जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके विनाश से आपकी हानि होने के लिए नए प्रयास सफल नहीं होंगे।
3. सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए भी आपको हर रोज सरसों का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके घर में हमेशा सूर्य देवता की कृपा बनी रहती है।

4. यदि आपका शनि ग्रह कमजोर है तो आपको नियमपूर्वक शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

5. अपने पति की लंबी उम्र की मनोकामना को पूरा करने के लिए महिलाओं को अपने घर के मंदिर में महुए के तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

6. अगर किसी व्यक्ति के राहु और केतु दोनों योजनाओं की स्थिति खराब हो तो उसे रोजाना मंदिर में अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से राहु और केतु ग्रह शांत हो जाते हैं।

7. घर या मंदिर में किसी भी देवी या देवता की पूजा करते समय फूल, अगरबत्ती, शुद्ध गाय के घी या तिल के तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए

8. गणेश भगवान की कृपा आप पर हमेशा बनी रही इसके लिए आपको प्रतिदिन गणेश की मूर्ति या तस्वीर के आगे तीन बत्तियों वाले झींगे का दीपक जलाना चाहिए।

9. भैरव देवता की पूजा करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए चार प्रमुख सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

10. किसी मामले को या प्रमाण को जीतने के लिए भी दीपक को जलाना शुभ होता है। किसी भी दोष में जीत हासिल करने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलायें।

11. कार्तिक भगवान को प्रसन्न होने के लिए भी दिन के पांच मुख वाले दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

12. लक्ष्मी जी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहें। इसके लिए हमें लक्ष्मी जी के विभिन्न सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए।
13. शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए आप बारहवें या आठवें वाले दीपक जला सकते हैं। इसके साथ ही सरसों के तेल का एक दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

14. विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके सामने प्रतिदिन सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए। यदि आप विष्णु भगवान के दशावतार की पूजा करते हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए दस मुख वाले दीपक को जलाना चाहिए।

15. इष्ट सिद्धि के लिए तथा ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहरा और गोल दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

16. अपने विनाश को नष्ट करने के लिए और किसी भी विरोधी को रोकने के लिए मध्य से ऊपर की ओर उठते हुए दीपक का प्रयोग जलाने के लिए चाहिए।

17. धन प्राप्ति के लिए सामान्य दीपक का प्रयोग 
18. संकटहरण हनुमान जी की पूजा करने के लिए तथा उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे इसके लिए तीन कोनो वाले दीपक का प्रयोग जलाने के लिए देना चाहिए। हनुमान जी आराधना करने के लिए दीपक को जलाने के लिए चमेली के तेल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

19. आश्रम और देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए शुद्ध गाय के घी और तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
अगर आपकी इच्छा पूरी तरह से घूमने के लिए आपको भगवान के आगे कैसा दीपक जलाना चाहिए। जिससे आपकी पूरी इच्छाए जल्दी ही पूरी तरह से हो जाती है।माना जाता है कि हर भगवान का संबंध किसी न किसी विशेष वस्तु या इच्छा से होता है। अगर अपनी इच्छा या मनोकामना के अनुसार संबंधित भगवान की मूर्ति को पूजा घर में स्थापित करके, रोज उन्हें दीपक दिया जाए तो आपकी पूरी इच्छाए और मनोकामनाए निश्चित रूप से पूरी होती है। रुका धन पाने से लेकर प्यार तक, बिजनेस में जिम्मेवारी से लेकर स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है।
1.प्यार के लिए भगवान कृष्ण जी- अगर आपको भी अपने दोस्तों या अपने जीवन के साथियों से प्यार पाने की इच्छा हो, तो घर के मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है।

2. दावे से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य- यदि आप दायित्व से परेशान हैं तो आपको अपने घर के मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज उनकी मूर्ति या तस्वीर पर जल चढ़ाना चाहिए और दीपक जलाना चाहिए।
प्रावक्ता
घर कला-संस्कृति जानिए घर की किस दिशा में दीपक लगाने से पूरी होती हैं...
कला-संस्कृतिधर्म-अध्यात्म
जानिए घर की किस दिशा में दीपक लगाने से पूरी होती हैं आपका मनोकामना/विश—
द्वारा पंडित दयानंद शास्त्री- अप्रैल 28, 2017010422

सही मायने में भारतीय संस्कृति की संचारकों में दीपक का इतना महत्व क्यों है?

किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी सूक्ष्मजीवी चले आ रहे हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाया जाता है। सुबह-शाम होने वाली पूजा में भी दीपक जलाने की परंपरा है। वास्तु शास्त्र में दीपक जलाकर उसे रखने के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। दीपक की लौ किस दिशा में जानी चाहिए, इस संबंध में ग्रंथ शास्त्र में पर्याप्त जानकारी मिलती है। अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए हर धार्मिक रीति-रिवाज को पूरा करने के लिए अपने-अपने विधान भी हैं। हिंदू धर्म में यह बहुत मायने रखता है। कोई भी पूजा तब तक सफल नहीं हुई जब तक उसे विधिपूर्वक न किया गया। दीपावली को दीपोत्सव, प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है धनतेरस से ही कार्तिक के कृष्णपक्ष की अंधेरी रात को जगमगाने की शुरुआत हो जाती है।
किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाते समय इस मंत्र को बोलने से शीघ्र ही सफलता मिलती है-


दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं ईदीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रु वृद्धि विनाशं च दीप्योति: नमोस्तुति।।


दीपक सिर्फ दीवाली पर ही नहीं जलाये जाते हैं बल्कि पूजा अर्जन सहित हर मांगलिक कार्यक्रम में दीपक जलाया जाता है। दीपक की लौ सिर्फ रोशनी का प्रतीक नहीं है बल्कि वह अज्ञानता का अंधकार को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से जीवन को रोशन करने का प्रतीक है। दरिद्रता के तिमिर का नाश कर खुशियों से जीवन को जगमगा देने का प्रतीक है। नकारात्मकता से चौंधियाये अंधेरे मन में सकारात्मकता के प्रकाश की झलक की प्रतीक है। क्योंकि उसके सही दिशा में होने से ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।

पूर्व और उत्तर दिशा में जहां दी गई आयु और धन में वृद्धि की मनोकामना पूरी तरह से होती है, वहीं पश्चिम और दक्षिण में दी गई लूत अशुभ भी मानी जाती है। पश्चिम में दिए गए नुकसान के कारण कष्टदायी होता है और आपको कष्ट सहने पर मजबूर होना पड़ सकता है। लेकिन दक्षिण में दिए गए गीत की लय रखना और घातक भी हो सकता है। इससे व्यक्ति या परिवार की बड़ी हानि उठानी पड़ सकती है, यह हानि जान-मालिक किसी के भी रूप में हो सकती है।
कुल मिलाकर दीपक या जला दियाना हर शुभ अवसर पर एक अनिवार्य परंपरा मानी जाती है, क्योंकि दीपक का मार्ग सही दिशा में होना प्राय: होता है।।

दीपक-

मनुष्य के जीवन में चिह्न और प्रासंगिक का बहुत उपयोग होता है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी के प्रदत्त में प्रज्जवलित ज्योत का बहुत महत्व है।

दीपक हमें अज्ञानता को दूर करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है। दीपक अंधकार दूर करता है। मिट्टी का दीया मिट्टी से बना मनुष्य शरीर का प्रतीक है और उसमें रहने वाला तेल अपनी जीवन शक्ति का प्रतीक है। मनुष्य अपनी जीवनशक्ति से परिश्रम करके संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीप हमें देता है। मंदिर में आरती करते समय दिया जलाने के पीछे यही भाव है कि भगवान हमारे मन से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञानरूप प्रकाश फैलायें। गहरे अंधकार से प्रभु! परम प्रकाश की ओर ले चल रहा है।


दीपावली के पर्व के निमित्त लक्ष्मीपूजन में अमावस्या की अंधेरी रात में दीपक जलाने के पीछे भी इसका उद्देश्य छिपा हुआ है। घर में तुलसी के क्यारे के पास भी दीपक जलाये जाते हैं। किसी भी नयें कार्य की शुरुआत भी दीपक से ही होती है। अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है। अपने वेद और शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं- हे परमात्मा! अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर आइए चलें। ज्योत से ज्योत वर्ल्डो इस आरती के पीछे भी यही विचार कर रहा है। यह भारतीय संस्कृति की गरिमा है।

आमतौर पर हम सभी अपने घर में पूजा करते हैं दीपक प्रज्वलित करते हैं। जो बहुत ही शुभ होते हैं। दीपक को रौशनी का, उजाले का तथा प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। दीपक को मनुष्य के जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए भी शुभ माना जाता है।
दीपक के प्रकार – दीपक कई प्रकार के होते हैं। जैसे – चाँदी के दीपक, मिटटी के दीपक, लोहे के दीपक, ताम्बे के दीपक, पीतल की धातु से बने हुए दीपक और मिटटी के दीपक से बनाए गए दीपक |

कुछ लोग मिटटी के दीपक को अधिक शुभ मानते हैं तो वहीँ कुछ लोग सभी प्रकार की साधना की सिद्धि के लिए मूंग की दाल, चावल, गेहूं, उड़द की दाल और ज्वार आदि अनाजों को पीस कर उनमें से दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करते हैं के लिए सबसे उत्तम मानते हैं।

घर की इन दिशाओं में दीपक लगाने से पूरी होती हैं सभी इच्छाएं—
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दियों को इन दीपकों को जलाने की भी एक विधि है। अगर सही दिशा में दीपक की लौ न जलाई जाए तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। आइए जानते हैं इसके फायदे व नुक्सान के बारे में—


—–रोगों से मुक्ति के लिए प्रतिदिन सूर्य देव के चित्रपट या श्रीविग्रह के आगे दीपक मरते हैं।
—-श्रीकृष्ण के आगे दीपक लगाने से जीवन साथी की तलाश पूरी होती है।
—–रूक्मणी और श्रीकृष्ण के आगे दीपक बनने से मनभावन जीवन साथी मिलता है।
—–दीपक की दाईं दिशा की ओर धारण से आयु में वृद्धि होती है।
—– दीपक की दृष्टि दिशा पश्चिम की ओर देखने से दु:ख बढ़ रही है।
—- दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर स्थित होने से धन लाभ होने के योग बने हैं।
—– दीपक की लौ दिशा की और धारण से हानि होती है। यह हानि किसी व्यक्ति या धन के रूप में भी हो सकती है।
—बुरे सपनों का डर सतता है तो सोने से पहले हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप के आगे दिया जलाएं और हनुमान का पाठ करें।
——घर के मंदिर की उत्तर दिशा में धन के देवता कुबेर का स्वरूप स्थापित करें। किसी भी तरह की समस्या हो हर दिन जागरण से हल हो जाएगा।
—–घर और कार्यस्थान पर गणपति बप्पा का स्वरूप स्थापित करें। दिन की शुरुआत उनकी आगे लगे दीपक कर दें।
——राम दरबार के आगे प्रतिदिन दीपक लगाने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

आयु वृद्धि के लिए पूर्व दिशा में जलायें दीपक—
दीपक की लौ दिशा किसमें शुरू हुई इसके अनुसार वैसे तो ऋक्सिकता शास्त्र में काफी सारे नियम हैं लेकिन यह इस पर भी निरंतर करता है कि आप किस देवता की पूजा कर रहे हैं और उनके वासी कौन हैं दिशा में है। पूर्व दिशा के बारे में सभी जानते हैं। सूर्योदय की पहली किरणों के साथ ही नई आशाएं और आशाओं की किरणें भी फूटती हैं। पूर्व दिशा में यदि दीपक की लौकिक हो तो इससे आयु में विकास होता है।

धन लाभ के लिए दिए गए लौ हो उत्तर में—-
यदि आप अपने व्यवसाय में लाभ, वेतन में वृद्धि आदि धन लाभ के मनोकामना के लिए दीपक जला रहे हैं तो ध्यान दें इसकी लौ उत्तर दिशा हो। उत्तर दिशा में दिए गए विवरण के आधार पर धन में वृद्धि के लिए इसे लाभकारी माना जाता है।
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जानिए आप अपने जीवन के कष्टों से निम्न प्रकार दीपक जलाकर मुक्ति पा सकते हैं –

1. अगर आपके घर में आर्थिक तंगी चल रही है, तो इस कड़ी से मुक्ति पाने के लिए आपको हर दिन अपने घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। लाइव दीपक से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

2. यदि आपके शत्रु आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसके लिए आपको प्रतिदिन भैरव जी के सामने सरसों का तेल जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके विनाश से आपकी हानि होने के लिए नए प्रयास सफल नहीं होंगे।


3. सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए भी आपको हर रोज सरसों का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके घर में हमेशा सूर्य देवता की कृपा बनी रहती है।


4. यदि आपका शनि ग्रह कमजोर है तो आपको नियमपूर्वक शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

5. अपने पति की लंबी उम्र की मनोकामना को पूरा करने के लिए महिलाओं को अपने घर के मंदिर में महुए के तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

6. अगर किसी व्यक्ति के राहु और केतु दोनों योजनाओं की स्थिति खराब हो तो उसे रोजाना मंदिर में अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से राहु और केतु ग्रह शांत हो जाते हैं।

7. घर या मंदिर में किसी भी देवी या देवता की पूजा करते समय फूल, अगरबत्ती, शुद्ध गाय के घी या तिल के तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए

8. गणेश भगवान की कृपा आप पर हमेशा बनी रही इसके लिए आपको प्रतिदिन गणेश की मूर्ति या तस्वीर के आगे तीन बत्तियों वाले झींगे का दीपक जलाना चाहिए।

9. भैरव देवता की पूजा करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए चार प्रमुख सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

10. किसी मामले को या प्रमाण को जीतने के लिए भी दीपक को जलाना शुभ होता है। किसी भी दोष में जीत हासिल करने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलायें।

11. कार्तिक भगवान को प्रसन्न होने के लिए भी दिन के पांच मुख वाले दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

12. लक्ष्मी जी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहें। इसके लिए हमें लक्ष्मी जी के विभिन्न सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए।

13. शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए आप बारहवें या आठवें वाले दीपक जला सकते हैं। इसके साथ ही सरसों के तेल का एक दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

14. विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके सामने प्रतिदिन सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए। यदि आप विष्णु भगवान के दशावतार की पूजा करते हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए दस मुख वाले दीपक को जलाना चाहिए।

15. इष्ट सिद्धि के लिए तथा ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहरा और गोल दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

16. अपने विनाश को नष्ट करने के लिए और किसी भी विरोधी को रोकने के लिए मध्य से ऊपर की ओर उठते हुए दीपक का प्रयोग जलाने के लिए चाहिए।

17. धन प्राप्ति के लिए सामान्य दीपक का प्रयोग लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए करना चाहिए।

18. संकटहरण हनुमान जी की पूजा करने के लिए तथा उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे इसके लिए तीन कोनो वाले दीपक का प्रयोग जलाने के लिए देना चाहिए। हनुमान जी आराधना करने के लिए दीपक को जलाने के लिए चमेली के तेल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

19. आश्रम और देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए शुद्ध गाय के घी और तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
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अगर आपकी इच्छा पूरी तरह से घूमने के लिए आपको भगवान के आगे कैसा दीपक जलाना चाहिए। जिससे आपकी पूरी इच्छाए जल्दी ही पूरी तरह से हो जाती है।माना जाता है कि हर भगवान का संबंध किसी न किसी विशेष वस्तु या इच्छा से होता है। अगर अपनी इच्छा या मनोकामना के अनुसार संबंधित भगवान की मूर्ति को पूजा घर में स्थापित करके, रोज उन्हें दीपक दिया जाए तो आपकी पूरी इच्छाए और मनोकामनाए निश्चित रूप से पूरी होती है। रुका धन पाने से लेकर प्यार तक, बिजनेस में जिम्मेवारी से लेकर स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है।
1.प्यार के लिए भगवान कृष्ण जी- अगर आपको भी अपने दोस्तों या अपने जीवन के साथियों से प्यार पाने की इच्छा हो, तो घर के मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है।

2. दावे से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य- यदि आप दायित्व से परेशान हैं तो आपको अपने घर के मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज उनकी मूर्ति या तस्वीर पर जल चढ़ाना चाहिए और दीपक जलाना चाहिए।


3. अटका हुआ धन पाने के लिए भगवान कुबेर- ये तो हम सभी जानते हैं कि भगवान कुबेर को धन का देवता माना जाता है। अगर आपका भी धन कही अटका है तो अटका हुआ धन पाने के लिए घर के मंदिर की दिशा में भगवान कुबेर की मूर्ति स्थापित कर रोज दीपक जलाना चाहिए।

4. परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए मां सरस्वती- अगर आपको अपनी परीक्षाओं की भी चिंता है और परीक्षा में सफलता पाना चाहते हैं तो अपने कमरे में मां सरस्वती की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज दिया जाना चाहिए।

5. व्यवसाय में शेयरिंग करने के लिए भगवान गणेश- बिजनेस में जॉब के लिए भगवान गणेश की मूर्ति घर या दूकान के मंदिर में स्थापित करें, रोज उन्हें दीपक या अगरबत्ती लगाएं। इससे आपके व्यवसाय में टैक्सी मिल सकती है।

6. परिवार में सुख-शांति के लिए श्री राम जी- अगर आप भी अपने घर-परिवार में हमेशा सुख-शांति और प्यार बनाए रखना चाहते हैं तो उसके लिए भगवान राम सहित लक्ष्मण और देवी सीता की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए चाहिए।

7. बुरे सपनो से छुटकारा पाने के लिए भगवान हनुमान- जिन लोगो को डरावने या बुरे सपनो से दूर करें हो, उन्हें भगवान हनुमान की पंचमुखी स्वरूप की तस्वीर रोज उनकी पूजा करनी चाहिए।
झबरा खत्म करने के लिए भगवान शिव जी-जिन लोगो के अपने घर-परिवार के लोगो या मित्रों के बीच झिलमिलाहट खत्म करने की इच्छा हो, उन्हें घर के मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
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सोमवार व्रत कथा पढ़ें या सुनें, मिलेगी श‍िव-पार्वती की कृपा 🙏🙏🌹🌹🌷🌷👌👌🥀🥀👇👇

बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें...
बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें...

सोमवार व्रत की विधि:
नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए. शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए. इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए. साधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है. मतलब शाम तक रखा जाता है. सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत. इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है.
व्रत कथा:
एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था. पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था.
इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है. इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
कृपया लेख पूरा पढ़ें 🙏🙏

जब बालक के रूप में लड्डू खाने आए थे कृष्‍ण, नाम पड़ा था 'लड्डू गोपाल'; पढ़ें दिलचस्‍प कहानी🙏🙏🌹

जन्‍माष्‍टमी के छह दिन बाद भगवान श्रीकृष्‍ण का नाम करण भी किया जाता है। इस दिन इनकी विधि पूर्वक पूजा की जाती है। ये तो हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण को कई नामों से बुलाया जाता है। लड्डू गोपाल काफी प्रसिद्ध है।
ऐसे पड़ा लड्डू गोपाल नाम : ब्रज भूमि में भगवान श्रीकृष्ण के एक परम भक्त कुम्भनदास रहते थे। कुम्भनदास का एक पुत्र रघुनंदन था। कुम्भनदास हर वक्‍त कृष्ण की भक्ति में लीन रहते थे और पूरे नियम से भगवान की पूजा और सेवा किया करते थे। वे उन्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाते थे, ताकि उनकी सेवा में कोई कमी न रह जाए। एक दिन वृन्दावन से उनके लिए भागवत कथा करने का न्योता आयापहले तो कुम्भनदास ने मना किया लेकिन कुछ सोच विचार कर बाद में वे कथा में जाने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने सोचा कि भगवान की सेवा की तैयारी करके वे रोजाना कथा करके वापस लौट आएंगे जिससे भगवान का सेवा नियम भी नहीं छूटेगा। उन्होंने अपने पुत्र को समझा दिया कि वे भोग तैयार कर चुके हैं, तुम्हें बस समय पर ठाकुर जी को भोग लगा देना है। इसके बाद वे वहां से प्रस्थान कर दिए।कुम्भनदास के पुत्र रघुनंदन ने भोजन की थाली कृष्‍ण के सामने रखी और सरल मन से आग्रह किया कि ठाकुर जी आओ और भोग लगाओ। उसके बाल मन में यह छवि थी कि वे आकर अपने हाथों से भोजन करेंगे, जैसे हम सभी करते हैं। उसने बार-बार आग्रह किया लेकिन भोजन तो वैसे का वैसे ही रखा रहा। अब रघुनंदन उदास हो गया और रोते हुए पुकारा कि हे कृष्‍ण आओ और भोग लगाओ। कहते हैं न जो सच्‍चे हृदय से भगवान को पुकारता है तो भगवान को आना ही पड़ता है।रघुनंदन की इस पुकार के बाद भगवान कृष्‍ण ने बालक का रूप धारण किया और भोजन करने बैठ गए। जब कुंभनदास ने घर आकर रघुनंदन से प्रसाद मांगा तो उसने कह दिया कि ठाकुर जी ने सारा भोजन खा लिया। कुंभनदास को लगा बच्चे को भूख लगी होगी वही सारा भोजन खा गया होगा। लेकिन अब तो ये रोज की कहानी हो गई थी। अब कुंभनदास को शक होने लगा। तो उन्होंने एक दिन लड्डू बनाकर थाली में रखे और छुपकर देखने लगे कि रघुनंदन क्या करतारघुनंदन ने रोज की तरह ही भगवान कृष्‍ण को पुकारा तो वे बालक के रूप में प्रकट होकर आए और लड्डू खाने लगे। यह देखकर कुम्भनदास दौड़ते हुए आए और प्रभु के चरणों में गिरकर विनती करने लगे। उस समय कृष्‍ण के एक हाथ मे लड्डू और दूसरे हाथ वाला लड्डू मुख में जाने को ही था कि वे एकदम मूर्ति हो गए। उसके बाद से ही उनकी इसी रूप में पूजा की जाती है और वे ‘लड्डू गोपाल’ कहलाए जाने लगे धन्यवाद 🙏 लेख को पूरा पढ़ें 

1#घर की इस दिशा में होता है पितरों का वास, भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये काम🙏🙏😭😭

हिंदू धर्म में पितृपक्ष का काफी महत्व माना जाता है। पितृ पक्ष 15 दिन तक चलते हैं। इन दिनों में पितरों को याद कर पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म आदि किया जाता है। वहीं घर की बात की जाए तो दक्षिण दिशा पितरों को समर्पित मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिशा में कुछ चीजों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अगर इन बातों का ध्यान न रखा जाए तो घर में पितृ दोष उत्पन्न होने लगता है। अगर आपके घर में भी पितृ दोष है, तो आपको आर्थिक तंगी के साथ-साथ कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आइए जानते हैं कि पितृ दोष से बचने के लिए किन नियमों का पालन करना चाहिए।

--वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है। ये दिशा पितरों के लिए सही मानी जाती है। इसलिए ध्यान रखें कि पितरों की फोटो हमेशा उत्तर दिशा की तरफ ही लगानी चाहिए। साथ ही पितरों का मुंह दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
 वहीं बेडरूम या फिर ड्राइंग रूम में पितरों की फोटो नहीं रखनी चाहिए। माना जाता है कि इस जगह पर पितरों की फोटो रखने से घर के सदस्यों के स्वास्थ्य पर असर होता है। साथ ही परिवार में कई तरह की बीमारियां उत्पन्न होने लगती है।

--इस बात का भी ध्यान रखें कि घर में एक से अधिक पितरों की फोटो नहीं लगानी चाहिए। घर में एक से ज्यादा पितरों की फोटो लगी होने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
अगर पितरों के श्राद्ध आदि नहीं करते, साथ ही उनको याद नहीं करते हैं तो वे नाराज हो जाते हैं। साथ ही पितृ दोष भी उत्पन्न होता है। घर के मंदिर या रसोई घर में भी पितरों की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए।

-- अगर आप समय-समय पर पितरों को याद करते हैं तथा उनका श्राद्ध आदि करते हैं तो वे प्रसन्न होते हैं। ऐसा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिससे व्यक्ति का जीवन सुख से व्यतीत है
धन्यवाद कृपया पूरा लेख पढ़ें 🙏🙏👍

सबसे बड़ा रहस्य, राधा भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका थीं, पत्नी थीं या कुछ नहीं?🙏🌹🙏🌹👇👇

आपना मन तले टाल जाइए,
 भक्त का मान ना टालते देख राधा कृष्ण रानी
वर्तमान में राधा और कृष्ण के मंदिर बहुत मिल जाएंगे। वृंदावन में राधारानी का भव्य मंदिर है। कृष्ण के नाम के साथ राधा का ही नाम आरसीबी है। अब सवाल यह पैदा होता है कि राधा जब श्रीकृष्ण के जीवन में इतनी महत्वपूर्ण थीं तो उन्होंने राधा से विवाह क्यों नहीं किया? असली राधा कौन थीं, कैसे हुई उनकी मौत? थे भी या नहीं? इन सभी सवालों के जवाब...
 
 
1. कहां हुआ था राधा का जन्म और विवाह?
राधा का जिक्र महाभारत में नहीं मिलता है। भागवत पुराण में भी नहीं मिलता है। राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की मित्र थीं और उनका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था।कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए। लेकिन अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था। राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। बरसाना में राधा को 'लाड़ली' कहा जाता है।
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड अध्याय 49 श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की मामी थीं, क्योंकि उनका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायाण के साथ हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंड के 5वें अध्याय में श्लोक 25, 26 के अनुसार राधा को कृष्ण की पुत्री सिद्ध किया गया है।
 
राधा का पति रायाण गोलोक में श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था। अत: गोलोक के रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधू हुई। माना जाता है कि गोकुल में रायाण रहते थे। मतलब यह कि राधा का श्रीकृष्ण से पिछले जन्म का भी रिश्ता है। यह भी कि उन्हें लक्ष्मी का रूप भी माना जाता हैकुछ विद्वान मानते हैं कि राधा नाम की कोई महिला नहीं थी। रुक्मणि ही राधा थीं। राधा और रुक्मणि दोनों ही कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं। श्रीकृष्ण का विवाह रुक्मणि से हुआ था इसलिए समझो कि राधा से ही हुआ। मतलब यह कि राधा का कोई अलग से अस्तित्व नहीं है।
 
पुराणों के अनुसार देवी रुक्मणि का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्रीकृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा, वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थीं। राधाजी के जन्म और देवी रुक्मणि के जन्म में एक अंतर यह है कि देवी रुक्मणि का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधाजी का शुक्ल पक्ष में। राधाजी को नारदजी के शाप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रुक्मणि से कृष्णजी की शादी हुई। राधा और रुक्मणि यूं तो दो हैं, परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं।
 
माना जाता है कि मध्यकाल या भक्तिकाल के कवियों ने राधा-कृष्ण के वृंदावन के प्रसंग का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की। इसका मतलब कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई। उसके पूर्व यह प्रचलन में नहीं थी। दक्षिण के आचार्य निम्बार्कजी ने सर्वप्रथम राधा-कृष्ण की युगल उपासना का प्रचलन किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि जयदेव ने पहली बार राधा का जिक्र किया था और उसके बाद से श्रीकृष्ण के साथ राधा का नाम जुड़ा हुआ है। इससे पहले राधा नाम का कोई जिक्र नहीं था।

 
3. राधा-कृष्ण का सांकेतिक स्थल पर मिलन और विवाह-
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार और यदुवंशियों के कुलगुरु गर्ग ऋषि द्वारा लिखित गर्ग संहिता की एक कथा के अनुसार कृष्ण और राधा का विवाह बचपन में ही हो गया था। कहते हैं कि एक बार नंदबाबा श्रीकृष्ण को लेकर बाजार घूमने निकले तभी उन्होंने एक सुंदर और अलौकिक कन्या को देखा। वह कन्या कोई और नहीं राधा ही थी।
 
कृष्ण और राधा ने वहां एक-दूसरे को पहली बार देखा था। दोनों एक-दूसरे को देखकर मुग्ध हो गए थे। जहां पर राधा और कृष्ण पहली बार मिले थे, उसे संकेत तीर्थ कहा जाता है, जो कि संभवत: नंदगांव और बरसाने के बीच है। इस स्थान पर आज एक मंदिर है। इसे संकेत स्थान कहा जाता है। मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है। यहां हर साल राधा के जन्मदिन यानी राधाष्टमी से लेकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक मेला लगता है।
 
 
गर्ग संहिता के अनुसार एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने राधा और कृष्ण का गंधर्व विवाह करवाया था। श्रीकृष्ण के पिता उन्हें अकसर पास के भंडिर ग्राम में ले जाया करते थे। वहां उनकी मुलाकात राधा से होती थी। एक बार की बात है कि जब वे अपने पिता के साथ भंडिर गांव गए तो अचानक तेज रोशनी चमकी और मौसम बिगड़ने लगा, कुछ ही समय में आसपास सिर्फ और सिर्फ अंधेरा छा गया।
 
इस अंधेरे में एक पारलौकिक शख्सियत का अनुभव हुआ। वह राधारानी के अलावा और कोई नहीं थी। अपने बाल रूप को छोड़कर श्रीकृष्ण ने किशोर रूप धारण कर लिया और इसी जंगल में ब्रह्माजी ने विशाखा और ललिता की उपस्थिति में राधा-कृष्ण का गंधर्व विवाह करवा दिया। विवाह के बाद माहौल सामान्य हो गया तथा राधा, ब्रह्मा, विशाखा और ललिता अंतर्ध्यान हो गए।
 
 
असल में इस वास्तविक घटना को अलंकृत कर दिया गया है। राधा सचमुच ही कृष्ण से बड़ी थीं और सामाजिक दबावों के चलते यह संभव नहीं था कि उम्र में कहीं बड़ी लड़की से विवाह किया जाए। लेकिन यदि दोनों के बीच प्रेम रहा होगा तो निश्चित ही गुपचुप रूप से गंधर्व विवाह किया गया हो और इस बात को छुपाए रखा हो?
 
4. कृष्ण ने नहीं निभाया वादा-
एक अन्य कथा के अनुसार राधा और कृष्ण एक-दूसरे को प्रेम करने लगे थे। उस वक्त कृष्ण की उम्र 8 और राधा की 12 वर्ष थी। जब यह बात राधा के घर के लोगों को पता चली तो उन्होंने उसे घर में ही कैद कर दिया। ऐसा किए जाने के कई कारण थे। एक कारण यह था कि राधा की मंगनी हो गई थी।
 
 
जब कृष्ण को यह पता चला तो वे उसे कैद से छुड़ाकर यशोदा मां के पास ले आए। यह देखकर यशोदा मां भी दंग रह गईं। तब उन्होंने कृष्ण को बहुत समझाया कि लल्ला, ऐसा करना ठीक नहीं है। मैं तेरा विवाह दूसरे से करा दूंगी, लेकिन कृष्ण नहीं माने।
 
बाद में यशोदा मैया और नंदबाबा उन्हें लेकर ऋषि गर्ग के पास गए। तब गर्ग ऋषि ने कान्हा को समझाया कि उनका जन्म किसी महान उद्देश्य के लिए हुआ है अत: वे किसी भी मोह में बंध नहीं सकते। यह व्यर्थ का हठ छोड़ दें। यह सुनकर कान्हा उदास हो गए और उस दौरान उनका बुलावा मथुरा के लिए आ गया। तब वे वृंदावन छोड़कर हमेशा के लिए मथुरा चले गए। कृष्ण जाते वक्त राधा से ये वादा करके गए थे कि वो वापस आएंगे, लेकिन कृष्ण कभी भी राधा के पास वापस नहीं आए और यही दर्द हमेशा राधा और कृष्ण के मन में रहा।
 

5. वृंदावन की गलियों में हैं प्रेम के निशान-
राधा का गांव बरसाना था। कान्हा पहले गोकुल, फिर नंदगांव और बाद में वृंदावन में रहने लगे थे। वृंदावन में ही राधा के परिवार के लोग भी रहने आ गए थे। बस वहीं पर सांकेतिक तीर्थ से जन्मा राधा और कृष्ण का प्रेम पनपा। कहते हैं कि बचपन की मुहब्बत भुलाए नहीं भुलती।
 
 
उस काल में होली के दिन यहां वृंदावन में इतनी धूम होती थी कि दोनों गांव बरसाना और नंदगांव के लोग वृंदावन में इकट्ठा हो जाते थे। बरसाने से नंदगाव टोली आती और नंदगांव से भी टोली जाती थी। बरसाना गांव के पास 2 पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थीं। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मक्खन वाली मटकी छीन लिया करते या फोड़ दिया करते थे।
 
 
विष्णु पुराण में वृंदावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि यहीं पर श्रीकृष्‍ण और राधा एक घाट पर युगल स्नान करते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और गोपियां आंख-मिचौनी का खेल खेलते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और उनके सभी सखा और सखियां मिलकर रासलीला अर्थात तीज-त्योहारों पर नृत्य-उत्सव का आयोजन करते थे। कृष्ण की शरारतों के कारण उन्हें बांकेबिहारी कहा जाता है। यहां पर यमुना घाट के प्रत्येक घाट से भगवान कृष्ण की कथा जुड़ी हुई है।
 
 
कृष्ण ने जो नंदगांव और वृंदावन में छोटा-सा समय गुजारा था, उसको लेकर भक्तिकाल के कवियों ने कई कविताएं लिखी हैं। वृंदावन छोड़कर कृष्ण जब मथुरा में कंस को मारने गए, तब उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। कंस को मारने के बाद उनके जीवन में उथल-पुथल शुरू हो गई।
 
6. नारद के श्राप के कारण राधा और कृष्ण को विरह सहना पड़ा-
 
रामचरित मानस के बालकांड के अनुसार एक बार विष्णुजी ने नारदजी के साथ छल किया था। उन्हें खुद का स्वरूप देने के बजाय वानर का स्वरूप दे दिया था। इस कारण वे लक्ष्मीजी के स्वयंवर में हंसी का पात्र बन गए और उनके मन में लक्ष्मीजी से विवाह करने की अभिलाषा दबी-की-दबी ही रह गई थी।
 
नारदजी को जब इस छल का पता चला तो वे क्रोधित होकर वैकुंठ पहुंचे और भगवान को बहुत भला-बुरा कहा और उन्हें 'पत्नी का वियोग सहना होगा', यह श्राप दिया। नारदजी के इस श्राप की वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्रजी को सीता का वियोग सहना पड़ा था और कृष्णावतार में देवी राधा का।

 
7. राधा और कृष्ण का पुनर्मिलन-
जब कृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए, तब राधा के लिए उन्हें देखना और उनसे मिलना और दुर्लभ हो गया। कहते हैं कि राधा और कृष्ण दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है, जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृंदावन से नंद के साथ राधा आई थीं।
 
राधा सिर्फ कृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ गई थीं। इसका जिक्र पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि जब द्वापर युग में नारायण ने श्रीकृष्ण का जन्म लिया था, तब मां लक्ष्मी ने राधारानी के रूप में जन्म लिया था ताकि मृत्युलोक में भी वे उनके साथ ही रहें, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
 
 
8. राधा और कृष्ण के प्रेम की मार्मिक कहानी-
राधा और कृष्ण के बीच पहले सांकेत स्थल और फिर बाद में वृंदावन में होती रही मुलाकात के कारण प्रेम जन्म लेने लगा था। बचपन का प्यार बहुत गहरा और निष्काम होता है। श्रीकृष्ण उस वक्त 8 साल के और राधा 12 साल की थीं। कहते हैं कि उस वक्त श्रीकृष्ण को 2 ही चीजें सबसे ज्यादा प्रिय थीं- बांसुरी और राधा। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर राधा के जैसे प्राण ही निकल जाते थे। कई जन्मों की स्मृतियों को कुरेदने का प्रयास होता था और वह श्रीकृष्ण की तरफ खिंची चली आती थी।
 
 
भगवान श्रीकृष्ण से राधा पहली बार तब अलग हुई, जब श्रीकृष्ण वृंदावन छोड़कर बलराम के साथ कंस के निमंत्रण पर मथुरा जा रहे थे। तब उन्हें भी नहीं मालूम था कि उनका जीवन बदलने का वाला है। यह प्रेमपूर्ण जीवन अब युद्ध की ओर जाने वाला है। पूरा वृंदावन उस वक्त रोया था। राधा के लिए तो जैसे सबकुछ खत्म होने जैसा था। राधा के आंसु सूखकर जम गए थे। बस, श्रीकृष्ण राधा से उस वक्त इतना ही कह पाए कि 'मैं वापस लौटूंगा।'
 
 
लेकिन श्रीकृष्ण कभी नहीं लौटे और मथुरा में वे एक लंबे संघर्ष में उलझ गए। बाद में उन्होंने रुक्मणि से विवाह कर लिया और द्वारिका में अपनी एक अलग जिंदगी बसा ली। जब कृष्ण वृंदावन से निकल गए तब राधा की जिंदगी ने एक अलग ही मोड़ ले लिया था। राधा का विवाह हो गया, लेकिन राधा श्रीकृष्ण के विरह में जीती और मरती रहीं। राधा ने अपना दांपत्य जीवन ईमानदारी से निभाया और जब वे बूढ़ी हो गईं तो उसके मन में मरने से पहले एक बार श्रीकृष्ण को देखने की आस जगी।
 
 
सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा, लेकिन वे दुखी नहीं हुईं। जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। कहते हैं कि दोनों संकेतों की भाषा में एक-दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे। तब राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया।
 
 
कहते हैं कि वहीं पर राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया। उन्होंने सोचा कि वे दूर जाकर दोबारा श्रीकृष्ण के साथ गहरा आत्मीय संबंध स्थापित करेंगी। हालांकि श्रीकृष्ण तो अंतरयामी थे और वे राधा के मन की बात जानते थे।

।कहते हैं कि राधा एक जंगल के गांव में में रहने लगीं। धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे।
 
श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया। कहते हैं कि श्रीकृष्ण अपनी प्रेमिका की मृत्यु नहीं छोड़ते हैं और वे बांसुरी तोड़कर खरोंच में फेंक देते हैं। उसके बाद से श्रीकृष्ण ने जीवन में कभी बांसुरी नहीं बजाई!
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1.ॐ देवसखाय नम: 2. ॐ चिक्लीताय नम:

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