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1#घर की इस दिशा में होता है पितरों का वास, भूलकर भी नहीं करने चाहिए ये काम🙏🙏😭😭

हिंदू धर्म में पितृपक्ष का काफी महत्व माना जाता है। पितृ पक्ष 15 दिन तक चलते हैं। इन दिनों में पितरों को याद कर पिंडदान, तर्पण, श्राद्ध कर्म आदि किया जाता है। वहीं घर की बात की जाए तो दक्षिण दिशा पितरों को समर्पित मानी जाती है। मान्यता है कि इस दिशा में कुछ चीजों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अगर इन बातों का ध्यान न रखा जाए तो घर में पितृ दोष उत्पन्न होने लगता है। अगर आपके घर में भी पितृ दोष है, तो आपको आर्थिक तंगी के साथ-साथ कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आइए जानते हैं कि पितृ दोष से बचने के लिए किन नियमों का पालन करना चाहिए।

--वास्तु शास्त्र के अनुसार दक्षिण दिशा यम की दिशा मानी जाती है। ये दिशा पितरों के लिए सही मानी जाती है। इसलिए ध्यान रखें कि पितरों की फोटो हमेशा उत्तर दिशा की तरफ ही लगानी चाहिए। साथ ही पितरों का मुंह दक्षिण दिशा में होना चाहिए।
 वहीं बेडरूम या फिर ड्राइंग रूम में पितरों की फोटो नहीं रखनी चाहिए। माना जाता है कि इस जगह पर पितरों की फोटो रखने से घर के सदस्यों के स्वास्थ्य पर असर होता है। साथ ही परिवार में कई तरह की बीमारियां उत्पन्न होने लगती है।

--इस बात का भी ध्यान रखें कि घर में एक से अधिक पितरों की फोटो नहीं लगानी चाहिए। घर में एक से ज्यादा पितरों की फोटो लगी होने से घर में नकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश होता है।
अगर पितरों के श्राद्ध आदि नहीं करते, साथ ही उनको याद नहीं करते हैं तो वे नाराज हो जाते हैं। साथ ही पितृ दोष भी उत्पन्न होता है। घर के मंदिर या रसोई घर में भी पितरों की तस्वीर नहीं लगानी चाहिए।

-- अगर आप समय-समय पर पितरों को याद करते हैं तथा उनका श्राद्ध आदि करते हैं तो वे प्रसन्न होते हैं। ऐसा करने से उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। जिससे व्यक्ति का जीवन सुख से व्यतीत है
धन्यवाद कृपया पूरा लेख पढ़ें 🙏🙏👍

1#भक्त श्रीधर की कथा👇👌🌟🎉

कहा जाता है लगभग सात सौ वर्ष पहले माता के परम भक्त श्रीधर जी हुए जो कटरा से लगभग दो किलो मीटर की दूरी पर बसे हंसाली नामक गांव में रहते थे।
वे नित्य नियम से कन्या पूजन किया करते थे। संतान न होने के कारण वह बहुत दुःखी रहते थे। अतः संतान प्राप्ति की कामना से भगवती दुर्गा का पूजन भी करने लगे।

लंबे समय तक देवी का पूजन और कन्याओं को भोजन कराते रहने पर भी जब उनके कोई संतान न हुई तो एक दिन उन्होंने यह प्रतिज्ञा कर ली कि जब तक मां भगवती स्वयं आकर उन्हें भोजन न करायेंगी वह भूखे ही रहेंगे।

अपने भक्त की ऐसी कठोर प्रतिज्ञा देखकर माता का हृदय पिघल गया और भक्त जी कोदर्शन देने का विचार करके मां एक दिन कन्या का रूप धरकर अन्य कन्याओं के साथ बैठ गई।

अन्य सभी कन्यायें हर रोज की भाँति चली गई लेकिनवह कन्या रूपी भगवती वहीं बैठी रही, उसे बैठी देखकर श्रीधर जी पहले तुम भोजन कर लो फिर में तुम्हें अपना परिचय दूँगी। श्रीधर ने कहा ‘मैंने यह प्रतिज्ञा की है कि जब तक स्वयं माता आकर मुझे भोजन न करायेंगी, मैं भोजन नहीं करूँगा।

अबकी बार दिव्य स्वरूप कन्या का उत्तर था कि वह ही भगवती दुर्गा है। उनकी तपस्या से खुश होकर की कन्या का रूप धरकर आई है। अब प्रसन्न हो जाओ मैं तुमको अपने हाथों से भोजन कराऊँगी।

भोजन कराने के बाद कन्या ने कहा- हे भक्त जी यहां समीप ही त्रिकुट पर्वत की गुफा में मेरा निवास है। श्रीदुर्गा जी के अन्य स्वयुप वैष्णव रूप में मैं तपस्या करती हूँ।कई शताब्दियों से गुफा का भाग ठीक न होने के कारण भक्त मेरा दर्शन नहीं कर पाते। अतः अबकी बार तुम ही इस सेवा को करो और अन्य भक्तों को मेरे निवास से परिचय कराओ। तुम्हारा वंश सदा ही मेरी आराधना करता रहेगा।

इस कथा का एक रूप इस प्रकार भी है कि भक्त श्रीधर की सच्ची उपासना और अडिग विश्वास को देखकर मां वैष्णों को स्वयं एक दिन कन्या का रूप धारण करके आना पड़ा। भक्त जी कन्या का पूजन की तैयारी कर रहे थे, छोटी-2 कन्यायें उपस्थित थीं।

उन्हीं में मां वैष्णवों भी कन्या बनकर आ गई। नियम के अनुसार पांव धोकर भोजन परोसते समय श्रीधर जी की दृष्टि उस महादिव्यरुपी कन्या पर पड़ी भक्त जी विस्मय में डूब गये क्योंकि यह कन्या उन्होंने पहले कभी नहीं देखी थी।अन्य सभी कन्यायें तो दक्षिणा पाने के बाद वहां से चली गई परन्तु वह महाकन्या रूपी वहीं 2 बैठी रही, श्रीधर जी इससे पहले कुछ पूछते वह कन्या रुपी महाशक्ति स्वयं ही बोली- मैं तुम्हारे पास एक काम से आई हूँ छोटी-सी कन्या के मुख से ऐसी विचित्र बात सुनकर भक्त जी बहुत हैरान हुए।

कन्या ने कहा कि अपने गांव में और आस-पास यह संदेश दे आओ कि कल दोपहर आपके यहां एक महान् भंडारे का आयोजन है। इतना कहकर वह कन्या लोप हो गई। श्रीधर जी विचारों में डूब गए।

आखिर वह कन्या कौन थी? परन्तु भंडारे वाली समस्या ने भक्तजी को परेशान कर दिया।अन्त में वह कन्या की आज्ञा को ही मानते हुए समीपवर्ती गांवों में भण्डारे का निमन्त्रण देने निकल पड़े।

श्रीधर जी भण्डारे का निमंत्रण देने एक गांव से दूसरे गांव जा रहे थे तो मार्ग में साधुओं के एक के दृश्य को देखकर उन्होंने प्रणाम कर अपने यहां होने वाले भण्डारे पर पधारने को !दल के मुखिया गोरखनाथ जी भक्त का नाम पूछकर बोले-श्रीधर तुम मुझे भैरव नाथ और अन्य 360 चेलों को निमंत्रण देने में भूल कर रहे हो हमें तो देवराज इन्द्र जी भोजन न दे सके।

इस पर श्रीधर ने उन्हें कन्या के आगमन की कथा सुनाई। गुरु गोरखनाथ जी ने विचार किया कि ऐसी कौन-सी कन्या है जो सबको भोजन खिला सकती है। परीक्षा करके देखनी चाहिए और उन्होंने भक्त जी का निमंत्रण स्वीकार कर लिया।

भण्डारे के दिन श्रीधर जी को तो होश ही न था कि प्रबन्ध कैसे हो और भीड़ इकट्ठी होने लगी। गोरखनाथ व भैरोनाथ जी अपने-2 चेलों सहित आ पहुँचे। भक्त जी के सम्मुख आकर यह दिव्या कन्या बोली अब सब चिंताए छोड़िए, सब प्रबंध हो चुका है जोगियों से चलकर कहिए कि कुटिया में बैठकर भोजन करें।

श्रीधर जी उत्साह से गुरुजी के पास जाकर बोले-चलिए कुटिया में बैठकर भोजन कीजिए। इस पर गुरुजी ने कहा कि हम सब तो कुटिया में नहीं आ सकते क्योंकि उसमें स्थान ही बहुत कम हैं। श्रीधर जी ने कहा जोगीनाथ कन्या ने ऐसा ही कहा है।जिस समय जोगी कुटिया में गए तो सबके अवश्य को सब आराम से बैठ गए और स्थान फिर भी बच इसका पता गया। कन्या ने विचित्र पात्र से निकाल सबको इच्छा हुई सबको अनुसार भोजन देना आरम्भ कर दिया तो आश्चर्य लेकिन मुझ की सीमा न रही। सबके सब देखते रह गए। यह देखकर श्रीधर जी प्रसन्न हो गए।

भण्डारे के समय गुरु गोरखनाथ और भैरवनाथ ने परस्पर विचार-विमर्श किया कि यह कन्या अवश्य कोई शक्ति है। यह वास्तव में कौन है। इसका पता लगाना चाहिए। सबको भोजन परोसती हुई सबको उनकी इच्छानुसार भोजन दे रही है लेकिन मुझको नहीं दे सकती।

‘बोलो जोगीनाथ तुमको क्या चाहिए?” कन्या ने पूछा-भैरों ने देवी से मांस और मदिरा मांगी तो कन्या ने उसे आदेश के स्वर में कहा- यह एक ब्राह्मण के घर का भंडारा है और जो कुछ वैष्णव भण्डारे में होता है वही मिलेगा।

भैरव हठ करने लगा क्योंकि उसने तो कन्या की परीक्षा लेनी थी। लेकिन भैरवनाथ के मन की बात भी देवी पहल ही जानती थी। ज्यों ही भैरवनाथ ने क्रोध से कन्या को पकड़ना चाहा वह कन्या रुपी महाशक्ति लोप हो गई। भैरवनाथ ने भी उसी समय से उसकी खोज और पीछा करना आरम्भ कर दिया।
देवी कन्या आगे बढ़ती रही- भैरव पीछा करता रहा। गुफा के द्वार पर देवी ने वीर लांगूर को प्रहरी बनाकर खड़ा कर दिया और भैरव को अन्दर आने से रोकने के लिए कहा।

कन्या गुफा में प्रवेश कर गई तो भैरव भी घुसने लगा। वीर लांगूर के साथ भैरव का युद्ध हुआ। शक्ति ने चंडी का रूप धारण कर भैरव का वध कर दिया। धड़ वही फिर गुफा के पास तथा सिर भैरों घाटी में जा गिरा। जिस स्थान पर भैरों का सिर गिरा था, उसी जगह भैरव मन्दिर का निर्माण हुआ है।

सिर धड़ से अलग होने पर भैरव की आवाज आई- हे आदिशक्ति ! कल्याणकारिणी माँ! मुझे मरने का कोई दुःख नहीं, क्योंकि मेरी मृत्यु जगत रचयिता माँ के हाथ हुई है। सो हे मातेश्वरी! मुझे क्षमा कर देना।

मैं तुम्हारे इस रूप से परिचित न था। माँ अगर तूने मुझे क्षमा न किया तो आने वाला युग मुझे पापी की दृष्टि से देखेगा और लोग मेरे नाम से घृणा करेंगे। माता न हो कुमाता भैरव के मुख से बारम्बार माँ शब्द सुनकर जगकल्याणी मातेश्वरी ने उसे वरदान दिया कि मेरी पूजा के बाद तेरी पूजा होगी तथा तू मोक्ष का अधिकारी होगा।

मेरे श्रद्धालु मेरे दर्शनों के पश्चात तेरे दर्शन किया करेंगे। तेरे स्थान का दर्शन करने वालों की भी मनोकामना पूर्ण होगी। इसी कथा के अनुसार यात्री दरबार के दर्शन के बाद वापिसी में भैरों मन्दिर के दर्शन के लिए जाते हैं।

भैरवनाथ की कथा
धन्यवाद कृपया पूरा लेख पढ़ें 🙏🙏

1#भक्त प्रह्लाद की कहानी 🙏🙏🌹🌹👍👍❤️❤️

विष्णु पुराण में भक्त प्रह्लाद की कथा का उल्लेख है। प्रह्लाद भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे। आइये विस्तार से जानते हैं भक्त प्रह्लाद की कहानी जो अत्यंत रोचक और बच्चों के लिए प्रेरणादायक है।

सनकादि ऋषियों के शाप के कारण भगवान विष्णु के पार्षद जय एवं विजय को दैत्ययोनि में जन्म लेना पड़ा था।
महर्षि कश्यप की पत्नी दक्षपुत्री दिति के गर्भ से दो बड़े पराक्रमी बालकों का जन्म हुआ। इनमें से बड़े का नाम हिरण्यकशिपु और छोटे का नाम हिरण्याक्ष था।

दोनों भाइयों में बड़ी प्रीति थी। दोनों ही महाबलशाली, पराक्रमी और आत्मबल संपन्न थे। दोनों भाइयों ने युद्ध में विश्व को परास्त करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।

एक समय जब हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को रसातल में ले लिया तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा के लिए हिरण्याक्ष का वध कियाअपने प्रिय भाई हिरण्याक्ष के वध से व्यान्यकशिपु ने दैत्यों को प्रजा पर अत्याचार करने की आज्ञा देकर स्वयं महेन्द्राचल पर्वत पर चला गया।

वह भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई की हत्या का बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करने लगा।

शोक दैत्यों के राज्य को राजाविहीन देखकर दुनिया ने उन पर आक्रमण कर दिया। दैत्यगण इस युद्ध में पराजित होकर पाताललोक में भाग लिए।

देवराज इंद्र ने हिरण्यकशिपु के महल में प्रवेश कर अपनी पत्नी अवैध को बांध लिया। उस समय प्रेक्षित था, इसलिए इंद्र उसे साथ लेकर अमरावती की ओर जाने लगे।

रास्ते में उनकी देवर्षि नारद से खाताधारक हो गए। नारद जी ने पुछा – “देवराज ! इसे कहां ले जा रहे हो? "

इन्द्र ने कहा – ” देवर्षे ! इसके गर्भ में हिरण्यकशिपु का मूल है, इसे मार कर इसे छोड़ दें। "

यह सुनकर नारदजी ने कहा – “देवराज ! इसके गर्भ में बहुत बड़ा भगवद्भक्त है, जो आपकी शक्ति के बाहर गिरता है, इसलिए इसे दो छोड़ देता है। "।
नारदजी के कथन का मान रखते हुए इन्द्र ने छायाधू को छोड़ दिया और अमरावती चले गए।

नारदजी कयाधु को अपने अजर पर ले आओ और उससे कहो – “बेटी! तुम यहाँ आराम से पहले जब तक घनिष्ठ पति अपनी तपस्या पूरी करके नहीं लौटता। "

छेदाधू उस पवित्र अज्ञान में नारदजी के सुन्दर प्रवचनों का लाभ हुई हुई सुखपूर्वक रहने लगी जिसका गर्भ में पल रहे शिशु पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।

समय होने पर अवैध ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया।

विनाश हिरण्यकशिपु की तपस्या पूरी तरह से हुई और वह ब्रह्माजी से मनचाहा वरदान लेकर वापस अपनी राजधानी चला गया।

कुछ समय बाद खैयाधू भी प्रह्लाद को लेकर नारदजी के आश्रम से राजमहल में आ गया।जब प्रह्लाद कुछ बड़े हुए तब हिरण्यकशिपु ने अपनी शिक्षा की व्यवस्था की। प्रह्लाद गुरु के सन्निध्य में शिक्षा ग्रहण करें।

एक दिन हिरण्यकशिपु अपने मंत्री के सदन में बैठा था। उसी समय प्रह्लाद अपने गुरु के साथ वहाँ गए।

प्रह्लाद को प्रणाम करते हुए हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी गोद में बिठाकर दुलार किया और कहा -

“वत्स! अभी तक अध्ययन में निरंतर तत्पर जो कुछ खुश हैं, उसमें से कुछ अच्छी बातें सूनो। "

तब प्रह्लाद बोले – “अपमानजनक ! मैं अब तक जो कुछ खुश हूं उसका सारांश आपको सुना रहा हूं। जो आदि, मध्य और अंत से अनुपयोगी, अजन्मा, वृद्धि-क्षय से शुन्य और उत्कृष्टयुत हैं, सभी कारणों के कारण तथा जगत की स्थिति और अंत कर्ता उन श्रीहरि को मैं प्रणाम करता हूं। "

यह सुनकर दैत्यराज हिरण्यकशिपु के नेत्र क्रोध से लाल हो उठे, उसने कांपते हुए होठों से प्रह्लाद के गुरु से कहा -
अरे दुर्बुद्धि ब्राह्मण ! यह क्या ? तूने मेरी अवज्ञा करके इस बालक को मेरे परम शत्रु की स्तुति से युक्त शिक्षा कैसे दी ? "गुरुजी ने कहा – “दैत्यराज ! आपको क्रोध के वशीभूत नहीं होना चाहिए। आपका बेटा मेरी सिखाई गई बात नहीं कह रहा है। "

हिरण्यकशिपु बोला – “बेटा प्रह्लाद ! लगता है तुम्हें यह शिक्षा कौन देता है ? तुम्हारे गुरुजी कहते हैं कि मैंने तो इसे ऐसा उपदेश दिया ही नहीं है। "

प्रह्लाद बोले – “संवेदी ! ह्रदय में स्थित भगवान विष्णु ही तो संपूर्ण जगत के उपदेशक हैं। उन्हें छोड़कर और किन्हें कोई खुश कर सकता है। "

हिरण्यकशिपु बोला – ” अरे मुर्ख ! जिस विष्णु का तू निष्शंक स्तुति कर रहा है, वह मेरे सामने कौन है ? मेरे रहने और कौन परमेश्वर हो सकता है ? फिर भी तू मौत की खबर में जाने की इक्षा से बार-बार ऐसा बक रहा है। "

ऐसा देश हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को कई प्रकार से समन पर प्रह्लाद के मन से श्रीहरि के प्रति भक्ति और श्रद्धाभाव को कम नहीं पाया। तब अत्यंत क्रोधित हुई हिरण्यकशिपु ने अपने सेवकों से कहा –

“अरे! यह परम दुरात्मा है। इसे मार डालो। अब इसका वनक्षेत्र से कोई लाभ नहीं है, क्योंकि यह शत्रुप्रेमी तो अपने कुल का ही नाश करने वाला हो गया है। "

हिरण्यकशिपु की आज्ञा पाकर उसके सैनिक प्रह्लाद को कई प्रकार से मारने की चेष्टा के पर उनके सभी प्रयासों श्रीहरि की कृपा से प्रभावित हो जाते थे।

उन सैनिकों ने प्रह्लाद पर कई प्रकार के अस्त्र शस्त्रों से आघात होने पर प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। उन्होंने प्रह्लाद के पैर-पैर फुटकर समुद्र में डाल दिया पर प्रह्लाद फिर भी बच गए।

उन सबने प्रह्लाद को कई दृश्यमान सर्पों से दसवाया और पर्वत शिखर से गिराया पर भगवद्कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ।

रसोइयों द्वारा विष मिलाए गए भोजन देने पर प्रह्लाद उसे भी पचा गए।

यह भी पढ़े:जब प्रह्लाद को मारने के सभी प्रकार के प्रयास विफल हो जाते हैं तब हिरण्यकशिपु के पुरोहितों ने अग्निशिखा के समान समानता वाली शारीरिक क्रियाओं को प्राप्त कर लिया।

उस अति उग्र कृत्या ने अपने पैरों से पृथ्वी को कम्प्यूट करते हुए दिखाई देते हैं बड़े क्रोध से प्रह्लाद जी की छाती में त्रिशूल से झटका किया। पर उस बालक के छाती में ही वह तेजोमय त्रिशूल टूटकर निचे गिरा पड़ा।

उन पापी पुरोहितों ने उस निष्कपटपाप बालक पर क्रिया का प्रयोग किया था। इसलिए कृत्या ने तुरंत ही उन पुरोहितों पर वार कर दिया और स्वयं भी नष्ट हो गया।

अन्य परिस्थितियों में कार्य के स्थान पर होलिका का नाम प्रकट होता है जिसे अग्नि में कोई वरदान प्राप्त नहीं हुआ था।

होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में प्रवेश कर गई पर ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ और होलिका जल कर भस्म हो गई।

भगवान का नृसिंह अवतार
हिरण्यकशिपु के दूतों ने जब उसे खबर सुनाई तो वह अत्यंत कर्तव्यनिष्ठ हो गया और उसने प्रह्लाद को अपने सदन में बुलवाया।

हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से कहा - "रे दुष्ट! जिसके बल पर तू ऐसी बहकी बहकी बातें करता है, तीखा वह ईश्वर खाता है ? वह सर्वत्र है तो मुझे इस खंबे में क्यों दिखाई नहीं देता ? "
यह सुनकर हिरण्यकशिपु क्रोध के मारे हुए स्वयं को संभाल नहीं सका और हाथ में तलवार लेकर सिंघासन से कूद पड़ा और बड़ा जोर से उस खंबे में एक घूणसा मारा।

उसी समय उस खंबे से बड़ा भयंकर शब्द हुआ और उस खंबे को तोड़कर एक विचित्र प्राणी निकल गया जिसका आधा शरीर सिंह और आधा शरीर मनुष्य था।

यह भगवान श्रीहरि का नृसिंह अवतार था। उनका रूप बड़ा भयंकर था।

वे तपाये हुए सोने के समान पीले पीले रंग में थे, उनके दाढ़ें बड़े विकराल थे और वे भयंकर शब्द से गर्जन कर रहे थे। उनके करीब जाने का खुलासा किसी में नहीं हो रहा था।

यह देखकर हिरण्यकशिपु सिंघनाद करता हुआ हाथ में गदा लेकर नृसिंह भगवान पर टूट पड़ा।

तब भगवान भी हिरण्यकशिपु के साथ कुछ देर तक युद्ध लीला करते रहे और अंत में उसे झपटकर दबोच लिया और उसे सभा के दरवाजे पर ले जाकर अपनी जांघों पर गिरा लिया और खेल ही खेल में अपनी नखों से उसके कलेजे को तोड़कर उसे धरती पर पटक दिया ।

फिर वहां अन्य असुरों और दैत्यों को खदेड़ खदेड़ कर मार डाला। उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। वे हिरण्यकशिपु के ऊँचे सिंघासन पर विराजमान हो गए।

उनकी क्रोधपूर्ण मुखाकृति को देखकर किसी को भी उनके निकट जाकर उनकी प्रसन्नता का बोध नहीं हो रहा था।

हिरण्यकशिपु की मृत्यु का समाचार सुनकर उस सभा में ब्रह्मा, इंद्र, शंकर, सभी देवगण, ऋषि-मुनि, सिद्ध, नाग, गन्धर्व आदि पहुंचे और थोड़ी दूर पर स्थित सभी ने अंजलि करार कर भगवान की अलग-अलग से स्तुति की पर भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ।

तब वैश्विक माता लक्ष्मी को उनके निकट भेजे जाने पर भगवान के उग्र रूप को देखकर वे भी आत्माभिमानी हो गईं।

तब ब्रह्मा जी ने प्रह्लाद से कहा – “बेटा! तुम्हारे पिता पर ही तो भगवान क्रुद्ध थे, अब तुम्ही चले जाओ उन्हें शांत करो। "

तब प्रह्लाद भगवान के निकट जाकर साष्टांग भूमि पर लोट गए और उनकी स्तुति करने लगे।

बालक प्रह्लाद को अपने चरणों में पड़ा देखकर भगवान दयाद्र हो गए और उसे उठाकर गोद में बिठा लिया और प्रेमपूर्वक कहा -

” वत्स प्रह्लाद ! आपके जैसे एकांतप्रेमी भक्त को हालांकि किसी वस्तु की अभिलाषा नहीं रहती है पर फिर भी तुम केवल एक मन्वन्तर तक मेरी चेतना के लिए इस लोक में दैत्यपति के सभी भोग स्वीकार कर लो।

भोग के पुण्यकर्मो के फल और निष्काम पुण्यकर्मों द्वारा पाप का नाश करते हुए समय पर शरीर का त्याग करके समस्त बंधनों से मुक्त होकर तुम मेरे पास आ गोगे। देवलोक में भी लोग पूरी तरह कीर्ति का गान करेंगे। "

यह भिन्न भगवान नृसिंह वहीँ अंतर्ध्यान हो गए।

विष्णु पुराण में पराशर जी कहते हैं – “भक्त प्रह्लाद की कहानी को जो मनुष्य सुनता है उसका पाप ही नष्ट हो जाता है। पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी और द्वादशी को इसे पढ़ने से मनुष्य को गोदान का फल मिलता है।

जिस प्रकार भगवान ने प्रह्लाद जी की सभी आपत्तियों से रक्षा की थी उसी प्रकार वे सर्वदा उनकी भी रक्षा करते हैं जो उनका चरित्र सुनते हैं। "

संबंधितभोग के पुण्यकर्मो के फल और निष्काम पुण्यकर्मों द्वारा पाप का नाश करते हुए समय पर शरीर का त्याग करके समस्त बंधनों से मुक्त होकर तुम मेरे पास आ गोगे। देवलोक में भी लोग पूरी तरह कीर्ति का गान करेंगे। "

यह भिन्न भगवान नृसिंह वहीँ अंतर्ध्यान हो गए।

विष्णु पुराण में पराशर जी कहते हैं – “भक्त प्रह्लाद की कहानी को जो मनुष्य सुनता है उसका पाप ही नष्ट हो जाता है। पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी और द्वादशी को इसे पढ़ने से मनुष्य को गोदान का फल मिलता है।

जिस प्रकार भगवान ने प्रह्लाद जी की सभी आपत्तियों से रक्षा की थी उसी प्रकार वे सर्वदा उनकी भी रक्षा करते हैं जो उनका चरित्र सुनते हैं।
धन्यवाद🙏❤️👍🌹🙋



1#भगवान सब जगह हैंं पहले करो विश्वास फिर देखो चमत्कार🙏🙏🌹🌹




 

मैं कोई धर्म गुरु नहीं हूं। मैं एक मोटिवेशनल राइटर हूं जो आपको मोटिवेट करता हूंं। मेरा उद्देश्य सच्ची घटना को आपके साथ शेयर करके और आपको मोटिवेट करना है। मैं केवल वही सच्ची घटना को  आपके साथ शेयर करता हूं जो आपकी प्रगति में सहायक सिद्ध होता है।

 


कुछ लोग मानते हैं कि भगवान (God) सब जगह है। प्रत्येक मनुष्य में नहीं बल्कि प्रत्येक जानवर, प्रत्येक पेड़ पौधा, हर कण में भगवान विद्यमान है। जैसा कि हमारे शास्त्रों एवं पुराणों में भी कहा गया है भगवान हर जगह है। जब भक्त बुलाते हैं वह आ जाते हैं।


कुछ निराशावादी  व्यक्ति है जो भगवान (God) को नहीं मानते हैं। वह हमेशा बोलते हैं भगवान दुनिया में है ही नहीं। भगवान है तो उसे बुलाओ। भगवान दिखते कैसे हैं? भगवान रहते कहां हैं? इत्यादि।

 

जैसा कि आप जानते हैं कि सफलता प्राप्त करने के लिए विश्वास होना बहुत जरूरी है। बिना विश्वास के कोई भी सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन को विश्वास था कि मेरे साथ भगवान श्री कृष्ण है इसलिए मैं हार नहीं सकता हूं और वह जीत गया।

 

एक विश्वास के बल पर ही आप बड़े से बड़े लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि आप जानते हैं जिन्हें विश्वास है उसे दुनिया कि सभी सुख प्राप्त होते हैं। जो भगवान को मानता है उसमें विश्वास रूपी शक्ति होती है।

 भगवान (God) सब जगह है – एक सच्ची घटना
आपको सच्ची घटना बता रहा हूं जिसमें भगवान (God) प्रकट हुए थे। टीवी सीरियल में आप देखे होंगे कि प्रह्लाद कि पिता हरीना कश्यप को मारने के लिए भगवान प्रकट हुए थे। ठीक इसी प्रकार विष्णु जी ने कई अवतार लिए और दुष्टों का नाश किया।

 

रामायण महाभारत इत्यादि कहानी हम पढ़ते भी हैं और सीरियल देखे हैं। यह घटना कई युगों पहले की बात है। मैं कुछ समय पहले की एक घटना बता रहा हूं जो आप को अचंभित कर देगा। आपको सोचने पर विवश कर दें कि वास्तव में भगवान है।

 

एक गांव में एक बहुत ही साधारण व्यक्ति रहता था। उसे भगवान पर अटूट विश्वास था। जब कोई व्यक्ति उसे हालचाल पूछता वह बोलते हैं ठाकुर जी जानें।

 

उस गांव में एक ठाकुर जी का मंदिर था। उन्हें उन पर पूरा विश्वास था। उन व्यक्ति के दो पुत्र और एक पुत्री थे। जब पुत्री की शादी किया तो उस साधारण व्यक्ति ने साहूकार से कुछ कर्जा लिया।

 

कुछ समय बाद दोनों पुत्र ने पिता को बोला है यह लो पैसे और साहूकार को देकर कर्ज से मुक्त हो जाओ। उस व्यक्ति ने जाकर साहूकार से कहा यह लीजिए साहूकार जी आपका मूलधन और ब्याज और मुझे अपने कर्जे से मुक्त करा दीजिए।


साहूकार ने एक पेज पर लिख दिया कि आपका पूरा कर्जा ब्याज सहित प्राप्त हुआ। आप कर्जा से मुक्त है। साहूकार ने उस व्यक्ति से पूछा इस पर क्या लिखा हुआ?

 

उस व्यक्ति ने कहा मैं तो अनपढ़ हूं। जो लिखा है वह ठाकुर जी जानें। साहूकार समझ गया कि व्यक्ति बहुत सीधा है। उनके मन में लोभ आ गया। साहूकार ने उस व्यक्ति को कहा अंदर जाकर एक गिलास पानी लेकर आओ।

इसी बीच में साहूकार ने उस पर्ची को हटाकर एक पर्ची लिख दिया कि अभी मेरा कर्जा बाकी है। अंदर से व्यक्ति आया और पर्ची लेकर चला गया। कुछ दिन बाद साहूकार पैसा मांगने पहुंच गया।

 

उस व्यक्ति ने कहा कि यह बात गलत है। मैंने आपको पैसा दे दिया है। मामला कोर्ट में चला गया। कोर्ट में व्यक्ति को बुलाया गया। व्यक्ति जोर जोर से रोने लगा और बोला कि ठाकुर जी जानते हैं कि मैंने उसको पैसा दे दिया।

 

जज साहब ने पूछा कोई गवाह है जिसने आपको साहूकार को पैसा देते देखा था। उसने कहा हां ठाकुर जी है। ठाकुर जी ने मुझे पैसे देते हुए साहूकार को देखा था।

 

जज साहब ने कहा ठाकुर जी को बुलाया जाए। पुलिस वालों ने उस गांव में जाकर लोगों से पूछा ठाकुर जी नाम का कोई व्यक्ति इस गांव में है। उसे कल कोर्ट में आना पड़ेगा।

 

गांव वालों ने कहा ठाकुर जी नाम का कोई भी व्यक्ति इस गांव में नहीं है। ठाकुर जी का मंदिर है। अब भगवान कैसे कोर्ट में पेश होंगे।

 

अगले दिन अदालत की कार्रवाई शुरू हुई। जज साहब के बगल में खरा भक्ति जोर से बोला लगा ठाकुर जी हाजिर हो, ठाकुर जी हाजिर हो। उसी वक्त एक बूढ़ा व्यक्ति सिर पर तिलक लगाए चंदन का माला पहने हुए कोर्ट में आ गया।

 

उस व्यक्ति ने कटघरे में खड़ा होकर बोला सर मैं ठाकुर जी हूं। बताइए क्या बात है? जज साहब ने ठाकुर जी से पूछा क्या आप इस व्यक्ति को साहूकार को पैसे देते हुए देखा था?

 

तब ठाकुर जी ने बोला हां जज साहब मेरे सामने में इस व्यक्ति ने साहूकार को पूरे पैसे ब्याज समेत दे दिया था। आप साहूकार को यहां पर रोकिए और किसी व्यक्ति को साहूकार के घर भेजिए। साहूकार के घर में अलमारी नंबर 3 में एक फाइल है, उस फाइल के 22 में पेज पर वह पर्ची रखा हुआ है। जिसमें लिखा है कि यह व्यक्ति ने ब्याज समेत पैसा दे दिया।

 

वह व्यक्ति इतना बोल कर चला गया। कुछ देर बाद सिपाही वापस आया और जज साहब को एक पर्ची दी। यह पर्ची जिसमें लिखा हुआ था कि पूरा पैसा ब्याज समेत मिल गया।

 

जज साहब ने कहा ठाकुर जी कहां गए उनको बुलाओ। ठाकुर जी दिखाई नहीं दिए। अगले दिन जज साहब उस व्यक्ति के गांव गया। पूरे गांव में खोजा गया। सभी व्यक्ति ने कहा कि वह वृद्ध आदमी इस गांव का नहीं था।

 

जज साहब समझ गए वह वास्तव में ठाकुर जी यानी भगवान ही थे। जज साहब उसी वक्त अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जज साहब भारत के सभी मंदिरों में घूम-घूम कर उसके दरबार पर मिट्टी को अपने सिर में लगाते थे
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भगवान सब जगह हैंं पहले करो विश्वास फिर देखो चमत्कार

PUBLISHED BY
Madan Jha 
Bhagwan sabhi jagah hai


भगवान सभी जगह हैै A Motivational Story
Table of Contents


भगवान सभी जगह हैै A Motivational Story
भगवान (God) सब जगह है – एक सच्ची घटना
किसे भगवान (God) पर विश्वास है?
भगवान (God) को मानने से क्या लाभ?
संक्षेप में
Author
 

मैं कोई धर्म गुरु नहीं हूं। मैं एक मोटिवेशनल राइटर हूं जो आपको मोटिवेट करता हूंं। मेरा उद्देश्य सच्ची घटना को आपके साथ शेयर करके और आपको मोटिवेट करना है। मैं केवल वही सच्ची घटना को आपके साथ शेयर करता हूं जो आपकी प्रगति में सहायक सिद्ध होता है।

 


कुछ लोग मानते हैं कि भगवान (God) सब जगह है। प्रत्येक मनुष्य में नहीं बल्कि प्रत्येक जानवर, प्रत्येक पेड़ पौधा, हर कण में भगवान विद्यमान है। जैसा कि हमारे शास्त्रों एवं पुराणों में भी कहा गया है भगवान हर जगह है। जब भक्त बुलाते हैं वह आ जाते हैं।


कुछ निराशावादी व्यक्ति है जो भगवान (God) को नहीं मानते हैं। वह हमेशा बोलते हैं भगवान दुनिया में है ही नहीं। भगवान है तो उसे बुलाओ। भगवान दिखते कैसे हैं? भगवान रहते कहां हैं? इत्यादि।

 

जैसा कि आप जानते हैं कि सफलता प्राप्त करने के लिए विश्वास होना बहुत जरूरी है। बिना विश्वास के कोई भी सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन को विश्वास था कि मेरे साथ भगवान श्री कृष्ण है इसलिए मैं हार नहीं सकता हूं और वह जीत गया।

 

एक विश्वास के बल पर ही आप बड़े से बड़े लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि आप जानते हैं जिन्हें विश्वास है उसे दुनिया कि सभी सुख प्राप्त होते हैं। जो भगवान को मानता है उसमें विश्वास रूपी शक्ति होती है।

 

भगवान (God) सब जगह है – एक सच्ची घटना
आपको सच्ची घटना बता रहा हूं जिसमें भगवान (God) प्रकट हुए थे। टीवी सीरियल में आप देखे होंगे कि प्रह्लाद कि पिता हरीना कश्यप को मारने के लिए भगवान प्रकट हुए थे। ठीक इसी प्रकार विष्णु जी ने कई अवतार लिए और दुष्टों का नाश किया।

 

रामायण महाभारत इत्यादि कहानी हम पढ़ते भी हैं और सीरियल देखे हैं। यह घटना कई युगों पहले की बात है। मैं कुछ समय पहले की एक घटना बता रहा हूं जो आप को अचंभित कर देगा। आपको सोचने पर विवश कर दें कि वास्तव में भगवान है।

 

एक गांव में एक बहुत ही साधारण व्यक्ति रहता था। उसे भगवान पर अटूट विश्वास था। जब कोई व्यक्ति उसे हालचाल पूछता वह बोलते हैं ठाकुर जी जानें।

 

उस गांव में एक ठाकुर जी का मंदिर था। उन्हें उन पर पूरा विश्वास था। उन व्यक्ति के दो पुत्र और एक पुत्री थे। जब पुत्री की शादी किया तो उस साधारण व्यक्ति ने साहूकार से कुछ कर्जा लिया।

 

कुछ समय बाद दोनों पुत्र ने पिता को बोला है यह लो पैसे और साहूकार को देकर कर्ज से मुक्त हो जाओ। उस व्यक्ति ने जाकर साहूकार से कहा यह लीजिए साहूकार जी आपका मूलधन और ब्याज और मुझे अपने कर्जे से मुक्त करा दीजिए।


साहूकार ने एक पेज पर लिख दिया कि आपका पूरा कर्जा ब्याज सहित प्राप्त हुआ। आप कर्जा से मुक्त है। साहूकार ने उस व्यक्ति से पूछा इस पर क्या लिखा हुआ?

 

उस व्यक्ति ने कहा मैं तो अनपढ़ हूं। जो लिखा है वह ठाकुर जी जानें। साहूकार समझ गया कि व्यक्ति बहुत सीधा है। उनके मन में लोभ आ गया। साहूकार ने उस व्यक्ति को कहा अंदर जाकर एक गिलास पानी लेकर आओ।


 

इसी बीच में साहूकार ने उस पर्ची को हटाकर एक पर्ची लिख दिया कि अभी मेरा कर्जा बाकी है। अंदर से व्यक्ति आया और पर्ची लेकर चला गया। कुछ दिन बाद साहूकार पैसा मांगने पहुंच गया।

 

उस व्यक्ति ने कहा कि यह बात गलत है। मैंने आपको पैसा दे दिया है। मामला कोर्ट में चला गया। कोर्ट में व्यक्ति को बुलाया गया। व्यक्ति जोर जोर से रोने लगा और बोला कि ठाकुर जी जानते हैं कि मैंने उसको पैसा दे दिया।

 

जज साहब ने पूछा कोई गवाह है जिसने आपको साहूकार को पैसा देते देखा था। उसने कहा हां ठाकुर जी है। ठाकुर जी ने मुझे पैसे देते हुए साहूकार को देखा था।

 

जज साहब ने कहा ठाकुर जी को बुलाया जाए। पुलिस वालों ने उस गांव में जाकर लोगों से पूछा ठाकुर जी नाम का कोई व्यक्ति इस गांव में है। उसे कल कोर्ट में आना पड़ेगा।

 

गांव वालों ने कहा ठाकुर जी नाम का कोई भी व्यक्ति इस गांव में नहीं है। ठाकुर जी का मंदिर है। अब भगवान कैसे कोर्ट में पेश होंगे।

 

अगले दिन अदालत की कार्रवाई शुरू हुई। जज साहब के बगल में खरा भक्ति जोर से बोला लगा ठाकुर जी हाजिर हो, ठाकुर जी हाजिर हो। उसी वक्त एक बूढ़ा व्यक्ति सिर पर तिलक लगाए चंदन का माला पहने हुए कोर्ट में आ गया।

 

उस व्यक्ति ने कटघरे में खड़ा होकर बोला सर मैं ठाकुर जी हूं। बताइए क्या बात है? जज साहब ने ठाकुर जी से पूछा क्या आप इस व्यक्ति को साहूकार को पैसे देते हुए देखा था?

 

तब ठाकुर जी ने बोला हां जज साहब मेरे सामने में इस व्यक्ति ने साहूकार को पूरे पैसे ब्याज समेत दे दिया था। आप साहूकार को यहां पर रोकिए और किसी व्यक्ति को साहूकार के घर भेजिए। साहूकार के घर में अलमारी नंबर 3 में एक फाइल है, उस फाइल के 22 में पेज पर वह पर्ची रखा हुआ है। जिसमें लिखा है कि यह व्यक्ति ने ब्याज समेत पैसा दे दिया।

 

वह व्यक्ति इतना बोल कर चला गया। कुछ देर बाद सिपाही वापस आया और जज साहब को एक पर्ची दी। यह पर्ची जिसमें लिखा हुआ था कि पूरा पैसा ब्याज समेत मिल गया।

 

जज साहब ने कहा ठाकुर जी कहां गए उनको बुलाओ। ठाकुर जी दिखाई नहीं दिए। अगले दिन जज साहब उस व्यक्ति के गांव गया। पूरे गांव में खोजा गया। सभी व्यक्ति ने कहा कि वह वृद्ध आदमी इस गांव का नहीं था।

 

जज साहब समझ गए वह वास्तव में ठाकुर जी यानी भगवान ही थे। जज साहब उसी वक्त अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जज साहब भारत के सभी मंदिरों में घूम-घूम कर उसके दरबार पर मिट्टी को अपने सिर में लगाते थे।


 

किसी मंदिर में बैठते नहीं। जज साहब कहते थे हमने भगवान को अदालत में बुलाकर खड़ा किया था। फिर मैं किसी मंदिर में कैसे बैठ सकता हूं। इस तरह जज साहब काफी बदल गए।

 

यह कहानी सच्ची घटना है। यदि आपको भगवान (God) पर विश्वास है तो वह जरूर आपको बुरे वक्त में काम आएंगे। आप भले ही किसी धर्म के हो। आपके धर्म जो भी देवता हो। उसमें आप विश्वास रखें। जैसे यदि आप हिंदू हैं तो भगवान जैसे कृष्ण, राम आदि, मुस्लिम है तो मोहम्मद साहब, सिख है तो गुरु नानक देव, ईसाई हैं तो ईशा मसीह इत्यादि।

 

किसे भगवान (God) पर विश्वास है?
आप अधिकतर व्यक्ति के मुंह से सुनते होंगे मैं किसी भगवान को नहीं मानता। मुझे किसी भगवान पर विश्वास नहीं है। पर बुरे वक्त आने पर उन्हें भगवान की याद जरूर आती है।

 

कई बार आप और मैं ऐसे लोगों के मुंह से सुना है कि आज भगवान ने मेरी जान बचाई, मेरे बगल से कार निकली मैं तो बाल-बाल बच गया।

 

मेरा जान पहचान का एक डाक्टर हैं जो भगवान में भगवान (God) नहीं रखता। अधिकतर उसके मुंह से निकलती है मुझे तो जो करना था मैं कर दिया आगे भगवान जाने।

 

एक बार मैंने उससे पूछा तुम तो भगवान को मानता ही नहीं कि तुम्हें भगवान की याद क्यों आती है। उसका जवाब था जब मुझे बुरा वक्त आता है तो भगवान की याद आने लगती है। अच्छे स्थिति में भगवान को भूल जाता हूं।

 

इस डॉक्टर की तरह दुनिया में अनेक इंसान है जो हमेशा कहता है कि मुझे भगवान पर विश्वास नहीं है। मैं भगवान को नहीं मानता हूं और जब भी बुरा वक्त आता है तो भगवान को याद करने लगते हैं।

 

दुख में सुमिरन सब करे

सुख में करे न कोई।

ज्यो सुख में सुमिरन करे

तो दुख काहे होए।

 

कहने का अर्थ है भगवान का दुख में सब याद करते हैं और सुख में कोई याद नहीं करता। यदि हम भगवान को सुख में भी याद करें तो दुख कभी आएगा ही नहीं।

 

भगवान (God) को मानने से क्या लाभ?
मैं आपको यह नहीं कहता कि आप हमेशा मंदिर मस्जिद में जाओ, पूजा-पाठ करो, बड़े-बड़े यज्ञ का आयोजन करो। मेरा सिर्फ यह कहना है कि आप भगवान को मानो।

 

आप विश्वास करो कि भगवान (God) हर जगह है। ऐसा करने से आपको कई फायदे मिलेंगे। लाभ के बारे में बता रहा हूं। जो निम्नलिखित हैं-

 

1. यदि आपको विश्वास हो जाएगा कि भगवान (God) हर जगह है तो आप कभी कोई बुरा काम नहीं करोगे। चोरी, डकैती जब आप करने जाओगे तो सोचोगे कि भगवान देख रहा है और आप वह गलत काम नहीं कर पाओगे।

 

2. जब आपको यह पता चलेगा कि हर इंसान में भगवान (God) विराजमान हैं तो आप किसी भी इंसान से नफरत नहीं करोगे। क्योंकि आपको प्रत्येक व्यक्ति में भगवान दिखाई देगा।

 

3. आप विद्यार्थियों है और परीक्षा देने जा रहे हो तो परीक्षा भवन में आप भगवान (God) का नाम लेकर परीक्षा शुरू करें। आप महसूस करोगे एक शक्ति आपके पास आ गई। एक बार प्रयोग करके देखें।

 

4. कई विद्यार्थी का फाइनल सिलेक्शन 0.1 और 0.2 नंबर के कारण नहीं हो पाता है। इस स्थिति में उसे भगवान (God) की याद आती है। यदि आप भगवान को पहले ही याद कर ले तो ऐसा नौवत नहीं आएगा।

 

5. एक गाड़ी में 50 यात्री सवार है। एक्सीडेंट होता है और 40 यात्री मर जाते हैं 10 बच जाते हैं। आप सोचिए कि क्या कारण है कि 10 यात्री बच गया।

 

संक्षेप में
इस लेख को लिखने का मेरा एक ही उद्देश्य था कि नौजवान को मन में भगवान (God) की भावना जगाना। उसे विश्वास दिलाना कि इस दुनिया में भगवान है। आज के नौजवान भगवान को भूलकर गलत रास्ता पर जा रहे हैं। यदि वह भगवान को मानने लगे कोई गलत काम नहीं कर पाएगा।

धन्यवाद।।🙏🙏👍👍🌹🌹❤️❤️🙋🙋

1#सावन माह में बुधवार को जरूर सुनें गणेश जी की कहानी, म‍िलेगा सुहाग व भाई की लंबी आयु का आशीर्वाद🙏🙏🌹

श्री गणेश हर विघ्न  को दूर करते हैं। अपनी सुहाग की लंबीउम्र से हमेशा खुशियां भर देंगे , ऐसे शुभ फल देने वाले भगवान श्री गणेश की कहानी यहां आप पढ़ सकते हैं।🙏🏻




भगवान श्री गणेश की पूजा हर पूजा से पहले की जाती है। महिलाएं खासतौर पर अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान श्री गणेश की पूजा जरूर करती हैं। ऐसे होते हैं भगवान श्री गणेश की पूजा करने से पति की लंबी उम्र के साथ-साथ भगवान हमेशा खुशियों से भरे रहते हैं। वहाँ कोई भी दुःख-दरिद्रता कभी नहीं आती। तो आइए जाने सुहाग की लंबी आयु देने वाले भगवान श्री गणेश की अद्भुत कहानी।

श्री गणेश की सुहागरात का आशीर्वाद देने वाली कथा 
एक समय की बात है एक भाई बहन रहते थे। बहन का नियम था कि वह अपने भाई का चेहरा देखे ही खाना खाती थी। हर रोज वह सुबह उठती थी और जल्दी-जल्दी सारा काम करके अपने भाई का मुंह देखने के लिए उसके घर जाती थी। एक दिन रास्ते में एक पीपल के नीचे गणेश जी की मूर्ति रखी थी। उसने भगवान के सामने हाथ जोड़कर कहा कि मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर सबको दीजिए। यह कहकर वह आगे बढ़ जाती थी। जंगल के झाड़ियों के कांटे उसके पैरों में चुभा करते जाते थे। 
एक दिन भाई के घर पहुंची और भाई का मुंह देख कर बैठ गई, तो भाभी ने पूछा पैरों में क्या हो गया हैं। यह सुनकर उसने भाभी को जवाब दिया कि रास्ते में जंगल के झाड़ियों के गिरे हुए कांटे पांव में छुप गए हैं। जब वह वापस अपने घर आ जाए तब भाभी ने अपने पति से कहा कि रास्ते को साफ करवा दो, आपकी बहन के पांव में बहुत सारे कांटा चुभ गए हैं। भाई ने तब कुल्हाड़ी लेकर सारी झाड़ियों को काटकर रास्ता साफ कर दिया। जिससे गणेश जी का स्थान भी वहां से हट गया। यह देखकर भगवान गुस्सा हो गए और उसके भाई के प्राण हर लिए। 

लोग अंतिम संस्कार के लिए जब भाई को ले जा रहे थे, तब उसकी भाभी रोते हुए लोगों से कहीं थोड़ी देर रुक जाओ, उसकी बहन आने वाली है। वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती है। उसका यह नियम है। तब लोगों ने कहा आज तो देख लेगी पर कल कैसे देखेगी। रोज दिन की तरह बहन अपने भाई का मुंह देखने के लिए जंगल में निकली। तब जंगल में उसने देखा कि सारा रास्ता साफ किया हुआ है। जब वह आगे बढ़ी तो उसने देखा कि सिद्धिविनायक को भी वहां से हट दिया गया हैं। तब उसने जाने से पहले गणेश जी को एक अच्छे स्थान पर रखकर उन्हें स्थान दिया और हाथ जोड़कर बोली भगवान मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर सबको देना और फिर बोलकर आगे निकल गई। 
भगवान टैब भगवान लागे अगर यह नहीं सुना तो हमें कौन मानेगा, हमें कौन पूजेगा। तब सिद्धिविनायक ने उसे आवाज दी, बेटी इस खेजड़ी की सात दोस्त लेकर जा और उसे कच्चे दूध में नासाकर भाई के ऊपर चिंता मार देना वह तीनो कमरे में बैठ जाएगी। यह सुनकर जब बहन जब पीछे मुड़ी तो वहाँ कोई नहीं था। फिर वह यह आईडिया लगा कि ठीक है जैसा कि सूना कैरेक्टर कर रहा हूं। फिर वह 7 खेजड़ी की सहेलियाँ अपने भाई के घर ले गई। उसने देखा कि वहाँ बहुत से लोग बैठे हैं। भाभी सैलून रो रही और भाई की लास्ट डेट हैं। तब उसने नामांकन को नामांकित किये गये नियमों के तहत भाई के ऊपर प्रयोग किया। तब भाई उठ कर बैठ गया। भाई बोला बहन से बोला मुझे बहुत गहरी नींद आ गई थी। तब बहन बोली यह नींद किसी दुश्मन को भी ना आए और वह सारी बात अपने भाई को बता दे। 

तो मन्न्यता के अनुसार, ये है गणेश जी की चमत्कारी कहानी। 
गणेश जी क्या हैं? 
बोलो श्री गणेश भगवान जी की जय 🙏🏻🙏🏻
लेख पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻

लक्ष्मी माता के 18 पुत्रो के नाम 🙏🏻🙏🏻👇

1.ॐ देवसखाय नम: 2. ॐ चिक्लीताय नम:

भक्ति स्टोरी घरेलू नुस्खे आदि 🙏🌹