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1#सावन माह में जरुर पढ़ें ये कथा यहां हुआ था श्री हनुमान जी का जन्‍म, आज भी मौजूद हैं ये स्‍ थान पढ़िए रोचक कहानी 🙏🌹🌷

भगवान राम और हनुमानजी के जीवन पर रचे गए महाकाव्‍य रामायण में हनुमानजी को भगवान राम का सबसे बड़ा भक्‍त बताया गया है। पुराणों में बजरंगबली को रुद्रावतार यानी भोले बाबा का 11वां अवतार बताया गया है। हनुमान जयंती को उनके जन्‍मदिवस के रूप में मनाया जाता है। हनुमान जयंती साल में दो बार मनाई जाती है। पहली जयंती चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाई जाती है और दूसरी कार्तिक मास में दीपावली से एक दिन पहले नरक चतुर्दशी के दिन भी हनुमान जयंती मनाई जाती है। इस अवसर पर आपको बताते हैं कि बजरंगबली का जन्‍म कहां हुआ था और अभी कहां स्थित हैं ये स्‍थान...
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम.............


हनुमानजी की माता का नाम अंजना था। जो अपने पूर्व जन्म में एक अप्सरा थीं। अंजना ब्रह्मा लोक की एक अप्‍सरा थीं, उन्हें एक ऋषि ने बंदरिया बनने का शाप दिया था। शाप के अनुसार जिस दिन अंजना को किसी से प्रेम हो जाएगा, उसी क्षण वह बंदरिया बन जाएगी और उनका पुत्र भगवान शिव का रूप होगा। अंजना को अपनी युवा अवस्था में केसरी से प्रेम हो गया और दोनों का विवाह हो गा।
राम राम जय श्री राम राम राम जय श्री राम..........
एक बार भगवान शिव ने विष्‍णुजी को उनके मोहिनी रूप में प्रकट होने की इच्‍छा व्‍यक्‍त की जो उन्‍होंने समुद्र मंथन के वक्‍त सुर और असुरों को दिखाया था। भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण कर लिया। भगवान विष्णु का आकर्षक रूप देखकर शिवजी कामातुर हो गए और उन्होंने अपना वीर्यपात कर दिया। पवनदेव ने यह वीर्य राजा केसरी की पत्‍नी अंजना के गर्भ में प्रविष्‍ट कर दिया। इससे वह गर्भवती हो गईं और हनुमानजी का जन्‍म हुआ।
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बजरंग बली के पिता केसरी कपि क्षेत्र के राजा थे। कपिस्थल कुरु साम्राज्य का एक प्रमुख भाग था। हरियाणा का कैथल पहले करनाल जिले का भाग था। यह कैथल ही पहले कपिस्थल था। कुछ शास्त्रों में ऐसा वर्णन आता है कि कैथल ही हनुमानजी का जन्म स्थान है। यहां हनुमानजी का बहुत बड़ा मंदिर भी स्थित है।
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गुजरात स्थित डांग जिला रामायण काल में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था। मान्यता के अनुसार यहीं भगवान राम व लक्ष्मण को शबरी ने बेर खिलाए थे। आज यह स्थल शबरी धाम के नाम से जाना जाता है। अंजनी पर्वत पर स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजी का भी जन्म हुआ था। कहा जाता है कि अंजना माता ने अंजनी पर्वत पर ही कठोर तपस्या की थी और इसी तपस्या के फलस्वरूप उन्हें पुत्र रत्न यानी हनुमान जी की प्राप्ति हुई थी। माता अंजना ने अंजनी गुफा में ही हनुमानजी को जन्म दिया था।
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के गुमला जिला के आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। आंजन गांव में ही माता अंजनी निवास करती थीं और इसी गांव की एक पहाड़ी पर स्थित गुफा में रामभक्त हनुमान का जन्म हुआ था। इसी विश्वास के साथ यहां की जनजाति भी बड़ी संख्या में भक्ति और श्रद्धा के साथ माता अंजना और भगवान महावीर की पूजा करते हैं।
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पंपासरोवर अथवा पंपासर होस्पेट तालुका, मैसूर का एक पौराणिक स्थान है। हंपी के निकट बसे हुए ग्राम अनेगुंदी को रामायणकालीन किष्किंधा माना जाता है। तुंगभद्रा नदी को पार करने पर अनेगुंदी जाते समय मुख्य मार्ग से कुछ हटकर बाईं ओर पश्चिम दिशा में, पंपासरोवर स्थित है। यहां स्थित एक पर्वत में एक गुफा भी है जिसे रामभक्तनी शबरी के नाम पर शबरी गुफा कहते हैं। इसी के निकट शबरी के गुरु मतंग ऋषि का आश्रम था और कहते हैं कि इसी आश्रम में बजरंगबली जन्‍मे थे।
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कृप्या पूरा लेख पढ़े धन्यवाद 🙏
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Vastu Tips: शाम के समय इस दिशा में जलाएं दीपक, मां लक्ष्मी की कृपा से मिलेगा खूब सारा पैसा🙏🙏👍👍👇👇🌷🌷🌻🌻

Maa Lakshmi ke Upay: घर में नियमित रूप से शाम के समय मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से मां लक्ष्मी का आगमन होता है और घर पर सुख-समृद्धि बनी रहती है.किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी सूक्ष्मजीवी चले आ रहे हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाया जाता है। सुबह-शाम होने वाली पूजा में भी दीपक जलाने की परंपरा है। वास्तु शास्त्र में दीपक जलाकर उसे रखने के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। दीपक की लौ किस दिशा में जानी चाहिए, इस संबंध में ग्रंथ शास्त्र में पर्याप्त जानकारी मिलती है। अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए हर धार्मिक रीति-रिवाज को पूरा करने के लिए अपने-अपने विधान भी हैं। हिंदू धर्म में यह बहुत मायने रखता है। कोई भी पूजा तब तक सफल नहीं हुई जब तक उसे विधिपूर्वक न किया गया। दीपावली को दीपोत्सव, प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है धनतेरस से ही कार्तिक के कृष्णपक्ष की अंधेरी रात को जगमगाने की शुरुआत हो जाती है।
किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाते समय इस मंत्र को बोलने से शीघ्र ही सफलता मिलती है-

दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं ईदीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रु वृद्धि विनाशं च दीप्योति: नमोस्तुति।।


दीपक सिर्फ दीवाली पर ही नहीं जलाये जाते हैं बल्कि पूजा अर्जन सहित हर मांगलिक कार्यक्रम में दीपक जलाया जाता है। दीपक की लौ सिर्फ रोशनी का प्रतीक नहीं है बल्कि वह अज्ञानता का अंधकार को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से जीवन को रोशन करने का प्रतीक है। दरिद्रता के तिमिर का नाश कर खुशियों से जीवन को जगमगा देने का प्रतीक है। नकारात्मकता से चौंधियाये अंधेरे मन में सकारात्मकता के प्रकाश की झलक की प्रतीक है। क्योंकि उसके सही दिशा में होने से ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।

पूर्व और उत्तर दिशा में जहां दी गई आयु और धन में वृद्धि की मनोकामना पूरी तरह से होती है, वहीं पश्चिम और दक्षिण में दी गई लूत अशुभ भी मानी जाती है। पश्चिम में दिए गए नुकसान के कारण कष्टदायी होता है और आपको कष्ट सहने पर मजबूर होना पड़ सकता है। लेकिन दक्षिण में दिए गए गीत की लय रखना और घातक भी हो सकता है। इससे व्यक्ति या परिवार की बड़ी हानि उठानी पड़ सकती है, यह हानि जान-मालिक किसी के भी रूप में हो सकती हैं

 कुल मिलाकर दीपक या जला दियाना हर शुभ अवसर पर एक अनिवार्य परंपरा मानी जाती है, क्योंकि दीपक का मार्ग सही दिशा में होना प्राय: होता है।।

दीपक-मनुष्य के जीवन में चिह्न और प्रासंगिक का बहुत उपयोग होता है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी के प्रदत्त में प्रज्जवलित ज्योत का बहुत महत्व है।

दीपक हमें अज्ञानता को दूर करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है। दीपक अंधकार दूर करता है। मिट्टी का दीया मिट्टी से बना मनुष्य शरीर का प्रतीक है और उसमें रहने वाला तेल अपनी जीवन शक्ति का प्रतीक है। मनुष्य अपनी जीवनशक्ति से परिश्रम करके संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीप हमें देता है। मंदिर में आरती करते समय दिया जलाने के पीछे यही भाव है कि भगवान हमारे मन से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञानरूप प्रकाश फैलायें। गहरे अंधकार से प्रभु! परम प्रकाश की ओर ले चल रहा है।
दीपावली के पर्व के निमित्त लक्ष्मीपूजन में अमावस्या की अंधेरी रात में दीपक जलाने के पीछे भी इसका उद्देश्य छिपा हुआ है। घर में तुलसी के क्यारे के पास भी दीपक जलाये जाते हैं। किसी भी नयें कार्य की शुरुआत भी दीपक से ही होती है। अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है। अपने वेद और शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं- हे परमात्मा! अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर आइए चलें। ज्योत से ज्योत वर्ल्डो इस आरती के पीछे भी यही विचार कर रहा है। यह भारतीय संस्कृति की गरिमा है।

आमतौर पर हम सभी अपने घर में पूजा करते हैं दीपक प्रज्वलित करते हैं। जो बहुत ही शुभ होते हैं। दीपक को रौशनी का, उजाले का तथा प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। दीपक को मनुष्य के जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए भी शुभ माना जाता है।
दीपक के प्रकार – दीपक कई प्रकार के होते हैं। जैसे – चाँदी के दीपक, मिटटी के दीपक, लोहे के दीपक, ताम्बे के दीपक, पीतल की धातु से बने हुए दीपक और मिटटी के दीपक से बनाए गए दीपक |कुछ लोग मिटटी के दीपक को अधिक शुभ मानते हैं तो वहीँ कुछ लोग सभी प्रकार की साधना की सिद्धि के लिए मूंग की दाल, चावल, गेहूं, उड़द की दाल और ज्वार आदि अनाजों को पीस कर उनमें से दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करते हैं के लिए सबसे उत्तम मानते हैं।

घर की इन दिशाओं में दीपक लगाने से पूरी होती हैं सभी इच्छाएं—
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दियों को इन दीपकों को जलाने की भी एक विधि है। अगर सही दिशा में दीपक की लौ न जलाई जाए तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। आइए जानते हैं इसके फायदे व नुक्सान के बारे में
–रोगों से मुक्ति के लिए प्रतिदिन सूर्य देव के चित्रपट या श्रीविग्रह के आगे दीपक मरते हैं।
—-श्रीकृष्ण के आगे दीपक लगाने से जीवन साथी की तलाश पूरी होती है।
—–रूक्मणी और श्रीकृष्ण के आगे दीपक बनने से मनभावन जीवन साथी मिलता है।
—–दीपक की दाईं दिशा की ओर धारण से आयु में वृद्धि होती है।
—– दीपक की दृष्टि दिशा पश्चिम की ओर देखने से दु:ख बढ़ रही है।
—- दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर स्थित होने से धन लाभ होने के योग बने हैं।
—– दीपक की लौ दिशा की और धारण से हानि होती है। यह हानि किसी व्यक्ति या धन के रूप में भी हो सकती है।
—बुरे सपनों का डर सतता है तो सोने से पहले हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप के आगे दिया जलाएं और हनुमान का पाठ करें।घर के मंदिर की उत्तर दिशा में धन के देवता कुबेर का स्वरूप स्थापित करें। किसी भी तरह की समस्या हो हर दिन जागरण से हल हो जाएगा।
—–घर और कार्यस्थान पर गणपति बप्पा का स्वरूप स्थापित करें। दिन की शुरुआत उनकी आगे लगे दीपक कर दें।
——राम दरबार के आगे प्रतिदिन दीपक लगाने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
आयु वृद्धि के लिए पूर्व दिशा में जलायें दीपक—
दीपक की लौ दिशा किसमें शुरू हुई इसके अनुसार वैसे तो ऋक्सिकता शास्त्र में काफी सारे नियम हैं लेकिन यह इस पर भी निरंतर करता है कि आप किस देवता की पूजा कर रहे हैं और उनके वासी कौन हैं दिशा में है। पूर्व दिशा के बारे में सभी जानते हैं। सूर्योदय की पहली किरणों के साथ ही नई आशाएं और आशाओं की किरणें भी फूटती हैं। पूर्व दिशा में यदि दीपक की लौकिक हो तो इससे आयु में विकास होता है।

धन लाभ के लिए दिए गए लौ हो उत्तर में—-
यदि आप अपने व्यवसाय में लाभ, वेतन में वृद्धि आदि धन लाभ के मनोकामना के लिए दीपक जला रहे हैं तो ध्यान दें इसकी लौ उत्तर दिशा हो। उत्तर दिशा में दिए गए विवरण के आधार पर धन में वृद्धि के लिए इसे लाभकारी माना जाता
जानिए आप अपने जीवन के कष्टों से निम्न प्रकार दीपक जलाकर मुक्ति पा सकते हैं –

1. अगर आपके घर में आर्थिक तंगी चल रही है, तो इस कड़ी से मुक्ति पाने के लिए आपको हर दिन अपने घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। लाइव दीपक से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

2. यदि आपके शत्रु आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसके लिए आपको प्रतिदिन भैरव जी के सामने सरसों का तेल जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके विनाश से आपकी हानि होने के लिए नए प्रयास सफल नहीं होंगे।
3. सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए भी आपको हर रोज सरसों का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके घर में हमेशा सूर्य देवता की कृपा बनी रहती है।

4. यदि आपका शनि ग्रह कमजोर है तो आपको नियमपूर्वक शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

5. अपने पति की लंबी उम्र की मनोकामना को पूरा करने के लिए महिलाओं को अपने घर के मंदिर में महुए के तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

6. अगर किसी व्यक्ति के राहु और केतु दोनों योजनाओं की स्थिति खराब हो तो उसे रोजाना मंदिर में अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से राहु और केतु ग्रह शांत हो जाते हैं।

7. घर या मंदिर में किसी भी देवी या देवता की पूजा करते समय फूल, अगरबत्ती, शुद्ध गाय के घी या तिल के तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए

8. गणेश भगवान की कृपा आप पर हमेशा बनी रही इसके लिए आपको प्रतिदिन गणेश की मूर्ति या तस्वीर के आगे तीन बत्तियों वाले झींगे का दीपक जलाना चाहिए।

9. भैरव देवता की पूजा करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए चार प्रमुख सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

10. किसी मामले को या प्रमाण को जीतने के लिए भी दीपक को जलाना शुभ होता है। किसी भी दोष में जीत हासिल करने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलायें।

11. कार्तिक भगवान को प्रसन्न होने के लिए भी दिन के पांच मुख वाले दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

12. लक्ष्मी जी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहें। इसके लिए हमें लक्ष्मी जी के विभिन्न सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए।
13. शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए आप बारहवें या आठवें वाले दीपक जला सकते हैं। इसके साथ ही सरसों के तेल का एक दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

14. विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके सामने प्रतिदिन सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए। यदि आप विष्णु भगवान के दशावतार की पूजा करते हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए दस मुख वाले दीपक को जलाना चाहिए।

15. इष्ट सिद्धि के लिए तथा ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहरा और गोल दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

16. अपने विनाश को नष्ट करने के लिए और किसी भी विरोधी को रोकने के लिए मध्य से ऊपर की ओर उठते हुए दीपक का प्रयोग जलाने के लिए चाहिए।

17. धन प्राप्ति के लिए सामान्य दीपक का प्रयोग 
18. संकटहरण हनुमान जी की पूजा करने के लिए तथा उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे इसके लिए तीन कोनो वाले दीपक का प्रयोग जलाने के लिए देना चाहिए। हनुमान जी आराधना करने के लिए दीपक को जलाने के लिए चमेली के तेल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

19. आश्रम और देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए शुद्ध गाय के घी और तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
अगर आपकी इच्छा पूरी तरह से घूमने के लिए आपको भगवान के आगे कैसा दीपक जलाना चाहिए। जिससे आपकी पूरी इच्छाए जल्दी ही पूरी तरह से हो जाती है।माना जाता है कि हर भगवान का संबंध किसी न किसी विशेष वस्तु या इच्छा से होता है। अगर अपनी इच्छा या मनोकामना के अनुसार संबंधित भगवान की मूर्ति को पूजा घर में स्थापित करके, रोज उन्हें दीपक दिया जाए तो आपकी पूरी इच्छाए और मनोकामनाए निश्चित रूप से पूरी होती है। रुका धन पाने से लेकर प्यार तक, बिजनेस में जिम्मेवारी से लेकर स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है।
1.प्यार के लिए भगवान कृष्ण जी- अगर आपको भी अपने दोस्तों या अपने जीवन के साथियों से प्यार पाने की इच्छा हो, तो घर के मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है।

2. दावे से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य- यदि आप दायित्व से परेशान हैं तो आपको अपने घर के मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज उनकी मूर्ति या तस्वीर पर जल चढ़ाना चाहिए और दीपक जलाना चाहिए।
प्रावक्ता
घर कला-संस्कृति जानिए घर की किस दिशा में दीपक लगाने से पूरी होती हैं...
कला-संस्कृतिधर्म-अध्यात्म
जानिए घर की किस दिशा में दीपक लगाने से पूरी होती हैं आपका मनोकामना/विश—
द्वारा पंडित दयानंद शास्त्री- अप्रैल 28, 2017010422

सही मायने में भारतीय संस्कृति की संचारकों में दीपक का इतना महत्व क्यों है?

किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी सूक्ष्मजीवी चले आ रहे हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाया जाता है। सुबह-शाम होने वाली पूजा में भी दीपक जलाने की परंपरा है। वास्तु शास्त्र में दीपक जलाकर उसे रखने के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। दीपक की लौ किस दिशा में जानी चाहिए, इस संबंध में ग्रंथ शास्त्र में पर्याप्त जानकारी मिलती है। अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए हर धार्मिक रीति-रिवाज को पूरा करने के लिए अपने-अपने विधान भी हैं। हिंदू धर्म में यह बहुत मायने रखता है। कोई भी पूजा तब तक सफल नहीं हुई जब तक उसे विधिपूर्वक न किया गया। दीपावली को दीपोत्सव, प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है धनतेरस से ही कार्तिक के कृष्णपक्ष की अंधेरी रात को जगमगाने की शुरुआत हो जाती है।
किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाते समय इस मंत्र को बोलने से शीघ्र ही सफलता मिलती है-


दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं ईदीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रु वृद्धि विनाशं च दीप्योति: नमोस्तुति।।


दीपक सिर्फ दीवाली पर ही नहीं जलाये जाते हैं बल्कि पूजा अर्जन सहित हर मांगलिक कार्यक्रम में दीपक जलाया जाता है। दीपक की लौ सिर्फ रोशनी का प्रतीक नहीं है बल्कि वह अज्ञानता का अंधकार को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से जीवन को रोशन करने का प्रतीक है। दरिद्रता के तिमिर का नाश कर खुशियों से जीवन को जगमगा देने का प्रतीक है। नकारात्मकता से चौंधियाये अंधेरे मन में सकारात्मकता के प्रकाश की झलक की प्रतीक है। क्योंकि उसके सही दिशा में होने से ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।

पूर्व और उत्तर दिशा में जहां दी गई आयु और धन में वृद्धि की मनोकामना पूरी तरह से होती है, वहीं पश्चिम और दक्षिण में दी गई लूत अशुभ भी मानी जाती है। पश्चिम में दिए गए नुकसान के कारण कष्टदायी होता है और आपको कष्ट सहने पर मजबूर होना पड़ सकता है। लेकिन दक्षिण में दिए गए गीत की लय रखना और घातक भी हो सकता है। इससे व्यक्ति या परिवार की बड़ी हानि उठानी पड़ सकती है, यह हानि जान-मालिक किसी के भी रूप में हो सकती है।
कुल मिलाकर दीपक या जला दियाना हर शुभ अवसर पर एक अनिवार्य परंपरा मानी जाती है, क्योंकि दीपक का मार्ग सही दिशा में होना प्राय: होता है।।

दीपक-

मनुष्य के जीवन में चिह्न और प्रासंगिक का बहुत उपयोग होता है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी के प्रदत्त में प्रज्जवलित ज्योत का बहुत महत्व है।

दीपक हमें अज्ञानता को दूर करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है। दीपक अंधकार दूर करता है। मिट्टी का दीया मिट्टी से बना मनुष्य शरीर का प्रतीक है और उसमें रहने वाला तेल अपनी जीवन शक्ति का प्रतीक है। मनुष्य अपनी जीवनशक्ति से परिश्रम करके संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीप हमें देता है। मंदिर में आरती करते समय दिया जलाने के पीछे यही भाव है कि भगवान हमारे मन से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञानरूप प्रकाश फैलायें। गहरे अंधकार से प्रभु! परम प्रकाश की ओर ले चल रहा है।


दीपावली के पर्व के निमित्त लक्ष्मीपूजन में अमावस्या की अंधेरी रात में दीपक जलाने के पीछे भी इसका उद्देश्य छिपा हुआ है। घर में तुलसी के क्यारे के पास भी दीपक जलाये जाते हैं। किसी भी नयें कार्य की शुरुआत भी दीपक से ही होती है। अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है। अपने वेद और शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं- हे परमात्मा! अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर आइए चलें। ज्योत से ज्योत वर्ल्डो इस आरती के पीछे भी यही विचार कर रहा है। यह भारतीय संस्कृति की गरिमा है।

आमतौर पर हम सभी अपने घर में पूजा करते हैं दीपक प्रज्वलित करते हैं। जो बहुत ही शुभ होते हैं। दीपक को रौशनी का, उजाले का तथा प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। दीपक को मनुष्य के जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए भी शुभ माना जाता है।
दीपक के प्रकार – दीपक कई प्रकार के होते हैं। जैसे – चाँदी के दीपक, मिटटी के दीपक, लोहे के दीपक, ताम्बे के दीपक, पीतल की धातु से बने हुए दीपक और मिटटी के दीपक से बनाए गए दीपक |

कुछ लोग मिटटी के दीपक को अधिक शुभ मानते हैं तो वहीँ कुछ लोग सभी प्रकार की साधना की सिद्धि के लिए मूंग की दाल, चावल, गेहूं, उड़द की दाल और ज्वार आदि अनाजों को पीस कर उनमें से दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करते हैं के लिए सबसे उत्तम मानते हैं।

घर की इन दिशाओं में दीपक लगाने से पूरी होती हैं सभी इच्छाएं—
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दियों को इन दीपकों को जलाने की भी एक विधि है। अगर सही दिशा में दीपक की लौ न जलाई जाए तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। आइए जानते हैं इसके फायदे व नुक्सान के बारे में—


—–रोगों से मुक्ति के लिए प्रतिदिन सूर्य देव के चित्रपट या श्रीविग्रह के आगे दीपक मरते हैं।
—-श्रीकृष्ण के आगे दीपक लगाने से जीवन साथी की तलाश पूरी होती है।
—–रूक्मणी और श्रीकृष्ण के आगे दीपक बनने से मनभावन जीवन साथी मिलता है।
—–दीपक की दाईं दिशा की ओर धारण से आयु में वृद्धि होती है।
—– दीपक की दृष्टि दिशा पश्चिम की ओर देखने से दु:ख बढ़ रही है।
—- दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर स्थित होने से धन लाभ होने के योग बने हैं।
—– दीपक की लौ दिशा की और धारण से हानि होती है। यह हानि किसी व्यक्ति या धन के रूप में भी हो सकती है।
—बुरे सपनों का डर सतता है तो सोने से पहले हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप के आगे दिया जलाएं और हनुमान का पाठ करें।
——घर के मंदिर की उत्तर दिशा में धन के देवता कुबेर का स्वरूप स्थापित करें। किसी भी तरह की समस्या हो हर दिन जागरण से हल हो जाएगा।
—–घर और कार्यस्थान पर गणपति बप्पा का स्वरूप स्थापित करें। दिन की शुरुआत उनकी आगे लगे दीपक कर दें।
——राम दरबार के आगे प्रतिदिन दीपक लगाने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

आयु वृद्धि के लिए पूर्व दिशा में जलायें दीपक—
दीपक की लौ दिशा किसमें शुरू हुई इसके अनुसार वैसे तो ऋक्सिकता शास्त्र में काफी सारे नियम हैं लेकिन यह इस पर भी निरंतर करता है कि आप किस देवता की पूजा कर रहे हैं और उनके वासी कौन हैं दिशा में है। पूर्व दिशा के बारे में सभी जानते हैं। सूर्योदय की पहली किरणों के साथ ही नई आशाएं और आशाओं की किरणें भी फूटती हैं। पूर्व दिशा में यदि दीपक की लौकिक हो तो इससे आयु में विकास होता है।

धन लाभ के लिए दिए गए लौ हो उत्तर में—-
यदि आप अपने व्यवसाय में लाभ, वेतन में वृद्धि आदि धन लाभ के मनोकामना के लिए दीपक जला रहे हैं तो ध्यान दें इसकी लौ उत्तर दिशा हो। उत्तर दिशा में दिए गए विवरण के आधार पर धन में वृद्धि के लिए इसे लाभकारी माना जाता है।
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जानिए आप अपने जीवन के कष्टों से निम्न प्रकार दीपक जलाकर मुक्ति पा सकते हैं –

1. अगर आपके घर में आर्थिक तंगी चल रही है, तो इस कड़ी से मुक्ति पाने के लिए आपको हर दिन अपने घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। लाइव दीपक से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

2. यदि आपके शत्रु आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसके लिए आपको प्रतिदिन भैरव जी के सामने सरसों का तेल जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके विनाश से आपकी हानि होने के लिए नए प्रयास सफल नहीं होंगे।


3. सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए भी आपको हर रोज सरसों का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके घर में हमेशा सूर्य देवता की कृपा बनी रहती है।


4. यदि आपका शनि ग्रह कमजोर है तो आपको नियमपूर्वक शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

5. अपने पति की लंबी उम्र की मनोकामना को पूरा करने के लिए महिलाओं को अपने घर के मंदिर में महुए के तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

6. अगर किसी व्यक्ति के राहु और केतु दोनों योजनाओं की स्थिति खराब हो तो उसे रोजाना मंदिर में अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से राहु और केतु ग्रह शांत हो जाते हैं।

7. घर या मंदिर में किसी भी देवी या देवता की पूजा करते समय फूल, अगरबत्ती, शुद्ध गाय के घी या तिल के तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए

8. गणेश भगवान की कृपा आप पर हमेशा बनी रही इसके लिए आपको प्रतिदिन गणेश की मूर्ति या तस्वीर के आगे तीन बत्तियों वाले झींगे का दीपक जलाना चाहिए।

9. भैरव देवता की पूजा करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए चार प्रमुख सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

10. किसी मामले को या प्रमाण को जीतने के लिए भी दीपक को जलाना शुभ होता है। किसी भी दोष में जीत हासिल करने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलायें।

11. कार्तिक भगवान को प्रसन्न होने के लिए भी दिन के पांच मुख वाले दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

12. लक्ष्मी जी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहें। इसके लिए हमें लक्ष्मी जी के विभिन्न सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए।

13. शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए आप बारहवें या आठवें वाले दीपक जला सकते हैं। इसके साथ ही सरसों के तेल का एक दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

14. विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके सामने प्रतिदिन सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए। यदि आप विष्णु भगवान के दशावतार की पूजा करते हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए दस मुख वाले दीपक को जलाना चाहिए।

15. इष्ट सिद्धि के लिए तथा ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहरा और गोल दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

16. अपने विनाश को नष्ट करने के लिए और किसी भी विरोधी को रोकने के लिए मध्य से ऊपर की ओर उठते हुए दीपक का प्रयोग जलाने के लिए चाहिए।

17. धन प्राप्ति के लिए सामान्य दीपक का प्रयोग लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए करना चाहिए।

18. संकटहरण हनुमान जी की पूजा करने के लिए तथा उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे इसके लिए तीन कोनो वाले दीपक का प्रयोग जलाने के लिए देना चाहिए। हनुमान जी आराधना करने के लिए दीपक को जलाने के लिए चमेली के तेल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

19. आश्रम और देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए शुद्ध गाय के घी और तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
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अगर आपकी इच्छा पूरी तरह से घूमने के लिए आपको भगवान के आगे कैसा दीपक जलाना चाहिए। जिससे आपकी पूरी इच्छाए जल्दी ही पूरी तरह से हो जाती है।माना जाता है कि हर भगवान का संबंध किसी न किसी विशेष वस्तु या इच्छा से होता है। अगर अपनी इच्छा या मनोकामना के अनुसार संबंधित भगवान की मूर्ति को पूजा घर में स्थापित करके, रोज उन्हें दीपक दिया जाए तो आपकी पूरी इच्छाए और मनोकामनाए निश्चित रूप से पूरी होती है। रुका धन पाने से लेकर प्यार तक, बिजनेस में जिम्मेवारी से लेकर स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है।
1.प्यार के लिए भगवान कृष्ण जी- अगर आपको भी अपने दोस्तों या अपने जीवन के साथियों से प्यार पाने की इच्छा हो, तो घर के मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है।

2. दावे से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य- यदि आप दायित्व से परेशान हैं तो आपको अपने घर के मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज उनकी मूर्ति या तस्वीर पर जल चढ़ाना चाहिए और दीपक जलाना चाहिए।


3. अटका हुआ धन पाने के लिए भगवान कुबेर- ये तो हम सभी जानते हैं कि भगवान कुबेर को धन का देवता माना जाता है। अगर आपका भी धन कही अटका है तो अटका हुआ धन पाने के लिए घर के मंदिर की दिशा में भगवान कुबेर की मूर्ति स्थापित कर रोज दीपक जलाना चाहिए।

4. परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए मां सरस्वती- अगर आपको अपनी परीक्षाओं की भी चिंता है और परीक्षा में सफलता पाना चाहते हैं तो अपने कमरे में मां सरस्वती की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज दिया जाना चाहिए।

5. व्यवसाय में शेयरिंग करने के लिए भगवान गणेश- बिजनेस में जॉब के लिए भगवान गणेश की मूर्ति घर या दूकान के मंदिर में स्थापित करें, रोज उन्हें दीपक या अगरबत्ती लगाएं। इससे आपके व्यवसाय में टैक्सी मिल सकती है।

6. परिवार में सुख-शांति के लिए श्री राम जी- अगर आप भी अपने घर-परिवार में हमेशा सुख-शांति और प्यार बनाए रखना चाहते हैं तो उसके लिए भगवान राम सहित लक्ष्मण और देवी सीता की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए चाहिए।

7. बुरे सपनो से छुटकारा पाने के लिए भगवान हनुमान- जिन लोगो को डरावने या बुरे सपनो से दूर करें हो, उन्हें भगवान हनुमान की पंचमुखी स्वरूप की तस्वीर रोज उनकी पूजा करनी चाहिए।
झबरा खत्म करने के लिए भगवान शिव जी-जिन लोगो के अपने घर-परिवार के लोगो या मित्रों के बीच झिलमिलाहट खत्म करने की इच्छा हो, उन्हें घर के मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
Thanks please full article read 🙏👍🌹🌹

सोमवार व्रत कथा पढ़ें या सुनें, मिलेगी श‍िव-पार्वती की कृपा 🙏🙏🌹🌹🌷🌷👌👌🥀🥀👇👇

बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें...
बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें...

सोमवार व्रत की विधि:
नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए. शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए. इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए. साधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है. मतलब शाम तक रखा जाता है. सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत. इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है.
व्रत कथा:
एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था. पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था.
इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है. इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
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सबसे बड़ा रहस्य, राधा भगवान श्रीकृष्ण की प्रेमिका थीं, पत्नी थीं या कुछ नहीं?🙏🌹🙏🌹👇👇

आपना मन तले टाल जाइए,
 भक्त का मान ना टालते देख राधा कृष्ण रानी
वर्तमान में राधा और कृष्ण के मंदिर बहुत मिल जाएंगे। वृंदावन में राधारानी का भव्य मंदिर है। कृष्ण के नाम के साथ राधा का ही नाम आरसीबी है। अब सवाल यह पैदा होता है कि राधा जब श्रीकृष्ण के जीवन में इतनी महत्वपूर्ण थीं तो उन्होंने राधा से विवाह क्यों नहीं किया? असली राधा कौन थीं, कैसे हुई उनकी मौत? थे भी या नहीं? इन सभी सवालों के जवाब...
 
 
1. कहां हुआ था राधा का जन्म और विवाह?
राधा का जिक्र महाभारत में नहीं मिलता है। भागवत पुराण में भी नहीं मिलता है। राधा का जिक्र पद्म पुराण और ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है। पद्म पुराण के अनुसार राधा वृषभानु नामक गोप की पुत्री थीं। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार राधा कृष्ण की मित्र थीं और उनका विवाह रापाण, रायाण अथवा अयनघोष नामक व्यक्ति के साथ हुआ था।कुछ विद्वान मानते हैं कि राधाजी का जन्म यमुना के निकट स्थित रावल ग्राम में हुआ था और बाद में उनके पिता बरसाना में बस गए। लेकिन अधिकतर मानते हैं कि उनका जन्म बरसाना में हुआ था। राधारानी का विश्वप्रसिद्ध मंदिर बरसाना ग्राम की पहाड़ी पर स्थित है। बरसाना में राधा को 'लाड़ली' कहा जाता है।
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण के प्रकृति खंड अध्याय 49 श्लोक 35, 36, 37, 40, 47 के अनुसार राधा श्रीकृष्ण की मामी थीं, क्योंकि उनका विवाह कृष्ण की माता यशोदा के भाई रायाण के साथ हुआ था। ब्रह्मवैवर्त पुराण ब्रह्मखंड के 5वें अध्याय में श्लोक 25, 26 के अनुसार राधा को कृष्ण की पुत्री सिद्ध किया गया है।
 
राधा का पति रायाण गोलोक में श्रीकृष्ण का अंशभूत गोप था। अत: गोलोक के रिश्ते से राधा श्रीकृष्ण की पुत्रवधू हुई। माना जाता है कि गोकुल में रायाण रहते थे। मतलब यह कि राधा का श्रीकृष्ण से पिछले जन्म का भी रिश्ता है। यह भी कि उन्हें लक्ष्मी का रूप भी माना जाता हैकुछ विद्वान मानते हैं कि राधा नाम की कोई महिला नहीं थी। रुक्मणि ही राधा थीं। राधा और रुक्मणि दोनों ही कृष्ण से उम्र में बड़ी थीं। श्रीकृष्ण का विवाह रुक्मणि से हुआ था इसलिए समझो कि राधा से ही हुआ। मतलब यह कि राधा का कोई अलग से अस्तित्व नहीं है।
 
पुराणों के अनुसार देवी रुक्मणि का जन्म अष्टमी तिथि को कृष्ण पक्ष में हुआ था और श्रीकृष्ण का जन्म भी कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को हुआ था व देवी राधा, वह भी अष्टमी तिथि को अवतरित हुई थीं। राधाजी के जन्म और देवी रुक्मणि के जन्म में एक अंतर यह है कि देवी रुक्मणि का जन्म कृष्ण पक्ष में हुआ था और राधाजी का शुक्ल पक्ष में। राधाजी को नारदजी के शाप के कारण विरह सहना पड़ा और देवी रुक्मणि से कृष्णजी की शादी हुई। राधा और रुक्मणि यूं तो दो हैं, परंतु दोनों ही माता लक्ष्मी के ही अंश हैं।
 
माना जाता है कि मध्यकाल या भक्तिकाल के कवियों ने राधा-कृष्ण के वृंदावन के प्रसंग का अतिशयोक्तिपूर्ण वर्णन किया। राधा-कृष्ण की भक्ति की शुरुआत निम्बार्क संप्रदाय, वल्लभ संप्रदाय, राधावल्लभ संप्रदाय, सखीभाव संप्रदाय आदि ने की। इसका मतलब कृष्ण की भक्ति के साथ राधा की भक्ति की शुरुआत मध्यकाल में हुई। उसके पूर्व यह प्रचलन में नहीं थी। दक्षिण के आचार्य निम्बार्कजी ने सर्वप्रथम राधा-कृष्ण की युगल उपासना का प्रचलन किया था। ऐसा भी कहा जाता है कि जयदेव ने पहली बार राधा का जिक्र किया था और उसके बाद से श्रीकृष्ण के साथ राधा का नाम जुड़ा हुआ है। इससे पहले राधा नाम का कोई जिक्र नहीं था।

 
3. राधा-कृष्ण का सांकेतिक स्थल पर मिलन और विवाह-
 
ब्रह्मवैवर्त पुराण प्रकृति खंड अध्याय 48 के अनुसार और यदुवंशियों के कुलगुरु गर्ग ऋषि द्वारा लिखित गर्ग संहिता की एक कथा के अनुसार कृष्ण और राधा का विवाह बचपन में ही हो गया था। कहते हैं कि एक बार नंदबाबा श्रीकृष्ण को लेकर बाजार घूमने निकले तभी उन्होंने एक सुंदर और अलौकिक कन्या को देखा। वह कन्या कोई और नहीं राधा ही थी।
 
कृष्ण और राधा ने वहां एक-दूसरे को पहली बार देखा था। दोनों एक-दूसरे को देखकर मुग्ध हो गए थे। जहां पर राधा और कृष्ण पहली बार मिले थे, उसे संकेत तीर्थ कहा जाता है, जो कि संभवत: नंदगांव और बरसाने के बीच है। इस स्थान पर आज एक मंदिर है। इसे संकेत स्थान कहा जाता है। मान्यता है कि पिछले जन्म में ही दोनों ने यह तय कर लिया था कि हमें इस स्थान पर मिलना है। यहां हर साल राधा के जन्मदिन यानी राधाष्टमी से लेकर अनंत चतुर्दशी के दिन तक मेला लगता है।
 
 
गर्ग संहिता के अनुसार एक जंगल में स्वयं ब्रह्मा ने राधा और कृष्ण का गंधर्व विवाह करवाया था। श्रीकृष्ण के पिता उन्हें अकसर पास के भंडिर ग्राम में ले जाया करते थे। वहां उनकी मुलाकात राधा से होती थी। एक बार की बात है कि जब वे अपने पिता के साथ भंडिर गांव गए तो अचानक तेज रोशनी चमकी और मौसम बिगड़ने लगा, कुछ ही समय में आसपास सिर्फ और सिर्फ अंधेरा छा गया।
 
इस अंधेरे में एक पारलौकिक शख्सियत का अनुभव हुआ। वह राधारानी के अलावा और कोई नहीं थी। अपने बाल रूप को छोड़कर श्रीकृष्ण ने किशोर रूप धारण कर लिया और इसी जंगल में ब्रह्माजी ने विशाखा और ललिता की उपस्थिति में राधा-कृष्ण का गंधर्व विवाह करवा दिया। विवाह के बाद माहौल सामान्य हो गया तथा राधा, ब्रह्मा, विशाखा और ललिता अंतर्ध्यान हो गए।
 
 
असल में इस वास्तविक घटना को अलंकृत कर दिया गया है। राधा सचमुच ही कृष्ण से बड़ी थीं और सामाजिक दबावों के चलते यह संभव नहीं था कि उम्र में कहीं बड़ी लड़की से विवाह किया जाए। लेकिन यदि दोनों के बीच प्रेम रहा होगा तो निश्चित ही गुपचुप रूप से गंधर्व विवाह किया गया हो और इस बात को छुपाए रखा हो?
 
4. कृष्ण ने नहीं निभाया वादा-
एक अन्य कथा के अनुसार राधा और कृष्ण एक-दूसरे को प्रेम करने लगे थे। उस वक्त कृष्ण की उम्र 8 और राधा की 12 वर्ष थी। जब यह बात राधा के घर के लोगों को पता चली तो उन्होंने उसे घर में ही कैद कर दिया। ऐसा किए जाने के कई कारण थे। एक कारण यह था कि राधा की मंगनी हो गई थी।
 
 
जब कृष्ण को यह पता चला तो वे उसे कैद से छुड़ाकर यशोदा मां के पास ले आए। यह देखकर यशोदा मां भी दंग रह गईं। तब उन्होंने कृष्ण को बहुत समझाया कि लल्ला, ऐसा करना ठीक नहीं है। मैं तेरा विवाह दूसरे से करा दूंगी, लेकिन कृष्ण नहीं माने।
 
बाद में यशोदा मैया और नंदबाबा उन्हें लेकर ऋषि गर्ग के पास गए। तब गर्ग ऋषि ने कान्हा को समझाया कि उनका जन्म किसी महान उद्देश्य के लिए हुआ है अत: वे किसी भी मोह में बंध नहीं सकते। यह व्यर्थ का हठ छोड़ दें। यह सुनकर कान्हा उदास हो गए और उस दौरान उनका बुलावा मथुरा के लिए आ गया। तब वे वृंदावन छोड़कर हमेशा के लिए मथुरा चले गए। कृष्ण जाते वक्त राधा से ये वादा करके गए थे कि वो वापस आएंगे, लेकिन कृष्ण कभी भी राधा के पास वापस नहीं आए और यही दर्द हमेशा राधा और कृष्ण के मन में रहा।
 

5. वृंदावन की गलियों में हैं प्रेम के निशान-
राधा का गांव बरसाना था। कान्हा पहले गोकुल, फिर नंदगांव और बाद में वृंदावन में रहने लगे थे। वृंदावन में ही राधा के परिवार के लोग भी रहने आ गए थे। बस वहीं पर सांकेतिक तीर्थ से जन्मा राधा और कृष्ण का प्रेम पनपा। कहते हैं कि बचपन की मुहब्बत भुलाए नहीं भुलती।
 
 
उस काल में होली के दिन यहां वृंदावन में इतनी धूम होती थी कि दोनों गांव बरसाना और नंदगांव के लोग वृंदावन में इकट्ठा हो जाते थे। बरसाने से नंदगाव टोली आती और नंदगांव से भी टोली जाती थी। बरसाना गांव के पास 2 पहाड़ियां मिलती हैं। उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है। मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थीं। यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मक्खन वाली मटकी छीन लिया करते या फोड़ दिया करते थे।
 
 
विष्णु पुराण में वृंदावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि यहीं पर श्रीकृष्‍ण और राधा एक घाट पर युगल स्नान करते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और गोपियां आंख-मिचौनी का खेल खेलते थे। यहीं पर श्रीकृष्ण और उनके सभी सखा और सखियां मिलकर रासलीला अर्थात तीज-त्योहारों पर नृत्य-उत्सव का आयोजन करते थे। कृष्ण की शरारतों के कारण उन्हें बांकेबिहारी कहा जाता है। यहां पर यमुना घाट के प्रत्येक घाट से भगवान कृष्ण की कथा जुड़ी हुई है।
 
 
कृष्ण ने जो नंदगांव और वृंदावन में छोटा-सा समय गुजारा था, उसको लेकर भक्तिकाल के कवियों ने कई कविताएं लिखी हैं। वृंदावन छोड़कर कृष्ण जब मथुरा में कंस को मारने गए, तब उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया। कंस को मारने के बाद उनके जीवन में उथल-पुथल शुरू हो गई।
 
6. नारद के श्राप के कारण राधा और कृष्ण को विरह सहना पड़ा-
 
रामचरित मानस के बालकांड के अनुसार एक बार विष्णुजी ने नारदजी के साथ छल किया था। उन्हें खुद का स्वरूप देने के बजाय वानर का स्वरूप दे दिया था। इस कारण वे लक्ष्मीजी के स्वयंवर में हंसी का पात्र बन गए और उनके मन में लक्ष्मीजी से विवाह करने की अभिलाषा दबी-की-दबी ही रह गई थी।
 
नारदजी को जब इस छल का पता चला तो वे क्रोधित होकर वैकुंठ पहुंचे और भगवान को बहुत भला-बुरा कहा और उन्हें 'पत्नी का वियोग सहना होगा', यह श्राप दिया। नारदजी के इस श्राप की वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्रजी को सीता का वियोग सहना पड़ा था और कृष्णावतार में देवी राधा का।

 
7. राधा और कृष्ण का पुनर्मिलन-
जब कृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए, तब राधा के लिए उन्हें देखना और उनसे मिलना और दुर्लभ हो गया। कहते हैं कि राधा और कृष्ण दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में बताया जाता है, जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृंदावन से नंद के साथ राधा आई थीं।
 
राधा सिर्फ कृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ गई थीं। इसका जिक्र पुराणों में मिलता है। कहा जाता है कि जब द्वापर युग में नारायण ने श्रीकृष्ण का जन्म लिया था, तब मां लक्ष्मी ने राधारानी के रूप में जन्म लिया था ताकि मृत्युलोक में भी वे उनके साथ ही रहें, लेकिन ऐसा हो नहीं सका।
 
 
8. राधा और कृष्ण के प्रेम की मार्मिक कहानी-
राधा और कृष्ण के बीच पहले सांकेत स्थल और फिर बाद में वृंदावन में होती रही मुलाकात के कारण प्रेम जन्म लेने लगा था। बचपन का प्यार बहुत गहरा और निष्काम होता है। श्रीकृष्ण उस वक्त 8 साल के और राधा 12 साल की थीं। कहते हैं कि उस वक्त श्रीकृष्ण को 2 ही चीजें सबसे ज्यादा प्रिय थीं- बांसुरी और राधा। कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर राधा के जैसे प्राण ही निकल जाते थे। कई जन्मों की स्मृतियों को कुरेदने का प्रयास होता था और वह श्रीकृष्ण की तरफ खिंची चली आती थी।
 
 
भगवान श्रीकृष्ण से राधा पहली बार तब अलग हुई, जब श्रीकृष्ण वृंदावन छोड़कर बलराम के साथ कंस के निमंत्रण पर मथुरा जा रहे थे। तब उन्हें भी नहीं मालूम था कि उनका जीवन बदलने का वाला है। यह प्रेमपूर्ण जीवन अब युद्ध की ओर जाने वाला है। पूरा वृंदावन उस वक्त रोया था। राधा के लिए तो जैसे सबकुछ खत्म होने जैसा था। राधा के आंसु सूखकर जम गए थे। बस, श्रीकृष्ण राधा से उस वक्त इतना ही कह पाए कि 'मैं वापस लौटूंगा।'
 
 
लेकिन श्रीकृष्ण कभी नहीं लौटे और मथुरा में वे एक लंबे संघर्ष में उलझ गए। बाद में उन्होंने रुक्मणि से विवाह कर लिया और द्वारिका में अपनी एक अलग जिंदगी बसा ली। जब कृष्ण वृंदावन से निकल गए तब राधा की जिंदगी ने एक अलग ही मोड़ ले लिया था। राधा का विवाह हो गया, लेकिन राधा श्रीकृष्ण के विरह में जीती और मरती रहीं। राधा ने अपना दांपत्य जीवन ईमानदारी से निभाया और जब वे बूढ़ी हो गईं तो उसके मन में मरने से पहले एक बार श्रीकृष्ण को देखने की आस जगी।
 
 
सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं। जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा, लेकिन वे दुखी नहीं हुईं। जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए। कहते हैं कि दोनों संकेतों की भाषा में एक-दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे। तब राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया।
 
 
कहते हैं कि वहीं पर राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया। उन्होंने सोचा कि वे दूर जाकर दोबारा श्रीकृष्ण के साथ गहरा आत्मीय संबंध स्थापित करेंगी। हालांकि श्रीकृष्ण तो अंतरयामी थे और वे राधा के मन की बात जानते थे।

।कहते हैं कि राधा एक जंगल के गांव में में रहने लगीं। धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया। कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे।
 
श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया। कहते हैं कि श्रीकृष्ण अपनी प्रेमिका की मृत्यु नहीं छोड़ते हैं और वे बांसुरी तोड़कर खरोंच में फेंक देते हैं। उसके बाद से श्रीकृष्ण ने जीवन में कभी बांसुरी नहीं बजाई!
धन्यवाद पूरा लेख पढ़ें 🙏🙏👍👍

लक्ष्मी माता के 18 पुत्रो के नाम 🙏🏻🙏🏻👇

1.ॐ देवसखाय नम: 2. ॐ चिक्लीताय नम:

भक्ति स्टोरी घरेलू नुस्खे आदि 🙏🌹