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पढ़िए निर्वस्त्र होकर राजमहल त्यागने वाली शिव भक्त रानी की कहानी।🙏🏻👇

मित्रो ये घोर कलि युग का समय है। इस विपत्ति काल मे हरिभजन का जरिया हे। जो भी मोक्ष को पाने के लिए जो हरि का नाम लेंगा हरी उसे बचाने के लिए इस कलियुग मे भगवान का रूप धारण करके हमे बचाने आते हे। इसी बातों लेकर हम आए हे कलियुग की कुस एसी कथा हे जिन्होने धर्मोमे हिन्दू की आस्था को ओर भी ज्यादा प्रबल किया था। एसी कड़ी मे हम लेकर आये है इस कलियुग की इस कथामे भगवान शिवकी भक्तनि जो पूरा दिन भगवान शिव की पुंजा करती रहती है ये भक्तनि। उसके हर सांस मे भगवान शिव बसे हुये थे। 
शिव भक्त रानी की कहानी। 
बारवी सदी मे अक्का महादेवी नाम की एक स्त्री भगवान शिव की भक्त थी। वह स्त्री भगवान शिव को अपना पति मानती थी। बालकाल से ही उन्होने अपने आपक पूरी तरह से भगवान शिव के नाम अपना जीवन समर्प्रित कर दिया था। जब वह स्त्री विवाह के लायक हुही तब वह एक राजा की नजर इन अक्का महादेवी पर उस राजा की नजर पड़ी। वो इतनी खूबसूरत थी की राजाने उसके मातापिता के सामने वह उसने विवाह का तुरंत ही प्रसात्व मूका की मौजे तुम्हारी ये पुत्री मुजे बहुत सुंदर ओर शुशील लगी इसलिए मे उनसे विवाह करना चाहता हु। ये बात सुनकर अक्का महादेवी की माता पिता ने उनके विवाह का इनकार कर दिया था। तब वह राजा ने वह महादेवी के मातापिताको धमकाकर उसके मातापिता ने उनकी शादी अक्का महादेवी से उनकी शादी करवाई। मातापिता का आज्ञा का पालन कराते हुहे महादेवी ने उस राजा के साथ के शादी तो करली लेकिन अपने पति राजा कौशिक को शारीरक सबंध से दुरही रखना को कहा उस महादेवी। राजा कौशिक उस महादेवी कई तरीके से उसके साथ प्रेम का निवेदन करता रहा लेकिन उस महादेवी हर बार एक ही बात कहती है मेरी शादी तो बहुत पहले से ही भगवान शिव के साथ हो गई है। यह कोई अक्का महादेवी कोई मतिभ्रम नहीं था यह उनके लिए बहुतही सच्ची बात थी। अक्का महादेवी से उनका कहन था की मेरी शादी पहले से ही भगवान शिव के साथ हो गई है। यह बात सुनकर राजा कौशिक ये बात सहन नहीं हुआ था। एकदिन राजा ने सोचा की एसी पत्नी को साथ रखनेमे कोई अर्थ नहीं है ओर कोईभि लाभ नहीं है। फिर राजा कई डीनो तक परेशान ही रहता ओर मनमे ही मनमे वह ये बात को लेकर हमेशा सोचता रहत है ओर उसे समाज नहीं आ रहा था की वह क्या करे पूरी तरह से राजा कौशिक इस बात को लेकर बहुत ही परेशान रहते थे। तब ये बात को लेकर उसे अक्का महादेवी को अपनी राजसभा मे बुलाया ओर राजसभा से उसे फैसला करने को कहा। जब सभा मे उस अक्का महादेवी को पूछा गया की तब उस महादेवी ने तभी भी कहती रही ही की मेरे पति कई ओर है। तभी राजा को गुस्सा आ गया। इसलिए राजा को गुस्सा आ गया की इतने सभी राजसभा मे सबा लोको के सामने कहा की मेरा पति राजा कौशिक नहीं बल्कि मेरे पति कई ओर है इस बात को लेकर राजा को गुस्सा आ गया। 800 साल पहले किस राजा को इस बात को सहन करनी की कोई आम बात नहीं थी। समाज मे इन सभी बातों का सामना करना कोई आसान नहीं था। तब उस राजा कौशिक ने कहा की अगर तुम्हारा विवाह किसी ओर के साथ हो गया है तो तुम मेरे साथ क्या कर रही हो जाओ यहा से तुम चली जाओ ये सब राजाने कहकर उसको राजदरबार से उसको निकाल दिया। तब अक्का महादेवी ने कहा थीखाई मई चली जाती हु ये बात कहकर अक्का देवी वहा से चली गई।  

भारतमे भी उन दिनोमे यह महिलाओ के लिए ये सोचनाभी निश्वार्थ था की वह हमेशा के लिए अपने पति का घर छोड़कर वह से भाग सकती है। लेकिन यह महादेवी अक्का वह से चल पड़ी। जब राजा कौशिक ने देखा की अक्का बिना कोई विरोध से उसे छोड़कर जा रही है तब राजा को क्रोध के कारण उसके मनमे ध्रुनता आ गई। तब उस राजा ने महादेवी को कहा जो तुमने कुस पहना हुआ है जो गहने, कपड़े ये सबकुस मेरा है ये सबकुस तुम यहा पर छोड़ दो फिर तुम यहा जा सकती हो। 17 ओर 18 साल की वह अक्का महादेवी ने अपने सभी गहने ओर सभी कपड़े वहा उतार दिये थे ओर वाहा से वो निर्वस्त्र ही वह से महादेवी चल पड़ी थी। उस दिन के बाद उन्हेनो वस्त्र को पहने से इनकार कर दिया था। तब उस महादेवी बहोत से लोगो ने उसे समजाने की कोशिश की उन्हे वस्त्र पहनने चाहिए। क्यूकी उनसे हम ओर तुमको भी बहुत परेशानी हो सकती है। लेकिन उस महादेवी ने इन सभी बातो पर की ध्यान नहीं दिया था। तब वह घने जंगलो से होते हुहे वह कर्नाटक के विदार जिल्ले मे से एक कल्याण वह पुहञ्च गई। कर्नाटक का वह शहर भगवान शिव के नामसे वह बहुत ही प्रसिद्ध था। वह उसके बाद वह आध्यामिक सर्च मे वह भाग लेना का प्रयास करती रही। धिरे धीरे महादेवी के नाम का आध्यामिक का वर्णन का प्रसार होने लगा था। जिसे प्रभावित होकर उसे महादेवी को बहुत ही बड़ी महानता दी थी। तब उनकी सादगी, ईश्वर, निष्ठा, प्रेम, करुणा ओर नम्रता से ये सभी उस महादेवी के अंदर देखकर सभी साधू संतो, ऋषि इन सभी उसपर बड़ाही प्रभावित हुहे थे। इन सभी कारण उसे अक्का महादेवी यानि की बड़ी महदेवी के नामसे उसे सन्मानित किया गया था। तब से शिव भक्तनि महादेवी अक्का महादेवी के नाम से वह जानने लगी। उसके कुस दिनो के बाद वह एंकात मे भगवान शिव भक्ति वह लिन हो गई थी। लेकिन जब महादेवी का भगवान शिव के साथ तब उसका एकाग्रता नहीं हो पाया तब वह कल्याण से श्रीसेलम वह पुहञ्च गई। जहा भगवान सैन्य मलिकार्जुन का मंदिर था। श्रीसेलम के अनादर उस घने जंगल के बीच वह बद्रीनाथ पर रेगिस्तान पर वहा एक गुफा थी। तब अक्का महादेवी उस गुफा मे चरण लेली ओर वह भगवान शिव की पूंजा करने लगी। तब वहा एकाग्रता मे होकर वह भगवान शिव के प्रति वह लिन हो गई तब वहा भगवान शिव के लिंग मे वहा समा गई। 
तो मित्रो आपको आजकी इस कलियुग की कथा आपको कैसी लगी। उम्मीद करता हु की आजकी कथा आपको अच्छी ही लगी होंगी। तो दोस्तो हम आपसे फिर से मिलती है इस एसी कलियुग की कथा के साथ। नमस्कार दोस्तो। जय श्री कृष्णा।


1#घर में मंदिर की स्थापना कब करनी चाहिए 🙏🏻👇

घर में कब करें नए मंदिर की स्थापना
घर में नए मंदिर की स्‍थापना करने जा रहे हैं, तो पहले पढ़ लें ये जरूरी नियम। 

Roji yadav techrojiyadav 17/7/2023

हिंदू परिवारों में घर में मंदिर होने का अलग ही महत्व होता है। लोग अपनी-अपनी आस्था के मुताबिक घर में तरह-तरह के मंदिर बनवाते हैं। मगर क्‍या आपने कभी इस विषय में सोचा है कि घर में मंदिर की स्थापना करने के नियम क्या हैं? दरअसल, जब हम नया घर बनवाते हैं, तो वहां रहने से पहले गृह प्रवेश की पूजा करवाते हैं। जब नई कार लेते हैं, तो उसकी भी पहले पूजा होती है। वहीं जब कोई नई दुकान या मकान बनता है, तो हिंदू धर्म में पहले नींव रखी जाती है और भूमि पूजन होता है।


इन सभी के लिए शुभ दिन और मुहूर्त का चुनाव होता है। ऐसे में हम जब घर में मंदिर की स्थापना करते हैं, तब भी कुछ नियमों का पालन करना जरूरी हो जाता है। खासतौर पर इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है कि मंदिर की स्थापना कब की जाए।


आमतौर पर लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं, मगर हमने इस विषय पर भोपाल के पंडित एवं ज्योतिषाचार्य विनोद सोनी जी से बात की और जाना कि मंदिर की स्थापना कब और कैसे की जाती है।


इसे जरूर पढ़ें: घर पर सत्यनारायण स्वामी जी की पूजा है, तो इस तरह करें मंदिर का डेकोरेशन



कब करें मंदिर की स्‍थापना
मंदिर की स्थापना करने के लिए सबसे अच्‍छे हिंदी महीने चैत्र, फाल्गुन, वैशाख, माघ, ज्‍येष्‍ठ, सावन और कार्तिक होते हैं। इन सभी महीनों में आप अपने घर में मंदिर(घर के मंदिर के लिए नियम) की स्थापना कर सकते हैं।
मंदिर की घर में स्थापना करने के लिए केवल महीने ही नहीं बल्कि दिन का भी महत्व है। आप सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन घर में मंदिर की स्थापना कर सकते हैं। केवल मंगलवार, शनिवार और रविवार के दिन आपको घर में मंदिर की स्थापना नहीं करनी चाहिए।
इसके अलावा घर में मंदिर की स्थापना हमेशा अभिजीत मुहूर्त में ही करनी चाहिए। कभी भी सुबह या रात के समय नए मंदिर को घर में स्थापित नहीं करना चाहिए ।
मंदिर की स्थापना के लिए आप नवरात्रि, रामनवमी, जन्माष्टमी, सावन, दिवाली आदि त्योहारों को भी चुन सकते हैं।
इतना ही नहीं आपको मंदिर की स्थापना के दिन शुभ नक्षत्र का भी ध्यान रखना चाहिए। मंदिर की स्थापना के लिए पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा आषाढ़, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, श्रवण और पुनर्वसु नक्षत्र सबसे शुभ 

घर में कब करें नए मंदिर की स्थापना
घर में नए मंदिर की स्‍थापना करने जा रहे हैं, तो पहले पढ़ लें ये जरूरी नियम। 


हिंदू परिवारों में घर में मंदिर होने का अलग ही महत्व होता है। लोग अपनी-अपनी आस्था के मुताबिक घर में तरह-तरह के मंदिर बनवाते हैं। मगर क्‍या आपने कभी इस विषय में सोचा है कि घर में मंदिर की स्थापना करने के नियम क्या हैं? दरअसल, जब हम नया घर बनवाते हैं, तो वहां रहने से पहले गृह प्रवेश की पूजा करवाते हैं। जब नई कार लेते हैं, तो उसकी भी पहले पूजा होती है। वहीं जब कोई नई दुकान या मकान बनता है, तो हिंदू धर्म में पहले नींव रखी जाती है और भूमि पूजन होता है।


इन सभी के लिए शुभ दिन और मुहूर्त का चुनाव होता है। ऐसे में हम जब घर में मंदिर की स्थापना करते हैं, तब भी कुछ नियमों का पालन करना जरूरी हो जाता है। खासतौर पर इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है कि मंदिर की स्थापना कब की जाए।


आमतौर पर लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं, मगर हमने इस विषय पर भोपाल के पंडित एवं ज्योतिषाचार्य विनोद सोनी जी से बात की और जाना कि मंदिर की स्थापना कब और कैसे की जाती है।


इसे जरूर पढ़ें: घर पर सत्यनारायण स्वामी जी की पूजा है, तो इस तरह करें मंदिर का डेकोरेशन



कब करें मंदिर की स्‍थापना
मंदिर की स्थापना करने के लिए सबसे अच्‍छे हिंदी महीने चैत्र, फाल्गुन, वैशाख, माघ, ज्‍येष्‍ठ, सावन और कार्तिक होते हैं। इन सभी महीनों में आप अपने घर में मंदिर(घर के मंदिर के लिए नियम) की स्थापना कर सकते हैं।
मंदिर की घर में स्थापना करने के लिए केवल महीने ही नहीं बल्कि दिन का भी महत्व है। आप सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन घर में मंदिर की स्थापना कर सकते हैं। केवल मंगलवार, शनिवार और रविवार के दिन आपको घर में मंदिर की स्थापना नहीं करनी चाहिए।
इसके अलावा घर में मंदिर की स्थापना हमेशा अभिजीत मुहूर्त में ही करनी चाहिए। कभी भी सुबह या रात के समय नए मंदिर को घर में स्थापित नहीं करना चाहिए ।
मंदिर की स्थापना के लिए आप नवरात्रि, रामनवमी, जन्माष्टमी, सावन, दिवाली आदि त्योहारों को भी चुन सकते हैं।
इतना ही नहीं आपको मंदिर की स्थापना के दिन शुभ नक्षत्र का भी ध्यान रखना चाहिए। मंदिर की स्थापना के लिए पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा आषाढ़, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, श्रवण और पुनर्वसु नक्षत्र सबसे शुभ माने गए हैं।
इसे जरूर पढ़ें: त्‍यौहार आने से पहले घर के मंदिर की इस तरह करें सफाई

घर में मंदिर किस दिशा में होना चाहिए?
घर में मंदिर की स्थापना वास्तु के हिसाब से ब्रह्म स्थान पर होनी चाहिए। ब्रह्म स्थान घर के केंद्र में होता है। इसके अलावा आप घर के ईशान कोण में भी मंदिर की स्थापना कर सकते हैं। आपको बता दें कि घर की उत्तर-पूर्व दिशा को ही ईशान कोण कहा गया है। इस दिशा के कोने में आपको मंदिर रखना चाहिए।
मंदिर को कभी भी दक्षिण और पूर्व दिशा में स्थापित नहीं करना चाहिए। जब भी आप पूजा करें तो आपका मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए।
इस बात को भी सुनिश्चित करें कि जहां पर आपने मंदिर की स्‍थापित की है वहां भरपूर रोशनी आती हो। अगर पूजा घर ( पूजा घर वास्‍तु नियम) में सूर्य की किरणें आती हैं, तो यह और भी ज्यादा शुभ होता है।
मंदिर में कब करें मूर्ति की स्थापना
घर के मंदिर में आप किसी भी दिन मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं, मगर मंगलवार के दिन आपको इस कार्य से बचना चाहिए। आप शनिवार के दिन शनिदेव और हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं, नवरात्रि में देवी दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती को घर के मंदिर में स्थापित कर सकते हैं। वहीं दिवाली में देवी लक्ष्‍मी, कुबेर की मूर्ति की स्थापना की जा सकती है।
किसी भी देवी या देवता की मूर्ति स्थापित करने से पूर्व भी आपको पंडित जी से शुभ मुहूर्त निकलवाना चाहिए।
मलमास के महीने में न तो मंदिर की स्थापना करने और न ही मूर्ति को घर के मंदिर में स्थापित करें।
जब गुरु या शुक्र अस्त हों या फिर चंद्र निर्बल हो, तब भी आपको घर में मंदिर या घर के मंदिर में मूर्ति की स्थापना से बचना चाहिए।उम्मीद है कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा। इस आर्टिकल को शेयर और लाइक जरूर करें, इसी तरह और भी आर्टिकल्‍स पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी 🙏🏻 भोले बाबा की कृपा सभी पर बनी रहे हर हर महादेव 🙏🏻

1#12 ज्योर्तिलिंग के दर्शन 🙏🏻🙏🏻

    : 12 ज्योतिर्लिंग हमें कौनसी ऊर्जा व सीख देतें है
 ???
भगवन :12 सूर्य-12 लग्न-12 भाव 12 ज्योतिर्लिंग ऊर्जा के स्त्रोत 
51 शक्तिपीठ के साथ 12 ज्योतिर्लिंग है सनातन सिद्धअमृत स्तोत्र

1#विष्णु भगवान की कहानी - जब विष्णु ने शिव को मुश्किल से बाहर निकाला कैसे पढ़ो छोटी सी कहानी 👇👍

यौगिक कथाओं में ऐसी कई कहानियाँ हैं, जिनमें बताया गया कि शिव की करुणा कोई भेदभाव नहीं करती और वे किसी की इच्छा पर बच्चों की तरह भोलापन दिखाते हैं। एक बार गजेंद्र नामक एक असुर था। गजेंद्र ने बहुत तप किया और शिव से यह वरदान पाया कि वह जब भी उन्हें पुकारेगा, शिव को आना होगा। त्रिलोकों के सदा शरारती ऋषि नारद ने देखा कि गजेंद्र हर छोटी-छोटी बात के लिए शिव को पुकार लेता था, तो उन्होंने गजेंद्र के साथ एक चाल चली।

उन्होंने गजेंद्र से कहा, ‘तुम शिव को बार-बार क्यों बुलाते हो? वह तुम्हारी हर पुकार पर आ जाते हैं। क्यों नहीं तुम उनसे कहते कि वह तुम्हारे अंदर आ जाएँ और वहीं रहें जिससे वह हमेशा तुम्हारे अंदर होंगे?’ गजेंद्र को यह बात अच्छी लगी और फिर उसने शिव की पूजा की। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए, तो वह बोला, ‘आपको मेरे अंदर रहना होगा। आप कहीं मत जाइए।’ शिव अपने भोलेपन में एक लिंग के रूप में गजेंद्र में प्रवेश कर गए और वहाँ रहने लगे।
महसूस कर रहा था। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ हैं। सभी देव और गण शिव को खोजने लगे। काफी खोजने के बाद, जब कोई यह पता नहीं लगा पाया कि वह कहाँ हैं, तो वे हल ढूंढने के लिए विष्णु के पास गए। विष्णु ने स्थिति देखी और कहा, ‘वह गजेंद्र के अंदर हैं।’ फिर देवों ने उनसे पूछा कि वे शिव को गजेंद्र के अंदर से कैसे निकाल सकते हैं क्योंकि गजेंद्र शिव को अपने अंदर रखकर अमर हो गया था।

हमेशा की तरह विष्णु सही चाल लेकर आए। देवगण शिवभक्तों का रूप धरकर गजेंद्र के राज्य में आए और बहुत भक्ति के साथ शिव का स्तुतिगान करने लगे। शिव का महान भक्त होने के कारण गजेंद्र ने इन लोगों को अपने दरबार में आकर गाने और नाचने का न्यौता दिया। शिवभक्तों के वेश में देवों का यह दल आया और बहुत भावनाओं के साथ, बहुत भक्तिपूर्वक वे शिव के लिए भक्तिगीत गाने और नाचने लगे। शिव, जो गजेंद्र के अंदर बैठे हुए थे, अब खुद को रोक नहीं सकते थे, उन्हें जवाब देना ही था। तो वह गजेंद्र के टुकड़े-टुकड़े करके उससे बाहर आ गए।
पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻

रोज पूजा में भोग लगाने वाले भी कर बैठते हैं ये गलती, पड़ती है बहुत भारी! आप ना करें ये गलती भूल से भी।🙏🌹👇🌷

भगवान को भोग लगाए बिना पूजा पूरी नहीं होती है इसलिए प्रत्‍येक देवी-देवता को उसका प्रिय भोग लगाना चाहिए. लेकिन भोग लगाते समय कुछ बातों का ध्‍यान रखना चाहिए.
हिंदू धर्म में हर देवी देवता का प्रिय भोग, प्रिय फूल, मंत्र आदि के बारे में बताया गया है. इसलिए रोज पूजा में इन बातों का ध्‍यान रखा जाता है. हर देवी-देवता की विधि-विधान से पूजा करना चाहिए, तभी पूजा का पूरा फल मिलता है. पूजा में भोग लगाना और उसके बाद प्रसाद बांटना भी पूजा का बेहद जरूरी अंग है. इसलिए घर के मंदिर में नियमित पूजा-पाठ में भोग जरूर लगाया जाता है. वहीं भोग लगाने में की गई गलती भगवान को नाराज भी कर सकती है इसलिए भोग से जुड़े इन नियमों के बारे में जान लेना बहुत जरूरी है. 
जरूर जान लें भोग से जुड़ी ये अहम बातें,,,,,,,,,,,,,,,,

भगवान का प्रिय भोग: रोज की पूजा-पाठ करते समय भी भगवान के प्रिय भोग का ध्‍यान रखें. जिस भी देवी-देवता की पूजा कर रहे हैं, उनका प्रिय भोग ही लगाएं. यदि रोजाना भोग की इतनी व्‍यवस्‍था कर पाना संभव ना हो तो मिश्री या मिठाई से भोग लगाएं. 


भोग लगाने का पात्र: देवी-देवता को भोग लगाने के लिए सोना, चांदी, पीतल या फिर मिट्टी के बर्तन का इस्‍तेमाल करना चाहिए. एल्यूमिनियम, लोहे, स्टील, कांच के बर्तन में भगवान को भोग लगाने की गलती कभी ना करें. 
सात्विक और पवित्र हो भोग: देवी-देवताओं को लगाए जाने वाले भोग का सात्विक और पवित्र होना बेहद जरूरी है. हमेशा स्‍नान करके, साफ कपड़े पहनकर, साफ-सुथरी जगह पर ही भोग बनाएं. भगवान के भोग में लहसुन-प्‍याज आदि तामसिक चीजों का इस्‍तेमाल कभी ना करें. 


भोग को रखा ना छोड़ें: देवी-देवता को प्रसाद चढ़ाने या भोग लगाने के कुछ देर बाद भोग उठा लें और सभी लोगों में उसका प्रसाद बांट दें. पूजा समाप्त होने के बाद देर तक प्रसाद को मंदिर में रखा ना छोड़ें. ऐसा करने से भोग में नकारात्मकता आ जाती है.

दी गई जानकारी सामान्य जानकारी पर आधारित हैं।
जय माता दी 🙏🙏

1#सावन सोमवार के दिन भोलेनाथ को इस कथा से करें प्रसन्‍न होगी हर मनोकामना पूरी 🙏🙏

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किसी भी प्रकार की विशेष पूजा नहीं की जा सकती। बाइबिल में कहा गया है कि वह तो भोले हैं और भत्रो के मन से निकले हुए क्षणिक गुण की भक्ति से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप भी शिव की भक्ति और कृपा के लिए सावन सोमवार का व्रत करते हैं तो इस कथा से भोलेनाथ को प्रसन्न कर सकते हैं।
एक साहूकार था जो शिव का अनन्योतम भत्रोत था। उसके पास धन-धान्य से किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। लेकिन उसका बेटा नहीं था और वह यही चाहता था कि लेकर रोज शिवजी के मंदिर का दीपक जला दिया जाए। उनके इस भक्ति भाव को देखकर एक दिन माता पार्वती ने शिव जी से कहा था कि यह प्रभु साहूकार आपकी अनंत भतीजी है। इसी तरह किसी से भी बात की जाए तो आपको उसे अवश्‍य दूर करना चाहिए। शिव जी बोले कि हे पार्वती इस साहूकार के पास पुत्र नहीं है। यह इसी से दु:खी रहता है।
माता पार्वती ने कहा है कि प्रभु कृपा करके इसे पुत्र का गौरव प्रदान करें। तब भोलेनाथ ने कहा था कि हे पार्वती साहूकार के भाग्य में पुत्र का योग नहीं है। ऐसे में अगर इसे एक साल की बेटी की शोभा भी मिल गई तो वह सिर्फ 12 साल की उम्र तक ही जीवित रहेगी। यह सुनने के बाद भी माता पार्वती ने कहा था कि हे प्रभु आपको इस धनपति को पुत्र का वर देना ही होगा जो आपके पुत्र की सेवा-पूजा करेगा? माता के बार-बार आशीर्वाद से भोलेनाथ ने साहूकार को पुत्र का श्रृंगार दिया। परन्तु यह भी कहा, कि वह केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा।
ख. वह सबसे पहले इसी तरह भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते रहते हैं। दूसरी सेठानी गर्भवती हुई और नवें महीने में उसे सुंदर से बच्चे की प्राप्ति हुई। परिवार में बहुत सारे हर्षोल्लास मनाए गए लेकिन साहूकार पहले ही की तरह रहे। और उसने बच्चे की 12 साल की उम्र का ज़िक्र किसी से भी नहीं किया। जब बच्चा 11 साल का हो गया तो एक दिन साहूकार की सेठानी से बच्चे की शादी के लिए कहा गया। तो साहूकार ने कहा कि उसने अभी भी बच्चों को पढ़ने के लिए काशीजी भेजा है। इसके बाद बालक की माँ जी को बुलाया गया और कहा गया कि इसे काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जो भी आश्रम में रुकना है, वहां यज्ञ करो और ब्राह्मणों को भोजन कराओ। कहावत भी इसी तरह करते जा रहे थे कि रास्ते में एक राजकुमारी से शादी हुई थी। जिससे उनकी शादी एक नजर से काना थी। तो उनके पिता ने जब अतिसुन्दर साहूकार के बेटे को देखा तो मन में आया कि बेटे न इसे ही घोड़ी पर उनकी सहायक शादी के सारे कार्य के लिए संप ने कहा .. तो स्टूडियो मामा से बात की और कहा कि इसके बदले में वह सारा धन ले जाएगा तो वह भी आश्वस्त हो गया।
इसके बाद साहूकार के बेटे की शादी की बेदी पर चर्चा हुई और जब विवाह कार्य संप को बुलाया गया तो जाने से पहले। इसके बाद वह मामा के साथ काशी के लिए चली गईं। उधर जब राजकुमार ने अपनी चुनी पर यह लिखा पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मन कर दिया। तो राजा ने भी अपनी बेटी को बारात के साथ विदा नहीं किया। बारात वापस लौट गई। तीसरे मामा और भांजे काशी जी पहुंच गए थे।
एक दिन जब मामा ने यज्ञ रचाया था और भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर देखा तो भांजे के प्राण निकल गए थे। वह बहुत परेशान थी लेकिन उसने सोचा कि अभी रोना-पीटना उद्योग तो ब्राह्मण चल देगा और यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। जब यज्ञ संप का साक्षात्कार हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू कर दिया। उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिव से कहा था कि वह प्रभु कौन आ रहे हैं, इतना ही पता चलता है कि यह तो भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मा मां साहूकार का पुत्र है। तो उनका कहना है कि हे अनुरोधामी इसे जीवित कर दें, इसके माता-पिता के अंत-रोते प्राण निकल जायेंगे। तब भोलेनाथ ने कहा था कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी थी तो उसने भोग चुकाया। लेकिन मां ने बार-बार भोलेनाथ से विनती कर उन्हें जीवित कर दिया। बालक ॐ नम: शिवाय करते हुए जी उठाओ और मामा-भांजे दोनों ने ईवैलर को धन्‍यवाद दिया और अपनी नगरी की ओर रुख किया। रास्ते में वे नगर भोज और राजकन्याओं ने पहचान पत्र लिया तब राजा ने राजमाता को धन-धान्य के साथ धन-धान्य के साथ एक दिन दिया जब मामा ने यज्ञ करवाया और भाँजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर दर्शकों को देखा तो भांजे के प्राण निकले हुए थे। वह बहुत परेशान थी लेकिन उसने सोचा कि अभी रोना-पीटना उद्योग तो ब्राह्मण चल देगा और यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। जब यज्ञ संप का साक्षात्कार हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू कर दिया। उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिव से कहा था कि वह प्रभु कौन आ रहे हैं, इतना ही पता चलता है कि यह तो भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मा मां साहूकार का पुत्र है। तो उनका कहना है कि हे अनुरोधामी इसे जीवित कर दें, इसके माता-पिता के अंत-रोते प्राण निकल जायेंगे। तब भोलेनाथ ने कहा था कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी सो वह भुगतान किया गया। लेकिन मां ने बार-बार भोलेनाथ से विनती कर उन्हें जीवित कर दिया। लड़के ओम नम: शिवाय करते हुए जी उठाओ और मामा-भांजे दोनों ने ईवैलर को धनयवाद दिया और अपनी नगरी की ओर रुख किया। रास्ते में वही नगर भोज और राजकुमारी ने पहचान पत्र लिया जिसमें राजा ने राजकुमारी को साहूकार के पुत्र के साथ बहुत सारा धन-धान के साथ रखा
विदा किया।

अन्य साहूकार और उसकी पाटनी छत पर बैठे थे। यह कर अनुरोध किया गया था कि यदि उनका बेटा सकुशल वापस नहीं लौटा तो वह छत से कूदकर अपना प्राण स्थापित कर देगा। उस लड़के के मामा ने सानिया साहूकार के बेटे और बहू के आने का समाचार दिया, लेकिन उन्होंने कोई शपथ नहीं ली, तो मामा ने शपथ ली, तब कहा तो दोनों को मिलाप हो गया और दोनों ने अपने बेटे-बहू का वादा किया। उसी रात साहूकार कंपनी ने शिव जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारे पूजन से मैं प्रसाद का दर्शन करता हूं। इसी प्रकार जो भी इलेक्ट्रोनिक इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसका समस्त दु:ख दूर हो जाएगा और सभी मनों का प्रसार होगा।
हर हर महादेव 🙏
पूर्ण लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🙏🌷

#1गुरुवार व्रत की पूरी कथा जिसे सुनने से मिलेगी देव बृहस्पति की कृपा🙏🌹🌷🥀👇

देव गुरु बृहस्पति को बुद्धि और शिक्षा का कारक माना जाता है. गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और कई अन्य मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. गुरुवार के दिन व्रत और कथा सुनने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आइए जानते हैं गुरुवार व्रत कथा के बारे में....
देव गुरु बृहस्पति को बुद्धि और शिक्षा का कारक माना जाता है. गुरुवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, मान-सम्मान, प्रतिष्ठा और कई अन्य मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, गुरुवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है. गुरुवार के दिन व्रत और कथा सुनने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है. आइए जानते हैं गुरुवार व्रत कथा के बारे में....

गुरुवार व्रत कथा:
कथा के अनुसार, प्राचीन काल की बात है. किसी राज्य में एक बड़ा प्रतापी और दानी राजा राज करता था. वह हर गुरुवार को व्रत रखकर दीन-दुखियों की मदद करके पुण्य प्राप्त करता था, परंतु ये बात उसकी रानी को अच्छी नहीं लगती थी. वह न तो व्रत करती थी और न ही दान-पुण्य में विश्वास रखती थी. इतना ही नहीं, वह राजा को भी ऐसा करने से मना करती थी.

एक समय की बात है, राजा शिकार खेलने के लिए वन गए. घर पर रानी और दासी थी. उसी समय गुरु बृहस्पतिदेव साधु का रूप धारण कर राजा के दरवाजे पर भिक्षा मांगने आए. साधु ने जब रानी से भिक्षा मांगी तो वह कहने लगी, हे साधु महाराज, मैं इस दान और पुण्य से तंग आ गई हूं. आप कोई ऐसा उपाय बताएं, जिससे कि सारा धन नष्ट हो जाए और मैं आराम से रह सकूं.
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इतना सुनकर बृहस्पतिदेव ने कहा, हे देवी, तुम बड़ी विचित्र हो, संतान और धन से कोई दुखी होता है. अगर अधिक धन है तो इसे शुभ कार्यों में लगाओ, कुंवारी कन्याओं का विवाह कराओ, विद्यालय और बाग-बगीचे का निर्माण कराओ, जिससे तुम्हारे दोनों लोक सुधरें. परंतु साधु की इन बातों से रानी को खुशी नहीं हुई. उसने कहा कि मुझे ऐसे धन की आवश्यकता नहीं है, जिसे मैं दान दूं और जिसे संभालने में मेरा सारा समय नष्ट हो जाए.

तब साधु ने कहा, अगर तुम्हारी ऐसी इच्छा है तो मैं जैसा तुम्हें बताता हूं तुम वैसा ही करना. गुरुवार के दिन तुम घर को गोबर से लीपना, अपने बालों को पीली मिट्टी से धोना, राजा से हजामत बनाने को कहना, भोजन में मांस-मदिरा का प्रयोग करना, कपड़े धोबी के यहां धुलने देना. इस प्रकार सात बृहस्पतिवार करने से तुम्हारा समस्त धन नष्ट हो जाएगा. इतना कहकर साधु के रूप में बृहस्पतिदेव अंतर्ध्यान हो गए.

साधु के अनुसार कही बातों को पूरा करते हुए रानी को केवल तीन बृहस्पतिवार ही बीते थे कि उसकी समस्त धन-संपत्ति नष्ट हो गई. भोजन के लिए राजा का परिवार तरसने लगा. तब एक दिन राजा ने रानी से बोला कि हे रानी, तुम यहीं रहो, मैं दूसरे देश को जाता हूं, क्योंकि यहां पर सभी लोग मुझे जानते हैं. इसलिए मैं कोई छोटा कार्य नहीं कर सकता. ऐसा कहकर राजा दूसरे देश चला गया. वहां वह जंगल से लकड़ी काटकर लाता और शहर में बेचता. इस तरह वह अपना जीवन व्यतीत करने लगा. इधर, राजा के परदेस जाते ही रानी और दासी दुखी रहने लगी.

एक बार जब रानी और दासी को सात दिन तक बिना भोजन के रहना पड़ा, तो रानी ने अपनी दासी से कहा, हे दासी, पास ही के नगर में मेरी बहन रहती है. वह बड़ी धनवान है. तू उसके पास जा और कुछ ले आ, ताकि थोड़ी-बहुत गुजर-बसर हो जाए. दासी रानी की बहन के पास गई.

उस दिन गुरुवार था और रानी की बहन उस समय बृहस्पतिवार व्रत की कथा सुन रही थी. दासी ने रानी की बहन को अपनी रानी का संदेश दिया, लेकिन रानी की बड़ी बहन ने कोई उत्तर नहीं दिया. जब दासी को रानी की बहन से कोई उत्तर नहीं मिला तो वह बहुत दुखी हुई और उसे क्रोध भी आया. दासी ने वापस आकर रानी को सारी बात बता दी. ये सुनकर रानी ने अपने भाग्य को कोसा. उधर, रानी की बहन ने सोचा कि मेरी बहन की दासी आई थी, परंतु मैं उससे नहीं बोली, इससे वह बहुत दुखी हुई होगी.

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः ॐ ॐ ॐ ॐ ॐ
कथा सुनकर और पूजा समाप्त करके वह अपनी बहन के घर आई और कहने लगी, हे बहन, मैं बृहस्पतिवार का व्रत कर रही थी. तुम्हारी दासी मेरे घर आई थी परंतु जब तक कथा होती है, तब तक न तो उठते हैं और न ही बोलते हैं, इसलिए मैं नहीं बोली. बताओ दासी क्यों आई थी.

रानी बोली, बहन, तुमसे क्या छिपाऊं, हमारे घर में खाने तक को अनाज नहीं है. ऐसा कहते-कहते रानी की आंखें भर आई. उसने दासी समेत पिछले सात दिनों से भूखे रहने की पूरी बात अपनी बहन को बता दी. रानी की बहन बोली, देखो बहन, भगवान बृहस्पतिदेव सबकी मनोकामना को पूर्ण करते हैं. देखो, शायद तुम्हारे घर में अनाज रखा हो.

पहले तो रानी को विश्वास नहीं हुआ पर बहन के आग्रह करने पर उसने अपनी दासी को अंदर भेजा तो उसे सचमुच अनाज से भरा एक घड़ा मिल गया. ये देखकर दासी को बड़ी हैरानी हुई. दासी रानी से कहने लगी, हे रानी, जब हमको भोजन नहीं मिलता तो हम व्रत ही तो करते हैं, इसलिए क्यों न इनसे व्रत और कथा की विधि पूछ ली जाए, ताकि हम भी व्रत कर सकें. तब रानी ने अपनी बहन से बृहस्पतिवार व्रत के बारे में पूछा.
उसकी बहन ने बताया, बृहस्पतिवार के व्रत में चने की दाल और मुनक्का केले की जड़ में अर्पित करें तथा दीपक जलाएं, व्रत कथा सुनें और पीला भोजन ही करें. इससे बृहस्पतिदेव और भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं. व्रत और पूजा की विधि बताकर रानी की बहन अपने घर को लौट गई.

सात दिन के बाद जब गुरुवार आया तो रानी और दासी ने व्रत रखा. वह घुड़साल में जाकर चना और गुड़ लेकर आईं. फिर उससे केले की जड़ तथा विष्णु भगवान की पूजा की. अब पीला भोजन की चिंता को लेकर दोनों बहुत दुखी हुईं. चूंकि उन्होंने व्रत रखा था इसलिए बृहस्पतिदेव उनसे प्रसन्न थे. वह एक साधारण व्यक्ति का रूप धारण कर दो थालों में पीला भोजन दासी को दे गए. भोजन पाकर दासी प्रसन्न हुई और फिर रानी के साथ मिलकर भोजन ग्रहण किया.

उसके बाद वह सभी गुरुवार को व्रत और पूजा करने लगी. बृहस्पति देव की कृपा से उनके पास फिर से धन-संपत्ति आ गई, परंतु रानी फिर से पहले की तरह आलस्य करने लगी. तब दासी बोली, देखो रानी, तुम पहले भी इस प्रकार आलस्य करती थी, तुम्हें धन रखने में कष्ट होता था. इस कारण सभी धन नष्ट हो गया और अब जब देव बृहस्पति की कृपा से धन मिला है तो तुम्हें फिर से आलस्य होने लगा है.

रानी को समझाते हुए दासी कहती है कि बड़ी मुसीबतों के बाद हमने ये धन पाया है. इसलिए हमें दान-पुण्य करना चाहिए, भूखों को भोजन कराना चाहिए और धन को शुभ कार्यों में खर्च करना चाहिए. इससे तुम्हारे कुल का यश बढ़ेगा, स्वर्ग की प्राप्ति होगी और पित्र प्रसन्न होंगे. दासी की बात मानकर रानी अपना धन शुभ कार्यों में खर्च करने लगी. इससे पूरे नगर में उसका यश बढ़ने लगा. बृहस्पतिवार व्रत कथा के बाद श्रद्धा के साथ आरती की जानी चाहिए. इसके बाद प्रसाद बांटकर उसे ग्रहण करना चाहिए.
हरी ॐ नमो नारायणा।
कृपया पूरा लेख पढ़े धन्यवाद 🙏

1#पढ़े मां संतोषी की कथाहिंदी भक्ती ब्लॉग आज जरूर करें संतोषी मां के इन मंत्रों का जाप और चालीसा पाठ, दूर होंगी सभी परेशानी, जानें मंत्र जाप के फायदे🙏👇

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शुक्रवार का दिन मां संतोषी माता को समर्पित है. हिंदू ग्रंथों में संतोषी माता को भगवान गणेश की पुत्री कहा गया है. हिंदू धर्म में शुक्रवार के दिन संतोषी माता की पूजा और व्रत करने का विधान है.
शुक्रवार का दिन मां संतोषी माता को समर्पित है. हिंदू ग्रंथों में संतोषी माता को भगवान गणेश की पुत्री कहा गया है. हिंदू धर्म में शुक्रवार के दिन संतोषी माता की पूजा और व्रत करने का विधान है. कहते हैं कि मां संतोषी का व्रत करने से भक्तों के सभी संकट दूर होते हैं और मनचाही इच्छा का वरदान मिलता है. इस दिन व्रत करने शुभ फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यता है कि इस दिन पूजा के बाद मां के मंत्रों का जाप और चालीसा का पाठ अवश्य करें. इससे मां जल्दी प्रसन्न होती है और घर को धन-धान्य से भर देती है. 


संतोषी मां महामंत्र:




जय माँ संतोषिये देवी नमो नमः


श्री संतोषी देव्व्ये नमः


ॐ श्री गजोदेवोपुत्रिया नमः


ॐ सर्वनिवार्नाये देविभुता नमः


ॐ संतोषी महादेव्व्ये नमः


ॐ सर्वकाम फलप्रदाय नमः


ॐ ललिताये नमः





मंत्र से करें ध्यान 
ॐ श्री संतोषी महामाया गजानंदम दायिनी
शुक्रवार प्रिये देवी नारायणी नमोस्तुते! 


धार्मिक मान्यता है कि शुक्रवार के दिन इस मंत्र का जाप करने से निश्चित ही जीवन की सभी परेशानी दूर हो जाती हैं. 


मंत्र जाप के फायदे


संतोषी मां की कृपा बनाए रखने के लिए सकारात्मकता से भरे इस मंत्र का जाप बहुत लाभदायी है. इससे जीवन की हर परेशानी दूर हो सकती है. इतना ही नहीं, भक्तों में सकारात्मक ऊर्जा का वास होता है और जीवन में सफलता के रास्ते पर चलता जाता है. 



संतोषी माता चालीसा


दोहा


बन्दौं संतोषी चरण रिद्धि-सिद्धि दातार।
ध्यान धरत ही होत नर दुःख सागर से पार॥
भक्तन को सन्तोष दे संतोषी तव नाम।
कृपा करहु जगदंब अब आया तेरे धाम॥


जय संतोषी मात अनूपम। 
शान्ति दायिनी रूप मनोरम॥
सुन्दर वरण चतुर्भुज रूपा। 
वेश मनोहर ललित अनुपा॥॥
 

श्वेताम्बर रूप मनहारी। 
मां तुम्हारी छवि जग से न्यारी॥
दिव्य स्वरूपा आयत लोचन।
दर्शन से हो संकट मोचन॥॥


जय गणेश की सुता भवानी। 
रिद्धि- सिद्धि की पुत्री ज्ञानी॥
अगम अगोचर तुम्हरी माया। 
सब पर करो कृपा की छाया॥॥


नाम अनेक तुम्हारे माता। 
अखिल विश्व है तुमको ध्याता॥
तुमने रूप अनेकों धारे। 
को कहि सके चरित्र तुम्हारे॥॥


धाम अनेक कहां तक कहिये। 
सुमिरन तब करके सुख लहिये॥
विन्ध्याचल में विन्ध्यवासिनी। 
कोटेश्वर सरस्वती सुहासिनी॥
कलकत्ते में तू ही काली। 
दुष्ट नाशिनी महाकराली॥
सम्बल पुर बहुचरा कहाती। 
भक्तजनों का दुःख मिटाती॥॥



ज्वाला जी में ज्वाला देवी। 
पूजत नित्य भक्त जन सेवी॥
नगर बम्बई की महारानी। 
महा लक्ष्मी तुम कल्याणी॥॥


मदुरा में मीनाक्षी तुम हो। 
सुख दुख सबकी साक्षी तुम हो॥
राजनगर में तुम जगदम्बे। 
बनी भद्रकाली तुम अम्बे॥॥


पावागढ़ में दुर्गा माता। 
अखिल विश्व तेरा यश गाता॥
काशी पुराधीश्वरी माता। 
अन्नपूर्णा नाम सुहाता॥॥


सर्वानंद करो कल्याणी। 
तुम्हीं शारदा अमृत वाणी॥
तुम्हरी महिमा जल में थल में। 
दुख दारिद्र सब मेटो पल में॥॥


जेते ऋषि और मुनीशा। 
नारद देव और देवेशा।
इस जगती के नर और नारी। 
ध्यान धरत हैं मात तुम्हारी॥॥




जापर कृपा तुम्हारी होती। 
वह पाता भक्ति का मोती॥
दुख दारिद्र संकट मिट जाता। 
ध्यान तुम्हारा जो जन ध्याता॥॥


जो जन तुम्हरी महिमा गावै। 
ध्यान तुम्हारा कर सुख पावै॥
जो मन राखे शुद्ध भावना। 
ताकी पूरण करो कामना॥॥


कुमति निवारि सुमति की दात्री। 
जयति जयति माता जगधात्री॥
शुक्रवार का दिवस सुहावन। 
जो व्रत करे तुम्हारा पावन॥॥




गुड़ छोले का भोग लगावै। 
कथा तुम्हारी सुने सुनावै॥
विधिवत पूजा करे तुम्हारी। 
फिर प्रसाद पावे शुभकारी॥॥


शक्ति- सामरथ हो जो धनको। 
दान- दक्षिणा दे विप्रन को॥
वे जगती के नर औ नारी। 
मनवांछित फल पावें भारी॥॥


जो जन शरण तुम्हारी जावे। 
सो निश्चय भव से तर जावे॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे। 
निश्चय मनवांछित वर पावै॥॥


सधवा पूजा करे तुम्हारी। 
अमर सुहागिन हो वह नारी॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा।
 भवसागर से उतरे पारा॥॥







जयति जयति जय संकट हरणी। 
विघ्न विनाशन मंगल करनी॥
हम पर संकट है अति भारी। 
वेगि खबर लो मात हमारी॥॥


निशिदिन ध्यान तुम्हारो ध्याता। 
देह भक्ति वर हम को माता॥
यह चालीसा जो नित गावे। 
सो भवसागर से तर जाव

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दान- दक्षिणा दे विप्रन को॥
वे जगती के नर औ नारी। 
मनवांछित फल पावें भारी॥॥


जो जन शरण तुम्हारी जावे। 
सो निश्चय भव से तर जावे॥
तुम्हरो ध्यान कुमारी ध्यावे। 
निश्चय मनवांछित वर पावै॥॥


सधवा पूजा करे तुम्हारी। 
अमर सुहागिन हो वह नारी॥
विधवा धर के ध्यान तुम्हारा।
 भवसागर से उतरे पारा॥॥
जय माता संतोषी की 🙏🙏
कृपया पूरा लेख पढ़े धन्यवाद 🙏

Vastu Tips: शाम के समय इस दिशा में जलाएं दीपक, मां लक्ष्मी की कृपा से मिलेगा खूब सारा पैसा🙏🙏👍👍👇👇🌷🌷🌻🌻

Maa Lakshmi ke Upay: घर में नियमित रूप से शाम के समय मुख्य द्वार पर दीपक जलाने से मां लक्ष्मी का आगमन होता है और घर पर सुख-समृद्धि बनी रहती है.किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी सूक्ष्मजीवी चले आ रहे हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाया जाता है। सुबह-शाम होने वाली पूजा में भी दीपक जलाने की परंपरा है। वास्तु शास्त्र में दीपक जलाकर उसे रखने के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। दीपक की लौ किस दिशा में जानी चाहिए, इस संबंध में ग्रंथ शास्त्र में पर्याप्त जानकारी मिलती है। अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए हर धार्मिक रीति-रिवाज को पूरा करने के लिए अपने-अपने विधान भी हैं। हिंदू धर्म में यह बहुत मायने रखता है। कोई भी पूजा तब तक सफल नहीं हुई जब तक उसे विधिपूर्वक न किया गया। दीपावली को दीपोत्सव, प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है धनतेरस से ही कार्तिक के कृष्णपक्ष की अंधेरी रात को जगमगाने की शुरुआत हो जाती है।
किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाते समय इस मंत्र को बोलने से शीघ्र ही सफलता मिलती है-

दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं ईदीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रु वृद्धि विनाशं च दीप्योति: नमोस्तुति।।


दीपक सिर्फ दीवाली पर ही नहीं जलाये जाते हैं बल्कि पूजा अर्जन सहित हर मांगलिक कार्यक्रम में दीपक जलाया जाता है। दीपक की लौ सिर्फ रोशनी का प्रतीक नहीं है बल्कि वह अज्ञानता का अंधकार को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से जीवन को रोशन करने का प्रतीक है। दरिद्रता के तिमिर का नाश कर खुशियों से जीवन को जगमगा देने का प्रतीक है। नकारात्मकता से चौंधियाये अंधेरे मन में सकारात्मकता के प्रकाश की झलक की प्रतीक है। क्योंकि उसके सही दिशा में होने से ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।

पूर्व और उत्तर दिशा में जहां दी गई आयु और धन में वृद्धि की मनोकामना पूरी तरह से होती है, वहीं पश्चिम और दक्षिण में दी गई लूत अशुभ भी मानी जाती है। पश्चिम में दिए गए नुकसान के कारण कष्टदायी होता है और आपको कष्ट सहने पर मजबूर होना पड़ सकता है। लेकिन दक्षिण में दिए गए गीत की लय रखना और घातक भी हो सकता है। इससे व्यक्ति या परिवार की बड़ी हानि उठानी पड़ सकती है, यह हानि जान-मालिक किसी के भी रूप में हो सकती हैं

 कुल मिलाकर दीपक या जला दियाना हर शुभ अवसर पर एक अनिवार्य परंपरा मानी जाती है, क्योंकि दीपक का मार्ग सही दिशा में होना प्राय: होता है।।

दीपक-मनुष्य के जीवन में चिह्न और प्रासंगिक का बहुत उपयोग होता है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी के प्रदत्त में प्रज्जवलित ज्योत का बहुत महत्व है।

दीपक हमें अज्ञानता को दूर करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है। दीपक अंधकार दूर करता है। मिट्टी का दीया मिट्टी से बना मनुष्य शरीर का प्रतीक है और उसमें रहने वाला तेल अपनी जीवन शक्ति का प्रतीक है। मनुष्य अपनी जीवनशक्ति से परिश्रम करके संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीप हमें देता है। मंदिर में आरती करते समय दिया जलाने के पीछे यही भाव है कि भगवान हमारे मन से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञानरूप प्रकाश फैलायें। गहरे अंधकार से प्रभु! परम प्रकाश की ओर ले चल रहा है।
दीपावली के पर्व के निमित्त लक्ष्मीपूजन में अमावस्या की अंधेरी रात में दीपक जलाने के पीछे भी इसका उद्देश्य छिपा हुआ है। घर में तुलसी के क्यारे के पास भी दीपक जलाये जाते हैं। किसी भी नयें कार्य की शुरुआत भी दीपक से ही होती है। अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है। अपने वेद और शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं- हे परमात्मा! अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर आइए चलें। ज्योत से ज्योत वर्ल्डो इस आरती के पीछे भी यही विचार कर रहा है। यह भारतीय संस्कृति की गरिमा है।

आमतौर पर हम सभी अपने घर में पूजा करते हैं दीपक प्रज्वलित करते हैं। जो बहुत ही शुभ होते हैं। दीपक को रौशनी का, उजाले का तथा प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। दीपक को मनुष्य के जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए भी शुभ माना जाता है।
दीपक के प्रकार – दीपक कई प्रकार के होते हैं। जैसे – चाँदी के दीपक, मिटटी के दीपक, लोहे के दीपक, ताम्बे के दीपक, पीतल की धातु से बने हुए दीपक और मिटटी के दीपक से बनाए गए दीपक |कुछ लोग मिटटी के दीपक को अधिक शुभ मानते हैं तो वहीँ कुछ लोग सभी प्रकार की साधना की सिद्धि के लिए मूंग की दाल, चावल, गेहूं, उड़द की दाल और ज्वार आदि अनाजों को पीस कर उनमें से दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करते हैं के लिए सबसे उत्तम मानते हैं।

घर की इन दिशाओं में दीपक लगाने से पूरी होती हैं सभी इच्छाएं—
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दियों को इन दीपकों को जलाने की भी एक विधि है। अगर सही दिशा में दीपक की लौ न जलाई जाए तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। आइए जानते हैं इसके फायदे व नुक्सान के बारे में
–रोगों से मुक्ति के लिए प्रतिदिन सूर्य देव के चित्रपट या श्रीविग्रह के आगे दीपक मरते हैं।
—-श्रीकृष्ण के आगे दीपक लगाने से जीवन साथी की तलाश पूरी होती है।
—–रूक्मणी और श्रीकृष्ण के आगे दीपक बनने से मनभावन जीवन साथी मिलता है।
—–दीपक की दाईं दिशा की ओर धारण से आयु में वृद्धि होती है।
—– दीपक की दृष्टि दिशा पश्चिम की ओर देखने से दु:ख बढ़ रही है।
—- दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर स्थित होने से धन लाभ होने के योग बने हैं।
—– दीपक की लौ दिशा की और धारण से हानि होती है। यह हानि किसी व्यक्ति या धन के रूप में भी हो सकती है।
—बुरे सपनों का डर सतता है तो सोने से पहले हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप के आगे दिया जलाएं और हनुमान का पाठ करें।घर के मंदिर की उत्तर दिशा में धन के देवता कुबेर का स्वरूप स्थापित करें। किसी भी तरह की समस्या हो हर दिन जागरण से हल हो जाएगा।
—–घर और कार्यस्थान पर गणपति बप्पा का स्वरूप स्थापित करें। दिन की शुरुआत उनकी आगे लगे दीपक कर दें।
——राम दरबार के आगे प्रतिदिन दीपक लगाने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।
आयु वृद्धि के लिए पूर्व दिशा में जलायें दीपक—
दीपक की लौ दिशा किसमें शुरू हुई इसके अनुसार वैसे तो ऋक्सिकता शास्त्र में काफी सारे नियम हैं लेकिन यह इस पर भी निरंतर करता है कि आप किस देवता की पूजा कर रहे हैं और उनके वासी कौन हैं दिशा में है। पूर्व दिशा के बारे में सभी जानते हैं। सूर्योदय की पहली किरणों के साथ ही नई आशाएं और आशाओं की किरणें भी फूटती हैं। पूर्व दिशा में यदि दीपक की लौकिक हो तो इससे आयु में विकास होता है।

धन लाभ के लिए दिए गए लौ हो उत्तर में—-
यदि आप अपने व्यवसाय में लाभ, वेतन में वृद्धि आदि धन लाभ के मनोकामना के लिए दीपक जला रहे हैं तो ध्यान दें इसकी लौ उत्तर दिशा हो। उत्तर दिशा में दिए गए विवरण के आधार पर धन में वृद्धि के लिए इसे लाभकारी माना जाता
जानिए आप अपने जीवन के कष्टों से निम्न प्रकार दीपक जलाकर मुक्ति पा सकते हैं –

1. अगर आपके घर में आर्थिक तंगी चल रही है, तो इस कड़ी से मुक्ति पाने के लिए आपको हर दिन अपने घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। लाइव दीपक से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

2. यदि आपके शत्रु आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसके लिए आपको प्रतिदिन भैरव जी के सामने सरसों का तेल जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके विनाश से आपकी हानि होने के लिए नए प्रयास सफल नहीं होंगे।
3. सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए भी आपको हर रोज सरसों का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके घर में हमेशा सूर्य देवता की कृपा बनी रहती है।

4. यदि आपका शनि ग्रह कमजोर है तो आपको नियमपूर्वक शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

5. अपने पति की लंबी उम्र की मनोकामना को पूरा करने के लिए महिलाओं को अपने घर के मंदिर में महुए के तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

6. अगर किसी व्यक्ति के राहु और केतु दोनों योजनाओं की स्थिति खराब हो तो उसे रोजाना मंदिर में अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से राहु और केतु ग्रह शांत हो जाते हैं।

7. घर या मंदिर में किसी भी देवी या देवता की पूजा करते समय फूल, अगरबत्ती, शुद्ध गाय के घी या तिल के तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए

8. गणेश भगवान की कृपा आप पर हमेशा बनी रही इसके लिए आपको प्रतिदिन गणेश की मूर्ति या तस्वीर के आगे तीन बत्तियों वाले झींगे का दीपक जलाना चाहिए।

9. भैरव देवता की पूजा करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए चार प्रमुख सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

10. किसी मामले को या प्रमाण को जीतने के लिए भी दीपक को जलाना शुभ होता है। किसी भी दोष में जीत हासिल करने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलायें।

11. कार्तिक भगवान को प्रसन्न होने के लिए भी दिन के पांच मुख वाले दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

12. लक्ष्मी जी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहें। इसके लिए हमें लक्ष्मी जी के विभिन्न सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए।
13. शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए आप बारहवें या आठवें वाले दीपक जला सकते हैं। इसके साथ ही सरसों के तेल का एक दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

14. विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके सामने प्रतिदिन सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए। यदि आप विष्णु भगवान के दशावतार की पूजा करते हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए दस मुख वाले दीपक को जलाना चाहिए।

15. इष्ट सिद्धि के लिए तथा ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहरा और गोल दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

16. अपने विनाश को नष्ट करने के लिए और किसी भी विरोधी को रोकने के लिए मध्य से ऊपर की ओर उठते हुए दीपक का प्रयोग जलाने के लिए चाहिए।

17. धन प्राप्ति के लिए सामान्य दीपक का प्रयोग 
18. संकटहरण हनुमान जी की पूजा करने के लिए तथा उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे इसके लिए तीन कोनो वाले दीपक का प्रयोग जलाने के लिए देना चाहिए। हनुमान जी आराधना करने के लिए दीपक को जलाने के लिए चमेली के तेल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

19. आश्रम और देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए शुद्ध गाय के घी और तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
अगर आपकी इच्छा पूरी तरह से घूमने के लिए आपको भगवान के आगे कैसा दीपक जलाना चाहिए। जिससे आपकी पूरी इच्छाए जल्दी ही पूरी तरह से हो जाती है।माना जाता है कि हर भगवान का संबंध किसी न किसी विशेष वस्तु या इच्छा से होता है। अगर अपनी इच्छा या मनोकामना के अनुसार संबंधित भगवान की मूर्ति को पूजा घर में स्थापित करके, रोज उन्हें दीपक दिया जाए तो आपकी पूरी इच्छाए और मनोकामनाए निश्चित रूप से पूरी होती है। रुका धन पाने से लेकर प्यार तक, बिजनेस में जिम्मेवारी से लेकर स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है।
1.प्यार के लिए भगवान कृष्ण जी- अगर आपको भी अपने दोस्तों या अपने जीवन के साथियों से प्यार पाने की इच्छा हो, तो घर के मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है।

2. दावे से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य- यदि आप दायित्व से परेशान हैं तो आपको अपने घर के मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज उनकी मूर्ति या तस्वीर पर जल चढ़ाना चाहिए और दीपक जलाना चाहिए।
प्रावक्ता
घर कला-संस्कृति जानिए घर की किस दिशा में दीपक लगाने से पूरी होती हैं...
कला-संस्कृतिधर्म-अध्यात्म
जानिए घर की किस दिशा में दीपक लगाने से पूरी होती हैं आपका मनोकामना/विश—
द्वारा पंडित दयानंद शास्त्री- अप्रैल 28, 2017010422

सही मायने में भारतीय संस्कृति की संचारकों में दीपक का इतना महत्व क्यों है?

किसी भी देश की संस्कृति उसकी आत्मा होती है। भारतीय संस्कृति की गरिमा अपार है। इस संस्कृति में आदिकाल से ऐसी सूक्ष्मजीवी चले आ रहे हैं, जिनके पीछे तात्त्विक महत्व एवं वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है।
हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाया जाता है। सुबह-शाम होने वाली पूजा में भी दीपक जलाने की परंपरा है। वास्तु शास्त्र में दीपक जलाकर उसे रखने के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। दीपक की लौ किस दिशा में जानी चाहिए, इस संबंध में ग्रंथ शास्त्र में पर्याप्त जानकारी मिलती है। अपने इष्ट को प्रसन्न करने के लिए हर धार्मिक रीति-रिवाज को पूरा करने के लिए अपने-अपने विधान भी हैं। हिंदू धर्म में यह बहुत मायने रखता है। कोई भी पूजा तब तक सफल नहीं हुई जब तक उसे विधिपूर्वक न किया गया। दीपावली को दीपोत्सव, प्रकाशोत्सव भी कहा जाता है धनतेरस से ही कार्तिक के कृष्णपक्ष की अंधेरी रात को जगमगाने की शुरुआत हो जाती है।
किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाते समय इस मंत्र को बोलने से शीघ्र ही सफलता मिलती है-


दीपज्योति: परब्रह्म: दीपज्योति: जनार्दन:।
दीपोहरतिमे पापं ईदीपं नामोस्तुते।।
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां।
शत्रु वृद्धि विनाशं च दीप्योति: नमोस्तुति।।


दीपक सिर्फ दीवाली पर ही नहीं जलाये जाते हैं बल्कि पूजा अर्जन सहित हर मांगलिक कार्यक्रम में दीपक जलाया जाता है। दीपक की लौ सिर्फ रोशनी का प्रतीक नहीं है बल्कि वह अज्ञानता का अंधकार को हटाकर ज्ञान के प्रकाश से जीवन को रोशन करने का प्रतीक है। दरिद्रता के तिमिर का नाश कर खुशियों से जीवन को जगमगा देने का प्रतीक है। नकारात्मकता से चौंधियाये अंधेरे मन में सकारात्मकता के प्रकाश की झलक की प्रतीक है। क्योंकि उसके सही दिशा में होने से ही शुभ फल प्राप्त होते हैं।

पूर्व और उत्तर दिशा में जहां दी गई आयु और धन में वृद्धि की मनोकामना पूरी तरह से होती है, वहीं पश्चिम और दक्षिण में दी गई लूत अशुभ भी मानी जाती है। पश्चिम में दिए गए नुकसान के कारण कष्टदायी होता है और आपको कष्ट सहने पर मजबूर होना पड़ सकता है। लेकिन दक्षिण में दिए गए गीत की लय रखना और घातक भी हो सकता है। इससे व्यक्ति या परिवार की बड़ी हानि उठानी पड़ सकती है, यह हानि जान-मालिक किसी के भी रूप में हो सकती है।
कुल मिलाकर दीपक या जला दियाना हर शुभ अवसर पर एक अनिवार्य परंपरा मानी जाती है, क्योंकि दीपक का मार्ग सही दिशा में होना प्राय: होता है।।

दीपक-

मनुष्य के जीवन में चिह्न और प्रासंगिक का बहुत उपयोग होता है। भारतीय संस्कृति में मिट्टी के प्रदत्त में प्रज्जवलित ज्योत का बहुत महत्व है।

दीपक हमें अज्ञानता को दूर करके पूर्ण ज्ञान प्राप्त करने का संदेश देता है। दीपक अंधकार दूर करता है। मिट्टी का दीया मिट्टी से बना मनुष्य शरीर का प्रतीक है और उसमें रहने वाला तेल अपनी जीवन शक्ति का प्रतीक है। मनुष्य अपनी जीवनशक्ति से परिश्रम करके संसार से अंधकार दूर करके ज्ञान का प्रकाश फैलाये ऐसा संदेश दीप हमें देता है। मंदिर में आरती करते समय दिया जलाने के पीछे यही भाव है कि भगवान हमारे मन से अज्ञान रूपी अंधकार को दूर करके ज्ञानरूप प्रकाश फैलायें। गहरे अंधकार से प्रभु! परम प्रकाश की ओर ले चल रहा है।


दीपावली के पर्व के निमित्त लक्ष्मीपूजन में अमावस्या की अंधेरी रात में दीपक जलाने के पीछे भी इसका उद्देश्य छिपा हुआ है। घर में तुलसी के क्यारे के पास भी दीपक जलाये जाते हैं। किसी भी नयें कार्य की शुरुआत भी दीपक से ही होती है। अच्छे संस्कारी पुत्र को भी कुल-दीपक कहा जाता है। अपने वेद और शास्त्र भी हमें यही शिक्षा देते हैं- हे परमात्मा! अंधकार से प्रकाश की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर आइए चलें। ज्योत से ज्योत वर्ल्डो इस आरती के पीछे भी यही विचार कर रहा है। यह भारतीय संस्कृति की गरिमा है।

आमतौर पर हम सभी अपने घर में पूजा करते हैं दीपक प्रज्वलित करते हैं। जो बहुत ही शुभ होते हैं। दीपक को रौशनी का, उजाले का तथा प्रकाश का प्रतीक माना जाता है। दीपक को मनुष्य के जीवन के कष्टों को दूर करने के लिए भी शुभ माना जाता है।
दीपक के प्रकार – दीपक कई प्रकार के होते हैं। जैसे – चाँदी के दीपक, मिटटी के दीपक, लोहे के दीपक, ताम्बे के दीपक, पीतल की धातु से बने हुए दीपक और मिटटी के दीपक से बनाए गए दीपक |

कुछ लोग मिटटी के दीपक को अधिक शुभ मानते हैं तो वहीँ कुछ लोग सभी प्रकार की साधना की सिद्धि के लिए मूंग की दाल, चावल, गेहूं, उड़द की दाल और ज्वार आदि अनाजों को पीस कर उनमें से दीपक बनाते हैं और इसे ही पूजा करते हैं के लिए सबसे उत्तम मानते हैं।

घर की इन दिशाओं में दीपक लगाने से पूरी होती हैं सभी इच्छाएं—
लेकिन क्या आप जानते हैं कि इन दियों को इन दीपकों को जलाने की भी एक विधि है। अगर सही दिशा में दीपक की लौ न जलाई जाए तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी हो सकता है। आइए जानते हैं इसके फायदे व नुक्सान के बारे में—


—–रोगों से मुक्ति के लिए प्रतिदिन सूर्य देव के चित्रपट या श्रीविग्रह के आगे दीपक मरते हैं।
—-श्रीकृष्ण के आगे दीपक लगाने से जीवन साथी की तलाश पूरी होती है।
—–रूक्मणी और श्रीकृष्ण के आगे दीपक बनने से मनभावन जीवन साथी मिलता है।
—–दीपक की दाईं दिशा की ओर धारण से आयु में वृद्धि होती है।
—– दीपक की दृष्टि दिशा पश्चिम की ओर देखने से दु:ख बढ़ रही है।
—- दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर स्थित होने से धन लाभ होने के योग बने हैं।
—– दीपक की लौ दिशा की और धारण से हानि होती है। यह हानि किसी व्यक्ति या धन के रूप में भी हो सकती है।
—बुरे सपनों का डर सतता है तो सोने से पहले हनुमान जी के पंचमुखी स्वरूप के आगे दिया जलाएं और हनुमान का पाठ करें।
——घर के मंदिर की उत्तर दिशा में धन के देवता कुबेर का स्वरूप स्थापित करें। किसी भी तरह की समस्या हो हर दिन जागरण से हल हो जाएगा।
—–घर और कार्यस्थान पर गणपति बप्पा का स्वरूप स्थापित करें। दिन की शुरुआत उनकी आगे लगे दीपक कर दें।
——राम दरबार के आगे प्रतिदिन दीपक लगाने से परिवार में सुख-शांति बनी रहती है।

आयु वृद्धि के लिए पूर्व दिशा में जलायें दीपक—
दीपक की लौ दिशा किसमें शुरू हुई इसके अनुसार वैसे तो ऋक्सिकता शास्त्र में काफी सारे नियम हैं लेकिन यह इस पर भी निरंतर करता है कि आप किस देवता की पूजा कर रहे हैं और उनके वासी कौन हैं दिशा में है। पूर्व दिशा के बारे में सभी जानते हैं। सूर्योदय की पहली किरणों के साथ ही नई आशाएं और आशाओं की किरणें भी फूटती हैं। पूर्व दिशा में यदि दीपक की लौकिक हो तो इससे आयु में विकास होता है।

धन लाभ के लिए दिए गए लौ हो उत्तर में—-
यदि आप अपने व्यवसाय में लाभ, वेतन में वृद्धि आदि धन लाभ के मनोकामना के लिए दीपक जला रहे हैं तो ध्यान दें इसकी लौ उत्तर दिशा हो। उत्तर दिशा में दिए गए विवरण के आधार पर धन में वृद्धि के लिए इसे लाभकारी माना जाता है।
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जानिए आप अपने जीवन के कष्टों से निम्न प्रकार दीपक जलाकर मुक्ति पा सकते हैं –

1. अगर आपके घर में आर्थिक तंगी चल रही है, तो इस कड़ी से मुक्ति पाने के लिए आपको हर दिन अपने घर के देवालय में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए। लाइव दीपक से घर की आर्थिक स्थिति में सुधार होगा।

2. यदि आपके शत्रु आपको नुकसान पहुंचाने की कोशिश कर रहे हैं तो इसके लिए आपको प्रतिदिन भैरव जी के सामने सरसों का तेल जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके विनाश से आपकी हानि होने के लिए नए प्रयास सफल नहीं होंगे।


3. सूर्य देवता को प्रसन्न करने के लिए भी आपको हर रोज सरसों का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से आपके घर में हमेशा सूर्य देवता की कृपा बनी रहती है।


4. यदि आपका शनि ग्रह कमजोर है तो आपको नियमपूर्वक शनि ग्रह को प्रसन्न करने के लिए तिल के तेल का दीपक जलाना चाहिए।

5. अपने पति की लंबी उम्र की मनोकामना को पूरा करने के लिए महिलाओं को अपने घर के मंदिर में महुए के तेल का दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

6. अगर किसी व्यक्ति के राहु और केतु दोनों योजनाओं की स्थिति खराब हो तो उसे रोजाना मंदिर में अलसी के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से राहु और केतु ग्रह शांत हो जाते हैं।

7. घर या मंदिर में किसी भी देवी या देवता की पूजा करते समय फूल, अगरबत्ती, शुद्ध गाय के घी या तिल के तेल का दीपक अवश्य जलाना चाहिए

8. गणेश भगवान की कृपा आप पर हमेशा बनी रही इसके लिए आपको प्रतिदिन गणेश की मूर्ति या तस्वीर के आगे तीन बत्तियों वाले झींगे का दीपक जलाना चाहिए।

9. भैरव देवता की पूजा करने के लिए और उन्हें प्रसन्न करने के लिए चार प्रमुख सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए। इस उपाय को करने से व्यक्ति के जीवन की सभी परेशानियां दूर हो जाती हैं।

10. किसी मामले को या प्रमाण को जीतने के लिए भी दीपक को जलाना शुभ होता है। किसी भी दोष में जीत हासिल करने के लिए भगवान के आगे पांच मुखी दीपक जलायें।

11. कार्तिक भगवान को प्रसन्न होने के लिए भी दिन के पांच मुख वाले दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

12. लक्ष्मी जी की कृपा हमेशा घर पर बनी रहें। इसके लिए हमें लक्ष्मी जी के विभिन्न सात मुख वाला दीपक जलाना चाहिए।

13. शिव भगवान को प्रसन्न करने के लिए आप बारहवें या आठवें वाले दीपक जला सकते हैं। इसके साथ ही सरसों के तेल का एक दीपक जलाना शुभ माना जाता है।

14. विष्णु भगवान को प्रसन्न करने के लिए उनके सामने प्रतिदिन सोलह बत्तियों का दीपक जलाना चाहिए। यदि आप विष्णु भगवान के दशावतार की पूजा करते हैं तो उन्हें प्रसन्न करने के लिए दस मुख वाले दीपक को जलाना चाहिए।

15. इष्ट सिद्धि के लिए तथा ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक गहरा और गोल दीपक प्रज्वलित करना चाहिए।

16. अपने विनाश को नष्ट करने के लिए और किसी भी विरोधी को रोकने के लिए मध्य से ऊपर की ओर उठते हुए दीपक का प्रयोग जलाने के लिए चाहिए।

17. धन प्राप्ति के लिए सामान्य दीपक का प्रयोग लक्ष्मी जी की पूजा करने के लिए करना चाहिए।

18. संकटहरण हनुमान जी की पूजा करने के लिए तथा उनकी कृपा आप पर सदा बनी रहे इसके लिए तीन कोनो वाले दीपक का प्रयोग जलाने के लिए देना चाहिए। हनुमान जी आराधना करने के लिए दीपक को जलाने के लिए चमेली के तेल का प्रयोग अवश्य करना चाहिए।

19. आश्रम और देवालय में अखंड ज्योत जलाने के लिए शुद्ध गाय के घी और तिल के तेल का प्रयोग करना चाहिए।
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अगर आपकी इच्छा पूरी तरह से घूमने के लिए आपको भगवान के आगे कैसा दीपक जलाना चाहिए। जिससे आपकी पूरी इच्छाए जल्दी ही पूरी तरह से हो जाती है।माना जाता है कि हर भगवान का संबंध किसी न किसी विशेष वस्तु या इच्छा से होता है। अगर अपनी इच्छा या मनोकामना के अनुसार संबंधित भगवान की मूर्ति को पूजा घर में स्थापित करके, रोज उन्हें दीपक दिया जाए तो आपकी पूरी इच्छाए और मनोकामनाए निश्चित रूप से पूरी होती है। रुका धन पाने से लेकर प्यार तक, बिजनेस में जिम्मेवारी से लेकर स्थिति से छुटकारा पाया जा सकता है।
1.प्यार के लिए भगवान कृष्ण जी- अगर आपको भी अपने दोस्तों या अपने जीवन के साथियों से प्यार पाने की इच्छा हो, तो घर के मंदिर में भगवान कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर उनकी पूजा करनी चाहिए। इससे आपकी ये इच्छा पूरी हो सकती है।

2. दावे से मुक्ति पाने के लिए भगवान सूर्य- यदि आप दायित्व से परेशान हैं तो आपको अपने घर के मंदिर में भगवान सूर्य की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज उनकी मूर्ति या तस्वीर पर जल चढ़ाना चाहिए और दीपक जलाना चाहिए।


3. अटका हुआ धन पाने के लिए भगवान कुबेर- ये तो हम सभी जानते हैं कि भगवान कुबेर को धन का देवता माना जाता है। अगर आपका भी धन कही अटका है तो अटका हुआ धन पाने के लिए घर के मंदिर की दिशा में भगवान कुबेर की मूर्ति स्थापित कर रोज दीपक जलाना चाहिए।

4. परीक्षाओं में सफलता पाने के लिए मां सरस्वती- अगर आपको अपनी परीक्षाओं की भी चिंता है और परीक्षा में सफलता पाना चाहते हैं तो अपने कमरे में मां सरस्वती की मूर्ति स्थापित करके या तस्वीर रोज दिया जाना चाहिए।

5. व्यवसाय में शेयरिंग करने के लिए भगवान गणेश- बिजनेस में जॉब के लिए भगवान गणेश की मूर्ति घर या दूकान के मंदिर में स्थापित करें, रोज उन्हें दीपक या अगरबत्ती लगाएं। इससे आपके व्यवसाय में टैक्सी मिल सकती है।

6. परिवार में सुख-शांति के लिए श्री राम जी- अगर आप भी अपने घर-परिवार में हमेशा सुख-शांति और प्यार बनाए रखना चाहते हैं तो उसके लिए भगवान राम सहित लक्ष्मण और देवी सीता की मूर्ति स्थापित करनी चाहिए और उनकी पूजा करनी चाहिए चाहिए।

7. बुरे सपनो से छुटकारा पाने के लिए भगवान हनुमान- जिन लोगो को डरावने या बुरे सपनो से दूर करें हो, उन्हें भगवान हनुमान की पंचमुखी स्वरूप की तस्वीर रोज उनकी पूजा करनी चाहिए।
झबरा खत्म करने के लिए भगवान शिव जी-जिन लोगो के अपने घर-परिवार के लोगो या मित्रों के बीच झिलमिलाहट खत्म करने की इच्छा हो, उन्हें घर के मंदिर में भगवान शिव की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करनी चाहिए।
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सोमवार व्रत कथा पढ़ें या सुनें, मिलेगी श‍िव-पार्वती की कृपा 🙏🙏🌹🌹🌷🌷👌👌🥀🥀👇👇

बाबा भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए आप भी सोमवार का व्रत कर रहे हैं, तो शिव व्रत कथा को पढ़कर या सुनकर इस उपवास को पूर्ण करें...
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सोमवार व्रत की विधि:
नारद पुराण के अनुसार सोमवार व्रत में व्यक्ति को प्रातः स्नान करके शिव जी को जल और बेल पत्र चढ़ाना चाहिए तथा शिव-गौरी की पूजा करनी चाहिए. शिव पूजन के बाद सोमवार व्रत कथा सुननी चाहिए. इसके बाद केवल एक समय ही भोजन करना चाहिए. साधारण रूप से सोमवार का व्रत दिन के तीसरे पहर तक होता है. मतलब शाम तक रखा जाता है. सोमवार व्रत तीन प्रकार का होता है प्रति सोमवार व्रत, सौम्य प्रदोष व्रत और सोलह सोमवार का व्रत. इन सभी व्रतों के लिए एक ही विधि होती है.
व्रत कथा:
एक समय की बात है, किसी नगर में एक साहूकार रहता था. उसके घर में धन की कोई कमी नहीं थी लेकिन उसकी कोई संतान नहीं थी इस कारण वह बहुत दुखी था. पुत्र प्राप्ति के लिए वह प्रत्येक सोमवार व्रत रखता था और पूरी श्रद्धा के साथ शिव मंदिर जाकर भगवान शिव और पार्वती जी की पूजा करता था.
इधर साहूकार और उसकी पत्नी भूखे-प्यासे रहकर बेटे की प्रतीक्षा कर रहे थे. उन्होंने प्रण कर रखा था कि यदि उन्हें अपने बेटे की मृत्यु का समाचार मिला तो वह भी प्राण त्याग देंगे परंतु अपने बेटे के जीवित होने का समाचार पाकर वह बेहद प्रसन्न हुए. उसी रात भगवान शिव ने व्यापारी के स्वप्न में आकर कहा- हे श्रेष्ठी, मैंने तेरे सोमवार के व्रत करने और व्रतकथा सुनने से प्रसन्न होकर तेरे पुत्र को लम्बी आयु प्रदान की है. इसी प्रकार जो कोई सोमवार व्रत करता है या कथा सुनता और पढ़ता है उसके सभी दुख दूर होते हैं और समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.
कृपया लेख पूरा पढ़ें 🙏🙏

लक्ष्मी माता के 18 पुत्रो के नाम 🙏🏻🙏🏻👇

1.ॐ देवसखाय नम: 2. ॐ चिक्लीताय नम:

भक्ति स्टोरी घरेलू नुस्खे आदि 🙏🌹