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पढ़िए निर्वस्त्र होकर राजमहल त्यागने वाली शिव भक्त रानी की कहानी।🙏🏻👇

मित्रो ये घोर कलि युग का समय है। इस विपत्ति काल मे हरिभजन का जरिया हे। जो भी मोक्ष को पाने के लिए जो हरि का नाम लेंगा हरी उसे बचाने के लिए इस कलियुग मे भगवान का रूप धारण करके हमे बचाने आते हे। इसी बातों लेकर हम आए हे कलियुग की कुस एसी कथा हे जिन्होने धर्मोमे हिन्दू की आस्था को ओर भी ज्यादा प्रबल किया था। एसी कड़ी मे हम लेकर आये है इस कलियुग की इस कथामे भगवान शिवकी भक्तनि जो पूरा दिन भगवान शिव की पुंजा करती रहती है ये भक्तनि। उसके हर सांस मे भगवान शिव बसे हुये थे। 
शिव भक्त रानी की कहानी। 
बारवी सदी मे अक्का महादेवी नाम की एक स्त्री भगवान शिव की भक्त थी। वह स्त्री भगवान शिव को अपना पति मानती थी। बालकाल से ही उन्होने अपने आपक पूरी तरह से भगवान शिव के नाम अपना जीवन समर्प्रित कर दिया था। जब वह स्त्री विवाह के लायक हुही तब वह एक राजा की नजर इन अक्का महादेवी पर उस राजा की नजर पड़ी। वो इतनी खूबसूरत थी की राजाने उसके मातापिता के सामने वह उसने विवाह का तुरंत ही प्रसात्व मूका की मौजे तुम्हारी ये पुत्री मुजे बहुत सुंदर ओर शुशील लगी इसलिए मे उनसे विवाह करना चाहता हु। ये बात सुनकर अक्का महादेवी की माता पिता ने उनके विवाह का इनकार कर दिया था। तब वह राजा ने वह महादेवी के मातापिताको धमकाकर उसके मातापिता ने उनकी शादी अक्का महादेवी से उनकी शादी करवाई। मातापिता का आज्ञा का पालन कराते हुहे महादेवी ने उस राजा के साथ के शादी तो करली लेकिन अपने पति राजा कौशिक को शारीरक सबंध से दुरही रखना को कहा उस महादेवी। राजा कौशिक उस महादेवी कई तरीके से उसके साथ प्रेम का निवेदन करता रहा लेकिन उस महादेवी हर बार एक ही बात कहती है मेरी शादी तो बहुत पहले से ही भगवान शिव के साथ हो गई है। यह कोई अक्का महादेवी कोई मतिभ्रम नहीं था यह उनके लिए बहुतही सच्ची बात थी। अक्का महादेवी से उनका कहन था की मेरी शादी पहले से ही भगवान शिव के साथ हो गई है। यह बात सुनकर राजा कौशिक ये बात सहन नहीं हुआ था। एकदिन राजा ने सोचा की एसी पत्नी को साथ रखनेमे कोई अर्थ नहीं है ओर कोईभि लाभ नहीं है। फिर राजा कई डीनो तक परेशान ही रहता ओर मनमे ही मनमे वह ये बात को लेकर हमेशा सोचता रहत है ओर उसे समाज नहीं आ रहा था की वह क्या करे पूरी तरह से राजा कौशिक इस बात को लेकर बहुत ही परेशान रहते थे। तब ये बात को लेकर उसे अक्का महादेवी को अपनी राजसभा मे बुलाया ओर राजसभा से उसे फैसला करने को कहा। जब सभा मे उस अक्का महादेवी को पूछा गया की तब उस महादेवी ने तभी भी कहती रही ही की मेरे पति कई ओर है। तभी राजा को गुस्सा आ गया। इसलिए राजा को गुस्सा आ गया की इतने सभी राजसभा मे सबा लोको के सामने कहा की मेरा पति राजा कौशिक नहीं बल्कि मेरे पति कई ओर है इस बात को लेकर राजा को गुस्सा आ गया। 800 साल पहले किस राजा को इस बात को सहन करनी की कोई आम बात नहीं थी। समाज मे इन सभी बातों का सामना करना कोई आसान नहीं था। तब उस राजा कौशिक ने कहा की अगर तुम्हारा विवाह किसी ओर के साथ हो गया है तो तुम मेरे साथ क्या कर रही हो जाओ यहा से तुम चली जाओ ये सब राजाने कहकर उसको राजदरबार से उसको निकाल दिया। तब अक्का महादेवी ने कहा थीखाई मई चली जाती हु ये बात कहकर अक्का देवी वहा से चली गई।  

भारतमे भी उन दिनोमे यह महिलाओ के लिए ये सोचनाभी निश्वार्थ था की वह हमेशा के लिए अपने पति का घर छोड़कर वह से भाग सकती है। लेकिन यह महादेवी अक्का वह से चल पड़ी। जब राजा कौशिक ने देखा की अक्का बिना कोई विरोध से उसे छोड़कर जा रही है तब राजा को क्रोध के कारण उसके मनमे ध्रुनता आ गई। तब उस राजा ने महादेवी को कहा जो तुमने कुस पहना हुआ है जो गहने, कपड़े ये सबकुस मेरा है ये सबकुस तुम यहा पर छोड़ दो फिर तुम यहा जा सकती हो। 17 ओर 18 साल की वह अक्का महादेवी ने अपने सभी गहने ओर सभी कपड़े वहा उतार दिये थे ओर वाहा से वो निर्वस्त्र ही वह से महादेवी चल पड़ी थी। उस दिन के बाद उन्हेनो वस्त्र को पहने से इनकार कर दिया था। तब उस महादेवी बहोत से लोगो ने उसे समजाने की कोशिश की उन्हे वस्त्र पहनने चाहिए। क्यूकी उनसे हम ओर तुमको भी बहुत परेशानी हो सकती है। लेकिन उस महादेवी ने इन सभी बातो पर की ध्यान नहीं दिया था। तब वह घने जंगलो से होते हुहे वह कर्नाटक के विदार जिल्ले मे से एक कल्याण वह पुहञ्च गई। कर्नाटक का वह शहर भगवान शिव के नामसे वह बहुत ही प्रसिद्ध था। वह उसके बाद वह आध्यामिक सर्च मे वह भाग लेना का प्रयास करती रही। धिरे धीरे महादेवी के नाम का आध्यामिक का वर्णन का प्रसार होने लगा था। जिसे प्रभावित होकर उसे महादेवी को बहुत ही बड़ी महानता दी थी। तब उनकी सादगी, ईश्वर, निष्ठा, प्रेम, करुणा ओर नम्रता से ये सभी उस महादेवी के अंदर देखकर सभी साधू संतो, ऋषि इन सभी उसपर बड़ाही प्रभावित हुहे थे। इन सभी कारण उसे अक्का महादेवी यानि की बड़ी महदेवी के नामसे उसे सन्मानित किया गया था। तब से शिव भक्तनि महादेवी अक्का महादेवी के नाम से वह जानने लगी। उसके कुस दिनो के बाद वह एंकात मे भगवान शिव भक्ति वह लिन हो गई थी। लेकिन जब महादेवी का भगवान शिव के साथ तब उसका एकाग्रता नहीं हो पाया तब वह कल्याण से श्रीसेलम वह पुहञ्च गई। जहा भगवान सैन्य मलिकार्जुन का मंदिर था। श्रीसेलम के अनादर उस घने जंगल के बीच वह बद्रीनाथ पर रेगिस्तान पर वहा एक गुफा थी। तब अक्का महादेवी उस गुफा मे चरण लेली ओर वह भगवान शिव की पूंजा करने लगी। तब वहा एकाग्रता मे होकर वह भगवान शिव के प्रति वह लिन हो गई तब वहा भगवान शिव के लिंग मे वहा समा गई। 
तो मित्रो आपको आजकी इस कलियुग की कथा आपको कैसी लगी। उम्मीद करता हु की आजकी कथा आपको अच्छी ही लगी होंगी। तो दोस्तो हम आपसे फिर से मिलती है इस एसी कलियुग की कथा के साथ। नमस्कार दोस्तो। जय श्री कृष्णा।


1#मेरा भगवान बचाएगा : ईश्वर भक्ति कहानी






एक समय की बात है किसी गाँव में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था
और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था ।
उसका भगवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे।
एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई । चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा,
सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे ।

जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो
उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी । परंतु साधु ने कहा-
” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”
धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा,
इतने में वहां से एक नाव गुजरी।

मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए
मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा ।”
“नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !!“ साधु ने उत्तर दिया।
नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया।

मेरा भगवान बचाएगा – ईश्वर भक्ति कहानी

कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी, साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर
ईश्वर को याद करने लगा । तभी अचानक उन्हें गड़गडाहट की आवाज़ सुनाई दी,
एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और
साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया।
पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा ।”
उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया ।

कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी ।
मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुंचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु ! मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की…
तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब
तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु बोले, ”हे महात्मन् मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया,

पहला, ग्रामीणों के रूप में, दूसरा नाव वाले के रूप में, और तीसरा हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में.
किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए ।”

मित्रों, इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है,
किसी ना किसी को माध्यम बनाकर हर समय हमारे साथ ही रहता है । लेकिन हम
अपने अहंकार के कारण उन्हे पहचान नही पाते ।
अवसरों की प्रकृति भी कुछ ऐसी होती है ।
यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते है तो वे हमें हमारी मंजिल तक पंहुचा देते है,
अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है ।

धन्यवाद आपका फुल रीड आर्टिकल 🙏🏻🙏🏻

1#सबसे बड़े शिवभक्‍त की अनोखी कहानी कहता है बैजनाथ धाम पढ़िए रोचक लघु कथा 🙏🏻

भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते ।
शिव का ऐसा ही एक धाम है बैजनाथ धाम.
 शिव का ऐसा ही एक धाम है बैजनाथ धाम.
भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते ।
भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते
सबसे बड़े शिवभक्‍त की अनोखी कहानी कहता है बैजनाथ धाम
भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते हैं. शिव का ऐसा ही एक धाम है बैजनाथ धाम.

बैजनाथ महादेव मंदिरबैजनाथ महादेव मंदिर
भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते हैं. शिव का ऐसा ही एक धाम है बैजनाथ धाम. कांगड़ा के बैजनाथ धाम में महादेव के सबसे बड़े भक्त ने अपनी भक्ति की परीक्षा दी थी. अपने दस सिरों की बलि देकर रावण ने लिख दी भक्ति और आस्था की नई कहानी, लेकिन रावण से एक भूल हो गई.


हिमाचल की खूबसूरत और हरी-भरी वादियों में धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसा प्राचीन शिव मंदिर महादेव के सबसे बड़े भक्त की भक्ति की कहानी सुनता है. यहीं पर स्थापित है वो शिवलिंग, जो देखने में तो किसी भी आम शिवलिंग की तरह है. लेकिन इसका स्पर्श भक्तों को अनूठा एहसास देता है. इस शिवलिंग की आराधना भक्तों में असीम शक्ति भर देती है क्योंकि ये रावण का वो शिवलिंग है, जिसकी वो पूजा करता था. किवदंतियों की मानें तो रावण इसी शिवलिंग को अपने साथ लंका ले जाना चाहता था.
हिमाचल के कांगड़ा से 54 किमी और धर्मशाला से 56 किमी की दूरी पर बिनवा नदी के किनारे बसा है बैजनाथ धाम. जो अपने चारों ओर मौजूद प्राकृतिक सुंदरता की वजह । हर हर महादेव 🙏🏻

1#सावन माह में रविवार के उपाय पढ़िए लघु कथा 🙏👇


हिंदू धर्म में वार यानी दिन का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि हर एक दिन किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित होता है। इसी क्रम में रविवार का दिन भगवान सूर्य देव को समर्पित है। सनातन धर्म में मान्यता है कि सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। यह सभी ग्रहों में सबसे बलवान होता है। इस दिन भगवान सूर्य की विधि-विधान से पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही रविवार के दिन मां लक्ष्मी की भी आराधना करना शुभ माना जाता है। यह भी मान्यता है कि रविवार के दिन कुछ उपाय करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और हर मनोकामना पूरी करती हैं।कुंडली में सूर्य देव की स्थिति मजबूत होने से व्यक्ति को सुख, संपत्ति व यश की प्राप्ति होती है व बिगड़े काम भी बनने लगते हैं। ऐसे में ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुछ उपायों की मदद से जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं। आइए जानते हैं कि कौन-कौन से उपाय हैं, जो आपकी किस्मत के बंद दरवाजे खोल सकते हैं।।
रविवार के दिन सुबह उठकर स्नान करके सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देते हुए इस मंत्र का उच्चारण जरूर करना चाहिए- 'ओम सूर्याय नमः ओम वासुदेवाय नमः ओम आदित्य नमः' इससे सूर्य देवता प्रसन्न होकर हर मनोकामना को पूरी करते हैं।
इसके अलावा रविवार के दिन अपने घर के बाहरी दरवाजे के दोनों तरफ देसी घी का दीपक जलाना चाहिए। इसे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में वास करती हैं। यह दिन भी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अच्छा दिन माना जाता है।
रविवार के दिन दान करने के लिए भी शुभ दिन माना जाता है। इस दिन गुड़, दूध, चावल व कपड़ा का दान करने से भी सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं। इस दिन दान का भी विशेष महत्व है।
रविवार के दिन चंदन का तिलक जरूर लगाना चाहिए। ऐसा करना शुभ माना जाता है और महालक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। इसके साथ ही लाल कपड़े को जरूर शरीर में धारण करना चाहिए।
ये नुखसे आजमा कर अपनी किस्मत बदल सकते हैं।
बोलो सूर्य भगवान की जय 🙏

#1दुर्गा मां के 108 नाम🙏🏻👇









1.सती

2.साध्वी

3.भवप्रीता

4. भवानी

5. भमोचनी

6. आर्य

7. दुर्गा

8. जया

9. आद्या

10. त्रिनेत्र

11. शूलधारिणी

12. पिनाक धारिणी

13. चित्र

14. चन्द्रघण्टा

15. महातप

16. मन:

17. बुद्धि

18. अहंकार

19. चित्तरुपा

20. चिता

21. चिति

22. सर्वमन्त्रमयी

23. सत्ता

24. सत्यानन्द

25. अनन्ता

26. भवानी

27. भव्या

28. भव्या

29. अभव्या

30. सदागति

31. शांभवी

32. देवमाता

33. स्वरुपिणी चिन्ता

34. रत्नप्रिया

35. सर्वविद्या

36. दक्षिणायण

37. दक्षज्ञवानसिनी

38. अपर्णा

39. अनेकवर्णा

40. 41. पाटलावती

42. पट्टा परीधाना
43. कलमजिरंजीनी
44. अमय विक्रमा
45. ब्रुटा
46. ​​सुन्दरी
47. सुरसुन्दरी
48. वनदुर्गा
49. मातंगी
50. मतंगमुनिपूजिता
51. ब्राह्मी
52. माहेश्वरी
53. अन्द्री
54. कुमारी
55. वैष्णवी
56. चामुण्डा
57. वाराही
58. लक्ष्मीतंगी
59. पुरुषकृति
60. विमला
61. उत्कर्षिनी
62. ज्ञाना
63. क्रिया
64. नित्या
65. बुद्धि
66. बहुला
67. बहुलप्रेमी
68. सर्ववाहन
69. निशुंभशुंभहननी
70. महिषासुरमर्दिनी
71. मकरकटभहन्त्री
72. चण्डमुण्डविनाशिनी
73.समस्त राक्षसों का नाश
74. सर्वदानवघातिनी
75. सत्य
76. सर्वसशस्त्र
77. बहु-सशस्त्र
78. बहु-सशस्त्र
79. कुमारी
80 समस्त राक्षसों का नाश
81.कैशोरी
82. युवती
83. यति:
84. अप्रौढ़ा
85. प्रौढ़
86. वृद्धमाता
87. बलप्रदा
88. महोदरी
89. मुक्तकेशी
90. घोररुपा
91. महाबला
92. अग्निज्वाला
93. रौद्रमुखी
94. कालरात्रि
95. तपस्विनी
96. नारायण

97. भद्रकाली

98. विष्णुमाया

99. जलोदरी

100. शिवदूती

101. कराली

102. अनन्ता

103. परमेश्वरी

104. कात्यायनी

105. सावित्री

106. प्रत्यक्षा

107. ब्रह्मवादिनी

108. सर्वशास्त्रमयी

जानिये चरणमृत का महत्व🙏🙏❤️❤️🙋🙋🌹🌹 comment








अक्सर जब हम मंदिर जाते हैं तो पंडित जी हमें भगवान का चरणमृत देते हैं। क्या कभी हमने ये जानने की कोशिश की। कि चरणामृत का क्या महत्व है? शास्त्रों में कहा गया है –
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
विष्णोः पदोदकं पीत्वा पुनर्जन्म न विद्यते ।।

“अर्थात भगवान विष्णु के चरण का अमृत रूपी जल समस्त पाप-व्याधियों का शमन करने वाला है तथा औषधी के समान है। जो चरणामृत पीता है उसका पुन: जन्म नहीं होता है। जब भगवान का वामन अवतार हुआ, और वे राजा बलि की यज्ञशाला में दान लेने लगे तब उन्होंने तीन पग में तीन लोक नाप के लिए जब वे पहले पग में नीचे के लोक नाप के लिए और दूसरे में ऊपर के लोक नापने लगे तो जैसे ही ब्रह्म लोक उनके चरण में तो ब्रह्मा जी ने अपने कमंडल में से जल लेकर भगवान के चरण धोए और फिर चरणामृत को वापस अपने मंडल में रख लिया। वह चरणामृत गंगा जी बन गई, जो आज भी पूरी दुनिया के पापों को धोती है, ये शक्ति उनके पास कहां से आई ये शक्ति है भगवान के चरणों की। जिस पर ब्रह्मा जी ने सामान्य जल चढाया था पर स्टैज का स्पर्श होते ही गंगा जी बन गए। जब हम बाँके बिहारी जी की आरती गाते हैं तो कहते हैं – “चरणों से निकली गंगा प्यारी जिसने पूरी दुनिया तारीधर्म में इसे बहुत ही पवित्र माना जाता है तथा मस्तक से स्थापित करने के बाद इसे मनाया जाता है। चरणामृत का सेवन अमृत के समान माना जाता है। कहते हैं भगवान श्री राम के चरण धोकर उन्हें चरणमृत के रूप में स्वीकार कर केवट न केवल स्वयं भव-बाधा से पार हो गए बल्कि उन्होंने अपने महत्वाकांक्षी को भी तार दिया। चरणामृत का जल हमेशा ब्रेंजा के पात्र में रखा जाता है। आयुर्वेदिक मतानुसार ब्रेज़ेन के पात्र में कई अभियुक्तों को नष्ट करने की शक्ति होती है जो जल में रखे जाते हैं। उस जल का सेवन करने से शरीर में कॉम्पिटिशन से महिलाओं की क्षमता पैदा हो जाती है और बीमारी नहीं होती। इसमें तुलसी के पत्ते डालने की परंपरा भी है जिससे इस जल की रोगनाशक क्षमता और बढ़ जाती है। तुलसी के पत्तों पर जल परिमाण में सरसों का दाना डूब जाना चाहिए। ऐसा माना जाता है कि तुलसी चरणामृत लेने से मेधा, बुद्धि, स्मरण शक्ति प्राप्त होती है। इसीलिए यह मान्यता है कि भगवान का चरणामृत औषधी के समान है। यदि इसमें तुलसी पत्र भी मिला दिया जाए तो उसके औषधीय गुणों में और भी वृद्धि हो जाती है। कहते हैं सीधे हाथ में तुलसी चरणामृत ग्रहण करने से हर शुभ कार्य या अच्छे काम का परिणाम जल्द मिलता है। इसलिए चरणामृत हमेशा सीधे हाथ से लेते हैं, लेकिन चरणमृत लेने के बाद ज्यादातर लोगों की यह आदत होती है कि वे अपने हाथ सिर पर फेरते हैं। चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं? विशेष रूप से शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना नहीं माना जाता है। कहते हैं कि इस विचार में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती जा रही है। इसीलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ फेरना नहीं चाहिए।” लेकिन चरणामृत लेने के बाद ज्यादातर लोगों की यह आदत होती है कि वे अपना हाथ सिर पर फेरते हैं। चरणामृत लेने के बाद सिर पर हाथ रखना सही है या नहीं यह बहुत कम लोग जानते हैं? विशेष रूप से शास्त्रों के अनुसार चरणामृत लेकर सिर पर हाथ रखना नहीं माना जाता है। कहते हैं कि इस विचार में सकारात्मकता नहीं बल्कि नकारात्मकता बढ़ती जा रही है। इसलिए चरणामृत लेकर कभी भी सिर पर हाथ फेरना नहीं चाहिए।”

एक महिला की आदत थी कि हर रोज सोने से पहले लिखने कि...

मैं खुश हूं कि मेरा पति पूरी रात खर्राटे लेता पर रहता है, क्योंकि वह जिंदा है और मेरे पास है। ये ईश्वर का शुक्र है.....मैं खुश हूं कि मेरा बेटा सुबह सबेरे इस बात पर शाम करता है, कि रात भर मच्छर खटमल सोना नहीं देता। यानी वह रात को घर पर गुजारा करता है, आवारागर्दी नहीं करता। ईश्वर का शुक्र है.....
मैं खुश हूं कि दिन खत्म होने तक मेरा थकान से बुरा हाल हो जाता है। यानी मेरे दिन अंदर भर सख़्त काम करने की ताक़त और हिम्मत, सिर्फ ईश्वर की मेहर से है....मैं खुश हूं, कि हर महीने बिजली, गैस, पेट्रोल, पानी वगैरह का, अच्छा खासा टैक्स देना है। यानी ये सब चीजें मेरे पास, मेरे इस्तेमाल में हैं. अगर यह ना होता तो जीवन कितना मुश्किल होता ? ईश्वर का शुक्र है.....मैं खुश हूं कि हर साल त्योहारों पर मैं तोहफे में पर्स खाली हो जाता है। यानी मेरे पास चाहने वाले, मेरे अज़ीज़, रिश्ते, दोस्त, अपने हैं, जिन्हें तोहफा दे सु। अगर ये ना हो, तो जीवन कितना बेरौनक हो..? ईश्वर का शुक्र है.....मैं खुश हूं कि हर रोज अपने घर का झाडू पोछा करना है, और दरवाज़े-खिड़कियों को साफ करना है। शुक्र है, मेरे पास घर तो है. जिनके पास छत नहीं, उनका क्या हाल होगा ? ईश्वर का, शुक्र है....
प्रेरक उद्धरण

लक्ष्मी माता के 18 पुत्रो के नाम 🙏🏻🙏🏻👇

1.ॐ देवसखाय नम: 2. ॐ चिक्लीताय नम:

भक्ति स्टोरी घरेलू नुस्खे आदि 🙏🌹