पढ़िए निर्वस्त्र होकर राजमहल त्यागने वाली शिव भक्त रानी की कहानी।🙏🏻👇

मित्रो ये घोर कलि युग का समय है। इस विपत्ति काल मे हरिभजन का जरिया हे। जो भी मोक्ष को पाने के लिए जो हरि का नाम लेंगा हरी उसे बचाने के लिए इस कलियुग मे भगवान का रूप धारण करके हमे बचाने आते हे। इसी बातों लेकर हम आए हे कलियुग की कुस एसी कथा हे जिन्होने धर्मोमे हिन्दू की आस्था को ओर भी ज्यादा प्रबल किया था। एसी कड़ी मे हम लेकर आये है इस कलियुग की इस कथामे भगवान शिवकी भक्तनि जो पूरा दिन भगवान शिव की पुंजा करती रहती है ये भक्तनि। उसके हर सांस मे भगवान शिव बसे हुये थे। 
शिव भक्त रानी की कहानी। 
बारवी सदी मे अक्का महादेवी नाम की एक स्त्री भगवान शिव की भक्त थी। वह स्त्री भगवान शिव को अपना पति मानती थी। बालकाल से ही उन्होने अपने आपक पूरी तरह से भगवान शिव के नाम अपना जीवन समर्प्रित कर दिया था। जब वह स्त्री विवाह के लायक हुही तब वह एक राजा की नजर इन अक्का महादेवी पर उस राजा की नजर पड़ी। वो इतनी खूबसूरत थी की राजाने उसके मातापिता के सामने वह उसने विवाह का तुरंत ही प्रसात्व मूका की मौजे तुम्हारी ये पुत्री मुजे बहुत सुंदर ओर शुशील लगी इसलिए मे उनसे विवाह करना चाहता हु। ये बात सुनकर अक्का महादेवी की माता पिता ने उनके विवाह का इनकार कर दिया था। तब वह राजा ने वह महादेवी के मातापिताको धमकाकर उसके मातापिता ने उनकी शादी अक्का महादेवी से उनकी शादी करवाई। मातापिता का आज्ञा का पालन कराते हुहे महादेवी ने उस राजा के साथ के शादी तो करली लेकिन अपने पति राजा कौशिक को शारीरक सबंध से दुरही रखना को कहा उस महादेवी। राजा कौशिक उस महादेवी कई तरीके से उसके साथ प्रेम का निवेदन करता रहा लेकिन उस महादेवी हर बार एक ही बात कहती है मेरी शादी तो बहुत पहले से ही भगवान शिव के साथ हो गई है। यह कोई अक्का महादेवी कोई मतिभ्रम नहीं था यह उनके लिए बहुतही सच्ची बात थी। अक्का महादेवी से उनका कहन था की मेरी शादी पहले से ही भगवान शिव के साथ हो गई है। यह बात सुनकर राजा कौशिक ये बात सहन नहीं हुआ था। एकदिन राजा ने सोचा की एसी पत्नी को साथ रखनेमे कोई अर्थ नहीं है ओर कोईभि लाभ नहीं है। फिर राजा कई डीनो तक परेशान ही रहता ओर मनमे ही मनमे वह ये बात को लेकर हमेशा सोचता रहत है ओर उसे समाज नहीं आ रहा था की वह क्या करे पूरी तरह से राजा कौशिक इस बात को लेकर बहुत ही परेशान रहते थे। तब ये बात को लेकर उसे अक्का महादेवी को अपनी राजसभा मे बुलाया ओर राजसभा से उसे फैसला करने को कहा। जब सभा मे उस अक्का महादेवी को पूछा गया की तब उस महादेवी ने तभी भी कहती रही ही की मेरे पति कई ओर है। तभी राजा को गुस्सा आ गया। इसलिए राजा को गुस्सा आ गया की इतने सभी राजसभा मे सबा लोको के सामने कहा की मेरा पति राजा कौशिक नहीं बल्कि मेरे पति कई ओर है इस बात को लेकर राजा को गुस्सा आ गया। 800 साल पहले किस राजा को इस बात को सहन करनी की कोई आम बात नहीं थी। समाज मे इन सभी बातों का सामना करना कोई आसान नहीं था। तब उस राजा कौशिक ने कहा की अगर तुम्हारा विवाह किसी ओर के साथ हो गया है तो तुम मेरे साथ क्या कर रही हो जाओ यहा से तुम चली जाओ ये सब राजाने कहकर उसको राजदरबार से उसको निकाल दिया। तब अक्का महादेवी ने कहा थीखाई मई चली जाती हु ये बात कहकर अक्का देवी वहा से चली गई।  

भारतमे भी उन दिनोमे यह महिलाओ के लिए ये सोचनाभी निश्वार्थ था की वह हमेशा के लिए अपने पति का घर छोड़कर वह से भाग सकती है। लेकिन यह महादेवी अक्का वह से चल पड़ी। जब राजा कौशिक ने देखा की अक्का बिना कोई विरोध से उसे छोड़कर जा रही है तब राजा को क्रोध के कारण उसके मनमे ध्रुनता आ गई। तब उस राजा ने महादेवी को कहा जो तुमने कुस पहना हुआ है जो गहने, कपड़े ये सबकुस मेरा है ये सबकुस तुम यहा पर छोड़ दो फिर तुम यहा जा सकती हो। 17 ओर 18 साल की वह अक्का महादेवी ने अपने सभी गहने ओर सभी कपड़े वहा उतार दिये थे ओर वाहा से वो निर्वस्त्र ही वह से महादेवी चल पड़ी थी। उस दिन के बाद उन्हेनो वस्त्र को पहने से इनकार कर दिया था। तब उस महादेवी बहोत से लोगो ने उसे समजाने की कोशिश की उन्हे वस्त्र पहनने चाहिए। क्यूकी उनसे हम ओर तुमको भी बहुत परेशानी हो सकती है। लेकिन उस महादेवी ने इन सभी बातो पर की ध्यान नहीं दिया था। तब वह घने जंगलो से होते हुहे वह कर्नाटक के विदार जिल्ले मे से एक कल्याण वह पुहञ्च गई। कर्नाटक का वह शहर भगवान शिव के नामसे वह बहुत ही प्रसिद्ध था। वह उसके बाद वह आध्यामिक सर्च मे वह भाग लेना का प्रयास करती रही। धिरे धीरे महादेवी के नाम का आध्यामिक का वर्णन का प्रसार होने लगा था। जिसे प्रभावित होकर उसे महादेवी को बहुत ही बड़ी महानता दी थी। तब उनकी सादगी, ईश्वर, निष्ठा, प्रेम, करुणा ओर नम्रता से ये सभी उस महादेवी के अंदर देखकर सभी साधू संतो, ऋषि इन सभी उसपर बड़ाही प्रभावित हुहे थे। इन सभी कारण उसे अक्का महादेवी यानि की बड़ी महदेवी के नामसे उसे सन्मानित किया गया था। तब से शिव भक्तनि महादेवी अक्का महादेवी के नाम से वह जानने लगी। उसके कुस दिनो के बाद वह एंकात मे भगवान शिव भक्ति वह लिन हो गई थी। लेकिन जब महादेवी का भगवान शिव के साथ तब उसका एकाग्रता नहीं हो पाया तब वह कल्याण से श्रीसेलम वह पुहञ्च गई। जहा भगवान सैन्य मलिकार्जुन का मंदिर था। श्रीसेलम के अनादर उस घने जंगल के बीच वह बद्रीनाथ पर रेगिस्तान पर वहा एक गुफा थी। तब अक्का महादेवी उस गुफा मे चरण लेली ओर वह भगवान शिव की पूंजा करने लगी। तब वहा एकाग्रता मे होकर वह भगवान शिव के प्रति वह लिन हो गई तब वहा भगवान शिव के लिंग मे वहा समा गई। 
तो मित्रो आपको आजकी इस कलियुग की कथा आपको कैसी लगी। उम्मीद करता हु की आजकी कथा आपको अच्छी ही लगी होंगी। तो दोस्तो हम आपसे फिर से मिलती है इस एसी कलियुग की कथा के साथ। नमस्कार दोस्तो। जय श्री कृष्णा।


कथा:जो लोग निस्वार्थ भाव से भक्ति करते हैं, उन्हें मिलती है भगवान की कृपा🙏🏻🌹


पुराने समय में एक ग्वाले ने संत को तप करते हुए देखा, संत ने बताया ऐसा करने भगवान के दर्शन मिलते हैं, ये सुनकर ग्वाले ने तप करना शुरू कर दिया।
एक ग्वाला रोज गायों को चराने गांव से बाहर जंगल में जाता था। जंगल में एक संत का आश्रम था। वहां संत रोज तप, ध्यान, मंत्र जाप करते थे। ग्वाला रोज संत को देखता तो उसे समझ नहीं आता था कि संत ये सब क्यों करते हैं?

ग्वाले की उम्र कम थी। संत के इन कर्मों को समझने के लिए वह आश्रम में पहुंचा और संत से पूछा कि आप रोज ये सब क्या करते हैं?

संत ने बताया कि मैं भगवान को पाने के लिए भक्ति करता हूं। रोज पूजा-पाठ, तप, ध्यान और मंत्र जाप करने से भगवान के दर्शन हो सकते हैं।

संत की बात सुनकर ग्वाले ने सोचा कि मुझे भी भगवान के दर्शन करना चाहिए। ये सोचकर ग्वाला आश्रम से निकलकर एक सुनसान जगह पर पेड़ के नीचे एक पैर पर खड़े होकर तप करने लगा। कुछ देर बार उसने सांस लेना भी बंद कर दिया। ग्वाले ने सोचा कि जब तक भगवान दर्शन नहीं देंगे, मैं ऐसे ही रहूंगा।

छोटे से भक्त की इतनी कठिन तपस्या से भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न हो गए। वे ग्वाले के सामने प्रकट हुए और बोले कि पुत्र आंखें खोलो, मैं तुम्हारे सामने आ गया हूं।

ग्वाले ने आंखें खोले बिना ही पूछा कि आप कौन हैं?

भगवान बोले कि मैं वही ईश्वर हूं, जिसके दर्शन के लिए तुम तप कर रहे हो।

ये सुनकर ग्वाले ने आंखें खोल लीं, लेकिन उसने ईश्वर को कभी देखा नहीं था। वह सोचने लगा कि क्या ये ही वो भगवान हैं?

सच जानने के लिए उसने भगवान को एक पेड़ के साथ रस्सी से बांध दिया। भगवान भी भक्त के हाथों बंध गए।

ग्वाला तुरंत दौड़कर उस संत के आश्रम में पहुंच गया और पूरी बात बता दी। संत ये सब सुनकर हैरान थे। वे भी तुरंत ही ग्वाले के साथ उस जगह पर पहुंच गए।

संत उस पेड़ के पास पहुंचे तो वहां कोई दिखाई नहीं दिया। भगवान सिर्फ ग्वाले को दिखाई दे रहे थे। संत ने बताया कि मुझे तो यहां कोई दिखाई नहीं दे रहा है तो ग्वाले ने भगवान से इसकी वजह पूछी।
भगवान ने कहा कि मैं उन्हीं इंसानों को दर्शन देता हूं जो निस्वार्थ भाव से मेरी भक्ति करते हैं। जिन लोगों के मन में कपट, स्वार्थ, लालच होता है, उन्हें मैं दिखाई नहीं देता।

सीख - जो लोग भगवान की भक्ति निजी स्वार्थ की वजह से करते हैं, उन्हें भगवान की कृपा नहीं मिल पाती है। निस्वार्थ भाव से की गई भक्ति ही सफल होती है।🙏🏻

1#सावन माह में अधिक मास में करे ले काम होगी सारी मनोकामना पूरी 🙏🏻

< धिकमास में एकादशी का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. ये व्रत 3 साल में एक बार आता है. अधिकमास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष के जल-दूध से सीचें और शाम को इसमें दीपक लगाकर इस मंत्र का जाप करें -><मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे। अग्रत: शिवरूपाय वृक्षराजाय ते नम:।। आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदम्। देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।।<1::अधिकमास में ये उपाय करने से धन की कमी दूर होती है. आर्थिक स्थिति में सुधार होता है. साधक पूर्वजों के आशीर्वाद से कई गुना तरक्की करता ><अधिकमास में तीर्थ स्नान करने से आरोग्य और अमृत की प्राप्ति होती है. अधिकमास के शेष दिनों में किसी तीर्थ स्थल पर पवित्र नदी में स्नान जरुर करें. ये उपाय आपको मोक्ष की प्राप्ति कराएगा।::अधिकमास में सुहाग की सामग्री, अन्न, धन, कपड़े का दान करें. इससे कभी न खत्म होने वाला पुण्य मिलता है. दुख और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है..>पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻<

लक्ष्मी माता के 18 पुत्रो के नाम 🙏🏻🙏🏻👇

1.ॐ देवसखाय नम: 2. ॐ चिक्लीताय नम:

भक्ति स्टोरी घरेलू नुस्खे आदि 🙏🌹