पढ़िए निर्वस्त्र होकर राजमहल त्यागने वाली शिव भक्त रानी की कहानी।🙏🏻👇

मित्रो ये घोर कलि युग का समय है। इस विपत्ति काल मे हरिभजन का जरिया हे। जो भी मोक्ष को पाने के लिए जो हरि का नाम लेंगा हरी उसे बचाने के लिए इस कलियुग मे भगवान का रूप धारण करके हमे बचाने आते हे। इसी बातों लेकर हम आए हे कलियुग की कुस एसी कथा हे जिन्होने धर्मोमे हिन्दू की आस्था को ओर भी ज्यादा प्रबल किया था। एसी कड़ी मे हम लेकर आये है इस कलियुग की इस कथामे भगवान शिवकी भक्तनि जो पूरा दिन भगवान शिव की पुंजा करती रहती है ये भक्तनि। उसके हर सांस मे भगवान शिव बसे हुये थे। 
शिव भक्त रानी की कहानी। 
बारवी सदी मे अक्का महादेवी नाम की एक स्त्री भगवान शिव की भक्त थी। वह स्त्री भगवान शिव को अपना पति मानती थी। बालकाल से ही उन्होने अपने आपक पूरी तरह से भगवान शिव के नाम अपना जीवन समर्प्रित कर दिया था। जब वह स्त्री विवाह के लायक हुही तब वह एक राजा की नजर इन अक्का महादेवी पर उस राजा की नजर पड़ी। वो इतनी खूबसूरत थी की राजाने उसके मातापिता के सामने वह उसने विवाह का तुरंत ही प्रसात्व मूका की मौजे तुम्हारी ये पुत्री मुजे बहुत सुंदर ओर शुशील लगी इसलिए मे उनसे विवाह करना चाहता हु। ये बात सुनकर अक्का महादेवी की माता पिता ने उनके विवाह का इनकार कर दिया था। तब वह राजा ने वह महादेवी के मातापिताको धमकाकर उसके मातापिता ने उनकी शादी अक्का महादेवी से उनकी शादी करवाई। मातापिता का आज्ञा का पालन कराते हुहे महादेवी ने उस राजा के साथ के शादी तो करली लेकिन अपने पति राजा कौशिक को शारीरक सबंध से दुरही रखना को कहा उस महादेवी। राजा कौशिक उस महादेवी कई तरीके से उसके साथ प्रेम का निवेदन करता रहा लेकिन उस महादेवी हर बार एक ही बात कहती है मेरी शादी तो बहुत पहले से ही भगवान शिव के साथ हो गई है। यह कोई अक्का महादेवी कोई मतिभ्रम नहीं था यह उनके लिए बहुतही सच्ची बात थी। अक्का महादेवी से उनका कहन था की मेरी शादी पहले से ही भगवान शिव के साथ हो गई है। यह बात सुनकर राजा कौशिक ये बात सहन नहीं हुआ था। एकदिन राजा ने सोचा की एसी पत्नी को साथ रखनेमे कोई अर्थ नहीं है ओर कोईभि लाभ नहीं है। फिर राजा कई डीनो तक परेशान ही रहता ओर मनमे ही मनमे वह ये बात को लेकर हमेशा सोचता रहत है ओर उसे समाज नहीं आ रहा था की वह क्या करे पूरी तरह से राजा कौशिक इस बात को लेकर बहुत ही परेशान रहते थे। तब ये बात को लेकर उसे अक्का महादेवी को अपनी राजसभा मे बुलाया ओर राजसभा से उसे फैसला करने को कहा। जब सभा मे उस अक्का महादेवी को पूछा गया की तब उस महादेवी ने तभी भी कहती रही ही की मेरे पति कई ओर है। तभी राजा को गुस्सा आ गया। इसलिए राजा को गुस्सा आ गया की इतने सभी राजसभा मे सबा लोको के सामने कहा की मेरा पति राजा कौशिक नहीं बल्कि मेरे पति कई ओर है इस बात को लेकर राजा को गुस्सा आ गया। 800 साल पहले किस राजा को इस बात को सहन करनी की कोई आम बात नहीं थी। समाज मे इन सभी बातों का सामना करना कोई आसान नहीं था। तब उस राजा कौशिक ने कहा की अगर तुम्हारा विवाह किसी ओर के साथ हो गया है तो तुम मेरे साथ क्या कर रही हो जाओ यहा से तुम चली जाओ ये सब राजाने कहकर उसको राजदरबार से उसको निकाल दिया। तब अक्का महादेवी ने कहा थीखाई मई चली जाती हु ये बात कहकर अक्का देवी वहा से चली गई।  

भारतमे भी उन दिनोमे यह महिलाओ के लिए ये सोचनाभी निश्वार्थ था की वह हमेशा के लिए अपने पति का घर छोड़कर वह से भाग सकती है। लेकिन यह महादेवी अक्का वह से चल पड़ी। जब राजा कौशिक ने देखा की अक्का बिना कोई विरोध से उसे छोड़कर जा रही है तब राजा को क्रोध के कारण उसके मनमे ध्रुनता आ गई। तब उस राजा ने महादेवी को कहा जो तुमने कुस पहना हुआ है जो गहने, कपड़े ये सबकुस मेरा है ये सबकुस तुम यहा पर छोड़ दो फिर तुम यहा जा सकती हो। 17 ओर 18 साल की वह अक्का महादेवी ने अपने सभी गहने ओर सभी कपड़े वहा उतार दिये थे ओर वाहा से वो निर्वस्त्र ही वह से महादेवी चल पड़ी थी। उस दिन के बाद उन्हेनो वस्त्र को पहने से इनकार कर दिया था। तब उस महादेवी बहोत से लोगो ने उसे समजाने की कोशिश की उन्हे वस्त्र पहनने चाहिए। क्यूकी उनसे हम ओर तुमको भी बहुत परेशानी हो सकती है। लेकिन उस महादेवी ने इन सभी बातो पर की ध्यान नहीं दिया था। तब वह घने जंगलो से होते हुहे वह कर्नाटक के विदार जिल्ले मे से एक कल्याण वह पुहञ्च गई। कर्नाटक का वह शहर भगवान शिव के नामसे वह बहुत ही प्रसिद्ध था। वह उसके बाद वह आध्यामिक सर्च मे वह भाग लेना का प्रयास करती रही। धिरे धीरे महादेवी के नाम का आध्यामिक का वर्णन का प्रसार होने लगा था। जिसे प्रभावित होकर उसे महादेवी को बहुत ही बड़ी महानता दी थी। तब उनकी सादगी, ईश्वर, निष्ठा, प्रेम, करुणा ओर नम्रता से ये सभी उस महादेवी के अंदर देखकर सभी साधू संतो, ऋषि इन सभी उसपर बड़ाही प्रभावित हुहे थे। इन सभी कारण उसे अक्का महादेवी यानि की बड़ी महदेवी के नामसे उसे सन्मानित किया गया था। तब से शिव भक्तनि महादेवी अक्का महादेवी के नाम से वह जानने लगी। उसके कुस दिनो के बाद वह एंकात मे भगवान शिव भक्ति वह लिन हो गई थी। लेकिन जब महादेवी का भगवान शिव के साथ तब उसका एकाग्रता नहीं हो पाया तब वह कल्याण से श्रीसेलम वह पुहञ्च गई। जहा भगवान सैन्य मलिकार्जुन का मंदिर था। श्रीसेलम के अनादर उस घने जंगल के बीच वह बद्रीनाथ पर रेगिस्तान पर वहा एक गुफा थी। तब अक्का महादेवी उस गुफा मे चरण लेली ओर वह भगवान शिव की पूंजा करने लगी। तब वहा एकाग्रता मे होकर वह भगवान शिव के प्रति वह लिन हो गई तब वहा भगवान शिव के लिंग मे वहा समा गई। 
तो मित्रो आपको आजकी इस कलियुग की कथा आपको कैसी लगी। उम्मीद करता हु की आजकी कथा आपको अच्छी ही लगी होंगी। तो दोस्तो हम आपसे फिर से मिलती है इस एसी कलियुग की कथा के साथ। नमस्कार दोस्तो। जय श्री कृष्णा।


कथा:जो लोग निस्वार्थ भाव से भक्ति करते हैं, उन्हें मिलती है भगवान की कृपा🙏🏻🌹


पुराने समय में एक ग्वाले ने संत को तप करते हुए देखा, संत ने बताया ऐसा करने भगवान के दर्शन मिलते हैं, ये सुनकर ग्वाले ने तप करना शुरू कर दिया।
एक ग्वाला रोज गायों को चराने गांव से बाहर जंगल में जाता था। जंगल में एक संत का आश्रम था। वहां संत रोज तप, ध्यान, मंत्र जाप करते थे। ग्वाला रोज संत को देखता तो उसे समझ नहीं आता था कि संत ये सब क्यों करते हैं?

ग्वाले की उम्र कम थी। संत के इन कर्मों को समझने के लिए वह आश्रम में पहुंचा और संत से पूछा कि आप रोज ये सब क्या करते हैं?

संत ने बताया कि मैं भगवान को पाने के लिए भक्ति करता हूं। रोज पूजा-पाठ, तप, ध्यान और मंत्र जाप करने से भगवान के दर्शन हो सकते हैं।

संत की बात सुनकर ग्वाले ने सोचा कि मुझे भी भगवान के दर्शन करना चाहिए। ये सोचकर ग्वाला आश्रम से निकलकर एक सुनसान जगह पर पेड़ के नीचे एक पैर पर खड़े होकर तप करने लगा। कुछ देर बार उसने सांस लेना भी बंद कर दिया। ग्वाले ने सोचा कि जब तक भगवान दर्शन नहीं देंगे, मैं ऐसे ही रहूंगा।

छोटे से भक्त की इतनी कठिन तपस्या से भगवान बहुत जल्दी प्रसन्न हो गए। वे ग्वाले के सामने प्रकट हुए और बोले कि पुत्र आंखें खोलो, मैं तुम्हारे सामने आ गया हूं।

ग्वाले ने आंखें खोले बिना ही पूछा कि आप कौन हैं?

भगवान बोले कि मैं वही ईश्वर हूं, जिसके दर्शन के लिए तुम तप कर रहे हो।

ये सुनकर ग्वाले ने आंखें खोल लीं, लेकिन उसने ईश्वर को कभी देखा नहीं था। वह सोचने लगा कि क्या ये ही वो भगवान हैं?

सच जानने के लिए उसने भगवान को एक पेड़ के साथ रस्सी से बांध दिया। भगवान भी भक्त के हाथों बंध गए।

ग्वाला तुरंत दौड़कर उस संत के आश्रम में पहुंच गया और पूरी बात बता दी। संत ये सब सुनकर हैरान थे। वे भी तुरंत ही ग्वाले के साथ उस जगह पर पहुंच गए।

संत उस पेड़ के पास पहुंचे तो वहां कोई दिखाई नहीं दिया। भगवान सिर्फ ग्वाले को दिखाई दे रहे थे। संत ने बताया कि मुझे तो यहां कोई दिखाई नहीं दे रहा है तो ग्वाले ने भगवान से इसकी वजह पूछी।
भगवान ने कहा कि मैं उन्हीं इंसानों को दर्शन देता हूं जो निस्वार्थ भाव से मेरी भक्ति करते हैं। जिन लोगों के मन में कपट, स्वार्थ, लालच होता है, उन्हें मैं दिखाई नहीं देता।

सीख - जो लोग भगवान की भक्ति निजी स्वार्थ की वजह से करते हैं, उन्हें भगवान की कृपा नहीं मिल पाती है। निस्वार्थ भाव से की गई भक्ति ही सफल होती है।🙏🏻

1#सावन माह में अधिक मास में करे ले काम होगी सारी मनोकामना पूरी 🙏🏻

< धिकमास में एकादशी का दिन बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. ये व्रत 3 साल में एक बार आता है. अधिकमास के कृष्ण पक्ष की परमा एकादशी के दिन पीपल के वृक्ष के जल-दूध से सीचें और शाम को इसमें दीपक लगाकर इस मंत्र का जाप करें -><मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरूपिणे। अग्रत: शिवरूपाय वृक्षराजाय ते नम:।। आयु: प्रजां धनं धान्यं सौभाग्यं सर्वसम्पदम्। देहि देव महावृक्ष त्वामहं शरणं गत:।।<1::अधिकमास में ये उपाय करने से धन की कमी दूर होती है. आर्थिक स्थिति में सुधार होता है. साधक पूर्वजों के आशीर्वाद से कई गुना तरक्की करता ><अधिकमास में तीर्थ स्नान करने से आरोग्य और अमृत की प्राप्ति होती है. अधिकमास के शेष दिनों में किसी तीर्थ स्थल पर पवित्र नदी में स्नान जरुर करें. ये उपाय आपको मोक्ष की प्राप्ति कराएगा।::अधिकमास में सुहाग की सामग्री, अन्न, धन, कपड़े का दान करें. इससे कभी न खत्म होने वाला पुण्य मिलता है. दुख और दरिद्रता से मुक्ति मिलती है..>पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻🙏🏻<

1#बुरे वक़्त में भगवान् आपके साथ नहीं चलता क्योकि…🙏🏻


एक भक्त था वह भगवान को बहुत चित्रित करता था, बड़े प्रेम और भाव से उनकी सेवा करता था, एक दिन भगवान से कहा गया -

मैं आपकी इतनी भक्ति करता हूँ आज तक मुझे आपकी भावना नहीं हुई।
मैं चाहता हूं कि आप भी मुझे इस तरह की किसी चीज के दर्शन ना दे, ये अनुभव आपको अच्छा लगे,
भगवान ने कहा ठीक है।

रोज सुबह समुद्र के किनारे सैर पर जाते हो, जब तुम राइटर पर चलोगे तो दो पैरो की जगह चार पैर दिखाई देंगे,
दो पैर होगे और दो पैरो के निशान मेरे होगे।
इस तरह की मेरी भावना होगी अगले दिन वह सैर पर गई, जब वह दौड़ने के लिए दौड़ी तो उसे अपनी यात्रा के साथ-साथ दो पैर दिखाई दिए और वह बड़ा खुश हुआ, अब रोज ऐसा होने लगा।

एक बार उसे व्यापार में घाटा हुआ सब कुछ चला गया, वह सड़क पर आ गया उसके अपनो ने उसके साथ धोखा दिया।
देखो यही इस दुनिया की समस्या है, मुसीबतों में सब साथ छोड़ देता है। अब उसने उससे कहा तो चार जगहों की जगह दो पैर दिखाई दिए,
उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि भगवान ने साथ छोड़ दिया।
धीरे-धीरे सब कुछ ठीक हो गया फिर सब लोग उसके पास वापस आ गए।

एक दिन जब वह सैर पर गया तो उसने देखा कि चार पैर वापस दिखाई दे रहे हैं।
वह अब नहीं रहा, उसने कहा-
भगवान जब मेरा बुरा हुआ तो सबने मेरा साथ छोड़ दिया पर ये बात का गम नहीं था इस दुनिया में ऐसा होता है, पर तुमने भी उस वक्त मेरा साथ छोड़ा था, ऐसा क्यों किया?

भगवान ने कहा -
ऐसा कैसे सोचा कि मैं ग़रीबों के साथ दनाङ छोड़ आया हूँ, फ़े बैज़ वक्ता में जो रेत पर दो पैर के निशान देखे वे फ़ेफ़ के नहीं मेरे तीतरों के थे, उस वक़्त ग़रीबों ने अपने गोद में डेरा डाला था और आज जब ग़रीब बुरे थे समय समाप्त हो गया तो मैंने आपके नीचे अवतरण दिया है, इसलिए आपका फिर से चार पैर दिखाई दे रहा है।
हमेशा भगवान पर विश्वास बनाए रखें कांटों पर फूल खिलते हैं, विश्वास पर भगवान मिलते हैं।🙏🏻🌹पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद।

1#मासूम शिव भक्त की सच्ची कहानी 🙏🏻👇🌷🌹

शंकर एक अनाथ लड़का था। जंगल में रहने वाले शिकारियों ने पाला था । उसके पास कोई औपचारिक शिक्षा भी नहीं थी , केवल एक चीज पता थी की वह कैसे जीवित हैं । शिकार करना और जंगल के पेड़ो को खाना नदी का पानी पीना अपने आप को जीवित रखना।
एक दिन वह रास्ता भटक गया , उसने देखा की कुछ लोग नदी किनारे पत्थर की चोटी पर बने शिवलिंग के चारों तरफ़ जोर जोर से चिल्ला रहे थे । यह पर प्राचीन मंदिर था पर शंकर ने उसे कभी नहीं देखा था । और उसके बारे में जानने के लिए काफ़ी उत्सुक था ।
वह तब तक इंतजार करती रही जब तक कि लगभग सभी लोग उस मंदिर से नहीं गए। अंत में उसने एक युवा लड़के को पत्थर की इमारत से बाहर जाकर देखा और बात करने का निर्णय लिया और शंकर ने उससे अपने मन में कई प्रश्न पूछे।

उनका पहला प्रश्न था, ''इस इमारत को क्या कहा जाता है?'' लोग अपने साथ क्या ले जाते हैं? फिर उन नीड़ को अंदर वाली बिल्डिंग में क्यों छोड़ कर जाना है?”

नीस को अपने साथ लाना और उन्हें अंदर छोड़ कर डेनमार्क चले जाने पर वह लड़का शंकर की अज्ञानता व मासूमियत पर बहुत ही आश्चर्यचकित था और उसकी तस्वीरों से चकित भी था, लेकिन उसे नहीं पता था कि वह पास के जंगल में रहती है और शिकार करती है करके ही अपना जीवन यापन करता है। लेकिन फिर भी उसने अपने सवालों के जवाब देने की पूरी कोशिश की। उन्होंने शंकर को बताया, “यह भगवान शिव का मंदिर है।” लोग यहां उन्हें फल और फूल चढाने आते हैं। वे शिव भगवान से जो चाहते हैं वे मांगते हैं और शिव उनकी सभी प्रार्थनाओं को सुनते हैं।"

इससे आश्चर्यचकित शंकर तुरंत मंदिर जाना चाहते थे। लड़के ने उसे अंदर का रास्ता दिखाया और लिपि के बारे में बताया। शंकर ने मासूमियत से लड़के से पूछा। “यह शिवलिंग क्या चीज़ है?” और हमें क्या देता है?” लड़के ने कहा, "हम शिव से जो मांगते हैं, वह हमें देता है, हम सब ऐसा मानते हैं।" लड़के ने कहा “अब अँधेरा हो रहा है।” अब मुझे घर जाना होगा।” और वह शंकर को अकेले अकेले छोड़ दिया गया।

शंकर ने झिझकते हुए मंदिर में फिर से प्रवेश किया। वह एक कोने में बैठी और सोचने लगी, "एक पत्थर की कोई भी चीज़ जिसे चाहिए उसे कैसे दी जा सकती है?" इसलिए उसने इसका परीक्षण करने का निर्णय लिया और उसने पत्थर की मूर्ति से कहा, “हे शिव! कृपया मुझे संतुष्ट करने का निर्देश दें ताकि मैं भूखा न रहूं। मेरे पास आपके लिए कोई फल या फूल नहीं है, लेकिन यदि आप मुझे शिकार देते हैं, तो मैं उसके साथ साझा करूंगा। मैं वादा करता हूं कि मैं आपको धोखा नहीं दूंगा।'' उन्होंने की घोषणा.
अगली सुबह शंकर शिकार करने गया। वह पूरे दिन शिकार की तलाश में रहा, लेकिन उसे कोई शिकार नहीं मिला। वह भूख से तिल मिला रही थी। वह काफी निराश हो गया था क्योंकि उसका कोई शिकार नहीं हुआ था। दो होले थी। अब उसे लगा कि टेम्पल के लड़के ने एक बार फिर से शिकार जारी किया है। जैसे ही शाम हुई, उसने दो खरगोशों को अपने बिल में देखा। शंकर ने उन खरगोशों को मार डाला। उसने भगवान से वादा किया था कि वह अपने शिकार को साझा करने के लिए, एक मंदिर के साथ खरगोशों को लेकर आया था।

देर हो चुकी थी और मंदिर सुनसान था। शंकर ने मंदिर में प्रवेश किया और जोर से कहा, "कृपया आओ और अपना हिस्सा ले लो प्रभु।" आप के लिए मैं लाया हूँ।"

वह वहाँ बैठा और अँधेरा होने तक प्रतीक्षा करने लगा, परन्तु भगवान प्रकट नहीं हुए। शंकर को भूख और नींद आने लगी और उसने खरगोश को मंदिर में छोड़ने का फैसला किया।

अगली सुबह जब लोग मंदिर पहुंचे तो उनके सामने शिवलिंग मिला। भक्त बहुत थे। “यह यहाँ कौन लाया है?” उसने हमारे मंदिर को अपवित्र करने की महिमा कैसे की?” उन्होंने खरगोश को बाहर निकाल दिया
अगले दिन शंकर अपनी भूख हड़ताल के लिए जंगल में शिकार करने गया। परन्तु इस बार उसकी किस्मत अच्छी नहीं थी और उसका शिकार भी नहीं हुआ। उसने सोचा, "आज रात को मंदिर जाना चाहिए और शिव से पूछना चाहिए कि खरगोश का भोजन कैसा लगा?" शंकर यह मंदिर के लिए गोदाम में रखा गया था। जब वह मंदिर पहुंचा तो उसके आश्चर्य का कोई विशेषज्ञ नहीं रहा। उस रात मंदिर में लोगों की काफी भीड़ थी। शिवरात्रि की रात थी। लेकिन अबोध शिकारी लड़के के बारे में भी कुछ नहीं पता।

शंकर ने चारों ओर देखा और उस युवक को जिसने मंदिर के अंदर शिव से प्रार्थना करने के लिए कहा था। इतने सारे लोगों को आस-पास रहने की आदत नहीं थी, जहां उन्हें अनसुना करने का फैसला किया गया और पास के एक बेल के पेड़ पर चढ़ा दिया गया। यह एक प्रतीक्षा थी और समय बिताने के लिए उसने पेड़ से पत्ते वाली ज़मीन पर फ़ेकना शुरू कर दिया। उसे अज्ञात, पेड़ के नीचे एक छोटा सा शिवलिंग था, पूजा लंबे समय से नहीं की गई थी। शंकर के द्वारा नकली बेल के पत्ते पर उस लिंग को गिरा दिया गया। शंकर भजनों से मंत्रमुग्ध हो गया और धीरे-धीरे-धीर साथ गाना और पंचाक्षरी मंत्र का जाप शुरू कर दिया।

रात में भोर हो गई और सभी भक्त मंदिर से चले गए। शंकर वृक्ष से उतरा और मंदिर में प्रवेश। उसने देखा कि भाषा की आँखों पर लाल निशान थे। वे कुमकुम के थे जो लोगों ने रखे थे, लेकिन शंकर को यकीन था कि शिव की नजर में परेशानी हो रही है। उसने शिव की गुप्त स्थिति के बारे में पूछा, जिसे भी कुछ महसूस हुआ, उससे उसे बहुत दुख हुआ। वह उनकी मदद करना चाहता था। उसने सोचा “शिव यहाँ अकेले रहते हैं और बीमार हैं और उनकी देखभाल करने वाला कोई नहीं है।” जब तक भक्त उनसे नहीं मिलते, फ़ियाख़ा खाना भी नहीं।”
शंकर ने एक रात पहले भक्तों को जल चढ़ाते देखा था। “प्रभु को ठंड लग रही होगी।” शायद वे कांप रहे हैं,'' उसने सोचा। “आख़िरकार, वे केवल बेचैन से ही जुड़े हुए हैं!”

तो उसने शिव से पूछा, “मेरे स्वामी, मैं आपकी क्या मदद कर सकता हूँ?” शायद कुछ खाना या दवा? मैं आपकी सेवा कैसे कर सकता हूँ?” शिव ने उसे कोई उत्तर नहीं दिया।

शंकर ने सोचा। “भगवान वास्तव में बहुत बीमार हैं क्योंकि वह अब उत्तर में भी अशक्त हैं!”
।वह तुरंत जंगल में चला गया, कुछ औषधीय जड़ी-बूटियाँ लाया और लाल निशान पर अपना लेप लगाया। लेकिन कुछ नहीं हुआ! उन्होंने कहा, “लगता है कि ये अंधेरा हो गया है! मुझे प्रभु को अपनी एक आंख दिखाना चाहिए ताकि वह ठीक हो जाए। यह निश्चित रूप से से प्यारा प्यार कर देगा!''

उनका हृदय पवित्र था और उन्होंने वहां शिव के हाथ में त्रिशूल उठाया और त्रिशूल को दाहिनी आंख की ओर ले गए और अपनी आंख निकालने का प्रयास किया। शंकर अनपढ़ थे, उन्हें मंत्रों या पूजा के बारे में कोई ज्ञान नहीं था, लेकिन उनकी भक्ति की कोई सीमा नहीं थी। जैसे ही वह अपनी आंख निकालने वाला था, शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ प्रकट हुए। उन्होंने पार्वती से कहा, "इस भक्त शंकर ने शिवरात्रि पर उपवास में, बेल के शिष्यों से मेरी पूजा की और साबित किया कि उनका दिल बेदाग और पवित्र है।" मैं अपने इस भक्त पर काफी पसंद हूँ।”

शिव भगवान ने शंकर से कहा, "तुमने मुझे अपनी मासूमियत के कारण जीत लिया है," प्रभु ने कहा, "मैं हर समय आपसे वादा करता रहता हूं, और कुछ न कुछ मेरे मांगते रहते हैं, जैसे ही या मेरे पास एक स्थायी चीज मिल जाती है तो वे लोग मुझे भूल जाते हैं।" दूसरी ओर, मैंने मेरे साथ एक सात्विक इंसान जैसा व्यवहार किया, और यह वास्तव में बहुत ही दुर्लभ है। अब से तुम मेरे इस दुनिया में सबसे बड़े भक्त माने साथी और अतिथि नाम मेरे साथ सदा विश्वास में रहेंगे। तुम कई सालों तक जीवित रहोगे। इस बात को उद्घाटित करते हुए भगवान शिव व माँ पार्वती अंतर्ध्यान हो गए थे। तभी से लोग शिव के साथ शंकर भी बने रहे।
Please full article read 🙏🏻 ॐ नमः शिवाय 🌷

#1इस कहानी से पता लग सकता हैं कि भगवान आपके साथ हैं या नहीं 🙏🏻🌹👇

कहते है भगवान हर जगह मौजूद हैं बस देखने का नजरिया होना चाहिए, हमारे देश में अनेक भगवान पूजे जातें हैं , आज हमआपके लिए एक भगवान और भक्त की अनोखी कहानी लेकर आए हैं , जिसे सुनने के बाद आपकी भक्ती कई गुना बढ़ जाएगी ,
जन्म से पहले बच्चा कहता हैं प्रभु आप मुझे नया जीवन मत दीजिए, पृथ्वी पर बुरे लोग रहते हैं  मैं वह बिल्कुल, भी नहीं जाना चाहता,
यह कह कर बच्चा उदास हो कर बैठ गया।
भगवान स्नेह पूर्वक उसके सिर पर हाथ फेरते है, और सृष्टि के नियमानुसार जन्म लेने का महत्त्व समझाते हैं 
कुछ देर मना कर ने के बाद बच्चा मान जाता हैं।
लेकिन वह कहता हैं आपको मुझसे एक वादा करना होगा ..

भगवान _ बोलो पुत्र तुम क्या चाहते हो ?
बच्चा _ आप वचन दीजिए की जब तक मैं पृथ्वी पर रहूंगा आप मेरे साथ रहेंगे .

भगवान_अवश्य ऐसा ही होगा.

बच्चा _पृथ्वी पर आप तो अदृश्य रूप में जाते हों , मुझे कैसे पता चलेगा आप मेरे साथ मे हों?

भगवान _जब तुम आंखे बंद करोगे तब तुम्हें मेरे पैरों के पद चिन्ह मिलेंगे , उन्हें देख कर तुम समझ जाना कि मैं तुम्हारे साथ हूं.
फिर उस बच्चे का जन्म होता हैं, उसके बाद वह सांसारिक बातों में उलझ कर भगवान से हुऐ वार्तालाप को भूल जाता है, उसे मरते समय ये बात याद आती हैं,
वह भगवान के वचन की पुष्टि करना चाहता हैं .
जब वह आंखे बन्द करके जीवन को याद करता है 
तब उसे जन्म के समय से ही दो जोड़ी पैरों के निशान दिखाई देते हैं लेकिन जब उसका बुरा वक्त चलता हैं तब उसे एक जोड़ी पैरों के निशान दिखाई देते है
यहां देख कर वह दुखी हो जाता हैं .

बच्चा कहता हैं प्रभु आपने वचन नहीं निभाया 
उस वक्त अकेला छोड़ दिया जब मुझे आपकी 
सबसे जादा जरूरत थी. बच्चा मरने के बाद भगवान के पास पहुंचता है और बोलता है प्रभु आपने कहा था आप हर वक्त मेरे साथ रहोगे .


मुसीबत के समय मुझे आपके पैरों के निशान दिखाई नहीं दे रहे थे . भगवान मुस्कुराए और बोले पुत्र जब तुम कठिन परिस्थिति से गुजर रहे थे तब . तब मेरा ह्रदय द्रवित हो उठा मैंने तुम्हें अपनी गोद में उठा लिया .
इस वजह से तुम्हें मेरे पैरों के पद चिन्ह दिखाई नहीं दे रहे हैं .




कहानी से सीख :



दोस्तों इस कहानी से हमें यह सीख मिली की भगवान हर जगह हमारे साथ रहते हैं . कई बार हमारी ज़िंदगी में बुरा समय आता है लेकिन कुछ समय बाद सब ठीक हों जाता हैं . हम सोचते हैं हमारे साथ कुछ बुरा होने वाला हैलेकिन जितना सोचते हैं उतना होता नही है.
क्युकी वह परमपिता परमात्मा हमारे साथ हर वक्त रहता हैं। हर हर महादेव 🙏🏻🌹

1#कहानी जिसे पढ़ के नास्तिक भी हों जाए आस्तिक 🙏🏻👇

बहुत से लोग नास्तिक होते हैं लेकिन फिर उनके साथ कुछ ऐसा हों जाता, वे भी भक्ती में विश्वास करने लगते हैं। पढ़िए नीचे दी गई कहानी 👇👇_

 

 



बहुत से लोग नास्तिक होते हैं, लेकिन फिर उनके साथ ऐसा कुछ होता है कि वे भगवान में विश्वास करने लग जाते हैं। नीचे दी गई कहानी कुछ यही संदेश देती है -



संसार में बहुत कम होते हैं ऐसे गुण वाले व्यक्ति, जानें क्या कहते हैं आचार्य चाणक्य
भोलानाथ शहर की एक छोटी-सी गली में रहता था। वह मेडिकल दुकान चलाता था। सारी दवाइयों की उसे अच्छी जानकारी थी। पूरी दुकान खुद संभालता था, इसलिए कौन-सी दवा कहां रखी है, उसे अच्छी तरह पता था।

वो पूरी ईमानदारी से अपना काम करता था। ग्राहकों को सही दवा, सही दाम पर देता था। सबकुछ अच्छा होने के बाद भी भोलानाथ नास्तिक था। भगवान में उसका जरा भी विश्वास नहीं था।

वह पूरा दिन दुकान पर काम करता और शाम को परिवार तथा दोस्तों के साथ समय गुजारता था। उसे ताश खेलने का शौक था। जब भी टाइम मिलता, दोस्तों के साथ ताश खेलने बैठ जाता था।
एक दिन वह दुकान पर था, तभी कुछ दोस्त आए। तभी भारी बारिश भी शुरू हो गई। रात हो गई थी, लेकिन सभी बारिश थमने का इंतजार कर रहे थे। बिजली भी चली गई थी। बैठे-बैठे क्या करें, सोचा मोमबत्ती की रोशनी में ताश ही खेल लेते हैं। सारे दोस्त दुकान में ताश खेलने बैठ गए।

सभी ताश में मगने थे, तभी एक लड़का दौड़ा-दौड़ा आया। वह पूरी तरह भीग चुका था। उसने जेब से दवा की एक पर्ची निकाली और भोलानाथ से दवा मांगी। भोलानाथ खेल में मगन था। उसने पहली बार में तो ध्यान ही नहीं दिया।

तभी लड़ने को जोर से आवाज देते हुए कहा, मेरी मां बहुत बीमार है। सारी दवा दुकानें बंद हो गई हैं। एक आपकी दुकान ही खुली है। आप दवा देंगे तो मेरी मां ठीक हो जाएगी।
भोलानाथ आधे-अधूरे मन से उठा, पर्ची देखी और अंदाज से दवा की एक शीशी उठाकर उसे दे दी। पैसे काटकर लड़के को लौटा दिए। लड़का भागते हुए चला गया।

तभी बारिश थम गई। भोलानाथ के दोस्त चले गए और भोलानाथ भी दुकान बंद करने लगा, तभी उसे ध्यान आया कि रोशनी कम होने के कारण उसने गलती से लड़के को चूहे मारने वाली दवा की शीशी दे दी है। भोलानाथ के हाथ-पांव फूल गए। उसका दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। उसकी दस साल की नेकी पर मानो जैसे ग्रहण लग गया।

उस लड़के बारे में वह सोच कर वह तड़पने लगा। सोचा यदि यह दवाई उसने अपनी बीमार मां को देगा, तो वह अवश्य मर जाएगी। लड़का भी बहुत छोटा होने के कारण उस दवाई को तो पढ़ना भी नहीं जानता होगा।
एक पल वह अपनी इस भूल को कोसने लगा और ताश खेलने की अपनी आदत को छोड़ने का निश्चय कर लिया पर यह बात तो बाद के बाद देखी जाएगी। अब क्या किया जाए ?

उस लड़के का पता ठिकाना भी तो वह नहीं जानता। कैसे उस बीमार मां को बचाया जाए ? सच कितना विश्वास था उस लड़के की आंखों में। भोलानाथ को कुछ सूझ नहीं रहा था। घर जाने की उसकी इच्छा अब ठंडी पड़ गई। दुविधा और बेचैनी उसे घेरे हुए था।

घबराहट में वह इधर-उधर देखने लगा। पहली बार उसकी नजर दीवार के उस कोने में पड़ी, जहां उसके पिता ने जिद्द करके भगवान श्रीकृष्ण की तस्वीर दुकान के उद्घाटन के वक्त लगाई थी।

तब पिता ने कहा था, भगवान की भक्ति में बड़ी शक्ति होती है, वह हर जगह व्याप्त है और हमें सदैव अच्छे कार्य करने की प्रेरणा देता है। भोलानाथ को यह सारी बात याद आने लगी। आज उसने इस अद्भुत शक्ति को आजमाना चाहा।

उसने कई बार अपने पिता को भगवान की तस्वीर के सामने कर जोड़कर, आंखें बंद करते हुए पूजते देखा था। उसने भी आज पहली बार कमरे के कोने में रखी उस धूल भरे कृष्ण की तस्वीर को देखा और आंखें बंद कर दोनों हाथों को जोड़कर वहीं खड़ा हो गया।

थोड़ी देर बाद वह छोटा लड़का फिर दुकान में आया। भोलानाथ के पसीने छूटने लगे। वह बहुत अधीर हो उठा।

पसीना पोंछते हुए उसने कहा- क्या बात है बेटा तुम्हें क्या चाहिए?

लड़के की आंखों से पानी छलकने लगा। उसने रुकते-रुकते कहा- बाबूजी.. बाबूजी मां को बचाने के लिए मैं दवाई की शीशी लिए भागे जा रहा था, घर के करीब पहुंच भी गया था। बारिश की वजह से आंगन में पानी भरा था और मैं फिसल गया। दवाई की शीशी गिर कर टूट गई। क्या आप मुझे वही दवाई की दूसरी शीशी दे सकते हैं बाबूजी?लड़केहां ! हां ! क्यों नहीं ? भोलानाथ ने राहत की सांस लेते हुए कहा। लो, यह दवाई!

पर उस लड़के ने दवाई की शीशी लेते हुए कहा, पर मेरे पास तो पैसे नहीं हैं, उस लड़के ने हिचकिचाते हुए से कहा।

भोलानाथ को उस पर दया आई। कोई बात नहीं - तुम यह दवाई ले जाओ और अपनी मां को बचाओ। जाओ जल्दी करो, और हां अब की बार जरा संभल के जाना। लड़का, अच्छा बाबूजी कहता हुआ खुशी से चल पड़ा।

अब भोलानाथ की जान में जान आई। भगवान को धन्यवाद।
भगवान को धन्यवाद देता हुआ अपने हाथों से उस धूल भरे तस्वीर को लेकर अपनी धोती से पोंछने लगा और अपने सीने से लगा लिया🙏🏻🙏🏻

नारियल का जन्म कैसे हुआ पढ़िए नारियल के जन्म की कथा 🌹🙏🏻👇

प्राचीन काल में सत्यव्रत नाम के एक राजा राज करते थे। वह प्रतिदिन पूजा-पाठ किया करते थे। उनके पास किसी भी चीज की कमी नहीं थी। वह धन दौलत से लेकर हर प्रकार की सुविधा से समृद्ध थे। हालांकि, इसके बावजूद भी राजा की एक अभिलाषा थी, जिसे वह पूर्ण की चाह रखते थे। दरअसल, राजा सत्यव्रत को किसी प्रकार से स्वर्गलोक जाने की इच्छा थी। वह अपने जीवन में कम से कम एक बार स्वर्गलोक के सौंदर्य को देखना चाहते थे, लेकिन उन्हें इसका मार्ग नहीं पता था।
इधर, दूसरी तरफ ऋषि विश्वामित्र अपनी तपस्या के लिए घर से बाहर निकले। चलते-चलते वह अपनी कुटिया से काफी आगे चले गए थे। काफी समय बीत गया लेकिन वह नहीं लौटे। इस कारण उनका परिवार भूख और प्यास से तड़प रहा था। राजा सत्यव्रत को जब यह पता चला तो उन्हें ने ऋषि विश्वामित्र के परिवार के पालन पोषण की जिम्मेदारी ले ली।
कुछ समय बाद जब मुनिवर लौटे तो वे अपने परिवार को कुशल देख काफी प्रसन्न हुए। उन्होंने पूछा कि उनकी अनुपस्थिति में किसने उनकी देखभाल की? इसपर ऋषि के परिवार वालों ने बताया कि राजा ने उनके पालन पोषण की जिम्मेदारी उठाई थी। यह सुनकर ऋषि विश्वामित्र तुरंत राजमहल पहुंचे और राजा से मुलाकात की।
वहां पहुंचकर उन्होंने सबसे पहले महाराज को धन्यवाद कहा। इस पर राजा ने ऋषि अपनी इच्छा पूर्ण होने का आशीर्वाद मांगा। राजा की बात सुनकर ऋषि विश्वामित्र ने कहा, “बोलिए महराज आपको क्या वरदान चाहिए।” तब महाराज ने कहा, “हे मुनि! मुझे एक बार स्वर्गलोक के दर्शन करने हैं। कृपया करके मुझे वहां जाने का वरदान दें।”
राजा की प्रार्थना सुनकर ऋषि विश्वामित्र ने एक ऐसा रास्ता बनाया जो स्वर्गलोक की ओर जाता था। यह देख राजा सत्यव्रत बहुत खुश हुए। वह तुरंत उस रास्ते पर चल पड़े और स्वर्गलोक पहुंच गए। यहां पहुंचते ही इंद्र देव ने उन्हें नीचे धक्का दे दिया, जिसके कारण वो सीधे धरती पर जा गिरे। राजा ने सत्यव्रत ने तुरंत सारी घटना ऋषि विश्वामित्र बताई।
राज की बात सुनकर ऋषि विश्वामित्र गुस्से से आग बबूला हो उठे। उन्होंने तुरंत सभी देवताओं से इस बारे में बात की और इस समस्या का हल निकाला। जिसके बाद राजा के लिए एक नया स्वर्गलोक बनाया गया। नए स्वर्गलोक को पृथ्वी और देवताओं के स्वर्गलोक के बीचो बीच स्थापित किया गया था, ताकि किसी को परेशानी न हो।
नए स्वर्ग लोक से राजा सत्यव्रत तो बहुत खुश हुए लेकिन विश्वामित्र को एक चिंता लगातार सता रही थी। उन्हें डर था कि नया स्वर्गलोक कहीं जोरदार हवा के कारण गिर न पड़े। अगर ऐसा होगा तो राजा सत्यव्रत दोबारा से धरती पर जा गिरेंगे। काफी सोच विचार के बाद ऋषि विश्वामित्र को एक उपाय सूझा। उन्होंने नए स्वर्ग लोक के नीचे एक बहुत लंबा खंभा लगा दिया, ताकि उसे सहारा मिल सके।
ऐसी मान्यता है कि नए स्वर्ग लोक के नीचे लगाया गया खंभा एक विशाल पेड़ के तने के रूप में बदल गया। यही नहीं, कुछ समय पश्चात जब राजा सत्यव्रत की मृत्यु हुई तो उनका सिर एक फल में तब्दील हो गया। सभी से इस खंभे को नारियल का पेड़ कहा जाने लगा। जबकि राजा का सिर नारियल के रूप में जाना गया। यही कारण है कि नारियल का पेड़ इतना लंबा होता है।

कहानी से सीख – इस कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि अगर सच्चे मन से किसी की मदद करे तो हमारी हर ख्वाहिश पूरी हो सकती है। हर हर महादेव 🙏🏻🙏🏻

1#घर में मंदिर की स्थापना कब करनी चाहिए 🙏🏻👇

घर में कब करें नए मंदिर की स्थापना
घर में नए मंदिर की स्‍थापना करने जा रहे हैं, तो पहले पढ़ लें ये जरूरी नियम। 

Roji yadav techrojiyadav 17/7/2023

हिंदू परिवारों में घर में मंदिर होने का अलग ही महत्व होता है। लोग अपनी-अपनी आस्था के मुताबिक घर में तरह-तरह के मंदिर बनवाते हैं। मगर क्‍या आपने कभी इस विषय में सोचा है कि घर में मंदिर की स्थापना करने के नियम क्या हैं? दरअसल, जब हम नया घर बनवाते हैं, तो वहां रहने से पहले गृह प्रवेश की पूजा करवाते हैं। जब नई कार लेते हैं, तो उसकी भी पहले पूजा होती है। वहीं जब कोई नई दुकान या मकान बनता है, तो हिंदू धर्म में पहले नींव रखी जाती है और भूमि पूजन होता है।


इन सभी के लिए शुभ दिन और मुहूर्त का चुनाव होता है। ऐसे में हम जब घर में मंदिर की स्थापना करते हैं, तब भी कुछ नियमों का पालन करना जरूरी हो जाता है। खासतौर पर इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है कि मंदिर की स्थापना कब की जाए।


आमतौर पर लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं, मगर हमने इस विषय पर भोपाल के पंडित एवं ज्योतिषाचार्य विनोद सोनी जी से बात की और जाना कि मंदिर की स्थापना कब और कैसे की जाती है।


इसे जरूर पढ़ें: घर पर सत्यनारायण स्वामी जी की पूजा है, तो इस तरह करें मंदिर का डेकोरेशन



कब करें मंदिर की स्‍थापना
मंदिर की स्थापना करने के लिए सबसे अच्‍छे हिंदी महीने चैत्र, फाल्गुन, वैशाख, माघ, ज्‍येष्‍ठ, सावन और कार्तिक होते हैं। इन सभी महीनों में आप अपने घर में मंदिर(घर के मंदिर के लिए नियम) की स्थापना कर सकते हैं।
मंदिर की घर में स्थापना करने के लिए केवल महीने ही नहीं बल्कि दिन का भी महत्व है। आप सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन घर में मंदिर की स्थापना कर सकते हैं। केवल मंगलवार, शनिवार और रविवार के दिन आपको घर में मंदिर की स्थापना नहीं करनी चाहिए।
इसके अलावा घर में मंदिर की स्थापना हमेशा अभिजीत मुहूर्त में ही करनी चाहिए। कभी भी सुबह या रात के समय नए मंदिर को घर में स्थापित नहीं करना चाहिए ।
मंदिर की स्थापना के लिए आप नवरात्रि, रामनवमी, जन्माष्टमी, सावन, दिवाली आदि त्योहारों को भी चुन सकते हैं।
इतना ही नहीं आपको मंदिर की स्थापना के दिन शुभ नक्षत्र का भी ध्यान रखना चाहिए। मंदिर की स्थापना के लिए पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा आषाढ़, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, श्रवण और पुनर्वसु नक्षत्र सबसे शुभ 

घर में कब करें नए मंदिर की स्थापना
घर में नए मंदिर की स्‍थापना करने जा रहे हैं, तो पहले पढ़ लें ये जरूरी नियम। 


हिंदू परिवारों में घर में मंदिर होने का अलग ही महत्व होता है। लोग अपनी-अपनी आस्था के मुताबिक घर में तरह-तरह के मंदिर बनवाते हैं। मगर क्‍या आपने कभी इस विषय में सोचा है कि घर में मंदिर की स्थापना करने के नियम क्या हैं? दरअसल, जब हम नया घर बनवाते हैं, तो वहां रहने से पहले गृह प्रवेश की पूजा करवाते हैं। जब नई कार लेते हैं, तो उसकी भी पहले पूजा होती है। वहीं जब कोई नई दुकान या मकान बनता है, तो हिंदू धर्म में पहले नींव रखी जाती है और भूमि पूजन होता है।


इन सभी के लिए शुभ दिन और मुहूर्त का चुनाव होता है। ऐसे में हम जब घर में मंदिर की स्थापना करते हैं, तब भी कुछ नियमों का पालन करना जरूरी हो जाता है। खासतौर पर इस बात का ध्यान रखना बहुत जरूरी होता है कि मंदिर की स्थापना कब की जाए।


आमतौर पर लोग इन बातों का ध्यान नहीं रखते हैं, मगर हमने इस विषय पर भोपाल के पंडित एवं ज्योतिषाचार्य विनोद सोनी जी से बात की और जाना कि मंदिर की स्थापना कब और कैसे की जाती है।


इसे जरूर पढ़ें: घर पर सत्यनारायण स्वामी जी की पूजा है, तो इस तरह करें मंदिर का डेकोरेशन



कब करें मंदिर की स्‍थापना
मंदिर की स्थापना करने के लिए सबसे अच्‍छे हिंदी महीने चैत्र, फाल्गुन, वैशाख, माघ, ज्‍येष्‍ठ, सावन और कार्तिक होते हैं। इन सभी महीनों में आप अपने घर में मंदिर(घर के मंदिर के लिए नियम) की स्थापना कर सकते हैं।
मंदिर की घर में स्थापना करने के लिए केवल महीने ही नहीं बल्कि दिन का भी महत्व है। आप सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार के दिन घर में मंदिर की स्थापना कर सकते हैं। केवल मंगलवार, शनिवार और रविवार के दिन आपको घर में मंदिर की स्थापना नहीं करनी चाहिए।
इसके अलावा घर में मंदिर की स्थापना हमेशा अभिजीत मुहूर्त में ही करनी चाहिए। कभी भी सुबह या रात के समय नए मंदिर को घर में स्थापित नहीं करना चाहिए ।
मंदिर की स्थापना के लिए आप नवरात्रि, रामनवमी, जन्माष्टमी, सावन, दिवाली आदि त्योहारों को भी चुन सकते हैं।
इतना ही नहीं आपको मंदिर की स्थापना के दिन शुभ नक्षत्र का भी ध्यान रखना चाहिए। मंदिर की स्थापना के लिए पुष्य, उत्तरा फाल्गुनी, उत्तरा आषाढ़, रेवती, रोहिणी, अश्विनी, श्रवण और पुनर्वसु नक्षत्र सबसे शुभ माने गए हैं।
इसे जरूर पढ़ें: त्‍यौहार आने से पहले घर के मंदिर की इस तरह करें सफाई

घर में मंदिर किस दिशा में होना चाहिए?
घर में मंदिर की स्थापना वास्तु के हिसाब से ब्रह्म स्थान पर होनी चाहिए। ब्रह्म स्थान घर के केंद्र में होता है। इसके अलावा आप घर के ईशान कोण में भी मंदिर की स्थापना कर सकते हैं। आपको बता दें कि घर की उत्तर-पूर्व दिशा को ही ईशान कोण कहा गया है। इस दिशा के कोने में आपको मंदिर रखना चाहिए।
मंदिर को कभी भी दक्षिण और पूर्व दिशा में स्थापित नहीं करना चाहिए। जब भी आप पूजा करें तो आपका मुंह पूर्व दिशा में होना चाहिए।
इस बात को भी सुनिश्चित करें कि जहां पर आपने मंदिर की स्‍थापित की है वहां भरपूर रोशनी आती हो। अगर पूजा घर ( पूजा घर वास्‍तु नियम) में सूर्य की किरणें आती हैं, तो यह और भी ज्यादा शुभ होता है।
मंदिर में कब करें मूर्ति की स्थापना
घर के मंदिर में आप किसी भी दिन मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं, मगर मंगलवार के दिन आपको इस कार्य से बचना चाहिए। आप शनिवार के दिन शनिदेव और हनुमान जी की मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं, नवरात्रि में देवी दुर्गा की मूर्ति की स्थापना कर सकते हैं। बसंत पंचमी के दिन देवी सरस्वती को घर के मंदिर में स्थापित कर सकते हैं। वहीं दिवाली में देवी लक्ष्‍मी, कुबेर की मूर्ति की स्थापना की जा सकती है।
किसी भी देवी या देवता की मूर्ति स्थापित करने से पूर्व भी आपको पंडित जी से शुभ मुहूर्त निकलवाना चाहिए।
मलमास के महीने में न तो मंदिर की स्थापना करने और न ही मूर्ति को घर के मंदिर में स्थापित करें।
जब गुरु या शुक्र अस्त हों या फिर चंद्र निर्बल हो, तब भी आपको घर में मंदिर या घर के मंदिर में मूर्ति की स्थापना से बचना चाहिए।उम्मीद है कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा। इस आर्टिकल को शेयर और लाइक जरूर करें, इसी तरह और भी आर्टिकल्‍स पढ़ने के लिए जुड़ी रहें हरजिंदगी 🙏🏻 भोले बाबा की कृपा सभी पर बनी रहे हर हर महादेव 🙏🏻

1#12 ज्योर्तिलिंग के दर्शन 🙏🏻🙏🏻

    : 12 ज्योतिर्लिंग हमें कौनसी ऊर्जा व सीख देतें है
 ???
भगवन :12 सूर्य-12 लग्न-12 भाव 12 ज्योतिर्लिंग ऊर्जा के स्त्रोत 
51 शक्तिपीठ के साथ 12 ज्योतिर्लिंग है सनातन सिद्धअमृत स्तोत्र

शिव जी के नाम 🙏🏻👇

 1 शिव, 2शम्भू, 3महादेव, 4उमापति, 5महाकाल, 6विषधर, 7नागेश्वर, 8त्रिनेत्री, 9वैरागी,10 नागेन्द्र।


।। 2

1#मेरा भगवान बचाएगा : ईश्वर भक्ति कहानी






एक समय की बात है किसी गाँव में एक साधु रहता था, वह भगवान का बहुत बड़ा भक्त था
और निरंतर एक पेड़ के नीचे बैठ कर तपस्या किया करता था ।
उसका भगवान पर अटूट विश्वास था और गाँव वाले भी उसकी इज्ज़त करते थे।
एक बार गाँव में बहुत भीषण बाढ़ आ गई । चारो तरफ पानी ही पानी दिखाई देने लगा,
सभी लोग अपनी जान बचाने के लिए ऊँचे स्थानों की तरफ बढ़ने लगे ।

जब लोगों ने देखा कि साधु महाराज अभी भी पेड़ के नीचे बैठे भगवान का नाम जप रहे हैं तो
उन्हें यह जगह छोड़ने की सलाह दी । परंतु साधु ने कहा-
” तुम लोग अपनी जान बचाओ मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा!”
धीरे-धीरे पानी का स्तर बढ़ता गया और पानी साधु के कमर तक आ पहुंचा,
इतने में वहां से एक नाव गुजरी।

मल्लाह ने कहा- ” हे साधू महाराज आप इस नाव पर सवार हो जाइए
मैं आपको सुरक्षित स्थान तक पहुंचा दूंगा ।”
“नहीं, मुझे तुम्हारी मदद की आवश्यकता नहीं है, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा !!“ साधु ने उत्तर दिया।
नाव वाला चुप-चाप वहां से चला गया।

मेरा भगवान बचाएगा – ईश्वर भक्ति कहानी

कुछ देर बाद बाढ़ और प्रचंड हो गयी, साधु ने पेड़ पर चढ़ना उचित समझा और वहां बैठ कर
ईश्वर को याद करने लगा । तभी अचानक उन्हें गड़गडाहट की आवाज़ सुनाई दी,
एक हेलिकोप्टर उनकी मदद के लिए आ पहुंचा, बचाव दल ने एक रस्सी लटकाई और
साधु को उसे जोर से पकड़ने का आग्रह किया।
पर साधु फिर बोला-” मैं इसे नहीं पकडूँगा, मुझे तो मेरा भगवान बचाएगा ।”
उनकी हठ के आगे बचाव दल भी उन्हें लिए बगैर वहां से चला गया ।

कुछ ही देर में पेड़ बाढ़ की धारा में बह गया और साधु की मृत्यु हो गयी ।
मरने के बाद साधु महाराज स्वर्ग पहुंचे और भगवान से बोले -. ” हे प्रभु ! मैंने तुम्हारी पूरी लगन के साथ आराधना की…
तपस्या की पर जब मै पानी में डूब कर मर रहा था तब
तुम मुझे बचाने नहीं आये, ऐसा क्यों प्रभु बोले, ”हे महात्मन् मै तुम्हारी रक्षा करने एक नहीं बल्कि तीन बार आया,

पहला, ग्रामीणों के रूप में, दूसरा नाव वाले के रूप में, और तीसरा हेलीकाप्टर बचाव दल के रूप में.
किन्तु तुम मेरे इन अवसरों को पहचान नहीं पाए ।”

मित्रों, इस जीवन में ईश्वर हमें कई अवसर देता है,
किसी ना किसी को माध्यम बनाकर हर समय हमारे साथ ही रहता है । लेकिन हम
अपने अहंकार के कारण उन्हे पहचान नही पाते ।
अवसरों की प्रकृति भी कुछ ऐसी होती है ।
यदि हम उन्हें पहचान कर उनका लाभ उठा लेते है तो वे हमें हमारी मंजिल तक पंहुचा देते है,
अन्यथा हमें बाद में पछताना ही पड़ता है ।

धन्यवाद आपका फुल रीड आर्टिकल 🙏🏻🙏🏻

1#राम को 14 साल का ही वनवास क्यों हुआ था? 10, 12 या 13 साल का क्यों नहीं, जानिए वजहवाल्मीकि की लिखी रामायण के अनुसार कैकयी की जिद की वजह से राम को वनवास हुआ था.👇👇🙏🙏

 ये तो सभी जानते हैं कि राम को 14 साल का वनवास हुआ था. इस वनवास के बाद जब वह लौटे तो अयोध्यावासियों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया. इसी के बाद से इस दिन को दिवाली के त्योहार के तौर पर मनाया जाने लगा. मगर क्या कभी आपने सोचा है कि राम को 14 साल का ही वनवास क्यों हुआ? 10, 12 या 13 साल का क्यों नहीं?








कैकयी ने मांगा था 14 साल का वनवास
वाल्मीकि की लिखी रामायण के अनुसार कैकयी की जिद की वजह से राम को वनवास हुआ था. दासी मंथरा के बहकावे में आकर कैकयी ने राजा दशरथ से ये वचन मांगा. उन्होंने अपने बेटे भरत के लिए राजगद्दी तथा राम को 14 वर्ष वनवास देने का वचन मांग लिया. दशरथ ये वचन देते वक्त बेहद दुख की अवस्था में थे, लेकिन वचनबद्ध होकर वह कुछ नहीं कर सके. राम भी इसका विरोध कर सकते थे, लेकिन उन्होंने भी ऐसा नहं किया. इसीलिए कहा जाता है कि रघुकुल रीत सदा चली आई प्राण जाए पर वचन न जाए.
इसलिए 10 या 12 नहीं मांगे गए थे 14 साल 
कैकयी ने राम के लिए 10, 12 या 13 नहीं बल्कि 14 साल के वनवास पर भेजा था क्योंकि वह इससे जुड़े प्रशासनिक नियम जानती थीं. त्रेतायुग में उस समय यह नियम था कि यदि कोई राजा अपनी गद्दी को 14 साल तक छोड़ देता है तो वह राजा बनने का अधिकार खो देता है. यही वजह रही कि कैकयी ने राम के लिए पूरे 14 वर्ष का वनवास मांगा. हालांकि कैकयी के ही बेटे भरत ने उनकी इस चाल को कामयाब नहीं होने दिया और राम की गद्दी पर बैठने से इनकार कर दिया. जब राम वनवास पूरा करके लौटे तो भरत ने उन्हें उनकी राजगद्दी ससम्मान लौटा दी.  

द्वापरयुग में था 13 साल का नियम द्वापरयुग युग में यह नियम था कि अगर कोई राजा 13 साल के लिए अपना राजकाज छोड़ देता है तो उसका शासन अधिकार खत्म हो जाता है. इसी नियम की वजह से दुर्योधन ने पांडवों के लिए 12 वर्ष वनवास और 1 वर्ष अज्ञातवास की बात रखी थी.

1#विष्णु भगवान की कहानी - जब विष्णु ने शिव को मुश्किल से बाहर निकाला कैसे पढ़ो छोटी सी कहानी 👇👍

यौगिक कथाओं में ऐसी कई कहानियाँ हैं, जिनमें बताया गया कि शिव की करुणा कोई भेदभाव नहीं करती और वे किसी की इच्छा पर बच्चों की तरह भोलापन दिखाते हैं। एक बार गजेंद्र नामक एक असुर था। गजेंद्र ने बहुत तप किया और शिव से यह वरदान पाया कि वह जब भी उन्हें पुकारेगा, शिव को आना होगा। त्रिलोकों के सदा शरारती ऋषि नारद ने देखा कि गजेंद्र हर छोटी-छोटी बात के लिए शिव को पुकार लेता था, तो उन्होंने गजेंद्र के साथ एक चाल चली।

उन्होंने गजेंद्र से कहा, ‘तुम शिव को बार-बार क्यों बुलाते हो? वह तुम्हारी हर पुकार पर आ जाते हैं। क्यों नहीं तुम उनसे कहते कि वह तुम्हारे अंदर आ जाएँ और वहीं रहें जिससे वह हमेशा तुम्हारे अंदर होंगे?’ गजेंद्र को यह बात अच्छी लगी और फिर उसने शिव की पूजा की। जब शिव उसके सामने प्रकट हुए, तो वह बोला, ‘आपको मेरे अंदर रहना होगा। आप कहीं मत जाइए।’ शिव अपने भोलेपन में एक लिंग के रूप में गजेंद्र में प्रवेश कर गए और वहाँ रहने लगे।
महसूस कर रहा था। कोई नहीं जानता था कि वह कहाँ हैं। सभी देव और गण शिव को खोजने लगे। काफी खोजने के बाद, जब कोई यह पता नहीं लगा पाया कि वह कहाँ हैं, तो वे हल ढूंढने के लिए विष्णु के पास गए। विष्णु ने स्थिति देखी और कहा, ‘वह गजेंद्र के अंदर हैं।’ फिर देवों ने उनसे पूछा कि वे शिव को गजेंद्र के अंदर से कैसे निकाल सकते हैं क्योंकि गजेंद्र शिव को अपने अंदर रखकर अमर हो गया था।

हमेशा की तरह विष्णु सही चाल लेकर आए। देवगण शिवभक्तों का रूप धरकर गजेंद्र के राज्य में आए और बहुत भक्ति के साथ शिव का स्तुतिगान करने लगे। शिव का महान भक्त होने के कारण गजेंद्र ने इन लोगों को अपने दरबार में आकर गाने और नाचने का न्यौता दिया। शिवभक्तों के वेश में देवों का यह दल आया और बहुत भावनाओं के साथ, बहुत भक्तिपूर्वक वे शिव के लिए भक्तिगीत गाने और नाचने लगे। शिव, जो गजेंद्र के अंदर बैठे हुए थे, अब खुद को रोक नहीं सकते थे, उन्हें जवाब देना ही था। तो वह गजेंद्र के टुकड़े-टुकड़े करके उससे बाहर आ गए।
पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻

1#सबसे बड़े शिवभक्‍त की अनोखी कहानी कहता है बैजनाथ धाम पढ़िए रोचक लघु कथा 🙏🏻

भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते ।
शिव का ऐसा ही एक धाम है बैजनाथ धाम.
 शिव का ऐसा ही एक धाम है बैजनाथ धाम.
भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते ।
भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते
सबसे बड़े शिवभक्‍त की अनोखी कहानी कहता है बैजनाथ धाम
भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते हैं. शिव का ऐसा ही एक धाम है बैजनाथ धाम.

बैजनाथ महादेव मंदिरबैजनाथ महादेव मंदिर
भोले भंडारी संकटों से उबारते हैं, मुश्किल घड़ी में राह दिखाते हैं. तभी तो भक्त क्या देवता भी अपने कष्टों के निवारण के लिए भोले भंडारी की शरण में जाते हैं. शिव का ऐसा ही एक धाम है बैजनाथ धाम. कांगड़ा के बैजनाथ धाम में महादेव के सबसे बड़े भक्त ने अपनी भक्ति की परीक्षा दी थी. अपने दस सिरों की बलि देकर रावण ने लिख दी भक्ति और आस्था की नई कहानी, लेकिन रावण से एक भूल हो गई.


हिमाचल की खूबसूरत और हरी-भरी वादियों में धौलाधार पर्वत श्रृंखलाओं के बीच बसा प्राचीन शिव मंदिर महादेव के सबसे बड़े भक्त की भक्ति की कहानी सुनता है. यहीं पर स्थापित है वो शिवलिंग, जो देखने में तो किसी भी आम शिवलिंग की तरह है. लेकिन इसका स्पर्श भक्तों को अनूठा एहसास देता है. इस शिवलिंग की आराधना भक्तों में असीम शक्ति भर देती है क्योंकि ये रावण का वो शिवलिंग है, जिसकी वो पूजा करता था. किवदंतियों की मानें तो रावण इसी शिवलिंग को अपने साथ लंका ले जाना चाहता था.
हिमाचल के कांगड़ा से 54 किमी और धर्मशाला से 56 किमी की दूरी पर बिनवा नदी के किनारे बसा है बैजनाथ धाम. जो अपने चारों ओर मौजूद प्राकृतिक सुंदरता की वजह । हर हर महादेव 🙏🏻

1#भगवान की पूजा करे सिर पर पल्लू डाल कर या फिर ऐसे ही करे पूजा पाठ पढ़े ये छोटी सी कहानी 🙏🏻👇

आज सावन माह का पहला सोमवार था, सुबह जल्दी उठकर कर स्नान आदि काम करके निवृत होकर मंदिर गई पूजा करने, तो वह पर मैंने देखा बहुत सी माताएं बहनें अपने सिर पर पल्लू लिए बिना ही पूजा कर रही थीं। जहां तक मैंने बड़े बुजुर्गो से यही सुना है, सिर पर पल्लू लिए बिना पूजा पाठ नही करना चाहिए ये गलत होता हैं। हम कभी भी कोई पूजा अनुष्ठान हवन अपने घर में करवाते हैं तो पुजारी जी हमेशा यही कहते है बेटा सिर पर पल्लू डाल कर ही पूजा में शामिल होना चाहिए,
कारण क्या हैं इसका?
 हिंदू शास्त्रों के अनुसार पूजा में काली चीज वर्जित होती इसलिए सिर पर पल्लू रखा जाता हैं,
सिर पर पल्लू रखना ईश्वर के प्रति आदर भाव  जताना 

 अक्सर मंदिर जाने या पूजा-पाठ करते समय कपड़े से सिर ढकने की सलाह दी जाती है। इसे शुभ माना जाता है। कहते हैं कि इससे व्यक्ति को पूजन का पूरा लाभ मिलता है, लेकिन वास्तव में इसके पीछे क्या कारण है और इससे क्या फायदे होते हैं, आइए जानते हैं।
1.रुण पुराण के अनुसार पूजन या किसी भी शुभ कार्य को करते समय सिर ढका हुआ हुआ होना चाहिए। क्योंकि इससे मन एकाग्र रहता है। माना जाता है कि जब सिर ढका हुआ होता हैतब हमारा ध्यान इधरउ-धर नहीं जाता है। जिसके चलते पूजा पर पूरा फोकस रहता है। इस नियम का पालन करने से व्यक्ति को भाग्य का साथ भी दोगुना मिलता है।
2.शास्त्रों के अनुसार पूजन के वक्त सिर ढकना भगवान को सम्मान देने का एक प्रतीक है। कहते हैं कि जैसे बड़े-बुजुर्गों के सामने सिर पर पल्ला रखा जाता है। वैसे ही ईश्वर के आदर के लिए भी सिर को ढका जाता है।
3. पूजा करते समय हम नकारात्मक प्रभाव से बचे रहते हैं क्युकी बालो के जरिए हमें नकारात्मक ऊर्जा अपनी ओर खींचती हैं । जबकि सिर ढाका होने से मन में सकारात्मक विचार आते हैं।
4. आकाश में कई तरह की तरंगे निकलती रहती हैं
जिनमें कुछ खराब भी होती हैं जो पूजा करते समय हमें अपनी ओर खींचती है। ऐसे में सिर पर पल्लू होने से हम इनसे बच जाते है।
5.सर साधारण पूजा करने के पीछे एक और वजह है वो है माहौल को सकारात्मक बनाना। ऐसा माना जाता है कि सिर पर पल्ला स्टैमिनास्ट से व्यक्ति की मानसिकता बदल जाती है। तब वो अधिकांश आस्थावान बन जाता है। इस व्यक्ति के शरीर से बीजिंग वाली ऊर्जा से उसका आस-पास का महल अच्छा बनता है।
अनुपयोगी माना गया है। क्योंकि ये नकारात्मकता का प्रतीक होते हैं। हमारे बाल काले होते हैं, ऐसे में वो भी पूजा के मार्ग में बाधा डालते हैं। इस समस्या से बचने के लिए पूजा करने में समय लगता है।
8.पूजा करने के पीछे एक कारण यह भी है कि इससे आपका मन केन्द्रित हो जाता है। आप ईश्वर से बहुत अच्छे से जुड़ते हैं।
9.शास्त्रों के अनुसार सभी व्यक्ति एक समान होते हैं। इसलिए पूजा के दौरान स्त्री और पुरुष दोनों को ही सिर पर कपड़ा रखना चाहिए
10. सिर ढक कर पूजा करने के पीछे एक वैज्ञानिक कारण भी है। बताया जाता है कि घर में बैठकर आग लगाने से आपके शरीर का तापमान नियंत्रित रहता है।
पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका 🙏🏻🙏🏻

1#सोलह सोमवार व्रत उद्दापन विधि 🙏🙏👇👇

संकट (सोलह) सोमवार यह व्रत  (सावन) मास के प्रथम सोमवार से प्रारंभ किया जाता है अथवा कार्तिक या अगहन (मार्गशीर्ष) से भी प्रारंभ करते हैं। में सावन सोमवार व्रत अधिक से अधिक लोग करते हैं। अत: सावन ही सोमवार व्रत करने का उत्तम महीना माना गया है। 
कैसे करें व्रत,,,,,,,
सोमवार व्रत करने वाले स्त्री-पुरुष को चाहिए कि वे प्रात:काल तिल का तेल लगाकर स्नान करें।  इस व्रत में तीसरे पहर शाम को शिव-पार्वती की पूजा की जाती है।
 इस व्रत को कई प्रकार से करते हैं, जैसे बिल्व-पत्र, मिश्री या चूरमा बनाकर। इसमें पानी भी नहीं पीते हैं। 
 सिर धोकर स्नान करके संध्या के पूर्व आधा किलो आटे का चूरमा बनाकर (गुड़ या शकर का शुद्ध घी में) बनाएं। 
 महादेवजी का विधिपूर्वक 16 बिल्व-पत्र, आंकड़े व धतूरे के फूल चढ़ाकर पूजन करें। इसके बाद चूरमे का भोग लगाएं। 
भोग के पश्चात चूरमे के 3 भाग करें। एक भाग गाय को दें, दूसरा भाग प्रसाद के रूप में वितरण करें एवं तीसरा भाग स्वयं ग्रहण करें। इस दिन चूरमे के अतिरिक्त अन्य कोई आहार ग्रहण नहीं करें। 
इस प्रकार 16 सोमवार तक व्रत करें, फिर 17वें सोमवार को उद्यापन करें।
उद्यापन विधि """"""""""
उद्यापन के दिन सवा 5 किलो गेहूं के आटे से चूरमा बनाया जाता है। 16 जोड़े स्त्री-पुरुष को भोजन कराते हैं। 
  भोजन में श्रद्धानुसार पकवान बनाएं तथा इस चूरमे का प्रसाद भी सभी को दें। ऊपर बताए अनुसार चूरमे के 3 भाग करें। एक भाग गाय को, शेष दो भागों में से ही प्रसाद रूप में वितरण करें तथा स्वयं भी इसी में से भोजन के रूप में लें। आप अन्य प्रकार का भोजन ग्रहण नहीं करें। 
16 जोड़ों में से पुरुषों को यथाशक्ति दक्षिणा दें तथा महिलाओं को सुहाग की वस्तुएं देना चाहिए।
 
उद्यापन के दिन विद्वान ब्राह्मण (पंडितजी) को बुलाकर विधि अनुसार हवन एवं पूजन कराना चाहिए। पूजन में महादेवजी का दूध, दही, घी, शकर से अभिषेक किया जाता है। अन्य पूजन सामग्री के लिए पंडितजी से पूछें। शिव-पार्वती को सरोपाव चढ़ाएं। कथा सुनें तथा आरती करें। 
 
पंडि‍तजी को यथेष्ट रूप से दक्षिणा दें। आशीर्वाद लें तथा उन्हें भी भोजन कराएं। आरती करें। पंडितजी को यथेष्ट रूप से दक्षिणा दें। आशीर्वाद लें तथा उन्हें भी भोजन कराए।
ॐ नमः शिवाय हर हर महादेव 🙏🏻🙏🏻
पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका 🙏🏻

1#सावन माह में शनि देव कौन हैं? शनि देव की कहानी पढ़िए रोचक कहानी शनिदेव की 🙏🙏

न्याय के देवता के रूप में भगवान शनिदेव को जाना जाता हैं । समस्त भगवानो में शनिदेव ही एक ऐसे देवता हैं, जिनकी पूजा लोग आस्था से नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ डर से करते हैं । इसका मुख्य कारण है कि शनि देव को न्यायाधीश का पद प्राप्त है । वह इंसान को उसके अच्छे और बुरे कर्मो के अनुसार फल प्रदान करते हैं । यही वजह है की भगवान शनि को कलियुग में भी निष्पक्ष न्याय करने वाले देवता के रूप में माना जाता हैं । 

कौन है शनिदेव -

शनिदेव भगवान सूर्य तथा छाया (संवर्णा) के पुत्र हैं । इनकी पत्नी के श्राप के कारण इनको क्रूर ग्रह माना जाता है। शनि के अधिदेवता प्रजापति ब्रह्मा और प्रत्यधिदेवता यम हैं। इनका वर्ण कृष्ण है व ये गिद्ध की सवारी करते हैं। ज्योतिष के अनुसार शनि को अशुभ माना जाता है व 9 ग्रहों में शनि का स्थान सातवां है। ये एक राशि में तीस महीने तक निवास करते हैं, साथ ही मकर और कुंभ राशि के स्वामी माने जाते हैं। शनि की महादशा 19 वर्ष तक रहती है। शनि की गुरूत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी से 95वें गुणा ज्यादा मानी जाती है । माना जाता है इसी गुरुत्व बल के कारण हमारे अच्छे और बुरे विचार शनि तक पंहुचते हैं जिनका कृत्य अनुसार परिणाम भी जल्द मिलता है । वास्तव में शनिदेव एक बहुत ही न्यायप्रिय राजा हैं । यदि आप किसी से धोखा-धड़ी नहीं करते, किसी के साथ अन्याय नहीं करते, किसी पर कोई जुल्म अत्याचार नहीं करते, कहने का तात्पर्य यदि आप बुरे कामों में लिप्त नहीं हैं तब आपको शनि से घबराने की कोई जरुरत नहीं है । क्योंकि शनिदेव भले जातकों को कोई कष्ट नहीं देते ।

शनिदेव भी अपने पिता की तरह ही तेजस्वी है। यदि यह प्रसन्न हों तो मनुष्य को मोक्ष का मार्ग प्रशस्त होता है… और कुपित हो जाएं तो सर्वनाश होते देर नहीं लगती है । सामान्य मनुष्य ही नहीं बड़े बड़े योगी, यक्ष, देव और दानव तक शनिदेव के कोप से भय खाते हैं। भक्त से प्रसन्न होने पर अच्छी किस्मत और भाग्य के साथ उनकी हर मनोकामना पूरी करके मनवांछित फल प्रदान करते हैं।
शनि जन्म कथा  _______
शनि जन्म के विषय में एक पौराणिक कथा बहुत प्रचलित है जिसके अनुसार शनि देव के पिता सूर्य देव और उनकी पत्नी छाया हैं । सूर्य देव का विवाह दक्ष पुत्री संज्ञा से हुआ. कुछ समय बाद उन्हें तीन संतानो के रूप में मनु, यम और यमुना की प्राप्ति हुई । इस तरह कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ निर्वाह किया लेकिन संज्ञा भगवान सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं । अब सूर्य का तेज सहन कर पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा था । इसी वजह से संज्ञा अपनी छाया को पति सूर्य की सेवा में छोड़ कर वहां से चली गईं. कुछ समय बाद छाया के गर्भ से शनि देव का जन्म हुआ । 
जय श्री शनिदेव जी की 🙏 कृपया पूरा लेख पढ़े धन्यवाद 

1#माता लक्ष्मी जी की कथा 🙏🙏👇👇







माँ लक्ष्मी सुख, समृद्धि और धन की देवी हैं। जब लक्ष्मी माता का व्रत किया जाता है तो लक्ष्मी माता की कहानी का व्रत किया जाता है। लक्ष्मी माता के व्रत को 'वैभव लक्ष्मी व्रत' भी कहा जाता है। वैभव लक्ष्मी व्रत शुक्रवार के दिन मनाया जाता है। इस व्रत को स्त्री या पुरुष कोई भी कर सकता है। लक्ष्मी माता का व्रत रखने से सुख-समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है।

उस दिन माता लक्ष्मी का व्रत किया जाता है और लक्ष्मी माता की कहानियां बताई जाती हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दिन मां लक्ष्मी पृथ्वी पर विचरण करती हैं। जो भी मां लक्ष्मी के मन में विराजमान होती है, उस पर मां लक्ष्मी अपनी कृपा बरसाती हैं। व्रत वाले दिन कई लोग व्रत रखते हैं और शाम के समय व्रत करने वाले राजा और लक्ष्मी माता की कहानी कहते
। तो आइये जानते हैं लक्ष्मी माता की पावन कथा 
एक गांव में एक साहूकार रहता था। साहूकार की एक बेटी थी। वह हर रोज पीपल सींचने जाती थी। पीपल के पेड़ से लक्ष्मी जी प्रकट हुई थीं और चली गईं। एक दिन लक्ष्मी जी ने साहूकार की बेटी से कहा - तू मेरी सहेली बन जा। तब लड़की ने कहा कि मैं अपने पिता से सवाल कलकर आऊंगी।
साहूकार की बेटी ने अपने पिता से सारी बात कह दी। तब उनके अनमोल वचन वह तो लक्ष्मी जी हैं। अपने को और क्या चाहिए तू लक्ष्मी जी की सहेली बन जा। दूसरे दिन वह लड़की फिर चली गई। तब लक्ष्मी जी पीपल के पेड़ से निकल कर आई और कहा दोस्त बन जा तो लड़की ने कहा, बन जाऊंगी और दोस्त बन गए दोस्त।

लक्ष्मी जी ने भोजन की न्युता दी। घर पर लड़की ने मां-बाप से कहा कि मेरी सहेली ने मुझे खाना खिलाया है। तब बाप ने कहा था कि दोस्त के जिमने जाकर घर को संभाल कर रखना। तब वह लक्ष्मी जी के यहां जिमने गए तो लक्ष्मी जी ने उन्हें शाल दुशाला ओढ़ने के लिए दिया, रुपये खाए, सोने की सब्जी, सोने की थाली में छत्तीस प्रकार के भोजन का (व्यंजन) कराया।
जीम कर जब वह जाने लगी तो लक्ष्मी जी ने पल्ला पकड़ लिया और कहा कि मैं भी तुझे घर जिमने आऊंगी। तो उसने कहा आ जाइयो. वह घर पर किरायेदार बैठाया गया। तब बाप ने पूछा कि कौन सी बेटी सहेली यहां जिमकर आ गई? और तू उदास क्यों है? तो उसने कहा मेरे को लक्ष्मी जी ने इतने सारे प्रकार के आहार दिए लेकिन मैं कैसे जिमाऊंगी?

आपके घर में तो कुछ भी नहीं है। तब उसके पिता ने कहा था कि गोबर मिट्टी से चौका लगाकर घर की सफाई कर ले। चार मुख वाले ने दिया चित्र, लक्ष्मीजी का नाम लेकर रसोई में बैठे। लड़की सफाई लेकर लोध लेकर बैठ गई। उसी समय एक रानी नहा रही थी। उसका नोलखा हार गया, उसे उठा लिया गया और उसके घर नौलखा हार गया, और उसका बच्चा ले गया।
बाद में वह खो गया और सामान बेचने लगा तो सूनर ने पूछा कि क्या करना चाहिए? तब उन्होंने कहा कि सोने की दुकान, सोने का थाल, शाल दुशाला दे दे, मोहर दे और सामग्री दे। छत्तीस प्रकार का भोजन हो जाए इतना सामान। साडी चीजें लेकर बहुत तैयारी की और बनाई गई तब गणेश जी ने कहा कि लक्ष्मी जी को बुलाओ।

आगे-आगे गणेशजी और पीछे-पीछे लक्ष्मीजी आई। उसने फिर से दुकान डाल दी और कहा, दोस्त की दुकान पर बैठ जाओ। जब लक्ष्मी जी ने कहा कि मेरे यहाँ तो राजा रानी के लिए भी कोई घर नहीं है, किसी के भी घर में नहीं है, तो उन्होंने कहा कि मेरे यहाँ तो तुम बैठो। फिर लक्ष्मीजी की दुकान स्थापित हुई। टैब वह बहुत एहसानमंद की। जैसी लक्ष्मी ने करी थी, वैसी ही करी।
लक्ष्मीजी उस पर प्रसन्न हो गईं। घर में धन और लक्ष्मी हो गयीं। साहूकार की बेटी ने कहा, मैं अभी आ रही हूं। तुम बेघर हो गए और वह चले गए। लक्ष्मीजी घर पर नहीं रहीं और होटल में रहीं। बहुत सारे टैग दिए। लक्ष्मीजी को साहूकार की बेटी के रूप में जाना जाता है। कथन कहें, हुंकारा भारते अपने सारे परिवार को दियो। पीहर में जाना, मुस्लिमों में जाना। बेटे को पॉट देना। हे लक्ष्मी माता ! सभी कष्ट दूर करना , दरिद्रता दूर करना , प्लांट मनोभाव पूर्ण करना ।
यह माता लक्ष्मी जी की कथा थी।
आशा करती हूं आपको पसंद आई होगी धन्यवाद 🙏

रोज पूजा में भोग लगाने वाले भी कर बैठते हैं ये गलती, पड़ती है बहुत भारी! आप ना करें ये गलती भूल से भी।🙏🌹👇🌷

भगवान को भोग लगाए बिना पूजा पूरी नहीं होती है इसलिए प्रत्‍येक देवी-देवता को उसका प्रिय भोग लगाना चाहिए. लेकिन भोग लगाते समय कुछ बातों का ध्‍यान रखना चाहिए.
हिंदू धर्म में हर देवी देवता का प्रिय भोग, प्रिय फूल, मंत्र आदि के बारे में बताया गया है. इसलिए रोज पूजा में इन बातों का ध्‍यान रखा जाता है. हर देवी-देवता की विधि-विधान से पूजा करना चाहिए, तभी पूजा का पूरा फल मिलता है. पूजा में भोग लगाना और उसके बाद प्रसाद बांटना भी पूजा का बेहद जरूरी अंग है. इसलिए घर के मंदिर में नियमित पूजा-पाठ में भोग जरूर लगाया जाता है. वहीं भोग लगाने में की गई गलती भगवान को नाराज भी कर सकती है इसलिए भोग से जुड़े इन नियमों के बारे में जान लेना बहुत जरूरी है. 
जरूर जान लें भोग से जुड़ी ये अहम बातें,,,,,,,,,,,,,,,,

भगवान का प्रिय भोग: रोज की पूजा-पाठ करते समय भी भगवान के प्रिय भोग का ध्‍यान रखें. जिस भी देवी-देवता की पूजा कर रहे हैं, उनका प्रिय भोग ही लगाएं. यदि रोजाना भोग की इतनी व्‍यवस्‍था कर पाना संभव ना हो तो मिश्री या मिठाई से भोग लगाएं. 


भोग लगाने का पात्र: देवी-देवता को भोग लगाने के लिए सोना, चांदी, पीतल या फिर मिट्टी के बर्तन का इस्‍तेमाल करना चाहिए. एल्यूमिनियम, लोहे, स्टील, कांच के बर्तन में भगवान को भोग लगाने की गलती कभी ना करें. 
सात्विक और पवित्र हो भोग: देवी-देवताओं को लगाए जाने वाले भोग का सात्विक और पवित्र होना बेहद जरूरी है. हमेशा स्‍नान करके, साफ कपड़े पहनकर, साफ-सुथरी जगह पर ही भोग बनाएं. भगवान के भोग में लहसुन-प्‍याज आदि तामसिक चीजों का इस्‍तेमाल कभी ना करें. 


भोग को रखा ना छोड़ें: देवी-देवता को प्रसाद चढ़ाने या भोग लगाने के कुछ देर बाद भोग उठा लें और सभी लोगों में उसका प्रसाद बांट दें. पूजा समाप्त होने के बाद देर तक प्रसाद को मंदिर में रखा ना छोड़ें. ऐसा करने से भोग में नकारात्मकता आ जाती है.

दी गई जानकारी सामान्य जानकारी पर आधारित हैं।
जय माता दी 🙏🙏

1#सावन सोमवार के दिन भोलेनाथ को इस कथा से करें प्रसन्‍न होगी हर मनोकामना पूरी 🙏🙏

भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए किसी भी प्रकार की विशेष पूजा नहीं की जा सकती। बाइबिल में कहा गया है कि वह तो भोले हैं और भत्रो के मन से निकले हुए क्षणिक गुण की भक्ति से ही वह प्रसन्न हो जाते हैं। अगर आप भी शिव की भक्ति और कृपा के लिए सावन सोमवार का व्रत करते हैं तो इस कथा से भोलेनाथ को प्रसन्न कर सकते हैं।
एक साहूकार था जो शिव का अनन्योतम भत्रोत था। उसके पास धन-धान्य से किसी भी चीज़ की कमी नहीं थी। लेकिन उसका बेटा नहीं था और वह यही चाहता था कि लेकर रोज शिवजी के मंदिर का दीपक जला दिया जाए। उनके इस भक्ति भाव को देखकर एक दिन माता पार्वती ने शिव जी से कहा था कि यह प्रभु साहूकार आपकी अनंत भतीजी है। इसी तरह किसी से भी बात की जाए तो आपको उसे अवश्‍य दूर करना चाहिए। शिव जी बोले कि हे पार्वती इस साहूकार के पास पुत्र नहीं है। यह इसी से दु:खी रहता है।
माता पार्वती ने कहा है कि प्रभु कृपा करके इसे पुत्र का गौरव प्रदान करें। तब भोलेनाथ ने कहा था कि हे पार्वती साहूकार के भाग्य में पुत्र का योग नहीं है। ऐसे में अगर इसे एक साल की बेटी की शोभा भी मिल गई तो वह सिर्फ 12 साल की उम्र तक ही जीवित रहेगी। यह सुनने के बाद भी माता पार्वती ने कहा था कि हे प्रभु आपको इस धनपति को पुत्र का वर देना ही होगा जो आपके पुत्र की सेवा-पूजा करेगा? माता के बार-बार आशीर्वाद से भोलेनाथ ने साहूकार को पुत्र का श्रृंगार दिया। परन्तु यह भी कहा, कि वह केवल 12 वर्ष तक जीवित रहेगा।
ख. वह सबसे पहले इसी तरह भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते रहते हैं। दूसरी सेठानी गर्भवती हुई और नवें महीने में उसे सुंदर से बच्चे की प्राप्ति हुई। परिवार में बहुत सारे हर्षोल्लास मनाए गए लेकिन साहूकार पहले ही की तरह रहे। और उसने बच्चे की 12 साल की उम्र का ज़िक्र किसी से भी नहीं किया। जब बच्चा 11 साल का हो गया तो एक दिन साहूकार की सेठानी से बच्चे की शादी के लिए कहा गया। तो साहूकार ने कहा कि उसने अभी भी बच्चों को पढ़ने के लिए काशीजी भेजा है। इसके बाद बालक की माँ जी को बुलाया गया और कहा गया कि इसे काशी पढ़ने के लिए ले जाओ और रास्ते में जो भी आश्रम में रुकना है, वहां यज्ञ करो और ब्राह्मणों को भोजन कराओ। कहावत भी इसी तरह करते जा रहे थे कि रास्ते में एक राजकुमारी से शादी हुई थी। जिससे उनकी शादी एक नजर से काना थी। तो उनके पिता ने जब अतिसुन्दर साहूकार के बेटे को देखा तो मन में आया कि बेटे न इसे ही घोड़ी पर उनकी सहायक शादी के सारे कार्य के लिए संप ने कहा .. तो स्टूडियो मामा से बात की और कहा कि इसके बदले में वह सारा धन ले जाएगा तो वह भी आश्वस्त हो गया।
इसके बाद साहूकार के बेटे की शादी की बेदी पर चर्चा हुई और जब विवाह कार्य संप को बुलाया गया तो जाने से पहले। इसके बाद वह मामा के साथ काशी के लिए चली गईं। उधर जब राजकुमार ने अपनी चुनी पर यह लिखा पाया तो उसने राजकुमार के साथ जाने से मन कर दिया। तो राजा ने भी अपनी बेटी को बारात के साथ विदा नहीं किया। बारात वापस लौट गई। तीसरे मामा और भांजे काशी जी पहुंच गए थे।
एक दिन जब मामा ने यज्ञ रचाया था और भांजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर देखा तो भांजे के प्राण निकल गए थे। वह बहुत परेशान थी लेकिन उसने सोचा कि अभी रोना-पीटना उद्योग तो ब्राह्मण चल देगा और यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। जब यज्ञ संप का साक्षात्कार हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू कर दिया। उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिव से कहा था कि वह प्रभु कौन आ रहे हैं, इतना ही पता चलता है कि यह तो भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मा मां साहूकार का पुत्र है। तो उनका कहना है कि हे अनुरोधामी इसे जीवित कर दें, इसके माता-पिता के अंत-रोते प्राण निकल जायेंगे। तब भोलेनाथ ने कहा था कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी थी तो उसने भोग चुकाया। लेकिन मां ने बार-बार भोलेनाथ से विनती कर उन्हें जीवित कर दिया। बालक ॐ नम: शिवाय करते हुए जी उठाओ और मामा-भांजे दोनों ने ईवैलर को धन्‍यवाद दिया और अपनी नगरी की ओर रुख किया। रास्ते में वे नगर भोज और राजकन्याओं ने पहचान पत्र लिया तब राजा ने राजमाता को धन-धान्य के साथ धन-धान्य के साथ एक दिन दिया जब मामा ने यज्ञ करवाया और भाँजा बहुत देर तक बाहर नहीं आया तो मामा ने अंदर दर्शकों को देखा तो भांजे के प्राण निकले हुए थे। वह बहुत परेशान थी लेकिन उसने सोचा कि अभी रोना-पीटना उद्योग तो ब्राह्मण चल देगा और यज्ञ का कार्य अधूरा रह जाएगा। जब यज्ञ संप का साक्षात्कार हुआ तो मामा ने रोना-पीटना शुरू कर दिया। उसी समय शिव-पार्वती उधर से जा रहे थे तो माता पार्वती ने शिव से कहा था कि वह प्रभु कौन आ रहे हैं, इतना ही पता चलता है कि यह तो भोलेनाथ के आर्शीवाद से जन्मा मां साहूकार का पुत्र है। तो उनका कहना है कि हे अनुरोधामी इसे जीवित कर दें, इसके माता-पिता के अंत-रोते प्राण निकल जायेंगे। तब भोलेनाथ ने कहा था कि हे पार्वती इसकी आयु इतनी ही थी सो वह भुगतान किया गया। लेकिन मां ने बार-बार भोलेनाथ से विनती कर उन्हें जीवित कर दिया। लड़के ओम नम: शिवाय करते हुए जी उठाओ और मामा-भांजे दोनों ने ईवैलर को धनयवाद दिया और अपनी नगरी की ओर रुख किया। रास्ते में वही नगर भोज और राजकुमारी ने पहचान पत्र लिया जिसमें राजा ने राजकुमारी को साहूकार के पुत्र के साथ बहुत सारा धन-धान के साथ रखा
विदा किया।

अन्य साहूकार और उसकी पाटनी छत पर बैठे थे। यह कर अनुरोध किया गया था कि यदि उनका बेटा सकुशल वापस नहीं लौटा तो वह छत से कूदकर अपना प्राण स्थापित कर देगा। उस लड़के के मामा ने सानिया साहूकार के बेटे और बहू के आने का समाचार दिया, लेकिन उन्होंने कोई शपथ नहीं ली, तो मामा ने शपथ ली, तब कहा तो दोनों को मिलाप हो गया और दोनों ने अपने बेटे-बहू का वादा किया। उसी रात साहूकार कंपनी ने शिव जी को दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारे पूजन से मैं प्रसाद का दर्शन करता हूं। इसी प्रकार जो भी इलेक्ट्रोनिक इस कथा को पढ़ेगा या सुनेगा उसका समस्त दु:ख दूर हो जाएगा और सभी मनों का प्रसार होगा।
हर हर महादेव 🙏
पूर्ण लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🙏🌷

1#सावन मास में इन मंत्रों का करें जाप, महाकाल होंगे प्रसन्न, रुके हुए काम भी हो जाएंगे पूरे 2023शुभ सोमवार 🙏👇

सावन का भगवान शिव को समर्पित है. इस महीने में भोलेनाथ की पूजा-पाठ करने से विशेष फलों की प्राप्ति होती है. ऐसे में आज हम आपको कुछ ऐसे मंत्र बताने जा रहे हैं, जो आपकी बंद किस्मत का दरवाजा खोल सकते हैं
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ओम।
हिंदू धर्म में सावन (सावन माह 2023 Kab Hai) के महीने का खास महत्व है. यह महीना भोलेनाथ को समर्पित होता है. हिंदू कैलेंडर के अनुसार, यह पांचवा महीना होता है. मान्यता है कि सावन के महीने में भगवान शिव (Lord Shiva) की विधि-विधान से पूजन करने पर लोगों की हर मनोकामना पूरी होती है. इस साल अधिक मास के कारण सावन दो माह का होगा. सावन की शुरुआत 4 जुलाई से हो रही है, जो 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगा. 
सावन के महीने में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए भक्त पूजा-पाठ आदि के साथ तरह-तरह के उपाय और टोटके अपनाते हैं. मान्यता है कि सावन के महीने में मंत्रों का जाप करना लाभकारी साबित हो सकता है. इन मंत्रों के जाप से व्यक्ति को हर काम में सफलता मिलती है. इसके साथ ही धन-दौलत, सुख-समृद्धि, नौकरी, विवाह आदि के साथ अच्छा स्वास्थ्य भी मिलेगा. ऐसे में आइये जानते हैं भगवान शिव के मंत्र 


सावन माह में करें इन मंत्रों का जाप
शिव पंचाक्षार मंत्र
मान्यता है कि भोलेनाथ ने स्वयं पंचाक्षर मंत्र की रचना की है-ऊं नम: शिवाय. इस मंत्र के जाप से हर तरह के कष्टों से छुटकारा मिल सकता है. 


महामृत्युंजय मंत्र
ऊँ हौं जूं स: ऊँ भुर्भव: स्व: ऊँ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्। 
ऊर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात् ऊँ भुव: भू: स्व: ऊँ स: जूं हौं ऊँ।।
रुद्र गायत्री मंत्र 
ॐ तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि
तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्॥


इन मंत्रों का भी करें जाप
ॐ सर्वात्मने नम:
ॐ त्रिनेत्राय नम:
ॐ हराय नम:
ॐ इन्द्रमुखाय नम:
ॐ श्रीकंठाय नम:
ॐ वामदेवाय नम:
ॐ तत्पुरुषाय नम:
ॐ ईशानाय नम:
ॐ अनंतधर्माय नम:
ॐ ज्ञानभूताय नम:
ॐ अनंतवैराग्यसिंघाय नम:
ॐ प्रधानाय नम:
ॐ व्योमात्मने नम:
ॐ युक्तकेशात्मरूपाय नम
सावन सोमवार की( तारीख 2023 सावन सोमवार)
सावन का पहला सोमवार: 10 जुलाई
सावन का दूसरा सोमवार: 17 जुलाई
सावन का तीसरा सोमवार: 24 जुलाई
सावन का चौथा सोमवार: 31 जुलाई
सावन का पांचवा सोमवार: 07 अगस्त
सावन का छठा सोमवार:14 अगस्त
सावन का सातवां सोमवार: 21 अगस्त
सावन का आठवां सोमवार: 28 अगस्त
ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय ॐ नमः शिवाय हर हर हर महादेव 🙏🙏
पूरा लेख पढ़ने के लिए धन्यवाद आपका 🙏🙏

1#सावन माह में रविवार के उपाय पढ़िए लघु कथा 🙏👇


हिंदू धर्म में वार यानी दिन का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि हर एक दिन किसी न किसी देवी-देवताओं को समर्पित होता है। इसी क्रम में रविवार का दिन भगवान सूर्य देव को समर्पित है। सनातन धर्म में मान्यता है कि सूर्य देव को ग्रहों का राजा कहा जाता है। यह सभी ग्रहों में सबसे बलवान होता है। इस दिन भगवान सूर्य की विधि-विधान से पूजा करने से हर मनोकामना पूरी होती है। इसके साथ ही रविवार के दिन मां लक्ष्मी की भी आराधना करना शुभ माना जाता है। यह भी मान्यता है कि रविवार के दिन कुछ उपाय करने से मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और हर मनोकामना पूरी करती हैं।कुंडली में सूर्य देव की स्थिति मजबूत होने से व्यक्ति को सुख, संपत्ति व यश की प्राप्ति होती है व बिगड़े काम भी बनने लगते हैं। ऐसे में ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कुछ उपायों की मदद से जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं। आइए जानते हैं कि कौन-कौन से उपाय हैं, जो आपकी किस्मत के बंद दरवाजे खोल सकते हैं।।
रविवार के दिन सुबह उठकर स्नान करके सूर्य देवता को अर्घ्य देना चाहिए। अर्घ्य देते हुए इस मंत्र का उच्चारण जरूर करना चाहिए- 'ओम सूर्याय नमः ओम वासुदेवाय नमः ओम आदित्य नमः' इससे सूर्य देवता प्रसन्न होकर हर मनोकामना को पूरी करते हैं।
इसके अलावा रविवार के दिन अपने घर के बाहरी दरवाजे के दोनों तरफ देसी घी का दीपक जलाना चाहिए। इसे मां लक्ष्मी प्रसन्न होती हैं और घर में वास करती हैं। यह दिन भी माता लक्ष्मी को प्रसन्न करने के लिए अच्छा दिन माना जाता है।
रविवार के दिन दान करने के लिए भी शुभ दिन माना जाता है। इस दिन गुड़, दूध, चावल व कपड़ा का दान करने से भी सूर्य देवता प्रसन्न होते हैं। इस दिन दान का भी विशेष महत्व है।
रविवार के दिन चंदन का तिलक जरूर लगाना चाहिए। ऐसा करना शुभ माना जाता है और महालक्ष्मी भी प्रसन्न होती हैं। इसके साथ ही लाल कपड़े को जरूर शरीर में धारण करना चाहिए।
ये नुखसे आजमा कर अपनी किस्मत बदल सकते हैं।
बोलो सूर्य भगवान की जय 🙏

1#दिवाली पर इस कथा के बिना अधूरी मानी जाती है लक्ष्मी पूजन, जरुर पढ़ें ये कथा 2023🙏👇

दिवाली पर मां लक्ष्मीजी और भगवान गणेश जी पूजा करने का विधान है। इस साल दिवाली 24 अक्टूबर को है। दिवाली पर मां लक्ष्मी की पूजा के साथ साथ उनकी यह कथा पढ़ने से भी व्यक्ति को विशेष लाभ मिलता है। यहां पढ़ें दिवाली की कथा।
ॐ जय लक्ष्मी माता।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।।
एक नगर में एक साहूकार रहता था। उसकी एक लड़की थी। उसने देखा कि लक्ष्मी जी पीपल से निकला करती हैं। एक दिन लक्ष्मी जी उस साहूकार की लड़की से बोली कि मैं तुझ पर बहुत प्रसन्न हूं। इसलिए तू मेरी सहेली बन सकती है। लड़की बोली क्षमा कीजिए मैं अपने माता पिता से पूछकर बताऊंगी। इसके बाद वह आज्ञा पाकर श्री लक्ष्मीजी की सहेली बन गई। 
महालक्ष्मी जी उससे बहुत प्रेम करती थी।
एक दिन लक्ष्मीजी ने उस लड़की को भोजन का निमंत्रण दिया। जब लड़की भोजन करने के लिए आई तो लक्ष्मी जी ने उसे सोना चांदी के बर्तनों में खाना खिलाया। सोना की चौकी पर बिठाया और उसे बहुमूल्य वस्त्र ओढ़ने को दिए। इसके बाद लक्ष्मी जी ने कहा कि मैं भी कल तुम्हारे यहां आऊंगी। लड़की ने स्वीकार कर लिया और अपने माता पिता को सब हाल कहकर सुनाया। यह सुनकर उसके माता पिता बहुत खुश हुए। लेकिन, लड़की उदास होकर बैठ गई। कारण पूछने पर उसने अपने माता पिता को बताया कि लक्ष्मी जी का वैभव बहुत बड़ा है। मैं उन्हें कैसे संतुष्ट कर सकूंगी। उसके पिता ने कहा कि बेटी गोबर से जमीन को लीपकर जैसा भी बन पड़े रूखा सूखा श्रद्धा और
प्रेम से खिला देना।।
यह बात पिता कह भी न पाए की एक चील वहां मंडराते हुए आई और किसी रानी का नौलखा हार वहां डालकर चली गगई। यह देखकर साहूकार की लड़की बहुत प्रसन्न हुई। उसने उस हार को बेचकर लक्ष्मीजी के भोजन का इंतजाम किया। इसके बाद वहां श्री गणेशजी और लक्ष्मी जी वहां आ गए। लड़की ने उन्हें सोने की चौकी पर बैठने को कहा। इस पर महा लक्ष्मीजी और गणेशजी ने बड़े प्रेम से भोजन किया। लक्ष्मी जी और गणेशजी के आने से साहूकार का घर सुख संपत्ति से भर गया। हे लक्ष्मी माता जिस प्रकार उस लड़की पर अपनी कृपा बरसाई। उसी प्रकार सभी घरों में सुख संपत्ति देना।।।।।।।
Devshayani Ekadashi 2023: बेहद शुभ योग में देवशयनी एकादशी, शाम के वक्‍त इन उपायों को करने से प्रसन्‍न होंगी मां लक्ष्‍मी।।।

#1बुधवार को गणेश जी को प्रसन्न करने के लिए जरूर करे ये आसान उपाय 1#🙏🌷👇🌹👇

👇👸सब लोग जानते हैं भगवान गणेश प्रथम पूज्य देव हैं सभी देवी देवताओ में सर्व प्रथम पूजे जातें हैं आज गणेश भगवान को प्रसन्न करने का छोटा सा तरीका।
बताती हूं इसे करके आप भी गणेश भगवान को प्रसन्न कर सकते हैं।
गणेश भगवान जी को दुर्वा अतिप्रिय हैंआप बुधवार को श्री 
भगवान गणेश जी को दूर्वा अर्पित करके मनोबंचित फल प्राप्त कर सकते हैं ।
लाल सिंदूर भगवान गणेश को अति प्रिय हैं  गणेश भगवान को आप बुधवार लाल सिंदूर अर्पित करें। ॐ श्री गणेशाय नमः। बुधवार का दिन भगवान गणेश को समर्पित हैं बुधवार को  ये छोटे नुस्खे आप भी आजमा कर देखें। भगवान गणेश जी की कृपा जरूर होगी सभी भक्तो पर।
गणेश भगवान जी की जय।

1#ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे 🙏👇 पढ़िए भगवान विष्णु जी की आरती।

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे | 1
 
 | ॐ जय जगदीश हरे |
 
मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं मैं किसकी
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी |
 तुम पूरण परमात्मा,
तुम अंतर्यामी
स्वामी तुम अंतर्यामी
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी |2
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
तुम करुणा के सागर,
तुम पालन कर्ता
स्वामी तुम पालन कर्ता
मैं मूरख खल कामी ,
कृपा करो भर्ता ।3

 |ॐ जय जगदीश हरे |
 तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति |4
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
दीनबंधु दुखहर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी ठाकुर तुम मेरे
अपने हाथ उठा‌ओ,
द्वार पड़ा मैं तेरे |5
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
विषय विकार मिटा‌ओ,
पाप हरो देवा,
स्वामी पाप हरो देवा,
श्रद्धा भक्ति बढ़ा‌ओ,
संतन की सेवा |6
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
श्री जगदीश जी की आरती,
जो कोई नर गावे,
स्वामी जो कोई नर गावे।
कहत शिवानन्द स्वामी,
सुख संपत्ति पावे |7
 
| ॐ जय जगदीश हरे |
 
। इति श्री विष्णु आरती ।
 
“ॐ जय जगदीश हरे स्वामी जय जगदीश हरे भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट क्षण में दूर करे ॐ जय जगदीश हरे”
बोलो श्री हरि विष्णु भगवान की जय।।

लक्ष्मी माता के 18 पुत्रो के नाम 🙏🏻🙏🏻👇

1.ॐ देवसखाय नम: 2. ॐ चिक्लीताय नम:

भक्ति स्टोरी घरेलू नुस्खे आदि 🙏🌹