1#भक्त प्रह्लाद की कहानी 🙏🙏🌹🌹👍👍❤️❤️

विष्णु पुराण में भक्त प्रह्लाद की कथा का उल्लेख है। प्रह्लाद भगवान विष्णु के अनन्य भक्तों में से एक थे। आइये विस्तार से जानते हैं भक्त प्रह्लाद की कहानी जो अत्यंत रोचक और बच्चों के लिए प्रेरणादायक है।

सनकादि ऋषियों के शाप के कारण भगवान विष्णु के पार्षद जय एवं विजय को दैत्ययोनि में जन्म लेना पड़ा था।
महर्षि कश्यप की पत्नी दक्षपुत्री दिति के गर्भ से दो बड़े पराक्रमी बालकों का जन्म हुआ। इनमें से बड़े का नाम हिरण्यकशिपु और छोटे का नाम हिरण्याक्ष था।

दोनों भाइयों में बड़ी प्रीति थी। दोनों ही महाबलशाली, पराक्रमी और आत्मबल संपन्न थे। दोनों भाइयों ने युद्ध में विश्व को परास्त करके स्वर्ग पर अधिकार कर लिया।

एक समय जब हिरण्याक्ष ने पृथ्वी को रसातल में ले लिया तब भगवान विष्णु ने वराह अवतार लेकर पृथ्वी की रक्षा के लिए हिरण्याक्ष का वध कियाअपने प्रिय भाई हिरण्याक्ष के वध से व्यान्यकशिपु ने दैत्यों को प्रजा पर अत्याचार करने की आज्ञा देकर स्वयं महेन्द्राचल पर्वत पर चला गया।

वह भगवान विष्णु द्वारा अपने भाई की हत्या का बदला लेने के लिए ब्रह्मा जी की घोर तपस्या करने लगा।

शोक दैत्यों के राज्य को राजाविहीन देखकर दुनिया ने उन पर आक्रमण कर दिया। दैत्यगण इस युद्ध में पराजित होकर पाताललोक में भाग लिए।

देवराज इंद्र ने हिरण्यकशिपु के महल में प्रवेश कर अपनी पत्नी अवैध को बांध लिया। उस समय प्रेक्षित था, इसलिए इंद्र उसे साथ लेकर अमरावती की ओर जाने लगे।

रास्ते में उनकी देवर्षि नारद से खाताधारक हो गए। नारद जी ने पुछा – “देवराज ! इसे कहां ले जा रहे हो? "

इन्द्र ने कहा – ” देवर्षे ! इसके गर्भ में हिरण्यकशिपु का मूल है, इसे मार कर इसे छोड़ दें। "

यह सुनकर नारदजी ने कहा – “देवराज ! इसके गर्भ में बहुत बड़ा भगवद्भक्त है, जो आपकी शक्ति के बाहर गिरता है, इसलिए इसे दो छोड़ देता है। "।
नारदजी के कथन का मान रखते हुए इन्द्र ने छायाधू को छोड़ दिया और अमरावती चले गए।

नारदजी कयाधु को अपने अजर पर ले आओ और उससे कहो – “बेटी! तुम यहाँ आराम से पहले जब तक घनिष्ठ पति अपनी तपस्या पूरी करके नहीं लौटता। "

छेदाधू उस पवित्र अज्ञान में नारदजी के सुन्दर प्रवचनों का लाभ हुई हुई सुखपूर्वक रहने लगी जिसका गर्भ में पल रहे शिशु पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।

समय होने पर अवैध ने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम प्रह्लाद रखा गया।

विनाश हिरण्यकशिपु की तपस्या पूरी तरह से हुई और वह ब्रह्माजी से मनचाहा वरदान लेकर वापस अपनी राजधानी चला गया।

कुछ समय बाद खैयाधू भी प्रह्लाद को लेकर नारदजी के आश्रम से राजमहल में आ गया।जब प्रह्लाद कुछ बड़े हुए तब हिरण्यकशिपु ने अपनी शिक्षा की व्यवस्था की। प्रह्लाद गुरु के सन्निध्य में शिक्षा ग्रहण करें।

एक दिन हिरण्यकशिपु अपने मंत्री के सदन में बैठा था। उसी समय प्रह्लाद अपने गुरु के साथ वहाँ गए।

प्रह्लाद को प्रणाम करते हुए हिरण्यकशिपु ने उसे अपनी गोद में बिठाकर दुलार किया और कहा -

“वत्स! अभी तक अध्ययन में निरंतर तत्पर जो कुछ खुश हैं, उसमें से कुछ अच्छी बातें सूनो। "

तब प्रह्लाद बोले – “अपमानजनक ! मैं अब तक जो कुछ खुश हूं उसका सारांश आपको सुना रहा हूं। जो आदि, मध्य और अंत से अनुपयोगी, अजन्मा, वृद्धि-क्षय से शुन्य और उत्कृष्टयुत हैं, सभी कारणों के कारण तथा जगत की स्थिति और अंत कर्ता उन श्रीहरि को मैं प्रणाम करता हूं। "

यह सुनकर दैत्यराज हिरण्यकशिपु के नेत्र क्रोध से लाल हो उठे, उसने कांपते हुए होठों से प्रह्लाद के गुरु से कहा -
अरे दुर्बुद्धि ब्राह्मण ! यह क्या ? तूने मेरी अवज्ञा करके इस बालक को मेरे परम शत्रु की स्तुति से युक्त शिक्षा कैसे दी ? "गुरुजी ने कहा – “दैत्यराज ! आपको क्रोध के वशीभूत नहीं होना चाहिए। आपका बेटा मेरी सिखाई गई बात नहीं कह रहा है। "

हिरण्यकशिपु बोला – “बेटा प्रह्लाद ! लगता है तुम्हें यह शिक्षा कौन देता है ? तुम्हारे गुरुजी कहते हैं कि मैंने तो इसे ऐसा उपदेश दिया ही नहीं है। "

प्रह्लाद बोले – “संवेदी ! ह्रदय में स्थित भगवान विष्णु ही तो संपूर्ण जगत के उपदेशक हैं। उन्हें छोड़कर और किन्हें कोई खुश कर सकता है। "

हिरण्यकशिपु बोला – ” अरे मुर्ख ! जिस विष्णु का तू निष्शंक स्तुति कर रहा है, वह मेरे सामने कौन है ? मेरे रहने और कौन परमेश्वर हो सकता है ? फिर भी तू मौत की खबर में जाने की इक्षा से बार-बार ऐसा बक रहा है। "

ऐसा देश हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद को कई प्रकार से समन पर प्रह्लाद के मन से श्रीहरि के प्रति भक्ति और श्रद्धाभाव को कम नहीं पाया। तब अत्यंत क्रोधित हुई हिरण्यकशिपु ने अपने सेवकों से कहा –

“अरे! यह परम दुरात्मा है। इसे मार डालो। अब इसका वनक्षेत्र से कोई लाभ नहीं है, क्योंकि यह शत्रुप्रेमी तो अपने कुल का ही नाश करने वाला हो गया है। "

हिरण्यकशिपु की आज्ञा पाकर उसके सैनिक प्रह्लाद को कई प्रकार से मारने की चेष्टा के पर उनके सभी प्रयासों श्रीहरि की कृपा से प्रभावित हो जाते थे।

उन सैनिकों ने प्रह्लाद पर कई प्रकार के अस्त्र शस्त्रों से आघात होने पर प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। उन्होंने प्रह्लाद के पैर-पैर फुटकर समुद्र में डाल दिया पर प्रह्लाद फिर भी बच गए।

उन सबने प्रह्लाद को कई दृश्यमान सर्पों से दसवाया और पर्वत शिखर से गिराया पर भगवद्कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ।

रसोइयों द्वारा विष मिलाए गए भोजन देने पर प्रह्लाद उसे भी पचा गए।

यह भी पढ़े:जब प्रह्लाद को मारने के सभी प्रकार के प्रयास विफल हो जाते हैं तब हिरण्यकशिपु के पुरोहितों ने अग्निशिखा के समान समानता वाली शारीरिक क्रियाओं को प्राप्त कर लिया।

उस अति उग्र कृत्या ने अपने पैरों से पृथ्वी को कम्प्यूट करते हुए दिखाई देते हैं बड़े क्रोध से प्रह्लाद जी की छाती में त्रिशूल से झटका किया। पर उस बालक के छाती में ही वह तेजोमय त्रिशूल टूटकर निचे गिरा पड़ा।

उन पापी पुरोहितों ने उस निष्कपटपाप बालक पर क्रिया का प्रयोग किया था। इसलिए कृत्या ने तुरंत ही उन पुरोहितों पर वार कर दिया और स्वयं भी नष्ट हो गया।

अन्य परिस्थितियों में कार्य के स्थान पर होलिका का नाम प्रकट होता है जिसे अग्नि में कोई वरदान प्राप्त नहीं हुआ था।

होलिका प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर प्रज्ज्वलित अग्नि में प्रवेश कर गई पर ईश्वर की कृपा से प्रह्लाद को कुछ भी नहीं हुआ और होलिका जल कर भस्म हो गई।

भगवान का नृसिंह अवतार
हिरण्यकशिपु के दूतों ने जब उसे खबर सुनाई तो वह अत्यंत कर्तव्यनिष्ठ हो गया और उसने प्रह्लाद को अपने सदन में बुलवाया।

हिरण्यकशिपु ने प्रह्लाद से कहा - "रे दुष्ट! जिसके बल पर तू ऐसी बहकी बहकी बातें करता है, तीखा वह ईश्वर खाता है ? वह सर्वत्र है तो मुझे इस खंबे में क्यों दिखाई नहीं देता ? "
यह सुनकर हिरण्यकशिपु क्रोध के मारे हुए स्वयं को संभाल नहीं सका और हाथ में तलवार लेकर सिंघासन से कूद पड़ा और बड़ा जोर से उस खंबे में एक घूणसा मारा।

उसी समय उस खंबे से बड़ा भयंकर शब्द हुआ और उस खंबे को तोड़कर एक विचित्र प्राणी निकल गया जिसका आधा शरीर सिंह और आधा शरीर मनुष्य था।

यह भगवान श्रीहरि का नृसिंह अवतार था। उनका रूप बड़ा भयंकर था।

वे तपाये हुए सोने के समान पीले पीले रंग में थे, उनके दाढ़ें बड़े विकराल थे और वे भयंकर शब्द से गर्जन कर रहे थे। उनके करीब जाने का खुलासा किसी में नहीं हो रहा था।

यह देखकर हिरण्यकशिपु सिंघनाद करता हुआ हाथ में गदा लेकर नृसिंह भगवान पर टूट पड़ा।

तब भगवान भी हिरण्यकशिपु के साथ कुछ देर तक युद्ध लीला करते रहे और अंत में उसे झपटकर दबोच लिया और उसे सभा के दरवाजे पर ले जाकर अपनी जांघों पर गिरा लिया और खेल ही खेल में अपनी नखों से उसके कलेजे को तोड़कर उसे धरती पर पटक दिया ।

फिर वहां अन्य असुरों और दैत्यों को खदेड़ खदेड़ कर मार डाला। उनका क्रोध बढ़ता ही जा रहा था। वे हिरण्यकशिपु के ऊँचे सिंघासन पर विराजमान हो गए।

उनकी क्रोधपूर्ण मुखाकृति को देखकर किसी को भी उनके निकट जाकर उनकी प्रसन्नता का बोध नहीं हो रहा था।

हिरण्यकशिपु की मृत्यु का समाचार सुनकर उस सभा में ब्रह्मा, इंद्र, शंकर, सभी देवगण, ऋषि-मुनि, सिद्ध, नाग, गन्धर्व आदि पहुंचे और थोड़ी दूर पर स्थित सभी ने अंजलि करार कर भगवान की अलग-अलग से स्तुति की पर भगवान नृसिंह का क्रोध शांत नहीं हुआ।

तब वैश्विक माता लक्ष्मी को उनके निकट भेजे जाने पर भगवान के उग्र रूप को देखकर वे भी आत्माभिमानी हो गईं।

तब ब्रह्मा जी ने प्रह्लाद से कहा – “बेटा! तुम्हारे पिता पर ही तो भगवान क्रुद्ध थे, अब तुम्ही चले जाओ उन्हें शांत करो। "

तब प्रह्लाद भगवान के निकट जाकर साष्टांग भूमि पर लोट गए और उनकी स्तुति करने लगे।

बालक प्रह्लाद को अपने चरणों में पड़ा देखकर भगवान दयाद्र हो गए और उसे उठाकर गोद में बिठा लिया और प्रेमपूर्वक कहा -

” वत्स प्रह्लाद ! आपके जैसे एकांतप्रेमी भक्त को हालांकि किसी वस्तु की अभिलाषा नहीं रहती है पर फिर भी तुम केवल एक मन्वन्तर तक मेरी चेतना के लिए इस लोक में दैत्यपति के सभी भोग स्वीकार कर लो।

भोग के पुण्यकर्मो के फल और निष्काम पुण्यकर्मों द्वारा पाप का नाश करते हुए समय पर शरीर का त्याग करके समस्त बंधनों से मुक्त होकर तुम मेरे पास आ गोगे। देवलोक में भी लोग पूरी तरह कीर्ति का गान करेंगे। "

यह भिन्न भगवान नृसिंह वहीँ अंतर्ध्यान हो गए।

विष्णु पुराण में पराशर जी कहते हैं – “भक्त प्रह्लाद की कहानी को जो मनुष्य सुनता है उसका पाप ही नष्ट हो जाता है। पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी और द्वादशी को इसे पढ़ने से मनुष्य को गोदान का फल मिलता है।

जिस प्रकार भगवान ने प्रह्लाद जी की सभी आपत्तियों से रक्षा की थी उसी प्रकार वे सर्वदा उनकी भी रक्षा करते हैं जो उनका चरित्र सुनते हैं। "

संबंधितभोग के पुण्यकर्मो के फल और निष्काम पुण्यकर्मों द्वारा पाप का नाश करते हुए समय पर शरीर का त्याग करके समस्त बंधनों से मुक्त होकर तुम मेरे पास आ गोगे। देवलोक में भी लोग पूरी तरह कीर्ति का गान करेंगे। "

यह भिन्न भगवान नृसिंह वहीँ अंतर्ध्यान हो गए।

विष्णु पुराण में पराशर जी कहते हैं – “भक्त प्रह्लाद की कहानी को जो मनुष्य सुनता है उसका पाप ही नष्ट हो जाता है। पूर्णिमा, अमावस्या, अष्टमी और द्वादशी को इसे पढ़ने से मनुष्य को गोदान का फल मिलता है।

जिस प्रकार भगवान ने प्रह्लाद जी की सभी आपत्तियों से रक्षा की थी उसी प्रकार वे सर्वदा उनकी भी रक्षा करते हैं जो उनका चरित्र सुनते हैं।
धन्यवाद🙏❤️👍🌹🙋



1#शिव भक्त की कहानी (आंसू रोक नहीं पयोगे )🌹🌹🙏🙏😭😭

एक अद्भुत कवी संत थे जिनका जनम कर्नाटक में हुआ था | उनका नाम था दासिमैया वह इतने अछे बुनकर थे की उनोने एक बार बहुत माहिम और बहुत सूंदर पगड़ी का कपडा बुनना शुरू किया | बुनते बुनते उनको पूरा एक महीना लगा आखिर उनोने वह कपडा बुन ही लिया और क्युकि उनकी कमाई भी इससे से होती थी| फिर एक दिन वह उसे बेचने के लिया बाजार ले गए |

वह कपडा इतना सूंदर था की किस ने भी उस कपडे की कीमत नहीं पूछी | सभी को लगा की ये बहुत महंगा होगा | फिर वह अपने कपडे के साथ वापिस आ रहे थे |एक अद्भुत कवी संत थे जिनका जनम कर्नाटक में हुआ था | उनका नाम था दासिमैया वह इतने अछे बुनकर थे की उनोने एक बार बहुत माहिम और बहुत सूंदर पगड़ी का कपडा बुनना शुरू किया | बुनते बुनते उनको पूरा एक महीना लगा आखिर उनोने वह कपडा बुन ही लिया और क्युकि उनकी कमाई भी इससे से होती थी| फिर एक दिन वह उसे बेचने के लिया बाजार ले गए  | नो

वह कपडा इतना सूंदर था की किस ने भी उस कपडे की कीमत नहीं पूछी | सभी को लगा की ये बहुत महंगा होगा | फिर वह अपने कपडे के साथ वापिस आ रहे थे |रस्ते में उने एक बूढ़ा आदमी बैठा मिला| उसने दासिमैया की तरफ देखकर कहा में कांप रहा हु |क्या तम मुझे वह कपडा दे सकते हो |दयालु भाव होने के कारन दासिमैया ने वह कपडा वह बूढ़े आदमी को वो कपडा दे दिया |


उस आदमी ने वह कपडा खोला और उस कपडे के कई टुकड़े करदिया | एक टुकड़ा उसने अपने सिर पर भांध लिया दूसरा अपने छाती पर और दो छोटे टुकड़े अपने पैरो पर और हाथो पर भांध कर बैठ गया |

दासिमैया बस देखते रहे अचानक से बूढ़ा आदमी में ने पूछा क्या कोई दिकत है | दासिमैया बोलै नहीं बस यह कपडा बस आपका ही है आप जो चाहे कर सकते है | फिर दासिमैया उस बूढ़े आदमी को अपने घर खाने खिलाने के लिए ले गए | लेकिन घर पर खाने के लिए कुछ नहीं था अतिथि को देखकर उनकी पत्नी बोली घर में इतना खाना भी नहीं की आप खा सके और आप एक मेहमान साथ ले आये| दासिमैया फिर परेशान होकर कहा चलो मेरा छोड़ो घर में जो भी तिल फूल है उसे बनाकर ले आओ|

तो फिर क्या था अपने भक्त को ज्यादा दिएर असमंजस में पड़ा नहीं देख पाए |वह बूढ़ा आदमी और कोई नहीं वह भगवान शिव थे | वह दासिमैया की हालत देख अपने वास्तविक रूप में आ गये |

फिर भगवान शिव एक मुठी चावल उनके अनाज के बर्तन में डाल दिया | वह बर्तन अक्षय बन गया भाव: की जिसका कभी अंत न हो |उस बर्तन में फिर कभी भी अनाज ख़तम नहीं हुआ यानि वह कभी खली नहीं हुआ | दासिमैया और उनकी पत्नी ने उस बर्तन से बहुत से लोगो की मदद की यानि बहुत से बुखो को खाना भी खिलाया और स्वयं भी उससे ही भोजन पाया |


यह था दासिमैया की कथा | उनकी भक्ति ,कविताये और उनकी अनुपस्तिथि ने कई लोगो को रूपांतरित किया और कई लोगो कि हिरदय परिवर्तन किया | इस वजह से लोगो दासिमैया को देवरा दासिमिया कहने लगे |देवरा कि भाव अर्थ: यह है की जो ईश्वर का है |

भोलेनाथ को पहने के लिए कुछ ज्यादा यातन करने की भी जरूरत नहीं पढ़ती बाबा तो बस प्रेम की डोर से खींचे चले आते है | मन में अचे भाव हो हिरदय में प्रभु का नाम हो | सबको एक ही द्रिष्टि से देखा जाये है और यह सोचा सब शिव के अंश |


पढ़ने के बाद comment करके बताये आपको कैसे लगे यह कथा और कमेंट में ॐ नमः शिवाय लिखना न भूले| दोस्तों को भी share करे | हर हर महादेव 🙏🙏👍👍🙋🙋😘😘

1#भगवान को पाने का सबसे सरल मार्ग क्या है? पढ़िए ये रोचक कहानी🙏🙏🌹🌹👍👍🙋🙋

एक गाँव में एक बूढ़ी माई रहती थी। माई का आगे – पीछे कोई नहीं था इसलिए बूढ़ी माई बिचारी अकेली रहती थी। एक दिन उस गाँव में एक साधु आया। बूढ़ी माई ने साधु का बहुत ही प्रेम पूर्वक आदर सत्कार किया। जब साधु जाने लगा तो बूढ़ी माई ने कहा – “ महात्मा जी ! आप तो ईश्वर के परम भक्त हैं। कृपा करके मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिये जिससे मेरा अकेलापन दूर हो जाये। अकेले रह – रह करके उब चुकी हूँ। ”



साधु ने मुस्कुराते हुए अपनी झोली में से बाल – गोपाल की एक मूर्ति निकाली और बुढ़िया को देते हुए कहा – “ माई ये लो आपका बालक है, इसका अपने बच्चे की तरह प्रेम पूर्वक लालन-पालन करती रहना। बुढ़िया माई बड़े लाड़-प्यार से ठाकुर जी का लालन-पालन करने लगी।

एक दिन गाँव के कुछ शरारती बच्चों ने देखा कि माई मूर्ति को अपने बच्चे की तरह लाड़ कर रही है। नटखट बच्चों को माई से हंसी – मजाक करने की सूझी। उन्होंने माई से कहा - "अरी मैया सुन ! आज गाँव में जंगल से एक भेड़िया घुस आया है, जो छोटे बच्चों को उठाकर ले जाता है और मारकर खा जाता है। तू अपने लाल का ख्याल रखना, कहीं भेड़िया इसे उठाकर ना ले जाये !

बुढ़िया माई ने अपने बाल-गोपाल को उसी समय कुटिया मे विराजमान किया और स्वयं लाठी (छड़ी) लेकर दरवाजे पर पहरा लगाने के लिए बैठ गयी। अपने लाल को भेड़िये से बचाने के लिये बुढ़िया माई भूखी -प्यासी दरवाजे पर पहरा देती रही। पहरा देते-देते एक दिन बीता, फिर दूसरा, तीसरा, चौथा और पाँचवा दिन बीत गया।

बुढ़िया माई पाँच दिन और पाँच रात लगातार, बगैर पलके झपकाये -भेड़िये से अपने बाल-गोपाल की रक्षा के लिये पहरा देती रही। उस भोली-भाली मैया का यह भाव देखकर, ठाकुर जी का ह्रदय प्रेम से भर गया, अब ठाकुर जी को मैया के प्रेम का प्रत्यक्ष रुप से आस्वादन करने की इच्छा हुई ।

भगवान बहुत ही सुंदर रुप धारण कर, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर माई के पास आये। ठाकुर जी के पाँव की आहट पाकर माई ड़र गई कि "कही दुष्ट भेड़िया तो नहीं आ गया, मेरे लाल को उठाने !" माई ने लाठी उठाई और भेड़िये को भगाने के लिये उठ खड़ी हुई ।
तब श्यामसुंदर ने कहा – “मैय्या मैं हूँ, मैं तेरा वही बालक हूँ -जिसकी तुम रक्षा करती हो!"
माई ने कहा - "क्या ? चल हट तेरे जैसे बहुत देखे है, तेरे जैसे सैकड़ों अपने लाल पर न्योछावर कर दूँ, अब ऐसे मत कहियो! चल भाग जा यहा से ।

ठाकुर जी मैय्या के इस भाव और एकनिष्ठता को देखकर बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गये। ठाकुर जी मैया से बोले - "अरी मेरी भोली मैया, मैं त्रिलोकीनाथ भगवान हूँ, मुझसे जो चाहे वर मांग ले, मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूँ।"
बुढ़िया माई ने कहा - "अच्छा आप भगवान हो, मैं आपको सौ-सौ प्रणाम् करती हूँ ! कृपा कर मुझे यह वरदान दीजिये कि मेरे प्राण-प्यारे लाल को भेड़िया न ले जाय।" अब ठाकुर जी और ज्यादा प्रसन्न होते हुए बोले - "तो चल मैया मैं तेरे लाल को और तुझे अपने निज धाम लिए चलता हूँ। वहाँ भेड़िये का कोई भय नहीं है।" इस तरह प्रभु बुढ़िया माई को अपने निज धाम ले गये।

इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें अपने अन्दर बैठे ईश्वरीय अंश की काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी भेड़ियों से रक्षा करनी चाहिए। जब हम पूरी तरह से तन्मय होकर अपनी पवित्रता और शांति की रक्षा करते हैं तो एक न एक दिन ईश्वर हमें दर्शन जरूर देते हैं। भगवान को पाने का सबसे सरल मार्ग है, भगवान को प्रेम करो - निष्काम प्रेम जैसे बुढ़िया माई ने किया।के लिए ,,धन्यवाद !🙏🙏

1#भगवान सब जगह हैंं पहले करो विश्वास फिर देखो चमत्कार🙏🙏🌹🌹




 

मैं कोई धर्म गुरु नहीं हूं। मैं एक मोटिवेशनल राइटर हूं जो आपको मोटिवेट करता हूंं। मेरा उद्देश्य सच्ची घटना को आपके साथ शेयर करके और आपको मोटिवेट करना है। मैं केवल वही सच्ची घटना को  आपके साथ शेयर करता हूं जो आपकी प्रगति में सहायक सिद्ध होता है।

 


कुछ लोग मानते हैं कि भगवान (God) सब जगह है। प्रत्येक मनुष्य में नहीं बल्कि प्रत्येक जानवर, प्रत्येक पेड़ पौधा, हर कण में भगवान विद्यमान है। जैसा कि हमारे शास्त्रों एवं पुराणों में भी कहा गया है भगवान हर जगह है। जब भक्त बुलाते हैं वह आ जाते हैं।


कुछ निराशावादी  व्यक्ति है जो भगवान (God) को नहीं मानते हैं। वह हमेशा बोलते हैं भगवान दुनिया में है ही नहीं। भगवान है तो उसे बुलाओ। भगवान दिखते कैसे हैं? भगवान रहते कहां हैं? इत्यादि।

 

जैसा कि आप जानते हैं कि सफलता प्राप्त करने के लिए विश्वास होना बहुत जरूरी है। बिना विश्वास के कोई भी सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन को विश्वास था कि मेरे साथ भगवान श्री कृष्ण है इसलिए मैं हार नहीं सकता हूं और वह जीत गया।

 

एक विश्वास के बल पर ही आप बड़े से बड़े लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि आप जानते हैं जिन्हें विश्वास है उसे दुनिया कि सभी सुख प्राप्त होते हैं। जो भगवान को मानता है उसमें विश्वास रूपी शक्ति होती है।

 भगवान (God) सब जगह है – एक सच्ची घटना
आपको सच्ची घटना बता रहा हूं जिसमें भगवान (God) प्रकट हुए थे। टीवी सीरियल में आप देखे होंगे कि प्रह्लाद कि पिता हरीना कश्यप को मारने के लिए भगवान प्रकट हुए थे। ठीक इसी प्रकार विष्णु जी ने कई अवतार लिए और दुष्टों का नाश किया।

 

रामायण महाभारत इत्यादि कहानी हम पढ़ते भी हैं और सीरियल देखे हैं। यह घटना कई युगों पहले की बात है। मैं कुछ समय पहले की एक घटना बता रहा हूं जो आप को अचंभित कर देगा। आपको सोचने पर विवश कर दें कि वास्तव में भगवान है।

 

एक गांव में एक बहुत ही साधारण व्यक्ति रहता था। उसे भगवान पर अटूट विश्वास था। जब कोई व्यक्ति उसे हालचाल पूछता वह बोलते हैं ठाकुर जी जानें।

 

उस गांव में एक ठाकुर जी का मंदिर था। उन्हें उन पर पूरा विश्वास था। उन व्यक्ति के दो पुत्र और एक पुत्री थे। जब पुत्री की शादी किया तो उस साधारण व्यक्ति ने साहूकार से कुछ कर्जा लिया।

 

कुछ समय बाद दोनों पुत्र ने पिता को बोला है यह लो पैसे और साहूकार को देकर कर्ज से मुक्त हो जाओ। उस व्यक्ति ने जाकर साहूकार से कहा यह लीजिए साहूकार जी आपका मूलधन और ब्याज और मुझे अपने कर्जे से मुक्त करा दीजिए।


साहूकार ने एक पेज पर लिख दिया कि आपका पूरा कर्जा ब्याज सहित प्राप्त हुआ। आप कर्जा से मुक्त है। साहूकार ने उस व्यक्ति से पूछा इस पर क्या लिखा हुआ?

 

उस व्यक्ति ने कहा मैं तो अनपढ़ हूं। जो लिखा है वह ठाकुर जी जानें। साहूकार समझ गया कि व्यक्ति बहुत सीधा है। उनके मन में लोभ आ गया। साहूकार ने उस व्यक्ति को कहा अंदर जाकर एक गिलास पानी लेकर आओ।

इसी बीच में साहूकार ने उस पर्ची को हटाकर एक पर्ची लिख दिया कि अभी मेरा कर्जा बाकी है। अंदर से व्यक्ति आया और पर्ची लेकर चला गया। कुछ दिन बाद साहूकार पैसा मांगने पहुंच गया।

 

उस व्यक्ति ने कहा कि यह बात गलत है। मैंने आपको पैसा दे दिया है। मामला कोर्ट में चला गया। कोर्ट में व्यक्ति को बुलाया गया। व्यक्ति जोर जोर से रोने लगा और बोला कि ठाकुर जी जानते हैं कि मैंने उसको पैसा दे दिया।

 

जज साहब ने पूछा कोई गवाह है जिसने आपको साहूकार को पैसा देते देखा था। उसने कहा हां ठाकुर जी है। ठाकुर जी ने मुझे पैसे देते हुए साहूकार को देखा था।

 

जज साहब ने कहा ठाकुर जी को बुलाया जाए। पुलिस वालों ने उस गांव में जाकर लोगों से पूछा ठाकुर जी नाम का कोई व्यक्ति इस गांव में है। उसे कल कोर्ट में आना पड़ेगा।

 

गांव वालों ने कहा ठाकुर जी नाम का कोई भी व्यक्ति इस गांव में नहीं है। ठाकुर जी का मंदिर है। अब भगवान कैसे कोर्ट में पेश होंगे।

 

अगले दिन अदालत की कार्रवाई शुरू हुई। जज साहब के बगल में खरा भक्ति जोर से बोला लगा ठाकुर जी हाजिर हो, ठाकुर जी हाजिर हो। उसी वक्त एक बूढ़ा व्यक्ति सिर पर तिलक लगाए चंदन का माला पहने हुए कोर्ट में आ गया।

 

उस व्यक्ति ने कटघरे में खड़ा होकर बोला सर मैं ठाकुर जी हूं। बताइए क्या बात है? जज साहब ने ठाकुर जी से पूछा क्या आप इस व्यक्ति को साहूकार को पैसे देते हुए देखा था?

 

तब ठाकुर जी ने बोला हां जज साहब मेरे सामने में इस व्यक्ति ने साहूकार को पूरे पैसे ब्याज समेत दे दिया था। आप साहूकार को यहां पर रोकिए और किसी व्यक्ति को साहूकार के घर भेजिए। साहूकार के घर में अलमारी नंबर 3 में एक फाइल है, उस फाइल के 22 में पेज पर वह पर्ची रखा हुआ है। जिसमें लिखा है कि यह व्यक्ति ने ब्याज समेत पैसा दे दिया।

 

वह व्यक्ति इतना बोल कर चला गया। कुछ देर बाद सिपाही वापस आया और जज साहब को एक पर्ची दी। यह पर्ची जिसमें लिखा हुआ था कि पूरा पैसा ब्याज समेत मिल गया।

 

जज साहब ने कहा ठाकुर जी कहां गए उनको बुलाओ। ठाकुर जी दिखाई नहीं दिए। अगले दिन जज साहब उस व्यक्ति के गांव गया। पूरे गांव में खोजा गया। सभी व्यक्ति ने कहा कि वह वृद्ध आदमी इस गांव का नहीं था।

 

जज साहब समझ गए वह वास्तव में ठाकुर जी यानी भगवान ही थे। जज साहब उसी वक्त अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जज साहब भारत के सभी मंदिरों में घूम-घूम कर उसके दरबार पर मिट्टी को अपने सिर में लगाते थे
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भगवान सब जगह हैंं पहले करो विश्वास फिर देखो चमत्कार

PUBLISHED BY
Madan Jha 
Bhagwan sabhi jagah hai


भगवान सभी जगह हैै A Motivational Story
Table of Contents


भगवान सभी जगह हैै A Motivational Story
भगवान (God) सब जगह है – एक सच्ची घटना
किसे भगवान (God) पर विश्वास है?
भगवान (God) को मानने से क्या लाभ?
संक्षेप में
Author
 

मैं कोई धर्म गुरु नहीं हूं। मैं एक मोटिवेशनल राइटर हूं जो आपको मोटिवेट करता हूंं। मेरा उद्देश्य सच्ची घटना को आपके साथ शेयर करके और आपको मोटिवेट करना है। मैं केवल वही सच्ची घटना को आपके साथ शेयर करता हूं जो आपकी प्रगति में सहायक सिद्ध होता है।

 


कुछ लोग मानते हैं कि भगवान (God) सब जगह है। प्रत्येक मनुष्य में नहीं बल्कि प्रत्येक जानवर, प्रत्येक पेड़ पौधा, हर कण में भगवान विद्यमान है। जैसा कि हमारे शास्त्रों एवं पुराणों में भी कहा गया है भगवान हर जगह है। जब भक्त बुलाते हैं वह आ जाते हैं।


कुछ निराशावादी व्यक्ति है जो भगवान (God) को नहीं मानते हैं। वह हमेशा बोलते हैं भगवान दुनिया में है ही नहीं। भगवान है तो उसे बुलाओ। भगवान दिखते कैसे हैं? भगवान रहते कहां हैं? इत्यादि।

 

जैसा कि आप जानते हैं कि सफलता प्राप्त करने के लिए विश्वास होना बहुत जरूरी है। बिना विश्वास के कोई भी सफलता प्राप्त नहीं की जा सकती है। महाभारत के युद्ध में अर्जुन को विश्वास था कि मेरे साथ भगवान श्री कृष्ण है इसलिए मैं हार नहीं सकता हूं और वह जीत गया।

 

एक विश्वास के बल पर ही आप बड़े से बड़े लक्ष्य प्राप्त कर सकते हैं। जैसा कि आप जानते हैं जिन्हें विश्वास है उसे दुनिया कि सभी सुख प्राप्त होते हैं। जो भगवान को मानता है उसमें विश्वास रूपी शक्ति होती है।

 

भगवान (God) सब जगह है – एक सच्ची घटना
आपको सच्ची घटना बता रहा हूं जिसमें भगवान (God) प्रकट हुए थे। टीवी सीरियल में आप देखे होंगे कि प्रह्लाद कि पिता हरीना कश्यप को मारने के लिए भगवान प्रकट हुए थे। ठीक इसी प्रकार विष्णु जी ने कई अवतार लिए और दुष्टों का नाश किया।

 

रामायण महाभारत इत्यादि कहानी हम पढ़ते भी हैं और सीरियल देखे हैं। यह घटना कई युगों पहले की बात है। मैं कुछ समय पहले की एक घटना बता रहा हूं जो आप को अचंभित कर देगा। आपको सोचने पर विवश कर दें कि वास्तव में भगवान है।

 

एक गांव में एक बहुत ही साधारण व्यक्ति रहता था। उसे भगवान पर अटूट विश्वास था। जब कोई व्यक्ति उसे हालचाल पूछता वह बोलते हैं ठाकुर जी जानें।

 

उस गांव में एक ठाकुर जी का मंदिर था। उन्हें उन पर पूरा विश्वास था। उन व्यक्ति के दो पुत्र और एक पुत्री थे। जब पुत्री की शादी किया तो उस साधारण व्यक्ति ने साहूकार से कुछ कर्जा लिया।

 

कुछ समय बाद दोनों पुत्र ने पिता को बोला है यह लो पैसे और साहूकार को देकर कर्ज से मुक्त हो जाओ। उस व्यक्ति ने जाकर साहूकार से कहा यह लीजिए साहूकार जी आपका मूलधन और ब्याज और मुझे अपने कर्जे से मुक्त करा दीजिए।


साहूकार ने एक पेज पर लिख दिया कि आपका पूरा कर्जा ब्याज सहित प्राप्त हुआ। आप कर्जा से मुक्त है। साहूकार ने उस व्यक्ति से पूछा इस पर क्या लिखा हुआ?

 

उस व्यक्ति ने कहा मैं तो अनपढ़ हूं। जो लिखा है वह ठाकुर जी जानें। साहूकार समझ गया कि व्यक्ति बहुत सीधा है। उनके मन में लोभ आ गया। साहूकार ने उस व्यक्ति को कहा अंदर जाकर एक गिलास पानी लेकर आओ।


 

इसी बीच में साहूकार ने उस पर्ची को हटाकर एक पर्ची लिख दिया कि अभी मेरा कर्जा बाकी है। अंदर से व्यक्ति आया और पर्ची लेकर चला गया। कुछ दिन बाद साहूकार पैसा मांगने पहुंच गया।

 

उस व्यक्ति ने कहा कि यह बात गलत है। मैंने आपको पैसा दे दिया है। मामला कोर्ट में चला गया। कोर्ट में व्यक्ति को बुलाया गया। व्यक्ति जोर जोर से रोने लगा और बोला कि ठाकुर जी जानते हैं कि मैंने उसको पैसा दे दिया।

 

जज साहब ने पूछा कोई गवाह है जिसने आपको साहूकार को पैसा देते देखा था। उसने कहा हां ठाकुर जी है। ठाकुर जी ने मुझे पैसे देते हुए साहूकार को देखा था।

 

जज साहब ने कहा ठाकुर जी को बुलाया जाए। पुलिस वालों ने उस गांव में जाकर लोगों से पूछा ठाकुर जी नाम का कोई व्यक्ति इस गांव में है। उसे कल कोर्ट में आना पड़ेगा।

 

गांव वालों ने कहा ठाकुर जी नाम का कोई भी व्यक्ति इस गांव में नहीं है। ठाकुर जी का मंदिर है। अब भगवान कैसे कोर्ट में पेश होंगे।

 

अगले दिन अदालत की कार्रवाई शुरू हुई। जज साहब के बगल में खरा भक्ति जोर से बोला लगा ठाकुर जी हाजिर हो, ठाकुर जी हाजिर हो। उसी वक्त एक बूढ़ा व्यक्ति सिर पर तिलक लगाए चंदन का माला पहने हुए कोर्ट में आ गया।

 

उस व्यक्ति ने कटघरे में खड़ा होकर बोला सर मैं ठाकुर जी हूं। बताइए क्या बात है? जज साहब ने ठाकुर जी से पूछा क्या आप इस व्यक्ति को साहूकार को पैसे देते हुए देखा था?

 

तब ठाकुर जी ने बोला हां जज साहब मेरे सामने में इस व्यक्ति ने साहूकार को पूरे पैसे ब्याज समेत दे दिया था। आप साहूकार को यहां पर रोकिए और किसी व्यक्ति को साहूकार के घर भेजिए। साहूकार के घर में अलमारी नंबर 3 में एक फाइल है, उस फाइल के 22 में पेज पर वह पर्ची रखा हुआ है। जिसमें लिखा है कि यह व्यक्ति ने ब्याज समेत पैसा दे दिया।

 

वह व्यक्ति इतना बोल कर चला गया। कुछ देर बाद सिपाही वापस आया और जज साहब को एक पर्ची दी। यह पर्ची जिसमें लिखा हुआ था कि पूरा पैसा ब्याज समेत मिल गया।

 

जज साहब ने कहा ठाकुर जी कहां गए उनको बुलाओ। ठाकुर जी दिखाई नहीं दिए। अगले दिन जज साहब उस व्यक्ति के गांव गया। पूरे गांव में खोजा गया। सभी व्यक्ति ने कहा कि वह वृद्ध आदमी इस गांव का नहीं था।

 

जज साहब समझ गए वह वास्तव में ठाकुर जी यानी भगवान ही थे। जज साहब उसी वक्त अपने पद से इस्तीफा दे दिया। जज साहब भारत के सभी मंदिरों में घूम-घूम कर उसके दरबार पर मिट्टी को अपने सिर में लगाते थे।


 

किसी मंदिर में बैठते नहीं। जज साहब कहते थे हमने भगवान को अदालत में बुलाकर खड़ा किया था। फिर मैं किसी मंदिर में कैसे बैठ सकता हूं। इस तरह जज साहब काफी बदल गए।

 

यह कहानी सच्ची घटना है। यदि आपको भगवान (God) पर विश्वास है तो वह जरूर आपको बुरे वक्त में काम आएंगे। आप भले ही किसी धर्म के हो। आपके धर्म जो भी देवता हो। उसमें आप विश्वास रखें। जैसे यदि आप हिंदू हैं तो भगवान जैसे कृष्ण, राम आदि, मुस्लिम है तो मोहम्मद साहब, सिख है तो गुरु नानक देव, ईसाई हैं तो ईशा मसीह इत्यादि।

 

किसे भगवान (God) पर विश्वास है?
आप अधिकतर व्यक्ति के मुंह से सुनते होंगे मैं किसी भगवान को नहीं मानता। मुझे किसी भगवान पर विश्वास नहीं है। पर बुरे वक्त आने पर उन्हें भगवान की याद जरूर आती है।

 

कई बार आप और मैं ऐसे लोगों के मुंह से सुना है कि आज भगवान ने मेरी जान बचाई, मेरे बगल से कार निकली मैं तो बाल-बाल बच गया।

 

मेरा जान पहचान का एक डाक्टर हैं जो भगवान में भगवान (God) नहीं रखता। अधिकतर उसके मुंह से निकलती है मुझे तो जो करना था मैं कर दिया आगे भगवान जाने।

 

एक बार मैंने उससे पूछा तुम तो भगवान को मानता ही नहीं कि तुम्हें भगवान की याद क्यों आती है। उसका जवाब था जब मुझे बुरा वक्त आता है तो भगवान की याद आने लगती है। अच्छे स्थिति में भगवान को भूल जाता हूं।

 

इस डॉक्टर की तरह दुनिया में अनेक इंसान है जो हमेशा कहता है कि मुझे भगवान पर विश्वास नहीं है। मैं भगवान को नहीं मानता हूं और जब भी बुरा वक्त आता है तो भगवान को याद करने लगते हैं।

 

दुख में सुमिरन सब करे

सुख में करे न कोई।

ज्यो सुख में सुमिरन करे

तो दुख काहे होए।

 

कहने का अर्थ है भगवान का दुख में सब याद करते हैं और सुख में कोई याद नहीं करता। यदि हम भगवान को सुख में भी याद करें तो दुख कभी आएगा ही नहीं।

 

भगवान (God) को मानने से क्या लाभ?
मैं आपको यह नहीं कहता कि आप हमेशा मंदिर मस्जिद में जाओ, पूजा-पाठ करो, बड़े-बड़े यज्ञ का आयोजन करो। मेरा सिर्फ यह कहना है कि आप भगवान को मानो।

 

आप विश्वास करो कि भगवान (God) हर जगह है। ऐसा करने से आपको कई फायदे मिलेंगे। लाभ के बारे में बता रहा हूं। जो निम्नलिखित हैं-

 

1. यदि आपको विश्वास हो जाएगा कि भगवान (God) हर जगह है तो आप कभी कोई बुरा काम नहीं करोगे। चोरी, डकैती जब आप करने जाओगे तो सोचोगे कि भगवान देख रहा है और आप वह गलत काम नहीं कर पाओगे।

 

2. जब आपको यह पता चलेगा कि हर इंसान में भगवान (God) विराजमान हैं तो आप किसी भी इंसान से नफरत नहीं करोगे। क्योंकि आपको प्रत्येक व्यक्ति में भगवान दिखाई देगा।

 

3. आप विद्यार्थियों है और परीक्षा देने जा रहे हो तो परीक्षा भवन में आप भगवान (God) का नाम लेकर परीक्षा शुरू करें। आप महसूस करोगे एक शक्ति आपके पास आ गई। एक बार प्रयोग करके देखें।

 

4. कई विद्यार्थी का फाइनल सिलेक्शन 0.1 और 0.2 नंबर के कारण नहीं हो पाता है। इस स्थिति में उसे भगवान (God) की याद आती है। यदि आप भगवान को पहले ही याद कर ले तो ऐसा नौवत नहीं आएगा।

 

5. एक गाड़ी में 50 यात्री सवार है। एक्सीडेंट होता है और 40 यात्री मर जाते हैं 10 बच जाते हैं। आप सोचिए कि क्या कारण है कि 10 यात्री बच गया।

 

संक्षेप में
इस लेख को लिखने का मेरा एक ही उद्देश्य था कि नौजवान को मन में भगवान (God) की भावना जगाना। उसे विश्वास दिलाना कि इस दुनिया में भगवान है। आज के नौजवान भगवान को भूलकर गलत रास्ता पर जा रहे हैं। यदि वह भगवान को मानने लगे कोई गलत काम नहीं कर पाएगा।

धन्यवाद।।🙏🙏👍👍🌹🌹❤️❤️🙋🙋

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Radhe shyam ji ki jai ho 🙏

भगवान को पाने का सबसे सरल मार्ग क्या है? पढ़िए ये रोचक कहानी 🙏🙏

एक गाँव में एक बूढ़ी माई रहती थी। माई का आगे – पीछे कोई नहीं था इसलिए बूढ़ी माई बिचारी अकेली रहती थी। एक दिन उस गाँव में एक साधु आया। बूढ़ी माई ने साधु का बहुत ही प्रेम पूर्वक आदर सत्कार किया। जब साधु जाने लगा तो बूढ़ी माई ने कहा – “ महात्मा जी ! आप तो ईश्वर के परम भक्त हैं। कृपा करके मुझे ऐसा आशीर्वाद दीजिये जिससे मेरा अकेलापन दूर हो जाये। अकेले रह – रह करके उब चुकी हूँ। ”




साधु ने मुस्कुराते हुए अपनी झोली में से बाल – गोपाल की एक मूर्ति निकाली और बुढ़िया को देते हुए कहा – “ माई ये लो आपका बालक है, इसका अपने बच्चे की तरह प्रेम पूर्वक लालन-पालन करती रहना। बुढ़िया माई बड़े लाड़-प्यार से ठाकुर जी का लालन-पालन करने लगी।

एक दिन गाँव के कुछ शरारती बच्चों ने देखा कि माई मूर्ति को अपने बच्चे की तरह लाड़ कर रही है। नटखट बच्चों को माई से हंसी – मजाक करने की सूझी। उन्होंने माई से कहा - "अरी मैया सुन ! आज गाँव में जंगल से एक भेड़िया घुस आया है, जो छोटे बच्चों को उठाकर ले जाता है और मारकर खा जाता है। तू अपने लाल का ख्याल रखना, कहीं भेड़िया इसे उठाकर ना ले जाये !

बुढ़िया माई ने अपने बाल-गोपाल को उसी समय कुटिया मे विराजमान किया और स्वयं लाठी (छड़ी) लेकर दरवाजे पर पहरा लगाने के लिए बैठ गयी। अपने लाल को भेड़िये से बचाने के लिये बुढ़िया माई भूखी -प्यासी दरवाजे पर पहरा देती रही। पहरा देते-देते एक दिन बीता, फिर दूसरा, तीसरा, चौथा और पाँचवा दिन बीत गया।

बुढ़िया माई पाँच दिन और पाँच रात लगातार, बगैर पलके झपकाये -भेड़िये से अपने बाल-गोपाल की रक्षा के लिये पहरा देती रही। उस भोली-भाली मैया का यह भाव देखकर, ठाकुर जी का ह्रदय प्रेम से भर गया, अब ठाकुर जी को मैया के प्रेम का प्रत्यक्ष रुप से आस्वादन करने की इच्छा हुई ।

भगवान बहुत ही सुंदर रुप धारण कर, वस्त्राभूषणों से सुसज्जित होकर माई के पास आये। ठाकुर जी के पाँव की आहट पाकर माई ड़र गई कि "कही दुष्ट भेड़िया तो नहीं आ गया, मेरे लाल को उठाने !" माई ने लाठी उठाई और भेड़िये को भगाने के लिये उठ खड़ी हुई ।
तब श्यामसुंदर ने कहा – “मैय्या मैं हूँ, मैं तेरा वही बालक हूँ -जिसकी तुम रक्षा करती हो!"
माई ने कहा - "क्या ? चल हट तेरे जैसे बहुत देखे है, तेरे जैसे सैकड़ों अपने लाल पर न्योछावर कर दूँ, अब ऐसे मत कहियो! चल भाग जा यहा से ।

ठाकुर जी मैय्या के इस भाव और एकनिष्ठता को देखकर बहुत ज्यादा प्रसन्न हो गये। ठाकुर जी मैया से बोले - "अरी मेरी भोली मैया, मैं त्रिलोकीनाथ भगवान हूँ, मुझसे जो चाहे वर मांग ले, मैं तेरी भक्ति से प्रसन्न हूँ।"
बुढ़िया माई ने कहा - "अच्छा आप भगवान हो, मैं आपको सौ-सौ प्रणाम् करती हूँ ! कृपा कर मुझे यह वरदान दीजिये कि मेरे प्राण-प्यारे लाल को भेड़िया न ले जाय।" अब ठाकुर जी और ज्यादा प्रसन्न होते हुए बोले - "तो चल मैया मैं तेरे लाल को और तुझे अपने निज धाम लिए चलता हूँ। वहाँ भेड़िये का कोई भय नहीं है।" इस तरह प्रभु बुढ़िया माई को अपने निज धाम ले गये।
सीख.........................................
इस कहानी से शिक्षा मिलती है कि हमें अपने अन्दर बैठे ईश्वरीय अंश की काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी भेड़ियों से रक्षा करनी चाहिए। जब हम पूरी तरह से तन्मय होकर अपनी पवित्रता और शांति की रक्षा करते हैं तो एक न एक दिन ईश्वर हमें दर्शन जरूर देते हैं। भगवान को पाने का सबसे सरल मार्ग है, भगवान को प्रेम करो - निष्काम प्रेम जैसे बुढ़िया माई ने किया।

1#सावन माह में बुधवार को जरूर सुनें गणेश जी की कहानी, म‍िलेगा सुहाग व भाई की लंबी आयु का आशीर्वाद🙏🙏🌹

श्री गणेश हर विघ्न  को दूर करते हैं। अपनी सुहाग की लंबीउम्र से हमेशा खुशियां भर देंगे , ऐसे शुभ फल देने वाले भगवान श्री गणेश की कहानी यहां आप पढ़ सकते हैं।🙏🏻




भगवान श्री गणेश की पूजा हर पूजा से पहले की जाती है। महिलाएं खासतौर पर अपने पति की लंबी उम्र के लिए भगवान श्री गणेश की पूजा जरूर करती हैं। ऐसे होते हैं भगवान श्री गणेश की पूजा करने से पति की लंबी उम्र के साथ-साथ भगवान हमेशा खुशियों से भरे रहते हैं। वहाँ कोई भी दुःख-दरिद्रता कभी नहीं आती। तो आइए जाने सुहाग की लंबी आयु देने वाले भगवान श्री गणेश की अद्भुत कहानी।

श्री गणेश की सुहागरात का आशीर्वाद देने वाली कथा 
एक समय की बात है एक भाई बहन रहते थे। बहन का नियम था कि वह अपने भाई का चेहरा देखे ही खाना खाती थी। हर रोज वह सुबह उठती थी और जल्दी-जल्दी सारा काम करके अपने भाई का मुंह देखने के लिए उसके घर जाती थी। एक दिन रास्ते में एक पीपल के नीचे गणेश जी की मूर्ति रखी थी। उसने भगवान के सामने हाथ जोड़कर कहा कि मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर सबको दीजिए। यह कहकर वह आगे बढ़ जाती थी। जंगल के झाड़ियों के कांटे उसके पैरों में चुभा करते जाते थे। 
एक दिन भाई के घर पहुंची और भाई का मुंह देख कर बैठ गई, तो भाभी ने पूछा पैरों में क्या हो गया हैं। यह सुनकर उसने भाभी को जवाब दिया कि रास्ते में जंगल के झाड़ियों के गिरे हुए कांटे पांव में छुप गए हैं। जब वह वापस अपने घर आ जाए तब भाभी ने अपने पति से कहा कि रास्ते को साफ करवा दो, आपकी बहन के पांव में बहुत सारे कांटा चुभ गए हैं। भाई ने तब कुल्हाड़ी लेकर सारी झाड़ियों को काटकर रास्ता साफ कर दिया। जिससे गणेश जी का स्थान भी वहां से हट गया। यह देखकर भगवान गुस्सा हो गए और उसके भाई के प्राण हर लिए। 

लोग अंतिम संस्कार के लिए जब भाई को ले जा रहे थे, तब उसकी भाभी रोते हुए लोगों से कहीं थोड़ी देर रुक जाओ, उसकी बहन आने वाली है। वह अपने भाई का मुंह देखे बिना नहीं रह सकती है। उसका यह नियम है। तब लोगों ने कहा आज तो देख लेगी पर कल कैसे देखेगी। रोज दिन की तरह बहन अपने भाई का मुंह देखने के लिए जंगल में निकली। तब जंगल में उसने देखा कि सारा रास्ता साफ किया हुआ है। जब वह आगे बढ़ी तो उसने देखा कि सिद्धिविनायक को भी वहां से हट दिया गया हैं। तब उसने जाने से पहले गणेश जी को एक अच्छे स्थान पर रखकर उन्हें स्थान दिया और हाथ जोड़कर बोली भगवान मेरे जैसा अमर सुहाग और मेरे जैसा अमर पीहर सबको देना और फिर बोलकर आगे निकल गई। 
भगवान टैब भगवान लागे अगर यह नहीं सुना तो हमें कौन मानेगा, हमें कौन पूजेगा। तब सिद्धिविनायक ने उसे आवाज दी, बेटी इस खेजड़ी की सात दोस्त लेकर जा और उसे कच्चे दूध में नासाकर भाई के ऊपर चिंता मार देना वह तीनो कमरे में बैठ जाएगी। यह सुनकर जब बहन जब पीछे मुड़ी तो वहाँ कोई नहीं था। फिर वह यह आईडिया लगा कि ठीक है जैसा कि सूना कैरेक्टर कर रहा हूं। फिर वह 7 खेजड़ी की सहेलियाँ अपने भाई के घर ले गई। उसने देखा कि वहाँ बहुत से लोग बैठे हैं। भाभी सैलून रो रही और भाई की लास्ट डेट हैं। तब उसने नामांकन को नामांकित किये गये नियमों के तहत भाई के ऊपर प्रयोग किया। तब भाई उठ कर बैठ गया। भाई बोला बहन से बोला मुझे बहुत गहरी नींद आ गई थी। तब बहन बोली यह नींद किसी दुश्मन को भी ना आए और वह सारी बात अपने भाई को बता दे। 

तो मन्न्यता के अनुसार, ये है गणेश जी की चमत्कारी कहानी। 
गणेश जी क्या हैं? 
बोलो श्री गणेश भगवान जी की जय 🙏🏻🙏🏻
लेख पूरा पढ़ने के लिए धन्यवाद 🙏🏻

इस लघु कहानी से समझिए भक्ति की शक्ति🙏🌹

अगर आप अपने आराध्य के प्रति समर्पित हैं तो आपका कोई काम नहीं रुक सकता है। यहां तक कि भाग्य में खराब लिखा है तो वह भी अच्छा हो जाएगा।
एक चिड़िया जंगल में एक पेड़ पर रहती थी। जंगल बिलकुल सूखा हुआ था। न घास, न पेड़, न फूल, न फल। जिस वृक्ष पर चिड़िया रहती थी उस पर भी सिर्फ सूखी टहनियाँ थीं। पत्ते भी नहीं थे। चिड़िया वहीं रह कर हर समय शंकर भगवान का जाप और गुणगान करती रहती थी।

एक बार नारद जी जंगल में हो कर जा रहे थे। चिड़िया ने देख लिया। तुरंत आकर बोली नारद जी आप कहाँ जा रहे है। नारद ने कहा शंकरजी के पास जा रहा हूँ। चिड़िया ने कहा भगवान शंकर मेरा बड़ा ध्यान रखते है। मेरे सूखे जंगल के बारे में उन्हें पता नहीं है शायद। कृपया उनसे कह दीजिएगा मेरे जंगल को हरा भरा कर दें।

नारद जी शंकर जी के पास जाकर चिड़िया के जंगल की बात की, नारद के कई बार कहने पर शंकर जी ने कहा मैं इसमें कुछ नहीं कर सकता हूँ नारद। चिड़िया के भाग्य में सात जन्म, ऐसे ही सूखे जंगल में रहना लिखा है। नारद कुछ नहीं बोले।

कुछ समय बाद नारद जी फिर वहाँ से निकले तो देखा जंगल बिल्कुल बदला हुआ था। जंगल हरा भरा, हरी घास, फूल, फल लदे हुये थे। चिड़िया का पेड़ फूलों और फलों से लदा था। चिड़िया भी प्रेममग्न होकर पेड़ पर नाच रही थी। नारद जी ने सोचा शंकर जी ने मुझ से झूठ बोला।

नारद जी ने शंकर जी से जंगल के हरे भरे तथा चिड़िया के बारे में पूछा तो शंकरजी ने कहा कि मैनें चिड़िया को कभी कुछ नहीं दिया, फिर भी मेरा गुणगान करती रहती है। उसकी भक्ति, विश्वास और प्रेम की वजह से मुझे सातों जन्म काट कर सब चिड़िया को देना पड़ा। ऐसे दयालु हैं हमारे भोलेनाथ।

1#भक्त के अधीन भगवान - कसाई की कहानी🙏🙏

एक कसाई था सदना। वह बहुत ईमानदार था, वो भगवान के नाम कीर्तन में मस्त रहता था। यहां तक की मांस को काटते-बेचते हुए भी वह भगवान नाम गुनगुनाता रहता था।




एक दिन वह अपनी ही धुन में कहीं जा रहा था, कि उसके पैर से कोई पत्थर टकराया। वह रूक गया, उसने देखा एक काले रंग के गोल पत्थर से उसका पैर टकरा गया है। उसने वह पत्थर उठा लिया व जेब में रख लिया, यह सोच कर कि यह माँस तोलने के काम आयेगा।

वापिस आकर उसने वह पत्थर माँस के वजन को तोलने के काम में लगाया। कुछ ही दिनों में उसने समझ लिया कि यह पत्थर कोई साधारण नहीं है। जितना वजन उसको तोलना होता, पत्थर उतने वजन का ही हो जाता है

भक्त के अधीन भगवान - कसाई की कहानी (Bhakt Ke Adheen Bhagawan Kasai Ki Kahani)


   
एक कसाई था सदना। वह बहुत ईमानदार था, वो भगवान के नाम कीर्तन में मस्त रहता था। यहां तक की मांस को काटते-बेचते हुए भी वह भगवान नाम गुनगुनाता एक दिन वह अपनी ही धुन में कहीं जा रहा था, कि उसके पैर से कोई पत्थर टकराया। वह रूक गया, उसने देखा एक काले रंग के गोल पत्थर से उसका पैर टकरा गया है। उसने वह पत्थर उठा लिया व जेब में रख लिया, यह सोच कर कि यह माँस तोलने के काम आयेगा।

वापिस आकर उसने वह पत्थर माँस के वजन को तोलने के काम में लगाया। कुछ ही दिनों में उसने समझ लिया कि यह पत्थर कोई साधारण नहीं है। जितना वजन उसको तोलना होता, पत्थर उतने वजन का ही हो जाता है।

धीरे-धीरे यह बात फैलने लगी कि सदना कसाई के पास वजन करने वाला पत्थर है, वह जितना चाहता है, पत्थर उतना ही तोल देता है।
किसी को एक किलो मांस देना होता तो तराजू में उस पत्थर को एक तरफ डालने पर, दूसरी ओर एक किलो का मांस ही तुलता। अगर किसी को दो किलो चाहिए हो तो वह पत्थर दो किलो के भार जितना भारी हो जाता।

इस चमत्कार के कारण उसके यहां लोगों की भीड़ जुटने लगी। भीड़ जुटने के साथ ही सदना की दुकान की बिक्री बढ़ गई।

बात एक शुद्ध ब्राह्मण तक भी पहुंची। हालांकि वह ऐसी अशुद्ध जगह पर नहीं जाना चाहता थे, जहां मांस कटता हो व बिकता हो। किन्तु चमत्कारिक पत्थर को देखने की उत्सुकता उसे सदना की दुकान तक खींच लाई ।

दूर से खड़ा वह सदना कसाई को मीट तोलते देखने लगा। उसने देखा कि कैसे वह पत्थर हर प्रकार के वजन को बराबर तोल रहा था। ध्यान से देखने पर उसके शरीर के रोंए खड़े हो गए। भीड़ के छटने के बाद ब्राह्मण सदना कसाई के पास गया।

ब्राह्मण को अपनी दुकान में आया देखकर सदना कसाई प्रसन्न भी हुआ और आश्चर्यचकित भी। बड़ी नम्रता से सदना ने ब्राह्मण को बैठने के लिए स्थान दिया और पूछा कि वह उनकी क्या सेवा कर सकता है!

ब्राह्मण बोला: तुम्हारे इस चमत्कारिक पत्थर को देखने के लिए ही मैं तुम्हारी दुकान पर आया हूँ, या युँ कहें कि ये चमत्कारी पत्थर ही मुझे खींच कर तुम्हारी दुकान पर ले आया है।

बातों ही बातों में उन्होंने सदना कसाई को बताया कि जिसे पत्थर समझ कर वो माँस तोल रहा है, वास्तव में वो शालीग्राम जी हैं, जोकि भगवान का स्वरूप होता है। शालीग्राम जी को इस तरह गले-कटे मांस के बीच में रखना व उनसे मांस तोलना बहुत बड़ा पाप है।

सदना बड़ी ही सरल प्रकृति का भक्त था। ब्राह्मण की बात सुनकर उसे लगा कि अनजाने में मैं तो बहुत पाप कर रहा हूं। अनुनय-विनय करके सदना ने वह शालिग्राम उन ब्राह्मण को दे दिया और कहा कि “आप तो ब्राह्मण हैं, अत: आप ही इनकी सेवा-परिचर्या करके इन्हें प्रसन्न करें। मेरे योग्य कुछ सेवा हो तो मुझे अवश्य बताएं।“

ब्राह्मण उस शालीग्राम शिला को बहुत सम्मान से घर ले आए। घर आकर उन्होंने श्रीशालीग्राम को स्नान करवाया, पँचामृत से अभिषेक किया व पूजा-अर्चना आरम्भ कर दी।

कुछ दिन ही बीते थे कि उन ब्राह्मण के स्वप्न में श्री शालीग्राम जी आए व कहा: हे ब्राह्मण! मैं तुम्हारी सेवाओं से प्रसन्न हूं, किन्तु तुम मुझे उसी कसाई के पास छोड़ आओ।

स्वप्न में ही ब्राह्मण ने कारण पूछा तो उत्तर मिला कि- तुम मेरी अर्चना-पूजा करते हो, मुझे अच्छा लगता है, परन्तु जो भक्त मेरे नाम का गुणगान कीर्तन करते रहते हैं, उनको मैं अपने-आप को भी बेच देता हूँ। सदना तुम्हारी तरह मेरा अर्चन नहीं करता है परन्तु वह हर समय मेरा नाम गुनगुनाता रहता है जोकि मुझे अच्छा लगता है, इसलिए तो मैं उसके पास गया था।

ब्राह्मण अगले दिन ही, सदना कसाई के पास गया व उनको प्रणाम करके, सारी बात बताई व श्रीशालीग्रामजी को उन्हें सौंप दिया ब्राह्मण की बात सुनकर सदना कसाई की आंखों में आँसू आ गए। मन ही मन उन्होंने माँस बेचने-खरीदने के कार्य को तिलांजली देने की सोची और निश्चय किया कि यदि मेरे ठाकुर को कीर्तन पसन्द है, तो मैं अधिक से अधिक समय नाम-कीर्तन ही करूंगा।

#1दुर्गा मां के 108 नाम🙏🏻👇









1.सती

2.साध्वी

3.भवप्रीता

4. भवानी

5. भमोचनी

6. आर्य

7. दुर्गा

8. जया

9. आद्या

10. त्रिनेत्र

11. शूलधारिणी

12. पिनाक धारिणी

13. चित्र

14. चन्द्रघण्टा

15. महातप

16. मन:

17. बुद्धि

18. अहंकार

19. चित्तरुपा

20. चिता

21. चिति

22. सर्वमन्त्रमयी

23. सत्ता

24. सत्यानन्द

25. अनन्ता

26. भवानी

27. भव्या

28. भव्या

29. अभव्या

30. सदागति

31. शांभवी

32. देवमाता

33. स्वरुपिणी चिन्ता

34. रत्नप्रिया

35. सर्वविद्या

36. दक्षिणायण

37. दक्षज्ञवानसिनी

38. अपर्णा

39. अनेकवर्णा

40. 41. पाटलावती

42. पट्टा परीधाना
43. कलमजिरंजीनी
44. अमय विक्रमा
45. ब्रुटा
46. ​​सुन्दरी
47. सुरसुन्दरी
48. वनदुर्गा
49. मातंगी
50. मतंगमुनिपूजिता
51. ब्राह्मी
52. माहेश्वरी
53. अन्द्री
54. कुमारी
55. वैष्णवी
56. चामुण्डा
57. वाराही
58. लक्ष्मीतंगी
59. पुरुषकृति
60. विमला
61. उत्कर्षिनी
62. ज्ञाना
63. क्रिया
64. नित्या
65. बुद्धि
66. बहुला
67. बहुलप्रेमी
68. सर्ववाहन
69. निशुंभशुंभहननी
70. महिषासुरमर्दिनी
71. मकरकटभहन्त्री
72. चण्डमुण्डविनाशिनी
73.समस्त राक्षसों का नाश
74. सर्वदानवघातिनी
75. सत्य
76. सर्वसशस्त्र
77. बहु-सशस्त्र
78. बहु-सशस्त्र
79. कुमारी
80 समस्त राक्षसों का नाश
81.कैशोरी
82. युवती
83. यति:
84. अप्रौढ़ा
85. प्रौढ़
86. वृद्धमाता
87. बलप्रदा
88. महोदरी
89. मुक्तकेशी
90. घोररुपा
91. महाबला
92. अग्निज्वाला
93. रौद्रमुखी
94. कालरात्रि
95. तपस्विनी
96. नारायण

97. भद्रकाली

98. विष्णुमाया

99. जलोदरी

100. शिवदूती

101. कराली

102. अनन्ता

103. परमेश्वरी

104. कात्यायनी

105. सावित्री

106. प्रत्यक्षा

107. ब्रह्मवादिनी

108. सर्वशास्त्रमयी

लक्ष्मी माता के 18 पुत्रो के नाम 🙏🏻🙏🏻👇

1.ॐ देवसखाय नम: 2. ॐ चिक्लीताय नम:

भक्ति स्टोरी घरेलू नुस्खे आदि 🙏🌹